मराठा vs ओबीसी, मराठी vs गुजराती... महाराष्ट्र चुनाव के नतीजे तय करेंगे ये 6 X फैक्टर

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महाराष्ट्र चुनाव के लिए नॉमिनेशन करने वाले उम्मीदवारों के लिए नाम वापसी की अंतिम तारीख बीतने के साथ ही तस्वीर साफ हो चुकी है. सूबे की 288 विधानसभा सीटों के लिए नाम वापसी के बाद 4136 उम्मीदवार चुनाव मैदान में हैं. दिवाली का त्योहार भी बीत चुका है और त्योहारी मौसम के बाद राजनीतिक दलों ने अपना प्रचार अभियान तेज कर दिया है.

भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी), एकनाथ शिंदे की अगुवाई वाली शिवसेना और अजित पवार की अगुवाई वाली राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) के गठबंधन महायुति ने लोकसभा चुनाव में पिछड़ने के बाद डैमेज कंट्रोल करने की कोशिश में कई योजनाओं का ऐलान किया है तो वहीं विपक्षी महाविकास अघाड़ी (एमवीए) को उम्मीद है कि मतदाता शिवसेना और एनसीपी को तोड़ने के लिए लोकसभा चुनाव की तर्ज पर बीजेपी को सबक सिखाएंगे. उम्मीद और कवायद के बीच की इस लड़ाई में एक्स फैक्टर क्या हैं?

1- माझी लड़की बहिन योजना

महायुति सरकार ने ढाई लाख रुपये से कम वार्षिक आय वाले परिवार की महिलाओं के लिए माझी लड़की बहिन योजना शुरू की है. इस योजना के तहत जुलाई से महिलाओं को हर महीने 1500 रुपये दिए जा रहे हैं. अक्टूबर महीने तक इस योजना के लाभार्थियों की संख्या 2.34 करोड़ पहुंच गई थी जो कुल महिला मतदाताओं की संख्या का करीब-करीब आधा है. विधानसभा सीटों के लिहाज से देखें तो 288 सीटों वाले सूबे में यह आंकड़ा करीब 80 हजार लाभार्थी प्रति सीट पहुंचता है. सत्ताधारी महायुति को उम्मीद है कि इससे ग्रामीण और कृषि से जुड़े मतदाताओं की नाराजगी दूर होगी और महिला वोटबैंक में गठबंधन का जनाधार मजबूत होगा.

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इसी तरह की योजना मध्य प्रदेश में भी बीजेपी की सरकार ने लागू की थी और सरकार बनाने में भी सफल रही जबकि फेवरेट कांग्रेस को माना जा रहा था. सरकार बनाने में महिला मतदाताओं के निर्णायक रोल और मध्य प्रदेश-छत्तीसगढ़, हरियाणा के ट्रेंड को देखते हुए ही महायुति सरकार ने महिलाओं के लिए योजना शुरू की. महायुति के मेनिफेस्टो में यह वादा भी किया गया है कि इस योजना के तहत दी जा रही धनराशि को 1500 से बढ़ाकर 2100 रुपये कर दिया जाएगा. हालांकि, एक पहलू यह भी है कि फ्रीबीज कल्चर पर महिला मतदाताओं का भी एक वर्ग सवाल उठा रहा है. महायुति सरकार के कार्यकाल में महंगाई भी बढ़ी है. यह बीजेपी और महायुति के खिलाफ जा सकता है.

2- शहरी विकास बनाम ग्रामीण बदहाली

महाराष्ट्र को राजनीतिक दृष्टि से छह जोन में बांटा जाता है. सूबे के हर जोन की तस्वीर भी अलग-अलग है. तीन जोन विदर्भ, मराठवाड़ा और उत्तरी महाराष्ट्र का बड़ा हिस्सा आर्थिक रूप से पिछड़ा है तो वहीं अन्य तीन जोन- मुंबई, ठाणे-कोंकण और पश्चिमी महाराष्ट्र आर्थिक रूप से अपेक्षाकृत समृद्ध हैं. मुंबई, ठाणे-कोंकण और पश्चिमी महाराष्ट्र में प्रति व्यक्ति आय भी बाकी तीन जोन के मुकाबले दो या तीन गुना तक अधिक हैं. यहां राज्य के भीतर राज्य है और संख्याबल के लिहाज से भी देखें तो दोनों की ही ताकत लगभग आधी-आधी है.

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महाराष्ट्र में किसान सियासत का केंद्र रहे हैं. आर्थिक रूप से समृद्ध राज्य की इमेज वाले महाराष्ट्र का एक पहलू यह भी है कि किसानों की आत्महत्या के मामले में यह प्रदेश शीर्ष पर रहा. देशभर में किसानों के सुसाइड करने के कुल मामलों में से 37.6 फीसदी केस महाराष्ट्र से ही आए. ऐसा तब है, जब वित्तीय वर्ष 2022-23 में ही महाराष्ट्र जीडीपी में 13.3 फीसदी योगदान के साथ देशभर में शीर्ष पर रहा था. विदर्भ और मराठावाड़ा किसान सुसाइड के केंद्र हैं. ये दोनों ही इलाके अकाल और सूखे जैसी आपदाओं से जूझते रहे हैं. मराठा समुदाय आरक्षण की मांग को लेकर आंदोलन कर रहा है तो उसके पीछे ग्रामीण इलाकों की समस्याएं भी एक प्रमुख कारण हैं.

महाराष्ट्र के ग्रामीण इलाकों में संकट के कई कारण हैं. जल संकट के साथ ही जब अंतरराष्ट्रीय नबाजार में में कीमतें आकर्षक थीं, तभी प्याज के निर्यात पर प्रतिबंध के फैसले ने भी महायुति के खिलाफ आक्रोश को हवा देने का काम किया. हालिया लोकसभा चुनाव में महायुति इन क्षेत्रों में एमवीए से पीछे रही तो उसके पीछे ये भी प्रमुख कारण थे. महायुति ने इस नाराजगी को कम करने के लिए शेतकारी सम्मान योजना के तहत दी जा रही धनराशि 12 से बढ़ाकर 15 हजार रुपये वार्षिक करने, किसानों का कर्ज माफ करने का वादा किया है.

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लोकसभा चुनाव में मुंबई और पश्चिमी महाराष्ट्र में दोनों गठबंधनों के बीच कांटे की लड़ाई थी तो वहीं, ठाणे-कोंकण में महायुति को लीड मिली थी. इन इलाकों में शहरी मुद्दे अधिक हावी हैं और विकास बड़ा मुद्दा है. यही कारण है कि महायुति सरकार ने अटल सेतु जैसी कई परियोजनाओं के लोकार्पण किए जो इंफ्रास्ट्रक्चर से जुड़ी हैं. बंदरगाह, एयरपोर्ट के साथ ही कई सड़क परियोजनाएं भी पाइपलाइन में हैं.

3- वोट ट्रांसफर

सियासत में दो और दो गणित की तरह चार नहीं होते, तीन या पांच होते हैं. गठबंधन अक्सर सामाजिक गणित बिगाड़ देते हैं और महाराष्ट्र के चुनाव की बात करें तो दोनों ही गठबंधनों में शिवसेना (यूबीटी) और एनसीपी (अजित पवार) के रूप में एक-एक साझीदार ऐसे भी हैं जिन्हें मिसफिट कहा जा रहा है. उद्धव ठाकरे की पार्टी का कांग्रेस-एनसीपी (शरद पवार) और अजित पवार की पार्टी का बीजेपी-शिवसेना (शिंदे) के साथ गठबंधन प्राकृतिक तो नहीं ही कहा जा सकता.

साल 2019 के चुनाव को आधार बनाकर देखें तो अजित की पार्टी के विधायक बीजेपी-शिवसेना, उद्धव के विधायक कांग्रेस-एनसीपी के उम्मीदवारों को हराकर ही विधानसभा पहुंचे थे. संयुक्त एनसीपी की राजनीति हमेशा बीजेपी और शिवसेना के विरोध की रही है वहीं अविभाजित शिवसेना ने भी हमेशा ही कांग्रेस और एनसीपी के खिलाफ चुनाव लड़ा है. ऐसे में दोनों ही गठबंधनों में शामिल घटक दलों के लिए परंपरागत प्रतिद्वंदियों के पक्ष में वोट ट्रांसफर भी बड़ी चुनौती होगी और ये हालिया लोकसभा चुनाव में भी देखने को मिला था. वोट ट्रांसफर भी महाराष्ट्र चुनाव में एक्स फैक्टर साबित होगा.

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दो दलों के हाथ मिलाने का मतलब होता है अपने वोट एक-दूसरे को ट्रांसफर करने का संदेश. इस संदेश पर कार्यकर्ता और समर्थक कितना अमल करते हैं, नतीजा इस पर भी निर्भर करेगा. शिवसेना और एनसीपी के विभाजन के बाद असली-नकली की लड़ाई ने भी चुनावी गणित और उलझा दिया है. गठबंधन की केमिस्ट्री का सूचकांक जो चुनाव पूर्व वोट शेयर को चुनाव बाद वोट शेयर से विभाजित करके निकाला जाता है, उसमें एमवीए 79 फीसदी के साथ 64 फीसदी वाली महायुति से आगे है. यह लोकसभा चुनाव में एमवीए की पार्टियों को एक-दूसरे के वोट ट्रांसफर होने का भी संकेत है.

लोकसभा चुनाव में कांग्रेस और एनसीपी (शरद पवार) के समर्थक माने जाने वाले मुस्लिम मतदाताओं में से करीब 72 फीसदी ने बीजेपी के विरोध में उद्धव ठाकरे की पार्टी के उम्मीदवारों को वोट किया. इसके उलट, एनसीपी के मुस्लिम वोटर बीजेपी से गठबंधन के कारण अजित पवार की पार्टी से छिटक गए. उद्धव ठाकरे की पार्टी को शिवसेना के परंपरागत मतदाताओं में से 56 फीसदी ने वोट किया. शरद पवार की पार्टी ने असली-नकली की लड़ाई के पहले टेस्ट में पारंपरिक वोटबैंक में 74 फीसदी का समर्थन हासिल किया.

4- मराठा vs ओबीसी

मराठा आरक्षण आंदोलन ने हालिया लोकसभा चुनाव में महायुति की संभावनाओं को नुकसान पहुंचाया, खासकर मराठवाड़ा रीजन में. इस रीजन के आम चुनाव नतीजों को विधानसभा सीटों के लिहाज से देखें तो महायुति, एमवीए से 12-32 के अंतर से पिछड़ गई. कुछ असर मराठा आरक्षण आंदोलन के अगुवा मनोज जरांगे पाटिल के आह्वान का भी पड़ा जिसमें उन्होंने बीजेपी को हराने वाले उम्मीदवार के पक्ष में मतदान करने की बात कही थी. मराठा वोटबैंक में महायुति के पिछड़ने के पीछे आरक्षण आंदोलन के दौरान मामला मराठा बनाम ओबीसी हो जाना भी है. अजित पवार की पार्टी के नेता छगन भुजबल ने कुनबी सर्टिफिकेट जारी करने की जरांगे की मांग की आलोचना करते हुए ओबीसी से इसके खिलाफ एकजुट होने का आह्वान किया था.

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साल 2024 में 50 फीसदी ओबीसी मतदाताओं ने महायुति को वोट किया जो एमवीए के मुकाबले 11 फीसदी अधिक है. पिछले कुछ महीनों में यह ध्रुवीकरण और बढ़ गया है. ओबीसी वोटबैंक में महायुति की एमवीए की लीड 16 फीसदी तक बढ़ गई है. मनोज जरांगे पाटिल के अपने समर्थकों के नॉमिनेशन वापस करा लेने के बाद यह धारणा मजबूत हो गई है कि मराठा वर्ग के मतदाता इस बार भी महायुति के खिलाफ मतदान करेंगे और इसका सीधा लाभ एमवीए को मिल सकता है. एमवीए नेताओं ने पाटिल को पीछे हटने के लिए मना लिया होगा क्योंकि इससे विपक्ष का वोट बंट जाता.

5- निर्दलीय और बागी

महाराष्ट्र में छोटी पार्टियों के साथ ही निर्दलीय और बागी उम्मीदवार भी एक्स फैक्टर माने जा रहे हैं. पीजेंट्स एंड वर्कर्स पार्टी ऑफ इंडिया, आरएसपी, समाजवादी पार्टी, आरपीआई (अठावले), जन सुराज्य शक्ति, बहुजन विकास आघाड़ी, वंचित बहुजन आघाड़ी, ऑल इंडिया मजलिस-ए -इत्तेहादुल मुस्लिमीन का भी अपना प्रभाव क्षेत्र है. पिछले पांच चुनावों की ही बात करें तो बड़ी पार्टियों के बीच छोटे दलों के उम्मीदवारों ने औसतन 25 फीसदी वोट शेयर के साथ 30 सीटें जीती हैं.

हालिया लोकसभा चुनाव नतीजों को विधानसभा सीटों के नजरिये से देखें तो अन्य को 13 फीसदी वोट शेयर के साथ नौ सीटों पर लीड मिली थी. हर सीट पर उम्मीदवारों की अधिक संख्या भी प्रमुख पार्टियों के लिए सिरदर्द बन गई है जो 2019 के औसतन 11.2 से बढ़कर इस बार 14.4 पहुंच गई है. 2019 के विधानसभा चुनाव में कई सीटों पर बहुकोणीय मुकाबला देखने को मिला था और नतीजा यह हुआ कि 71 विधानसभा सीटों पर जीत हार का फैसला 5 फीसदी से भी कम वोट के अंतर से हुआ. इस बार सीट दर सीट करीबी मुकाबले में माइक्रो मैनेजमेंट निर्णायक रोल निभा सकता है.

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6- मराठी vs गुजराती

महाराष्ट्र के चुनाव में प्रवासी मतदाताओं की भी अहम भूमिका होगी. सूबे की कुल आबादी में करीब आठ फीसदी भागीदारी प्रवासी मतदाताओं की है जिसमें यूपी, कर्नाटक, गुजरात, मध्य प्रदेश और राजस्थान जैसे राज्यों से नाता रखने वाले लोगों की आबादी प्रमुख है. मुंबई शहर की ही बात करें तो कुल आबादी में 43 फीसदी भागीदारी प्रवासियों की है जबकि महाराष्ट्र के लोगों की आबादी लगभग 42 फीसगदी है. आंकड़ों की मानें तो गुजराती समाज की लगभग 19 फीसदी आबादी मुंबई में है.

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उद्धव ठाकरे और शरद पवार मराठी अस्मिता का मुद्दा उठा रहे हैं, बीजेपी पर मराठी पार्टियों को तोड़ने और अवैध रूप से सत्ता पर काबिज होने के आरोप लगा रहे हैं. फॉक्सकॉन और वेदांता जैसी कुछ परियोजनाओं के महाराष्ट्र से गुजरात स्थानांतरित हो जाने से भी मराठी अस्मिता को धार मिली है और मामला मराठी बनाम गुजराती होता दिख रहा है. दूसरी तरफ, कई व्यवसाय गुजराती व्यवसायी नियंत्रित करते हैं. नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद मुंबई में गुजराती राष्ट्रवाद को भी बढ़ावा मिला है.

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इस लड़ाई की जडें अलग राज्य की मांग और संयुक्त महाराष्ट्र मूवमेंट से भी जुड़ी हुई हैं. हालांकि, ग्रामीण क्षेत्रों में इसका कोई असर नहीं है. ऐसा माना जाता है कि गुजराती और उत्तर भारतीयों का समर्थन बीजेपी के साथ रहता है और मराठी मानुष का समर्थन शिवसेना और कांग्रेस के साथ. महाराष्ट्र में ऐसे कई फैक्टर हैं जो विधानसभा चुनाव में एक्स फैक्टर साबित हो सकते हैं.

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मनोज शर्मा

मनोज शर्मा (जन्म 1968) स्वर्णिम भारत के संस्थापक-प्रकाशक , प्रधान संपादक और मेन्टम सॉफ्टवेयर प्राइवेट लिमिटेड के मुख्य कार्यकारी अधिकारी हैं।

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