झारखंडविधानसभा चुनावों में भारतीय जनता पार्टी ने अपने संकल्प पत्रमें समान सिविल संहिता (यूसीसी) लागू करने के मुद्दे पर फोकस्ड हो गई है. केवल मेनिफेस्टो में ही नहीं जिस तरह गृहमंत्री अमित शाह और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी चुनाव रैलियों में बातें की हैं उससे लगता है कि झारखंड चुनावों में बीजेपी यूसीसी को मुद्दा बनाना चाह रही है. बीजेपी एक तरफ यूसीसी से आदिवासियों को बाहर रखने का वादा करतीहै, साथ ही ये भी कि बीजेपी सरकार आएगी और घुसपैठियों को झारखंड की सीमा से बाहर निकालेगी. बीजेपी दरअसलकांग्रेस और झामुमो के एक होने के चलते आदिवासी और मुस्लिम वोटों के गठजोड़ को तोड़ना चाहती है. जिन बांग्लादेशियों को बीजेपी बाहर करने की बात कर रही है उसमें शत प्रतिशत अवैध अप्रवासी मुस्लिम समुदाय के ही हैं. एक तरफ जहां बीजेपी कह रही है कि राज्य में यूसीसी लागू किया जाएगा वहीं झारखंड के सीएम हेमंत सोरेन ने खुलकर कह रहे हैं कि राज्य में न यूसीसी लागू होगा और एनआरसी. इस तरह विधानसभा चुनावों में यूसीसी का मुद्दा गरमा गया है.
2- अचानक क्यों परवान चढ़ा यूसीसी मुद्दा
झारखंड में जनसांख्यिकी में कथित बदलाव एक विवादास्पद मुद्दा बन चुका है. यही कारण है कि प्रदेश में विपक्ष में बैठी भारतीय जनता पार्टी लगातार बांग्लादेशी घुसपैठ का मुद्दा उठा रही है. जुलाई महीने में ही केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने रांची की एक रैली में इस बारे में बातकरते हुए एक बात कही थी कि अगर भाजपा सत्ता में आती है तो वह जनसांख्यिकी पर एक श्वेत पत्र जारी करेगी. अभी ये सब चल ही रहा था कि अगस्त महीने में इसी से संबंधित झारखंड उच्च न्यायालय ने हेमंत सोरेन सरकार को राज्य के संथाल परगना क्षेत्र में रहने वाले बांग्लादेश से अवैध प्रवासियों की पहचान करने का निर्देश जारी कर दिया. कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश सुजीत नारायण प्रसाद और न्यायमूर्ति अरुण कुमार राय की खंडपीठ ने अवैध आव्रजन पर कार्यकर्ता डेनियल डेनिश द्वारा दायर जनहित याचिका (पीआईएल) पर सुनवाई करते हुए सरकार को यह निर्देश दिया था. इस आदेश के बाद जाहिर है कि यह मामला तूल पकड़ना ही था.
न्यायालय ने सरकार से क्षेत्र में मूल निवासियों और अवैध प्रवासियों के बीच अंतर करने के लिए व्यापक अभियान शुरू करने को कहा. पीठ ने निर्देश दिया कि राशन कार्ड, आधार कार्ड और मतदाता पहचान पत्र जैसे आवश्यक दस्तावेजों की पूरी तरह से जांच के बाद ही उन्हें जारी किया जाना चाहिए. याचिकाकर्ता ने कोर्ट को सबूत दिए थे कि संथाल परगना के छह जिलों - देवघर, दुमका, साहिबगंज, पाकुर, गोड्डा और जामताड़ा में अवैध अप्रवासी बसे हुए हैं. उन्होंने कई दशकों में महत्वपूर्ण जनसांख्यिकीय बदलाव को दर्शाने वाले आँकड़े प्रस्तुत किए, जिसमें आदिवासी जनसंख्या प्रतिशत 1951 में 44.67% से घटकर 2011 में 28.11% हो गया, जबकि इसी अवधि के दौरान अल्पसंख्यक समुदाय का प्रतिशत 9.44% से बढ़कर 22.73% हो गया.
गोड्डा सांसद निशिकांत दुबे बार-बार यह कहते रहे हैं कि संथाल परगना में संथाल परगना काश्तकारी (एसपीटी) अधिनियम का खुलेआम उल्लंघन हो रहा है और इसका फायदा बांग्लादेशी घुसपैठिए उठा रहे हैं.इस बीच सुप्रीम कोर्ट ने भी कुछ इसी तरह का फैसला सुना दिया. जिसमें यह कहा गया है कि देश भर से घुसपैठियों को उनके देश में पहंचाया जाए.
2-झारखंड में मुस्लिम वोट का गणित क्या
आदिवासी बाहुल्य राज्य झारखंड में करीब 15 फीसदी मुस्लिम आबादी है. सूबे में विधानसभा की कुल 81 सीटें हैं और इनमें से 15 सीटें ऐसी हैं जहां मुस्लिम मतदाता निर्णायक भूमिका निभाने की स्थिति में हैं या परिणाम तय करने में अहम भूमिका निभाते हैं. सूबे में सात विधानसभा सीटें ऐसी हैं जहां मुस्लिम मतदाताओं की आबादी 20 से 40 फीसदी के बीच है.यही कारण है कि भारतीय जनता पार्टी कुछ ऐसा सोच रही थी कि यह माइनस पॉइंट ही उसके लिए प्लस पॉइंट हो जाए. संथाल परगना में जिस तरह मुस्लिम आबादी बढ़ी है उसे इसी बहाने पूरे राज्य में कैश कराने के लिए ही पार्टी ने यूसीसी का मुद्दा छेड़ा है.
जामताड़ा में करीब 40 फीसदी मुस्लिम हैं तो वहीं पाकुड़ और राजमहल में भी मुस्लिमों की आबादी 36 फीसदी के करीब है. गोड्डा और मधुपुर में 26, टुंडी और गांडेय में 23 फीसदी के करीब मुस्लिम आबादी के अनुमान हैं. झारखंड विधानसभा करीब आधा दर्जन सीटें ऐसी भी हैं जहां मुस्लिम आबादी 15 से 20 फीसदी के बीच है. ऐसी सीटों की लिस्ट में महगामा, हटिया, धनबाद जैसी सीटों के नाम हैं. झारखंड की करीब 15 सीटों पर जीत-हार तय करने में मुस्लिम मतदाता अहम भूमिका निभाते हैं लेकिन विधायिका में प्रतिनिधित्व के मामले में हाशिए पर ही हैं.
3-बीजेपी के संकल्प पत्र में क्या है रणनीति?
बीजेपी ने झारखंड चुनाव के लिए जारी किए गए संकल्प पत्र में सबसे बड़ा मुद्दा घुसपैठियों को चिह्नित कर बाहर निकालने का ही है. आदिवासियों को छूट के साथ यूसीसी लागू करने का वादा किया है. जो सीधे-सीधे आदिवासियों को बचाने के लिए लाया जा रहा है. पार्टी ने वह जमीनें भी मूल मालिकों को लौटाने का वादा किया है जिन पर आदिवासी युवतियों से शादी के बाद गैर आदिवासी काबिज हो गए हैं. जाहिर है कि आदिवासी और मुसलमान को जोड़ने की जो रणनीति झामुमो और कांग्रेस ने बनाई है उसे तोड़ने के लिए बीजेपी की यह रणनीति काम कर रही है.
इसे जेएमएम-कांग्रेस गठबंधन के आदिवासी-मुस्लिम समीकरण को भेदने की रणनीति से जोड़कर देखा जा रहा है. केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने रविवार को रांची में कहा, हमारी सरकार झारखंड में समान नागरिक संहिता लागू करेगी, लेकिन जनजातीय समुदायों को इसके दायरे से बाहर रखा जाएगा. (राज्य में) झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) सरकार इस झूठ का प्रचार कर रही है कि समान नागरिक संहिता से आदिवासियों के अधिकार के अलावा उनकी संस्कृति प्रभावित होगी. यह पूरी तरह निराधार है, क्योंकि उन्हें इसके दायरे से बाहर रखा जाएगा.
गृह मंत्री ने कहा कि भाजपा झारखंड में घुसपैठियों से जमीन वापस लेने और अवैध प्रवासियों की पहचान कर उन्हें निर्वासित करने के लिए कानून लाएगी. उन्होंने दावा किया कि अवैध प्रवासियों से ‘माटी, बेटी, रोटी' को खतरा है और भाजपा स्थानीय लोगों को सुरक्षा प्रदान करेगी.शाह ने आरोप लगाया कि स्थानीय प्रशासन पश्चिम बंगाल और झारखंड में घुसपैठ को बढ़ावा दे रहा है. उन्होंने कहा कि भाजपा बांग्लादेशी घुसपैठियों को बाहर निकालेगी.
दूसरी ओर इसके तुरंत बाद मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने पलटवार करते हुए कहा कि राज्य में न तो यूसीसी और न ही राष्ट्रीय नागरिक पंजी (एनआरसी) लागू की जाएगी.
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