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नई दिल्ली: मोदी सरकार के शपथ ग्रहण समारोह के ठीक एक दिन बाद संघ प्रमुख मोहन भागवत ने मणिपुर, चुनाव,राजनीतिक दलों के रवैये पर बात की। भागवत ने सभी धर्मों को लेकर बयान दिया। उन्होंने कहा कि सभी धर्मों का सम्मान है। लोकसभा चुनाव खत्म होने के बाद बाहर का अलग माहौल है। नई सरकार भी बन गई। संघ नतीजों के विश्लेषण में नहीं उलझता। संघ इसमें नहीं पड़ता। लोगों ने जनादेश दिया है और सबकुछ उसी अनुसार होगा। RSS चीफ ने मणिपुर के मसले पर काफी कुछ कहा और शांति बहाली नहीं होने पर चिंता व्यक्त की। मोहन भागवत की ओर से जो बयान सामने आए उसके बाद विपक्षी दलों को मोदी सरकार पर निशाना साधने का मौका मिल गया।
कांग्रेस ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत की मणिपुर में शांति बहाली नहीं होने पर चिंता व्यक्त किए जाने संबंधी टिप्पणी को लेकर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पर कटाक्ष किया। कांग्रेस की ओर से कहा गया कि भागवत ही 'आरएसएस के पूर्व पदाधिकारी' को मणिपुर का दौरा करने के लिए प्रेरित कर सकते हैं। वहीं शिवसेना (यूबीटी) संजय राउत ने कहा कि सरकार तो उनके ही आशीर्वाद से चल रही है, बोलने से क्या होता है। मोहन भागवत के बयान पर एनसीपी (शरद पवार) सांसद सुप्रिया सुले ने कहा कि मैं उनके बयान का स्वागत करती हूं क्योंकि मणिपुर भारत का हिस्सा है। हम अपने लोगों को इतनी पीड़ा में देखते हैं यह बेहद परेशान करने वाला है।
नागपुर में आरएसएस प्रशिक्षुओं की एक सभा को संबोधित करते हुए सोमवार मोहन भागवत ने कहा था कि 10 साल पहले मणिपुर में शांति थी। ऐसा लगा था कि वहां बंदूक संस्कृति खत्म हो गई है, लेकिन राज्य में अचानक हिंसा बढ़ गई है। आरएसएस प्रमुख ने कहा,मणिपुर की स्थिति पर प्राथमिकता के साथ विचार करना होगा। चुनावी बयानबाजी से ऊपर उठकर राष्ट्र के सामने मौजूद समस्याओं पर ध्यान देने की जरूरत है। उन्होंने चुनावी बयानबाजी से बाहर आकर देश के सामने मौजूद समस्याओं पर ध्यान केंद्रित करने की जरूरत पर जोर दिया। उन्होंने कहा,मणिपुर पिछले एक साल से शांति स्थापित होने की प्रतीक्षा कर रहा है। कांग्रेस समेत तमाम विपक्षी दल चुनाव के दौरान भी मणिपुर हिंसा मामले में मोदी सरकार पर निशाना साधते रहे।
मोहन भागवत ने कहा कि अभी चुनाव संपन्न हुए, उसके परिणाम भी आए। सरकार भी बन गई, यह सब हो गया लेकिन उसकी चर्चा अभी तक चलती है। जो हुआ वह क्यों हुआ, कैसे हुआ, क्या हुआ। यह अपने देश के प्रजातांत्रिक तंत्र में प्रति 5 साल में होने वाली घटना है। समाज ने अपना मत दे दिया, उसके अनुसार सब होगा। क्यों, कैसे, इसमें हम लोग नहीं पड़ते। हम लोकमत परिष्कार का अपना कर्तव्य करते रहते हैं। हर चुनाव में करते हैं, इस बार भी किया है। बाकी क्या हुआ इस चर्चा में नहीं पड़ते।
मोहन भागवत ने कहा कि तकनीक की मदद से झूठ को पेश किया गया। ऐसे देश कैसे चलेगा। साथ ही उन्होंने कहा कि विपक्ष को विरोधी नहीं माना जाना चाहिए। वे विपक्ष हैं और एक पक्ष को उजागर कर रहे हैं इसलिए उनकी राय भी सामने आनी चाहिए। चुनाव लड़ने की एक गरिमा होती है उस गरिमा का ख्याल नहीं रखा गया। ऐसा करना जरूरी है क्योंकि हमारे देश के सामने चुनौतियां खत्म नहीं हुई है। पिछले दस सालों में बहुत सारी सकारात्मक चीजें हुई हैं लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि हम चुनौतियों से मुक्त हो गए हैं।
कांग्रेस ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत की मणिपुर में शांति बहाली नहीं होने पर चिंता व्यक्त किए जाने संबंधी टिप्पणी को लेकर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पर कटाक्ष किया। कांग्रेस की ओर से कहा गया कि भागवत ही 'आरएसएस के पूर्व पदाधिकारी' को मणिपुर का दौरा करने के लिए प्रेरित कर सकते हैं। वहीं शिवसेना (यूबीटी) संजय राउत ने कहा कि सरकार तो उनके ही आशीर्वाद से चल रही है, बोलने से क्या होता है। मोहन भागवत के बयान पर एनसीपी (शरद पवार) सांसद सुप्रिया सुले ने कहा कि मैं उनके बयान का स्वागत करती हूं क्योंकि मणिपुर भारत का हिस्सा है। हम अपने लोगों को इतनी पीड़ा में देखते हैं यह बेहद परेशान करने वाला है।
नागपुर में आरएसएस प्रशिक्षुओं की एक सभा को संबोधित करते हुए सोमवार मोहन भागवत ने कहा था कि 10 साल पहले मणिपुर में शांति थी। ऐसा लगा था कि वहां बंदूक संस्कृति खत्म हो गई है, लेकिन राज्य में अचानक हिंसा बढ़ गई है। आरएसएस प्रमुख ने कहा,मणिपुर की स्थिति पर प्राथमिकता के साथ विचार करना होगा। चुनावी बयानबाजी से ऊपर उठकर राष्ट्र के सामने मौजूद समस्याओं पर ध्यान देने की जरूरत है। उन्होंने चुनावी बयानबाजी से बाहर आकर देश के सामने मौजूद समस्याओं पर ध्यान केंद्रित करने की जरूरत पर जोर दिया। उन्होंने कहा,मणिपुर पिछले एक साल से शांति स्थापित होने की प्रतीक्षा कर रहा है। कांग्रेस समेत तमाम विपक्षी दल चुनाव के दौरान भी मणिपुर हिंसा मामले में मोदी सरकार पर निशाना साधते रहे।
मोहन भागवत ने कहा कि अभी चुनाव संपन्न हुए, उसके परिणाम भी आए। सरकार भी बन गई, यह सब हो गया लेकिन उसकी चर्चा अभी तक चलती है। जो हुआ वह क्यों हुआ, कैसे हुआ, क्या हुआ। यह अपने देश के प्रजातांत्रिक तंत्र में प्रति 5 साल में होने वाली घटना है। समाज ने अपना मत दे दिया, उसके अनुसार सब होगा। क्यों, कैसे, इसमें हम लोग नहीं पड़ते। हम लोकमत परिष्कार का अपना कर्तव्य करते रहते हैं। हर चुनाव में करते हैं, इस बार भी किया है। बाकी क्या हुआ इस चर्चा में नहीं पड़ते।
मोहन भागवत ने कहा कि तकनीक की मदद से झूठ को पेश किया गया। ऐसे देश कैसे चलेगा। साथ ही उन्होंने कहा कि विपक्ष को विरोधी नहीं माना जाना चाहिए। वे विपक्ष हैं और एक पक्ष को उजागर कर रहे हैं इसलिए उनकी राय भी सामने आनी चाहिए। चुनाव लड़ने की एक गरिमा होती है उस गरिमा का ख्याल नहीं रखा गया। ऐसा करना जरूरी है क्योंकि हमारे देश के सामने चुनौतियां खत्म नहीं हुई है। पिछले दस सालों में बहुत सारी सकारात्मक चीजें हुई हैं लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि हम चुनौतियों से मुक्त हो गए हैं।
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