हरियाणा चुनाव में अति-आत्मविश्‍वास के घोड़े पर सवार कांग्रेस कैसे मुंह के बल गिरी | Opinion

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हरियाणा में मुकाबला बीजेपी और कांग्रेस के बीच ही था, लेकिन आम आदमी पार्टी, JJP, INLD और बीएसपी जैसी पार्टियां भी मैदान में कूदी थी. जिन सीटों पर उम्मीदवारों के बीच बड़े फासले हैं वहां तो नहीं, लेकिन जहां कांटे का संघर्ष है, वहां तो खेल बिगड़ ही सकता है. दोपहर एक बजे के करीब हरियाणा मेंभाजपा को 50 सीटों पर बढ़त है, जबकि कांग्रेस का आंकड़ा 34-35 सीटों से आगे नहीं बढ़ रहा है. हरियाणा विधानसभा में बहुमत आंकड़ा 45 को पार करने से मिल जाता है, ऐसे में भाजपा की हैट-ट्रिक होती दिख रही है.

चुनाव से पहले कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने पूर्व मुख्यमंत्री भूपिंदर सिंह हुड्डा को तो फ्रीहैंड दिया, लेकिन उनको मुख्यमंत्री पद का चेहरा नहीं घोषित किया था. ऐसा समझा गया कि हुड्डा ने अपने 72 समर्थकों को टिकट दिया, और उनके विरोधी कांग्रेस नेता बेचारे बने रहे.

जमीनी स्तर पर कांग्रेस खेमे में कई चीजों को नजरअंदाज भी किया गया - और कांग्रेस के अंदरूनी मतभेद भारी पड़े हैं, क्योंकि बीजेपी ने कांग्रेस की कमजोरियों को खूब भुनाया है.

हरियाणा चुनाव में ऐसे कई मुद्दे थे जिन्हें लेकर बीजेपी बचाव की मुद्रा में थी, लेकिन कांग्रेस उनका फायदा नहीं उठा पाई.

हरियाणा की लड़ाई को ध्यान से देखें तो ये बीजेपी के स्थानीय नेतृत्व की जीत है, और हुड्डा एंड कंपनी पूरी तरह चूक गई है - और ये हुड्डा की लगातार तीसरी हार है.

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1. हरियाणा में कांग्रेस को खा गया ओवर कान्फिडेंस

हरियाणा विधानसभा चुनाव को लेकर कांग्रेस शुरू में कॉन्फिडेंट थी, और धीरे धीरे ओवर कॉन्फिडेंट होती गई. करीब करीब वैसे ही जैसे बीजेपी 2024 के लोकसभा चुनाव को लेकर - और चुनाव नतीजों के रुझान देखें तो दोनो का हाल मिलता जुलता ही नजर आ रहा है,

कांग्रेस की बीजेपी की तरह कोई ‘400 पार’ जैसा नारा तो नहीं दिया था, लेकिन मानसिकता वही हावी हो गई थी.

2. जाटों पर जरूरत से ज्‍यादा भरोसा करना कांग्रेस को भारी पड़ा

हरियाणा में जाट आबादी को देखें तो करीब 27 फीसदी है. हरियाणा की 35-40 सीटों पर जाटों का सीधा प्रभाव माना जाता है. इसी बात को ध्यान में रखते हुए कांग्रेस ने सबसे ज्यादा 35 जाट उम्मीदवार उतारे थे.

2014 में कांग्रेस जाटलैंड में INLD से पिछड़ गई थी. कांग्रेस के हिस्से में सिर्फ 15 सीटें भी आई थीं, जबकि INLD 19 सीटें जीतने में सफल रही - नतीजा ये हुआ कि कांग्रेस तीसरी बार सत्ता में आने से चूक गई, और बीजेपी बाजी मार ले गई.

2019 में जेजेपी ने 10 सीटें जीत कर कांग्रेस का खेल खराब तो किया ही, बीजेपी के साथ गठबंधन की सरकार बनाकर कांग्रेस को मौके से ही बेदखल कर दिया - इस बार कांग्रेस की कोशिश थी कि जाट वोट उसी के पास रहे, लेकिन वो छिटक गया और बीजेपी ने जाटलैंड में भी बढ़त बना ली.

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3. किसान और पहलवान आंदोलन पर बहुत ज्‍यादा निर्भर रही

कांग्रेस को किसानों की नाराजगी पर बहुत भरोसा था. कांग्रेस को लगा कि किसान आंदोलन बृजभूषण शरण सिंह के खिलाफ पहलवानों के आंदोलन से बीजेपी को बहुत नुकसान होगा, लेकिन सब कुछ उलट गया.

और कांग्रेस के यहां भी चूक जाने का सबूत है विनेश फोगाट का ओलंपिक जैसे प्रदर्शन. पेरिस ओलंपिक में पदक से हाथ धो बैठीं विनेश फोगाट को कांग्रेस ने जुलाना सीट से उम्मीदवार बनाया था - लेकिन बदकिस्मती देखिये कि जाट वोट तो बंटा ही, गैर-जाट वोट भी उनके खिलाफ हो गया.

4. कांग्रेस की भीतरी लड़ाई का उजागर हो जाना

कांग्रेस का अघोषित चेहरा बने भूपेंद्र सिंह हुड्डा और कुमारी सैलजा की लड़ाई का सामने आ जाना भी कांग्रेस के लिए घातक साबित हुआ.

बीजेपी ने कांग्रेस के झगड़े को जोर शोर से उठाया और भुनाने की पूरी कोशिश की. नेताओं बगावत से परेशान तो बीजेपी भी रही, लेकिन लगता है कांग्रेस को उसकी भारी कीमत चुकानी पड़ी है. बीजेपी के बागी और नाराज नेता तो कैमरे पर रोते भी देखे गये, लेकिन लगता है ज्यादा नुकसान कांग्रेस को हुआ है. माना गया कि 11 सीटों पर कांग्रेस को बागियों ने मुश्किल में डाला.

5. नायब सिंह सैनी और ओबीसी वोटरों को कम आंकना

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जाट और दलित वोटों के चक्कर में कांग्रेस ने ओबीसी वोट बैंक को गंभीरता से नहीं लिया. बीजेपी समय रहते चेत गई, और मनोहरलाल खट्टर को हटाकर नायब सैनी को मुख्यमंत्री बना दिया.

पंजाबी वोटर कहीं बुरा न माने इसलिए बीजेपी ने मनोहरलाल खट्टर को केंद्रीय मंत्रिमंडल में ऐडजस्ट भी किया, लेकिन चुनाव कैंपेन में शामिल करने जोखिम बिलकुल नहीं उठाया.

माना जाता है कि हरियाणा की 18-20 सीटों पर ओबीसी वोटर का दबदबा रहता है. ओबीसी नेता सैनी को सामने लाने के साथ ही, बीजेपी ने सबसे ज्यादा 24 ओबीसी उम्मीदवार उतारे थे, वैसे कांग्रेस ने भी पिछड़े वर्ग के 20 नेताओं को टिकट दिया था.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ज्यादा रैलियां तो नहीं की, लेकिन उनका फोकस साफ था. मोदी ने गोहाना की रैली में आरोप लगाया कि कांग्रेस ने दलितों और ओबीसी को ठगने का काम किया है. मोदी ने कुच ऐसे समझाने की कोशिश की, 2014 से पहले हरियाणा में भूपेंद्र सिंह हुड्डा की सरकार थी… हुड्डा की सरकार में शायद ही ऐसा कोई साल रहा हो, जब दलितों और ओबीसी के उत्पीड़न की घटनाएं न हुई हों.

और तो और मोदी ने तो यहां तक कह डाला कि आरक्षण का विरोध करना कांग्रेस के डीएनए में है. ये उसी दौर की बात है जब राहुल गांधी के आरक्षण पर एक बयान को लेकर बवाल मचा हुआ था. लोकसभा चुनाव में कांग्रेस सहित पूरा विपक्ष बीजेपी के सत्ता में आने पर संविधान बदलकर आरक्षण खत्म कर देने का नैरेटिव चलाया था - हरियाणा में बीजेपी ने कुछ हद तक हिसाब बराबर तो कर ही लिया है.

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मनोज शर्मा

मनोज शर्मा (जन्म 1968) स्वर्णिम भारत के संस्थापक-प्रकाशक , प्रधान संपादक और मेन्टम सॉफ्टवेयर प्राइवेट लिमिटेड के मुख्य कार्यकारी अधिकारी हैं।

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