Sahitya Aaj Tak 2024: देश की राजधानी दिल्ली में आज 22 नवंबर से सुरों और अल्फाजों का महाकुंभ 'साहित्य आजतक 2024' का आगाज हो चुका है. इस तीन दिवसीय कार्यक्रम में देश के जाने-माने लेखक, साहित्यकार व कलाकार शामिल हो रहे हैं. साहित्य के सबसे बड़े महाकुंभ 'साहित्य आजतक 2024' के मंच पर लेखकों का शानदार सत्र 'छोटे शहर, बड़ी कहानियां' रहा.
इस खास चर्चा में साहित्य, कविताओं और कहानियों के जरिए छोटे शहरों की धड़कनों को महसूस किया गया, जिसमें लेखक, गीतकार और स्क्रिप्ट राइटर दुष्यंत, मेट्रोनामा के लेखक देवेश, कमाल की औरतें और पूरब की बेटियां की लेखिका शैलजा पाठक और आसमानों से बात चली आती है, कलर्स ऑफ लाइफ और टूटी हुई जंजीरें के लेखक डॉ. राजेश शर्मा शामिल हुए.
इस सत्र में उन कहानियों और कविताओं की पड़ताल की गई, जो छोटे शहरों की गलियों, वहां की खुशबू, संघर्ष, और जज्बातों को बड़े शहरों तक पहुंचाती हैं. इस सत्र में इस पर भी चर्चा हुई कि छोटे शहरों के किस्से साहित्य की बड़ी जमीन तैयार कर सकते हैं. इस सत्र का संचालन शशि शर्मा ने किया.
इस दौरान लेखक राजेश शर्मा ने कहा कि कल्चर बहुत बड़ी चीज है. यहां सौ-सवा सौ साल पहले से कहानियां शुरू हुई हैं. हम मेट्रो, पुलों और बड़ी इमारतों से विकास देखते हैं. बरेली पर आधारित एक किताब लिखी है, इस पर बरेली में झुमके को लेकर एक सवाल किया गया तो राजेश शर्मा ने कहा कि केवलअमिताभ बच्चन के माता-पिता की सगाई बरेली में हुई थी. यहां झुमका कहीं नहीं गिरा था. मैं अपनी कहानी में 10 पीढ़ियों की बात लेकर आता हूं, ताकि आज के पाठक उन चीजों को समझ सकें. हमारी नई पीढ़ी को अपना इतिहास पता होना चाहिए.
राजेश शर्मा ने खुद से जुड़ा एक किस्सा सुनाते हुए कहा किएक बार मैं9वीं क्लास में इलाहाबाद में महादेवी वर्मा के घर पहुंच गया. उस वक्त खाने का वक्त हो रहा था. मुझे उन्होंने खाना खिलाया. इसके बाद हाथ धोकर उन्होंने पल्लू से हाथ पोंछे, उस वक्त मैं इतना नादान था. इमरोज, अमृता प्रीतम के साथ कितना ही वक्त बीता है हमारा.मैंने इतिहास में महिलाओं के ऐसे किरदार देखे हैं, जिन्हें भुलाया नहीं जा सकता. हम स्त्री के कमजोर किरदार गढ़ते हैं. हमीं लेकर आते हैं. स्त्री कमजोर नहीं हैं.
राजेश शर्मा ने कहा कि मैंने 1 हजार किताबों को लिखा और करीब 3 हजार लोगों के इंटरव्यू किए. इन दिनों असल जिंदगी में बरेली के कई किरदारों पर कहानियां लिख रहा हूं.
लेखक देवेश ने कहा कि मैंने दिल्ली मेट्रो पर तमाम कहानियां कीं. मैंने उन्हें फेसबुक पर शेयर किया. हो सकता है कि वो कहानियां आपको हंसाएं या अपनो उनमें दर्द महसूस हो. उन्हें सोशल मीडिया पर काफी लोगों ने पसंद किया.उन्होंने कहा कि अपनी भाषा घी शक्कर सी होती है. इस दौरान देवेश नेमेट्रो की एक कहानी भी सुनाई, उन्होंने कहा कि मेट्रो के अंदर भी कई अग्नि परीक्षाएं चलती हैं, जिसका परीक्षार्थी नदी का साथ देता हूं समंदर रूठ जाता है जैसी स्थितिसामना करता है. इस कहानी में नायक और नायिका के बीच संवाद का वर्णन किया गया.
वहीं शैलजा पाठक ने महिलाओं के संघर्ष पर आधारित'जब घर में नहीं होतीं हैं औरतें...' शीर्षक से कविता सुनाते हुए अपनी बात की शुरुआत की. शैलजा ने महिला विमर्श पर अपनी बात रखते हुए कहा कि मैं छोटे शहर से हूं. वहां 12वीं के बाद ब्याह कर दिया जाता था. वहां महिलाएं अपनी बात नहीं कह पाती थीं.
उन्होंने कहा कि मैं बीते दस साल से कविताएं लिख रही हूं. मेरे मन था, जो अब अपनी बात पहुंचा पा रही हूं. मुझे लगता है कि औरतों की मुश्किलें अब भी कम नहीं हुई हैं. नौकरी करते हुए रचनात्मकता मरने लगती है, क्योंकि घर भी चलाने की जिम्मेदारी होती है.आज किताबें पढ़ी जा रही हैं. अच्छे से पढ़ रहे हैं. समय से पहले जानकारियां इकट्ठी कर रहे हैं. वे बेहद स्पष्ट हैं. आज के बच्चे अपनी बात और अपने सपनों की तरफ चल पड़े हैं.
लेखक दुष्यंत नेकहा कि मैं गजलें अभ्यास के लिए लिखता हूं. मैं शायर नहीं हूं. उन्होंने कहा कि 'बड़े शहरों में अक्सर ख्वाब छोटे टूट जाते हैं,बड़े ख्वाबों की खातिर शहर छोटे छूट जाते हैं.' मेरा बचपन गांव में गुजरा. रोजगार की तलाश में शहर पहुंचा. ऐसी जगह पर बचपन गुजरा, जहां अखबार भी तीसरे दिन पहुंचता था. राजस्थान में टाटपट्टियों पर पढ़ने वाला लड़का क्या ख्वाब देख सकता था राइटर बनने के अलावा. अच्छे छात्रों को ज्यादा विकल्प नहीं मिलते, उन पर चीजें थोप दी जाती हैं, जबकि कम प्रतिभावान छात्र के सामने कई विकल्प हो सकते हैं. फिर आगे चलकर मैंने जयपुर में नौकरी छोड़कर मुंबई जाने का फैसला किया.
इसी के साथ उन्होंने कहा कि जीवन में महिला और पुरुष दोनों को समान रूप से एक-दूसरे का साथ देते हुए आगे बढ़ना चाहिए. कमाने और घर चलाने में कोई विभाजन नहीं होना चाहिए.एक राइटर जब लिखता है तो उसके अंदर क्या-क्या बदलाव आते हैं. इस सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि कहानियां पहले लेखक को बदलती हैं. मैं कहानियों की अपनी यात्रा को देखता हूं तो लगता है कि इन कहानियों ने मेरे अंदर कितना बदलाव किया है.
लेखक दुष्यंत ने कहा कि दुनिया उदारता से खूबसूरत होती है, जो किसी इंसान को बेहतर बनाती है. मैं कहानियां लिखते-लिखते बेहतर कहानी कहने लगा हूं. एक लेखक को दूसरे बेहतरीन लेखक से तुलना नहीं करनी चाहिए. उन्होंने कहा कि भारत श्रवण परंपरा का देश है. राइटिंग किसी भी मीडियम में हो सकती है. आज ऑडियोबुक्स सुनी जा रही हैं. आज का युवा इसे पसंद कर रहा है. नई पीढ़ी आज नया फॉर्म लेना चाहती है, तो उसे लेने दीजिए.इस दौरान दुष्यंत ने बेहद मार्मिक कविता सुनाई.
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