सब्जी की तरह इस गांव में होती है कोबरा की खेती, जहरीले सांपों से करोड़ों की कमाई

Snake Farming: एक ऐसा जीव जिसके जहर का एक कतरा इंसान को मौत की नींद सुला सकता है. जिसके साए से भी आम इंसान दूर रहना चाहता है. अचानक उसके दर्शन हो जाएं तो कई दिनों तक सांसें ऊपर नीचे होती रहती हैं. उस कोबरा सांप की खेती की जा रही है. उसे सब्जी की त

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Snake Farming: एक ऐसा जीव जिसके जहर का एक कतरा इंसान को मौत की नींद सुला सकता है. जिसके साए से भी आम इंसान दूर रहना चाहता है. अचानक उसके दर्शन हो जाएं तो कई दिनों तक सांसें ऊपर नीचे होती रहती हैं. उस कोबरा सांप की खेती की जा रही है. उसे सब्जी की तरह तोला जा रहा है. कैरेट में रखकर बेचा जा रहा है और हजारों लाखों नहीं करोड़ों की कमाई हो रही है.

सांपों से 44 अरब रुपये की कमाई

जहरीले नागों को पिटारे में बंद करके खेल दिखाने वाले सपेरे तो आपने बहुत देखे होंगे, जिन्हें पैसे तो मिलते हैं, लेकिन 5 या 10 रुपये से ज्यादा नहीं. दिन अच्छा होता है तो कभी कभी 100-200 रुपये भी जेब में आ जाते हैं. लेकिन, दुनिया के एक हिस्से में सांपों का ऐसा इस्तेमाल हो रहा है कि धनवर्षा हो रही है . इतने डॉलर बरस रहे हैं कि गिनना मुश्किल हो जाए. इन जगहों पर इन सांपों से 44 अरब 13 करोड़ 64 लाख रुपये से ज्यादा कमाने का बंदोबस्त किया गया है .

सांपो को खिलाया जाता है चिकन

भले ही भारत में सांपों का हाजमा दूध पिलाकर खराब किया जाता है, लेकिन यहां पर सांपों को चिकन खिलाया जाता है. सांपों के रहने के लिए पिटारा नहीं, बल्कि स्पेशल बैरक बनाए गए हैं. जहां पर सांपों का हर तरह से ख्याल रखा जाता है. ये कोबरा जब जानलेवा जहरीली फुफकार मारते हैं तो भी उनके जहर से बचकर उनको खाना खिलाया जाता है. लेकिन, कौन ये जगह सी है, जहां पर अपनी जान जोखिम में डालकर सांपों को स्पेशल और वीआईपी ट्रीटमेंट दिया जा रहा है और क्यों?

चीन और वियतनाम में कोबरा की खेती

वियतनाम और चीन जैसे देशों में कोबरा की खेती करके यानी स्नेक फॉर्मिंग करके लोग करोड़पति बन रहे हैं. कम लागत लगाकर भारी मुनाफा कमाने की वजह से वियतनाम में कोबरा की खेती का प्रचलन बढ़ता जा रहा है. इसी मुनाफे की वजह से काले और जहरीले कोबरा के बीच रहने का रिस्क वियतनाम के लोग उठा रहे हैं. लेकिन, वियतनाम में करोड़पति बनाने वाली स्नेक फॉर्मिंग कैसे की जाती है. जहरीली खेती की ये तकनीक आपको हैरान कर देगी.

सांपों की खेती में खतरे भी बहुत

दुनिया के सबसे जहरीले जीव की फॉर्मिंग में खतरे भी बहुत हैं. इनका रखरखाव करना इतना आसान नहीं. वियतमान में स्नेक फॉर्मिंग करने वाले लोग एक्सपर्ट होते हैं, लेकिन कभी कभी ये भी जहरीले सांपों को संभालने के दौरान मुश्किल में पड़ जाते हैं. कुल मिलाकर सांपों को पालकर करोड़ों कमाने के काम में रिस्क बहुत है. लेकिन, वियतनाम में लोग ठीक उसी तरह सांप पाल रहे हैं, जैसे भारत में किसान खेती बाड़ी करते हैं. भारत में जिस तरह सब्जियां उगाई जाती हैं. वियतनाम में उस तरह सांप की खेती हो रही है. भारत में जैसे सब्जियों को तोला जाता है, वियतनाम में वैसे सांप तोले जा रहे हैं और भारत में जैसे सब्जियों को किसान मंडी भेजते हैं, वियतनाम में वैसे सांपों को मंडियों में भेजकर मुनाफा कमाया जा रहा है.

सांपों को चिकन खिलाकर मोटा किया जा रहा है, लेकिन उसके बाद इन सांपों को क्या होगा. आपके दिमाग में ये सवाल भी कौंध रहा होगा कि इस तरह सब्जियों की तरह सांपों की बिक्री करने के लिए इतनी बड़ी संख्या में सांप आते कहां से हैं. तो इसके दो तरीके हैं कई बार सांपों को पकड़ा जाता है, लेकिन ज्यादातर जिस तरह बीज डालकर पौधे उगाए जाते हैं, वैसे ही सांपों को पालकर उनके अंडों से दूसरे सांपों को तैयार किया जाता है.

कैसे की जाती है सांपों की खेती?

तो कोबरा को पकड़ने का काम जोखिम भरा और मुश्किल है. इसलिए, कोबरा को मंडी में बेचने से पहले इन्हीं सांपों से वो अंडे हासिल कर लिए जाते हैं, जिनसे नए कोबरा बनेंगे और करोड़पति बनाने वाला कोबरा की खेती का कारोबार चलता रहेगा. एक एक करके सांपों के चैंबर्स को खोलकर कोबरा के अंडों को निकाल लिया जाता है.इस दौरान कोबरा के गुस्से से भी बचकर काम करना होता है. अंडे इकट्ठे करने के बाद इन सभी अंडों को एक खास टेंपरेचर में मिट्टी या फिर रेत में गाड़कर रखा जाता है. और कुछ दिनों बाद इन अंडों से वो छोटे छोटे कोबरा निकल आते हैं जो इन लोगों को अरबपति बना रहे हैं.

स्नैक फार्मिंग करने वाले गांव का हर परिवार करोड़पति

कोबरा की खेती करने वालों को ये भी पता है कि सांपों को सुरक्षित रखने के लिए उन्हें कोबरा फॉर्मिंग के स्थानों पर टेंपरेचर को मेंटेन करना होगा. लेकिन, ये सारी मेहनत क्यों की जा रही है. ये कोबरा कहां ले जाए जा रहे हैं और कोबरा की ये खेती कैसे इन लोगों को करोड़पति अरबपति बना रही है. चीन का गांव जिसिकियाओ स्नेक विलेज के नाम से मशहूर हैं. साल 2012 में यहां के 160 परिवारों में 108 परिवारों ने स्नेक फॉर्मिंग से लगभग 100 करोड़ रुपये कमाए. ये आंकड़ा 2024 में 700 करोड़ से ऊपर जाने की उम्मीद है. यानी सांपों का कारोबार करने वाले इस गांव का हर परिवार करोड़पति है. इस गांव में हर एक शख्स पर 3 हजार से ज्यादा सांप मौजूद हैं. वियतनाम के कई गांवों में भी मुनाफे को देखते हुए सैकड़ों स्नेक फॉर्म खुल गए हैं जिनकी संख्या लगातार बढ़ रही है .

क्यों की जा रही कोबरा की खेती?

जहर की खेती में हमेशा जान जाने का खतरा होता है, लेकिन इसके बावजूद वियतनाम में स्नेक फॉर्मिंग करने वालों की तादाद बढ़ रही है. और इसकी सबसे बड़ी वजह है इस कारोबार से जुड़ा मुनाफा. इंटरनेशल मार्केट में एक सांप कितना कीमती है और सांप की खेती करने वाले लोग किस किस तरह से सांपों के जरिए पैसा कमा रहे हैं. ये जानकर आप चौंक जाएंगे. सांप के हर अंग की कीमत वसूली जा रही है, लेकिन सबसे ज्यादा कीमती सांप का जहर होता है. एक आंकड़े के मुताबिक, सिर्फ सांप के जहर से तैयार किए जाने वाले एंटीवेनम का बाजार फिलहाल 30 अरब रुपये से ज्यादा का है जो आने वाले कुछ सालों में 50 अरब रुपये को पार कर जाएगा.

दुनिया में हर साल सांप काटने की लगभग 50 से 60 लाख घटनाएं सामने आती हैं. इनमें से लगभग आधे सांप जहरीले होते हैं. इसके प्रभाव से लगभग 4 लाख लोगों को लकवा मार जाता है. वहीं, लगभग 1 लाख 38 हजार लोगों की मौत हो जाती है. सिर्फ वियतनाम में 30 हजार स्नेक बाइट हर साल सामने आती हैं. ये ही वजह है एंटी वेनम का कारोबार बढ़ता जा रहा है. क्योंकि, सांप के काटने के बाद जिंदगी बचाने वाले एंटी वेनम के अलावा सांप के जहर का इस्तेमाल दवाइयों को बनाने में किया जा रहा है. अब तो कैंसर और मिर्गी जैसी बीमारियों के इलाज में भी सांप के ज़हर का इस्तेमाल किया जा रहा है.

इंटरनेशनल मार्केट में कितनी है सांप के जहर की कीमत

सांप के जहर की बात करें तो इंटरनेशनल मार्केट में इसकी कीमत का अंदाजा लगा पाना भी मुश्किल है. 1 लीटर सांप का जहर 3 से 5 करोड़ और कभी कभी इससे ज्यादा कमाई करवा देता है. एंटी वेनम और दली के अलावा महंगे नशे के लिए भी इसका इस्तेमाल हो रहा है. स्नेक लेदर से बने प्रोडक्ट की कीमत भी लाखों होती है, जिनकी मांग इंटरनेशनल मार्केट में बहुत हाई है. इसीलिए, सांप की स्किन भी हजारों रुपये की बिकती है, जबकि स्नेक लेदर की जैकेट्स की कीमत भी 2 से 3 लाख रुपये तक होती है.

एक्सपर्ट के मुताबिक, 1 लीटर सांप का जहर इकट्ठा करने के लिए करीब 200 सांपों का जहर निकालना पड़ता है. फॉर्मिंग करने वाले इसे 10 से 20 लाख रुपये में बेचते हैं, लेकिन इंटरनेशल मार्केट में इसकी कीमत करोड़ों में होती है. लेकिन, स्नेक फॉर्मिंग सिर्फ जहर और खाल के लिए नहीं हो रही. चीन, वियतनाम और इंडोनेशिया जैसे देशों में सांप एक स्वादिष्ट भोजन भी हैं. हॉन्गकॉन्ग में स्नेक सूप की कीमत 1 हजार रुपये बॉउल है. चीन और वियतनाम में सांप के मीट को खाने का चलन है. इन देशों में सांप के मीट को स्वादिष्ट के साथ साथ पौष्टिक भी समझा जाता है. कोबरा के मीट की डिमांड इन देशों में इतनी ज्यादा है कि जहर निकालने के बाद कोबरा की स्किन और मीट भी इसकी खेती करने वालों के बैंक बैलेंस बढ़ा रहे हैं.

क्या भारत में की जा सकती है सांपों की खेती?

लेकिन, जो कोबरा कुछ देशों के लिए कमाई का जरिया बन चुका है. भारत में उसकी क्या अहमियत है? इन देशों को करोड़पति बना रही कोबरा की खेती क्या भारत में भी की जा सकती है? चीन के बाजारों में 700 से अधिक सांप से जुड़े उत्पाद मिलते हैं. वियतनाम में सांपों की खेती करने वाले सब्जियों की खेती करने वालों से 5 गुना और मवेशी पालन करने वालों से 10 गुना ज्यादा कमाई कर रहे हैं. लेकिन भारत में अगर ऐसा करने की कोशिश की तो आप सलाखों के पीछे होंगे. क्योंकि, हमारे देश में सांप या फिर दूसरे वन्य जीव कमाई करने वाले उत्पाद नहीं हैं.

क्या भारत में भी की जाती है सांपों की खेती?

क्या भारत में भी स्नेक फॉर्मिंग होती है. तो इसका जवाब है हां, लेकिन भारत में सांपों को सिर्फ दवा और एंटी वेनम बनाने के लिए पकड़ा जाता है. जहर निकालकर उन्हें फिर से प्राकृतिक आवास में छोड़ दिया जाता है. सांप पकड़ने के लिए भी बाकायदा लाइसेंस बांटे जाते हैं. सांप के जहर का इलाज सिर्फ स्नेक वेनम से ही हो सकता है, इसलिए भारत में तमिलनाडु के अंदर इलुरार स्नेक कैचर्स इंडस्ट्रियल कोऑपरेटिव सोसाइटी लिमिटेड सांपों के जहर को निकालने का काम करती है. इसके लिए बाकायदा 339 पुरुष और महिलाओं को सांप पकड़ने का लाइसेंस मिला है. इन सांपों को 22 दिनों तक फार्म में रखा जाता है और चार दिनों में एक बार सांप से जहर निकाला जाता है. फिर सांपों की पूंछ पर टैग लगाकर उन्हें प्राकृतिक आवासों में छोड़ दिया जाता है.

इसके अलावा भारत में सांप को एक रहस्यमयी जीव माना जाता है और इकोलॉजी में इसकी उपयोगिता को देखते हुए इसे संरक्षित भी किया जा रहा है. भारत में सांपों को संरक्षित भी किया जा रहा है, क्योंकि सांपों की कई प्रजातियां विलुप्त भी हो रही हैं.इसी के साथ इंडियन माइथोलॉजी में सांपो का एक विशिष्ट स्थान है. कई जगहों पर इनकी पूजा भी की जाती है और सांपों को मारना निषेध है.

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मनोज शर्मा

मनोज शर्मा (जन्म 1968) स्वर्णिम भारत के संस्थापक-प्रकाशक , प्रधान संपादक और मेन्टम सॉफ्टवेयर प्राइवेट लिमिटेड के मुख्य कार्यकारी अधिकारी हैं।

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