बुक रिव्यू- शहीदों का तर्पण करती डॉ. सुधीर आजाद की किताब ‘मेरा नाम आजाद है’

4 1 61
Read Time5 Minute, 17 Second

डॉ. सुधीर आजाद का लेखन क्रांति-स्तुति एवं क्रांति-लेखन है. वे निरंतर प्रण-प्राण के साथ शहीदों की अर्चना-वंदना करते हुए उन पर लिख रहे हैं. आजादी के शहीदों पर उनकी कलम जिस तरह लिख रही है, वह इस आशय से अत्यंत सुखद अनुभूतियों और आशाओं से भरा हुआ है कि नई पीढ़ी तक वे राष्ट्रीय चरित्र पहुंच रहे हैं, जिन्हें पहुंचना चाहिए. ‘मेरा नाम आज़ाद है’ इसी सिलसिले में एक डॉ. सुधीर आजाद की एक अन्य अहम पुस्तक है, जो नाटक की विधा में आई है.

book reveiw

इस नाटक का बैकग्राउंड कुछ इस तरह है, "सन 1919 में पंजाब के अमृतसर में हुए जालियांवाला बाग हत्याकांड के बाद पराधीनता की बेड़ियों में कसमसाते भारत ने स्वाधीनता के लिए एक और विद्रोह किया. यह विद्रोह अठारह सौ सत्तावन की आहुतियों से उपजी भारतीय अस्मिता का शांति-विद्रोह था- ‘असहयोग आंदोलन’, जिसका नेतृत्व महात्मा गांधी कर रहे थे.

book reveiw

एक जन आंदोलन बन चुका था असहयोग आंदोलन, जिसमें देश के हर वर्ग का प्रत्येक व्यक्ति अपनी सहभागिता सुनिश्चित कर रहा था. किसान, विद्यार्थी, शिक्षक, व्यापारी, मजदूर, वकील हर वर्ग की सक्रिय भागीदारी ने इसे राष्ट्रव्यापी स्वरूप दे दिया था. सब अपने-अपने स्थान पर अपने-अपने सामर्थ्य के मुताबिक अपनी भूमिका चुन रहे थे और स्वाधीनता के इस यज्ञ में अपनी आहुति देने हेतु प्रतिबद्ध थे.

साल 1921 में असहयोग आंदोलन अपने चरम पर था और बालक चंद्रशेखर एक धरने के दौरान गिरफ्तार कर लिया गया और मजिस्ट्रेट के सामने हाजिर किया गया. पारसी मजिस्ट्रेट मिस्टर खरे घाट अपनी कठोर सजाओं के लिए जाने जाते थे. सजा के रूप में बालक चंद्रशेखर को पंद्रह बेंतों की सजा मिली.

Advertisement

उन्नीस सौ इक्कीस में इसी असहयोग आंदोलन में अपनी अविचलित आस्थाओं को लिए पूरी तत्परता से एक पंद्रह बरस का जो बच्चा कूद पड़ा था, तब शायद किसी ने ख्वाब में भी यह नहीं सोचा होगा कि यह बच्चा आने वाले वक्त में भारत की आजादी के होने वाली क्रांति का क्रांति-सूर्य बनेगा. इस सारे प्रसंग के बाद चंद्रशेखर तिवारी चंद्रशेखर आजाद बन चुके थे.

book reveiw

इस घटनाक्रम को डॉ. सुधीर आजाद ने ‘मेरा नाम आजाद है’ का आधार बनाया है. अपने आत्मकथ्य में वे लिखते हैं- “एक पंद्रह बरस के नौजवान का अपने पराधीन राष्ट्र को आजाद कराने का अदम्य भावबोध और त्याग की असीम भावना वाकई अद्भुत है ही लेकिन साथ ही तत्कालीन भारत में आजादी के लिए गांधी जी के असहयोग आंदोलन में पूरे सामर्थ्य के साथ कूद पड़ना और कालांतर में अपने भारत की आजादी के लक्ष्य की प्राप्ति के लिए उन्हीं महात्मा गांधी जी की विचारधारा से विलग सशस्त्र क्रांति के नए पथ का निर्माण कर उस पाठ का पथप्रदर्शक तक बन जाना!

book reveiw

यह अविश्वसनीय और अद्वितीय कर्मशीलता और दूर-दृष्टि चंद्रशेखर आजाद को भारत के स्वाधीनता संग्राम में न केवल अतिविशिष्ट बनाती है बल्कि एक ऐसा नायक बनाती है जो आजादी की बुनियाद है.

“भारत की स्वाधीनता के लिए क्रांति की जिस लौ को जलाकर झांसी की रानी लक्ष्मीबाई ने अपने प्राणों की आहुति देकर भी दैदीप्यमान रखा था. चंद्रशेखर आजाद ने उस लौ को अपना लहू देकर दहकती हुई मशाल बनाया है और कालांतर में इसी मशाल को नेताजी सुभाषचंद्र बोस ने थामा और भारत की आजादी का मार्ग प्रशस्त किया. इसलिए निर्विवाद रूप से यह स्वीकार किया जाता है कि चंद्रशेखर आजाद भारत की आजादी की सबसे मजबूत आधारशिला हैं. उन्होंने आजादी पाने की दूसरी पगडंडी को अपने रक्त से सींचकर राजमार्ग बनाया है.”

Advertisement

मैं डॉ. सुधीर आजाद के इस कथन से शब्दशः सहमत हूं. निःसंदेह चंद्रशेखर आजाद की शहादत के बिना भारतीय आजादी के इतिहास को नहीं लिखा जा सकता है.
डॉ. सुधीर आजाद ने नाटक का प्रसंग बालमन में राष्ट्रीय भावना के बीजों के अंकुरण के लिए लिया है इसीलिए उन्होंने इसे विस्तार न देकर केवल चंद्रशेखर आजाद के जीवन के प्रारम्भिक घटनाक्रम को प्रेरणा के रूप में प्रस्तुत किया है. वे एक स्थान पर इसे बाल नाटक भी कहते हैं.

अपने सीमित कलेवर और संक्षिप्त कैनवास में नाटक के सभी तत्वों से परिपूर्ण यह नाटक अपने में मंचन की प्रभावी और आदर्श संभावनाएं लिए हुए है. नाटक की भाषा का ओज और प्रवाह बेजोड़ है. भाषा पात्रों के भाव-विचारों को पूरी सफलता के साथ प्रेषित करने सक्षम है.

book reveiw

पात्र-योजना प्रसंगानुकूल है. देश, काल और वातावरण को अपनी कथावस्तु में समेटे यह नाटक सफल है. ऐतिहासिक नजरिए से यह पूर्णतः प्रामाणिक है, इसमें कोई दो राय नहीं है. संवाद योजना में डॉ. सुधीर आजाद का संस्कृतिबोध भारतीय आध्यात्मिक परंपरा से उपजा हुआ है. संवाद स्थिति के मुताबिक अपना भाषा-विन्यास लिए हुए हैं. यह संवाद मेरे इस कथन का सबसे आदर्श उदाहरण है, जब बालक चंद्रशेखर अपने साथियों से कहते हैं-

“साथियों, माता गंगा की इन पवित्र लहरों का आवेग हमारी धमनियों में रक्त बनकर दौड़ रहा है. यह आहामरी आध्यात्मिक चेतना का आधार है और हमारी आस्थों का दिव्य सस्त्रोत है. हम इस पावन तट पर यह शपथ लें कि इस आंदोलन के लिए अपना सर्वस्व समर्पित कर देंगे लेकिन इसे किसी भी परिस्थिति में रुकने नहीं देंगे.”

Advertisement

book reveiw

संगीतात्मकता ने नाटक को दर्शकों एवं पाठकों तक पहुंचने के लिए और सरल एवं सहज बना दिया है. नाटक के अंत में आया गीत इसके प्रभाव को बहुगुणित कर देता है एवं भावोत्तेजना प्रदान करता है. गीत के यह अंश देखिए-

गंगा मैया की कसम है हम आज़ादी के लिए
तख़्त फांसियों से सजाएंगे और झेलेंगे गोली
जब तलक भारत होगा नहीं अपना आज़ाद
बांध के सर पे कफ़न खून की खेलेंगे होली.

मैं पहली और आखिरी बार आया हूं गिरफ़्त में इनकी
मुझको दोबारा गिरफ़्तार करें, इनकी नहीं है औक़ात
खोलकर कान गौर से सुन ले ओ ब्रितानी सत्ता
मैं था आज़ाद, मैं हूं आज़ाद और मैं रहूंगा आज़ाद.

‘भारत माता की जय’!, ‘हिंदुस्तान ज़िन्दाबाद’!

अन्ततः यह कहना सही होगा कि डॉ. सुधीर आजाद की अग्नि-कलम से एक और सार्थक कृति की रचना हुई है, जो न केवल प्रासंगिक ही है बल्कि प्रेरणाओं से भरी हुई है. नई पीढ़ी को दशा एवं दिशा बताती इस पुस्तक को भी डॉ. सुधीर आजाद के अन्य साहित्य सहित देश के विद्यालयों एवं महाविद्यालयों के पुस्तकालयों में अवश्य होना चाहिए.

book reveiw

नेताजी सुभाषचंद्र बोस पर पीएचडी करने वाले वाले डॉ. सुधीर आजाद की बिरसा मुंडा, नेताजी सुभाषचंद्र बोस, खुदीराम बोस, सरदार भगतसिंह, चंद्रशेखर आजाद, हेमू कालाणी, झांसी की रानी लक्ष्मीबाई, झलकारी बाई और रानी दुर्गावती जैसे महान राष्ट्रीय चरित्रों पर किताबें इस बात की साक्षी हैं कि वे किस प्रतिबद्धता के साथ नई पीढ़ी के समक्ष महान आदर्शों को प्रस्तुत कर रहे हैं.

\\\"स्वर्णिम
+91 120 4319808|9470846577

स्वर्णिम भारत न्यूज़ हिन्दी के एंड्रॉएड ऐप के लिए आप यहां क्लिक कर सकते हैं.

मनोज शर्मा

मनोज शर्मा (जन्म 1968) स्वर्णिम भारत के संस्थापक-प्रकाशक , प्रधान संपादक और मेन्टम सॉफ्टवेयर प्राइवेट लिमिटेड के मुख्य कार्यकारी अधिकारी हैं।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Laptops | Up to 40% off

अगली खबर

IND vs BAN Test, Stats Records: 13 टेस्ट, 8 सीरीज, 23 साल...भारत का बांग्लादेश के ख‍िलाफ टेस्ट में तूफानी रिकॉर्ड, आंकड़े चौंकाने वाले

आपके पसंद का न्यूज

Subscribe US Now