बुक रिव्यू- हिंदी सिनेमा का प्रामाणिक दस्तावेज़ है ‘हिन्दी सिनेमा में राम’

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भगवान राम के विराट जीवन-दर्शन पर आधारित हिंदी सिनेमा में प्रारंभ से अब तक बनी समस्त फ़िल्मों पर सुधीर आज़ाद की यह किताब या रही है. हिंदी सिनेमा में भगवान राम की भूमिका दिव्य-आस्थाओं का भारतीय-दर्शन एवं चिंतन लिए व्यापक और गहरी ऐतिहासिक और सांस्कृतिक पृष्ठभूमि पर आधारित है.डॉ. सुधीर आज़ाद तक पहुंचने की कई पगडंडियां हैं. पगडंडियां इसलिए कि कोई भी बहुत आसानी से उन तक पहुंच सकता है. उनकी नज़्में, ग़ज़लें, कविताएं, नाटक, उपन्यास, एकांकी, गीत, संस्मरण, रेखाचित्र, लेख, फ़िल्में... यह सब वे पगडंडियां हैं, जिनसे आप सीधे उन तक पहुंच सकते हैं. जब वे फ़िल्म के ज़रिए अपना दृष्टिकोण अभिव्यक्त करते हैं, तो वहां भी उनकी क़लम की संवेदनशीलता एवं साफ़गोई उनके पाठकों की तरह उनके दर्शकों से सीधे जुड़ती है. जब एक फ़िल्मकार जब साहित्य रचता है या एक साहित्यकार जब फिल्म बनाता है, तो दोनों तरफ़ की रचनात्मकता की परस्पर सार्थकता और सामंजस्य तो होता ही है, उसका रचना संसार दोनों माध्यमों के बीच एक पुल बांध देता है, जिससे होकर आप दोनों तरफ़ या जा सकते हैं. इसी पुल का नाम है- ‘हिन्दी सिनेमा में राम’

भारतीय समाज में राम का स्थान अत्यंत महत्वपूर्ण है और उनके आदर्श चरित्र को हजारों वर्षों से साहित्य, कला, और सांस्कृतिक माध्यमों में सम्मानित किया गया है. जब हिंदी सिनेमा का उदय हुआ, तो राम के चरित्र और उनसे जुड़ी कहानियों को फिल्मों में चित्रित करने का प्रयास स्वाभाविक रूप से किया गया, चाहे वह मूक सिनेमा का प्रारंभिक दौर हो या आधुनिक तकनीकी दृष्टिकोण से बनाई गई फिल्में, भगवान राम के पुण्य आदर्शों से भरे विराट जीवन -दर्शन को आस्थाओं के साथ प्रस्तुत किया गया है. भगवान राम की छवि को हिंदी सिनेमा में भारतीयता के वैश्विक प्रतीक, एक आदर्श पुरुष, मर्यादा पुरुषोत्तम और मानवीय मूल्यों के महानायक के रूप में प्रस्तुत किया गया है. एक बड़ी किताब है इसलिए दो भागों में इसकी समीक्षा प्रस्तुत हो रही है.

hindi cinema mein ram

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‘हिंदी सिनेमा में राम’ हिंदी सिनेमा के प्रारंभ से मूक और सवाक् फ़िल्मों से होते हुए विराट रंगीन परदे तक की यात्रा का सजीव चित्रण जान पड़ता है. यह पुस्तक इस अर्थ में भी उल्लेखनीय है कि यह सिनेमा के पौराणिक संदर्भ में भगवान राम पर आधारित हिन्दी सिनेमाई संसार का प्रामाणिक दस्तावेज़ है.

‘हिंदी सिनेमा का इतिहास’, ‘रामतत्त्व और हिन्दी सिनेमाई संदर्भ’, ‘राम के दिव्य-चरित्र पर आधारित हिन्दी फ़िल्में’, ‘रामभक्तों पर निर्मित फ़िल्में’, ‘रामचरित के प्रमुख पात्रों का सिनेमाई व्यक्तित्व’, ‘राम जीवन के प्रसंग और सिनेमा में उनकी प्रस्तुति’, ‘हिन्दी सिनेमा में रामलीला का सांकेतिक प्रयोग’, ‘राम’ अभिनीत करने वाले अभिनेता’ एवं ‘हरि अनंत हरि कथा अनंता’ नामक सात अध्यायों में विभक्त यह पुस्तक हिन्दी सिनेमा में राम की प्रामाणिक व्याख्या करती है.

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‘हिन्दी सिनेमा का इतिहास’ का समग्र और व्यापक वर्णन जिस तरह पहले अध्याय में आया है. वह बेहद प्रामाणिक और प्रभावशाली है. तथ्यों की स्पष्टता लिए छोटे-छोटे शीर्षकों में विभक्त यह पहला अध्याय हिन्दी सिनेमा के प्रारम्भिक चरण से आज तक के सिनेमा के विकसित संदर्भ को समेटे हुए चित्रात्मक रूप से प्रस्तुत हुआ है. ‘हिन्दी सिनेमा का इतिहास’ निम्न शीर्षकों में बांटा हुआ है- भारतीय सिनेमा का प्रारंभिक युग (1896-1913), लूमियर ब्रदर्स का प्रभाव (1896), प्रारंभिक सिनेमा की विशेषताएं, भारतीय विषयवस्तु का उदय (1901), प्रारंभिक भारतीय फिल्में और उनका विकाससिनेमा का विकास और भारतीय सिनेमा की नींव, विषय के आधार पर हिंदी सिनेमा का वर्गीकरण, भारतीय सिनेमा का मूक सिनेमा का दौर (1913-1931), हिंदी सिनेमा की पहली फिल्म, मूक सिनेमा का विकासमूक-युग में सिनेमा-उद्योग की प्रमुख संस्थाएं, मूक सिनेमा के तकनीकी पहलू, मूक सिनेमा का सामाजिक और सांस्कृतिक प्रभाव, मूक सिनेमा का अंत और ध्वनि युग की शुरुआत, राष्ट्रीय अभिलेखागार में संरक्षित 13 फिल्में, मूक फिल्मों का विकास, पौराणिक युग, भारत में फिल्म उद्योग की शुरुआत और ध्वनि का प्रवेश, ध्वनि युग की शुरुआत और सवाक् फिल्मों का प्रभाव, संधि-युग, सवाक् फिल्मों का विकास, सवाक् युग में फिल्म निर्माण की दिशा, हिंदी सिनेमा के इतिहास का द्वितीय चरण, सवाक युग की शुरुआत, तकनीकी और शैलियों में बदलाव, भारतीय सिनेमा का वैश्विक प्रभाव, सवाक युग का अंत और स्वतंत्रता के प्रभाव, हिन्दी सिनेमा का स्वर्ण युग (1947-1960), सम्मान एवं पुरस्कार आयोजना, सामाजिक फिल्मों का दौर, राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय सम्मान का आग्रह, 1956-60 की महत्वपूर्ण हिंदी फिल्में, स्वतंत्रता के बाद की फिल्में और सामाजिक संदर्भसामाजिक और सांस्कृतिक प्रभाव, फिल्म निर्माण और तकनीकी प्रगति, फिल्मों का अंतर्राष्ट्रीय प्रभाव, व्यावसायिक सिनेमा और मुख्यधारा का उदय (1970-1980), हिंदी सिनेमा के नए चरण, भूमंडलीकरण का पहला संकेत, 21वीं सदी का हिंदी सिनेमा, तकनीकी परिवर्तन, विविधता और प्रतिनिधित्व, स्पष्ट और सामयिक कहानियां, डिजिटल तकनीकी और नई प्रस्तुतियां, ग्लोबल इन्फ्लुएंस और इंटरनेशनल को-प्रोडक्शंस, फिल्मों में नवीनतम शैलियां और शैलियों का मिश्रण, स्ट्रांग फीमेल लीड और प्रगतिशील भूमिकाएं, उम्र विविधता और समावेशिता, प्रयोगात्मक और स्वतंत्र सिनेमा, सामाजिक मुद्दों पर ध्यान, टेक्नोलॉजिकल नवाचार, स्टार सिस्टम से परे, ओटीटी प्लेटफॉर्म्स का प्रभाव, फिल्म निर्माण और वितरण पर प्रभाव, कहानी और विषयवस्तु में विविधता, प्रेक्षक की आदतों में बदलाव, सामग्री की गुणवत्ता और प्रभाव, पारंपरिक मीडिया पर प्रभाव, भौगोलिक और सांस्कृतिक पहुंच, पारंपरिक सिनेमा से प्रतिस्पर्धा, व्यापार और वित्तीय मॉडल, सेंसरशिप और स्वतंत्रता, विदेशों में शूटिंग एवं भारतीय सिनेमा और ऑस्कर। विषय का यह तथ्यात्मक विस्तार पुस्तक की प्रामाणिकता का प्रतीक है.

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डॉ. सुधीर आज़ाद ने सिनेमा का एक प्रामाणिक इतिहास प्रस्तुत किया किया जो वर्तमान के लिए अनिवार्य भी हो जाता है. सिनेमा के विद्यार्थियों के लिए यह एक संदर्भ पुस्तक साबित होगी.

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किताब के आत्मकथ्य में डॉ. सुधीर आज़ाद ने लिखा है, “मुझे ‘हिन्दी सिनेमा में राम’ लिखने की सिनेमाई आवश्यकता महसूस हुई. विशेष रूप से आज जब हम तकनीकी रूप से अपेक्षाकृत अधिक सक्षम हो गए हैं और भारतीय सिनेमा वैश्विक स्तर पर अपनी प्रभावी उपस्थिति दर्ज़ करा चुका है. ऐसी स्थिति में भारतीय आध्यात्मिक और सांस्कृतिक चेतना से संपृक्त फ़िल्मों का निर्माण और उसके माध्यम की शुचिता का विशेष ध्यान रखना चाहिए. पौराणिक पात्रों पर आधारित फिल्में बनाते समय ध्यान रखने योग्य कई महत्वपूर्ण पहलू होते हैं, क्योंकि पौराणिक कथाएं न केवल धार्मिक और सांस्कृतिक मान्यताओं से जुड़ी होती हैं, बल्कि इन्हें भावनात्मक रूप से भी लोक अपने जीवन से जोड़कर देखता है. कहानी की प्रामाणिकता, धार्मिक संवेदनशीलता, दृश्यात्मकता, और कलात्मक स्वतंत्रता के बीच संतुलन बनाए रखना ज़रूरी है.”

पहले अध्याय में ‘हिन्दी सिनेमा का इतिहास’ में हिन्दी सिनेमा के विकासक्रम को प्रस्तुत किया गया है. विषय का यह तथ्यात्मक विस्तार पुस्तक की प्रामाणिकता का प्रतीक है. पुस्तक के दूसरे अध्याय में ‘रामतत्त्व और भारतीय सिनेमाई संदर्भ’ के अंतर्गत ‘हरि अनंत हरि कथा अनंता’, ‘कहहिं सुनहिं बहुबिधि सब संता’, ‘रामचंद्र के चरित सुहाए’, ‘कलप कोटि लगि जाहिं न गाए’ और ‘राम तत्त्व’ उपशीर्षकों के माध्यम में हिन्दी सिनेमा में रामतत्त्व की सम्यक व्याख्या प्रस्तुत हुई है. पुस्तक के तीसरे अध्याय में ‘राम के दिव्य-चरित्र पर आधारित हिन्दी फ़िल्में’ इस शीर्षक के अंतर्गत कथानकों के आधार पर प्रारम्भिक फ़िल्मों का वर्गीकरण जिसे ‘शैव-मत और उससे सम्बन्धित फ़िल्म’ एवं ‘वैष्णव-मत से सम्बन्धित फ़िल्म’ और ‘पौराणिक कथानक में ‘राम’ चरित्र’ उपशीर्षकों में बांटा गया है और हिन्दी फिल्मों के इस विभाजन के अनुसार व्याख्या की गई है.

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पुस्तक के चौथे अध्याय में ‘राम-भक्तों पर निर्मित फ़िल्म’ शीर्षक के अंतर्गत ‘मूक युग’ और ‘सवाक् युग’ उपशीर्षक के माध्यम से हिन्दी सिनेमा में राम-चरित्र पर आधारित फ़िल्मों की विकास यात्रा का वैज्ञानिक वर्गीकरण सोपनशः प्रस्तुत हुआ है. पुस्तक का पांचवां अध्याय ‘रामचरित के प्रमुख पात्रों का सिनेमाई व्यक्तित्व’ शीर्षक से रामचरित से संबंधित प्रमुख सहायक एवं विरोधी पात्रों की सिनेमाई संभावना को उनकी चारित्रिक विशेषताओं के साथ प्रस्तुत करता है. डॉ. सुधीर आज़ाद ने इस अध्याय में प्रत्येक पात्र को निश्चित प्रतीकात्मकता के साथ प्रस्तुत किया है. यह प्रतीकात्मक उनके चारित्रिक वैशिष्ट्य को प्रतिध्वनित करती है.

पुस्तक का छटवां अध्याय ‘राम जीवन के प्रसंग और सिनेमा में उनकी प्रस्तुति’ शीर्षक से आया है, जिसमें ‘राम का वनवास: एक नायक की कठिन यात्रा’, ‘केवट संवाद: भक्ति और समर्पण की कहानी’, ‘शूर्पणखा और लक्ष्मण संवाद: घटनाओं का मोड़’, ‘सीता हरण: नाटकीयता और भावनात्मक उथल-पुथल’, ‘हनुमान की लंका यात्रा: वीरता और भक्ति का प्रतीक’, ‘राम-रावण युद्ध: भव्यता और नाटक का संगम’, ‘राम का राजतिलक’, ‘सीता की अग्निपरीक्षा: त्याग और नारी शक्ति’ जैसे उपशीर्षक हैं एवं इन प्रसंगों की हिन्दी सिनेमा में ‘प्रभावशीलता और निष्कर्ष’ का विवरणात्मक चित्रण हुआ है. किताब का सातवां अध्याय ‘हिन्दी सिनेमा में रामलीला का सांकेतिक प्रयोग’ शीर्षक से आया है, जो ‘रामलीला का ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य’, ‘रामलीला का ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व’ और ‘हिंदी फ़िल्मों में रामलीला का प्रारंभ’ उपशीर्षकों के साथ आधारीय रूप से आया है.

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पुस्तक का आठवा अध्याय ‘हिन्दी सिनेमा में भगवान राम पर आधारित फ़िल्म्स’ के अंतर्गत हिन्दी सिनेमा में बनी भगवान राम के चरित्र पर आधारित सभी फ़िल्मों की विस्तृत जानकारी प्रस्तुत हुई है. पुस्तक का नौवां अध्याय ‘हिन्दी सिनेमा में राम अभिनीत करने वाले अभिनेता’ शीर्षक से प्रस्तुत हुआ है, जिसमें मूक फ़िल्मों से अब तक भगवान राम पर आधारित सभी हिन्दी फ़िल्मों में भगवान राम का पात्र अभिनीत करने वाले अभिनेताओं का सचित्र परिचय फिल्म के साथ आया है. पुस्तक का दसवां अध्याय इसका उपसंहार है जिसे डॉ. सुधीर आज़ाद ने ‘हरि अनंत हरि कथा अनंता’ शीर्षक के साथ लिखा है.

यह पुस्तक रामचरित और उसके प्रमुख पात्रों और हिन्दी सिनेमा के आपसी संबंधों, प्रभावों और सांस्कृतिक महत्त्व पर गहन चर्चा करती हुई वह आने वाली पीढ़ियों के लिए एक महत्वपूर्ण दस्तावेज साबित होगी. यह न केवल राम के धार्मिक और नैतिक आदर्शों को समझने में सहायक होगी, बल्कि भारतीय सिनेमा की सांस्कृतिक धरोहर को भी संरक्षित करेगी.

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मनोज शर्मा

मनोज शर्मा (जन्म 1968) स्वर्णिम भारत के संस्थापक-प्रकाशक , प्रधान संपादक और मेन्टम सॉफ्टवेयर प्राइवेट लिमिटेड के मुख्य कार्यकारी अधिकारी हैं।

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