ध्यान-साधना और एकांत... अध्यात्म की खोज में निकले एक संन्यासी की यात्रा है हिमालय में 13 महीने

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हिमालय... प्राचीन काल से देवत्व, आध्यात्मिकता और तप का प्रतीक रहा भारत का ये भौगोलिक हिस्सा, हमेशा से लोगों को आकर्षित करता रहा है. तीर्थ स्थलों का निवास स्थान होने के कारण यह धार्मिक पर्यटन का तो केंद्र रहा ही है, साथ ही पहाड़ी जीवन जीने की दिलचस्पी और एडवेंचर पसंद लोगों को भी बर्फ की चादर से ढका ये स्थल रोमांचित करता है.

हिमालय के इसी रोमांचकअनुभव को अध्यात्म के मोती के साथ पिरोया है, लेखक ओम स्वामी ने, जिन्होंने इन गिरी कंदराओं में 13 महीने बिताए और इस अनुभव को शब्दों में संजोकर आत्मकथा का रूप दिया. 'Thirteen Months In The Himalayas' उनके आत्मानुभव की ही कहानी है.

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किताब की शुरुआत अध्यात्म की खोज यात्रा से शुरू होती है और ईश्वरीय तत्व की पहचान तक पहुंचती है. पाठकों हिमालय की रहस्यमय ऊंचाई, वादियों और घाटियों की रोचक गहराई से होते हुए जब लेखक के आत्म साक्षात्कार की तरफ बढ़ते हैं तो इस दौरान वह खुद से भी साक्षात्कार की मनोदशा में पहुंच जाते हैं.

यह पुस्तक उनके एक वर्ष के एकांतवास के दौरान की गई बदलाव परक साधना को सामने ले आती है. उनकी बहुचर्चित आत्मकथा "इफ ट्रुथ बी टोल्ड" की अगली कड़ी के रूप में यह पुस्तक एक साधु की ईश्वर की खोज में चुनौतियों, अंतर्दृष्टि और उसे पा लेने के सुख की गहराई को पहचाने जाने का सफर है.

हिमालय की ऊंची चोटियों पर कड़ाके की ठंड, जंगली जानवरों का खतरा, भूख की पीड़ा और पूर्ण एकांत के बीच एक युवा साधु ने आध्यात्मिक आत्म-साक्षात्कार की अविश्वसनीय यात्रा शुरू की. तेरह महीनों तक ओम स्वामी ने गहन ध्यान में खुद को लगाया और अपने शरीर, मन और आत्मा की सीमाओं को पार करते हुए इस आध्यात्मिक लक्ष्य को हासिल करने की कोशिश की. उनकी यह यात्रा "हिमालय में तेरह महीने" में खूबसूरती से दर्ज की गई है.

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लेखक की इस यात्रा को जब आप पढ़ने का विषय बनाते हैं तो शुरुआत में यह कभी आनंद तो कभी भारी निराशा के मिले-जुले क्षणों से भरी दिखेगी. उनका संकल्प अडिग रहा, फिर भी आत्म-साक्षात्कार के मार्ग पर संदेह ने कई बार दस्तक दी. लंबे समय तक साधना में बैठना उनके लिए चुनौतीपूर्ण था, जिसके लिए उन्होंने प्राचीन अनुष्ठानों और प्रथाओं का सहारा लिया ताकि अपनी भक्ति को जीवित रख सकें. लेकिन सवाल बना रहा, क्या ये अनुष्ठान अकेले ईश्वर तक पहुंचने के लिए पर्याप्त थे?

लेकिन, सिर्फ एक आवाज जो उनका उत्साह बनाए रखती थी, वह थी देवी भैरवी (देवी दुर्गा) की आवाज जो उनके हृदय से आती थी. वह कहती थीं 'अगर तुम्हें उनका दर्शन नहीं होगा, तो किसे होगा?' भैरवी मां के ये शब्द उनके दिल में गूंजते रहे और हर मुश्किल के बावजूद आगे बढ़ने की प्रेरणा देते रहे.

"हिमालय में तेरह महीने" बेस्टसेलर "इफ ट्रुथ बी टोल्ड" की एक दुर्लभ और मंत्रमुग्ध कर देने वाली अगली कड़ी है. यह आत्मकथा पाठकों को एक साधु की आध्यात्मिक साधना से परिचय कराती है.

कौन हैं ओम स्वामी
हिमालय की तलहटी में रहने वाले ओम स्वामी एक प्रसिद्ध आध्यात्मिक गुरु हैं. भौतिक दुनिया से विरक्ति से पहले वह एक सफल उद्यमी भी रहे हैं. संन्यासी का उनका निर्णय आध्यात्मिक विकास और ज्ञान की ओर एक निर्णायक कदम था. तब से वह किताबों, ध्यान और ऑनलाइन मंचों के जरिए अध्यात्म के अपने अनुभवों को लोगों से शेयर कर रहे हैं और इसकी शांति संदेश का प्रसार कर रहे हैं. "इफ ट्रुथ बी टोल्ड: ए मॉन्क्स मेमॉयर" (2014), "द वेलनेस सेंस: आयुर्वेदिक एंड योगिक विजडम बेस्ड प्रैक्टिकल गाइड" (2015), "द बुक ऑफ काइंडनेस", "माइंड फुल टू माइंडफुल" (2019), उनकी प्रमुख किताबें हैं, जो उन्होंने लिखी हैं.

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मनोज शर्मा

मनोज शर्मा (जन्म 1968) स्वर्णिम भारत के संस्थापक-प्रकाशक , प्रधान संपादक और मेन्टम सॉफ्टवेयर प्राइवेट लिमिटेड के मुख्य कार्यकारी अधिकारी हैं।

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