गांधी जी के साथ आंदोलन से लेकर दिल्ली के सबसे यंग CM तक... कहानी शेर-ए-दिल्ली चौधरी ब्रह्म प्रकाश यादव की

4 1 5
Read Time5 Minute, 17 Second

दिल्ली के सर्द मौसम में चुनावी माहौल गर्मा रहा है. सत्ता में आम आदमी पार्टी है और विपक्ष में बीजेपी और कांग्रेस. तीनों ही दल अपनी राजनीतिक पिच तैयार करने में लगे हैं. चुनावी दंगल में जीत के लिए बड़े दांव खेले जा रहे हैं और पटखनी के लिए पसीना बहाया जा रहा है. दिल्ली विधानसभा चुनाव में अब तक हमने आपको 1993 से 2020 तक हुए सात चुनावों के नतीजे सिलसिलेवार बताए हैं. अब हम स्पेशल सीरीज में उन चेहरों की बात करेंगे, जिन्होंने दिल्ली का मैदान फतह किया और मुख्यमंत्री बने. शुरुआत 1952 की कहानी से कर रहे हैं.

यह वो साल था, जब दिल्ली में अंतरिम विधानसभा की व्यवस्था थी और 42 सीटों पर चुनाव हुए थे. दिल्ली में 36 एकल सदस्यों वाली विधानसभा सीटें थीं और 6 सीटें दो सदस्यों वाली थीं. यानी 36 सीटों पर एक ही उम्मीदवार विधायक चुना गया, जबकि 6 सीटों पर दो-दो उम्मीदवार चुनाव जीतकर विधानसभा पहुंचे. कुल 48 सदस्य चुने गए थे. रीडिंग रोड सीट से कांग्रेस और जनसंघ दोनों ही पार्टी के उम्मीदवार चुनाव जीते थे. हालांकि, इस चुनाव के 4 साल बाद दिल्ली विधानसभा भंग कर दी गई और यहां प्रशासनिक व्यवस्था भी बदल गई. यानी फिर दिल्ली में दोबारा ऐसा कभी मौका नहीं आया.

जानिए चौधरी ब्रह्म प्रकाश यादव को...

अगर दिल्ली के लोगों से पूछा जाए कि पहले मुख्यमंत्री का नाम क्या है? शायद ज्यादातर लोग मदन लाल खुराना का नाम लेंगे. लेकिन बहुत कम लोग जानते होंगे कि दिल्ली को अपना पहला मुख्यमंत्री मदन लाल खुराना से 41 साल पहले यानी 1952 में मिला था. 1952 में जब दिल्ली भारतीय संघ का पार्ट-सी स्टेट बना तो कांग्रेस के चौधरी ब्रह्म प्रकाश यादव पहले मुख्यमंत्री चुने गए. उन्हें योजना और विकास मंत्री का प्रभार भी सौंपा गया. उस समय उनकी उम्र सिर्फ 34 वर्ष थी. यादव अपने संगठनात्मक और प्रशासनिक कौशल के लिए जाने जाते थे. हालांकि, मुख्यमंत्री के रूप में उनका कार्यकाल करीब तीन साल (2 साल, 332 दिन) तक चला. 1955 में कांग्रेस ने गुरमुख निहाल सिंह को दिल्ली का दूसरा मुख्यमंत्री बनाया, जो 1956 तक अपने पद पर रहे. गुरमुख ने दरियागंज विधानसभा सीट से जीत हासिल की थी. राज्य पुनर्गठन आयोग की सिफारिशों के आधार पर सालभर बाद विधानसभा भंग हो गई. बाद में 1966 में दिल्ली मेट्रोपॉलिटन काउंसिल अस्तित्व में आ गया.

Advertisement

यह भी पढ़ें: Delhi Assembly Election History: जब केजरीवाल ने कर ली शीला की बराबरी, BJP के हाथ सिर्फ 8 तो कांग्रेस का हो गया सूपड़ा साफ

केन्या में जन्म और दिल्ली में पढ़ाई

चौधरी ब्रह्म प्रकाश यादव के पूर्वज हरियाणा के रेवाड़ी इलाके के रहने वाले थे. बाद में उनके माता-पिता केन्या चले गए. 16 जून 1918 को नैरोबी में ब्रह्म प्रकाश का जन्म हुआ. जब वे 13 साल के थे, तब परिवार दिल्ली लौट आया और शकूरपुर गांव में रहने लगा. ब्रह्म प्रकाश ने शुरुआती पढ़ाई-लिखाई दिल्ली से ही की. 1940 के दशक की शुरुआत में उन्होंने गांधी जी के 'भारत छोड़ो' आंदोलन में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया और कई बार जेल भी गए. 1943 में दो साल की सजा हुई और सेंट्रल जेल के बाद फिरोजपुर जेल में रखा गया. बाद में वो बाहर आए और बगावत जारी रखी तो दोबारा गिरफ्तार कर लिया गया. यादव भूमिगत होकर भी अंग्रेजी शासन के खिलाफ लड़ाई लड़ते रहे.

शेर-ए-दिल्ली और मुगले-आजम के नाम से मशहूर

वे दो बार लोकसभा चुनाव भी लड़े और जीते. केंद्र की सरकार में खाद्य, कृषि, सिंचाई और सहकारिता मंत्रालय की जिम्मेदारी संभाली. संसद में अपने बेहतरीन कार्यकाल के लिए उन्हें योग्य सांसद के रूप में अवॉर्ड भी मिला. ब्रह्म प्रकाश दिल्ली में खासे लोकप्रिय थे और जनता उन्हें सच्चा सेवक मानती थी और वे 'शेर-ए-दिल्ली' और 'मुगले आज़म' के नाम से मशहूर थे. वे अपनी सादगी के लिए काफी मशहूर थे. यादव किसी विशेष वाहन की सवार करने की बजाय सरकारी बसों में सामान्य नागरिक की तरह सफर करते थे और लोगों की समस्याएं सुनते थे.

Advertisement

यह भी पढ़ें: Delhi Assembly Election History: दिल्ली का वो चुनाव, जिसमें कांग्रेस का गेम हो गया फिनिश और AAP ने कायम कर ली बादशाहत

1993 में हो गया था यादव का निधन

7 मार्च 1952 को पहली बार दिल्ली विधानसभा गठित हुई. चौधरी ब्रह्म प्रकाश ने नांगलोई विधानसभा सीट से जीत हासिल की. वे देश के पहले यादव मुख्यमंत्री बने. वे ग्राम और कृषि सहकारी समितियों के पक्षधर थे और पंचायती राज व्यवस्था के कट्टर समर्थक थे. उन्होंने 1977 में पिछड़ा वर्ग, अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अल्पसंख्यकों के राष्ट्रीय संघ का भी गठन किया. 1993 में दिल्ली विधानसभा गठित हुई और फिर चुनाव हुए, उसी साल यादव का निधन हो गया. 2001 में डाक विभाग ने चौधरी ब्रह्म प्रकाश पर एक स्मारक डाक टिकट जारी किया था.

कैसे दिल्ली के मुख्यमंत्री बने थे ब्रह्म प्रकाश?

कांग्रेस ने जब बहुमत हासिल किया और सत्ता में आई तो पार्टी ने देशबंधु गुप्ता को मुख्यमंत्री बनाने का निर्णय लिया. लेकिन शपथ लेने से पहले उनका एक्सीडेंट (प्लेन क्रैश) हो गया और निधन हो गया. जिसके बाद पार्टी ने ब्रह्म प्रकाश (34 साल) को दिल्ली की कमान सौंपी. ब्रह्म प्रकाश सबसे युवा मुख्यमंत्री बने.

ब्रह्म प्रकाश का नेहरू से नहीं था बेहतर ताल-मेल

Advertisement

देश में 1950 में संविधान लागू हुआ. राज्य अधिनियम, 1951 के पार्ट- सी के तहत दिल्ली को राज्य बनाया गया था. उस समय मुख्य आयुक्त राज्य का मुखिया होता था, तब उपराज्यपाल का कोई प्रावधान नहीं था. 1951 के अधिनियम के तहत दिल्ली में एक मंत्रिपरिषद और एक मुख्यमंत्री की नियुक्ति की गई, जो मुख्य आयुक्त को दैनिक कामकाज में सहायता और सलाह देते थे. उस समय प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू थे और दिल्ली की कुर्सी पर ब्रह्म प्रकाश बैठे थे. दोनों के बीच तालमेल भी बेहतर नहीं थे. यहां तक ​​कि तत्कालीन केंद्रीय गृह मंत्री गोविंद बल्लभ पंत भी ब्रह्म प्रकाश को पसंद नहीं करते थे, जिनका दिल्ली में अच्छा खासा प्रभाव था. जल्द ही ब्रह्म प्रकाश का तत्कालीन मुख्य आयुक्त आनंद पंडित से झगड़ा हो गया, जो नेहरू के करीबी थे. ब्रह्म प्रकाश और पंडित के बीच हमेशा अनबन रहती थी. जब 1955 में गुड़ घोटाला सामने आया तो ब्रह्म प्रकाश को 12 फरवरी 1955 को इस्तीफा देने के लिए मजबूर होना पड़ा. अगले दिन यानी 13 फरवरी 1955 को गुरुमुख निहाल सिंह को मुख्यमंत्री पद की शपथ दिलाई गई.

यह भी पढ़ें: Delhi Assembly Election History: शीला हारीं, झाडू चली और त्रिशंकु बनी विधानसभा... दिल्ली की 2013 की चुनावी कहानी

Advertisement

कैसा रहा था 1952 का चुनाव...

दिल्ली में पहले चुनाव में निर्दलीय के अलावा 10 पार्टियों ने उम्मीदवार उतारे थे. इनमें अखिल भारतीय भारतीय जनसंघ (BJS), भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी, फॉरवर्ड ब्लॉक (मार्क्सवादी), अखिल भारतीय हिन्दू महासभा, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस, किसान मजदूर प्रजा पार्टी, अखिल भारतीय राम राज्य परिषद्, रेवोल्यूशनरी सोशलिस्ट पार्टी, आल इंडिया शिडूल्यड कॉस्ट फेडरेशन, सोशलिस्ट पार्टी का नाम शामिल था. कुल 48 विधायक चुने गए थे. सभी सीटें सामान्य रखी गई थीं. यानी कोई सीट रिजर्व नहीं थी. 187 उम्मीदवार मैदान में थे. सबसे ज्यादा महरौली में 13 उम्मीदवारों ने चुनाव लड़ा था.

चुनाव में 891669 वोटर्स रजिस्टर्ड थे और 521766 लोगों ने मतदान किया था. कुल 58.52% वोटिंग हुई थी. बहुमत के लिए 25 सीटें जरूरी थीं. नतीजे आए तो कांग्रेस ने 39 सीटें जीतकर बहुमत हासिल किया. BJS ने 5 सीटें जीतीं. दो सीटों पर सोशलिस्ट पार्टी और एक-एक सीट पर HMS और निर्दलीय ने चुनाव जीता.

Live TV

\\\"स्वर्णिम
+91 120 4319808|9470846577

स्वर्णिम भारत न्यूज़ हिन्दी के एंड्रॉएड ऐप के लिए आप यहां क्लिक कर सकते हैं.

मनोज शर्मा

मनोज शर्मा (जन्म 1968) स्वर्णिम भारत के संस्थापक-प्रकाशक , प्रधान संपादक और मेन्टम सॉफ्टवेयर प्राइवेट लिमिटेड के मुख्य कार्यकारी अधिकारी हैं।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Laptops | Up to 40% off

अगली खबर

गृहमंत्री अमित शाह के घर चल रही बड़ी बैठक, जेपी नड्डा भी मौजूद

News Flash 19 दिसंबर 2024

गृहमंत्री अमित शाह के घर चल रही बड़ी बैठक, जेपी नड्डा भी मौजूद

Subscribe US Now