दिवाली के बाद दिल्ली-NCR की हवा जहरीली हो चुकी है. आलम ये है कि राष्ट्रीय राजधानी के कई इलाकों में पीएम 2.5 का स्तर तय सीमा से पंद्रह गुना ज्यादा हो गया. गुरुवार को दिवाली की रात 10 बजे दिल्ली के नेहरू नगर, पटपड़गंज, अशोक विहार और ओखला में PM 2.5 का लेवल 850 से 900 के बीच दर्ज किया गया. वहीं विवेक विहार में ये 1800 और पटपड़गंज में 1500 तक चला गया यानी तय सीमा से 30 और 25 गुना ज्यादा है. ऐसे में डॉक्टरों ने लोगों को घरों से बाहर न निकलने की सलाह दी है. खासकर सांस संबंधित बीमारी वाले मरीज, बुजुर्गों और बच्चों के लिए सलाह दी गई है.
एएनआई से बात करते हुए दिल्ली के अपोलो के डॉक्टर निखिल मोदी ने कहा कि लगभग 10 से 14 दिन से वायु गुणवत्ता बहुत खराब रही है. ज़्यादातर समय वायु गुणवत्ता सूचकांक 400 से ऊपर रहा है. करीब एक हफ़्ते से हम कई ऐसे मामले देख रहे हैं जिनमें खांसी, सांस लेने में कठिनाई और छाती में संक्रमण की समस्याएं सामने आई हैं. इस तरह के मरीज गुरुवार रात से हमारे पास आ रहे हैं. मैंने जो देखा है वो ये है कि आपातकालीन स्थिति में कुछ मरीज़ गंभीर बीमारी के साथ आए हैं और अभी भी तमाम मरीज अपने लिए अपॉइंटमेंट बुक करा रहे हैं. यानी प्रदूषण बढ़ने के साथ ही मरीजों की संख्या में भी तेजी से इजाफा हुआ है.
डॉक्टर ने बताया कि जब कोई भी इस तरह के स्मॉग या खराब हवा के संपर्क में आता है तो सबसे पहले उनकी आंखें प्रभावित होती हैं. जैसे आंखों से पानी आना, आंखों में खुजली, छींक आना, नाक बहना, गले में खराश, जलन, खांसी जैसी समस्याएं प्रदूषण के कारण होती हैं. और फिर जब यह फेफड़ों तक पहुंचता है तो यह सांस लेने में कठिनाई, छाती में जमाव और अधिक से अधिक बलगम बनने का कारण बनता है और बाद में यह बलगम संक्रमण में बदल जाता है. और फिर आपको निमोनिया और अन्य समस्याओं का सामना करना पड़ता है. इतना ही नहीं, स्थिति कई बार इतनी गंभीर हो जाती है कि लोग आईसी तक पहुंच सकते हैं. कारण, हवा में इस समय सल्फर डाइऑक्साइड, नाइट्रोजन ऑक्साइड जैसी खतरनाक गैसें मौजूद हैं.
कैंसर जैसी गंभीर बीमारी का भी खतरा
उन्होंने बताया कि जिन लोगों को अस्थमा है उनका अस्थमा और भी खराब हो सकता है. इन गैसों के लंबे समय तक संपर्क में रहने से फेफड़ों में होने वाले बदलावों का खतरा बढ़ जाता है. आप सीओपीडी जैसी बीमारियों से पीड़ित हो जाते हैं, कैंसर का खतरा, जिसे हम पहले केवल धूम्रपान से जोड़कर देखते थे. अब हम देखते हैं कि कम उम्र के मरीज जो इस प्रदूषण के संपर्क में आते हैं, उन्हें कैंसर हो जाता है, कई अन्य समस्याएं होती हैं. यहां तक कि इन हानिकारक गैसों के संपर्क में आने से टीबी जैसे संक्रमण का खतरा भी बढ़ जाता है. कल रात (गुरुवार) से तमाम मरीजों के कॉल आ रहे हैं इसी तरह की समस्याओं को लेकर. हमने उन्हें सलाह दी है कि प्रदूषण के स्तर के मद्देनजर वे बाहर न जाएं. जब भी आप बाहर जाएं तो मास्क पहनें. हालांकि ऐसा नहीं है कि बाहर निकलने से ही सब कुछ ठीक रहेगा. क्योंकि आपके घर की जहरीली हवा घर तक भी पहुंचेगी. इसलिए भी कई लोग घर में रहते हुए भी खांसी जैसी समस्या से जूझ रहे हैं. हालांकि बाहर के मुकाबले घर पर रहने में जोखिम कम है.
ये सावधानी बरतने की सलाह
डॉक्टर ने कहा कि भले ही दिल्ली सरकार की तरफ से पटाखों पर प्रतिबंध था, लेकिन मैं कहूँगा कि कोई भी इसका पालन नहीं कर रहा था. इसलिए हम खुद ही दोषी हैं. हम इन दिशा-निर्देशों का पालन नहीं करते हैं और फिर अगला कदम यह है कि जब ऐसा हो जाए, तो कम से कम मास्क तो पहनें. जो लोग नियमित रूप से सांस संबंधी दवाएं ले रहे हैं, उन्हें नियमित रूप से मास्क पहनना चाहिए. नहीं तो स्थिति खराब हो सकती है और फिर वे अस्पताल पहुंचेंगे. इसके साथ ही अच्छा एंटीऑक्सीडेंट आहार लेना चाहिए, जिसमें फल, सब्जियां भरपूर हो. क्योंकि ये एंटीऑक्सीडेंट कुछ हद तक इन गैसों के हानिकारक प्रभाव को कम कर सकते हैं. बच्चों और बुजुर्गों के लिए ये प्रदूषण सबसे अधिक खतरनाक है. कारण, बच्चों के फेफड़े अभी भी बुज़ुर्ग लोगों की तुलना में विकसित होने की अवस्था में हैं. उनके फेफड़े दिन-ब-दिन कमज़ोर होते जा रहे हैं. इसलिए ये दो समूह हैं जो इस समस्या के प्रति ज़्यादा संवेदनशील हैं.
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