Ground Report- दिल्ली में नाबालिगों के हाथ में ई-रिक्शा का हैंडल...परिवार मजबूर, पुलिस ‘मैनेज’!

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पापा देसी दारू पीते थे... बीमार पड़े फिर डॉक्टर ने कह दिया कि लीवर खराब हो गया...खून बकोरते-बकोरते एक दिन मर गए. 15 साल का सोनू भावशून्य होकर एक सांस में सब कह गया. दस-ग्यारह साल का दिखने वाला सोनू ई-रिक्शा चलाता है. उसने जब अपनी उम्र बताई तो एकबारगी मुझे यकीन नहीं हुआ. लंबा कद, दुबले-पतले हाथ पैर और कोख में धंसा हुआ पेट...चेहरे पर बचपने का कोई निशान नहीं बचा था और आंखों में उम्र से पहले आनेवाला ठहराव तैर रहा था.

कबसे ई-रिक्शा चलाना शुरू किए?

पापा के गुजरने के बाद घर की हालत देख मैंने मां से कह दिया कि अब मैं रिक्शा चलाऊंगा.
उसने पहली बार जब मां को बताया कि वो ई-रिक्शा चलाएगा तो मां ने कुछ नहीं कहा. बस जब घर से निकल रहा था तो बोली- बेटा संभलकर चलाना.

सोनू के परिवार में चार लोग हैं...सोनू की मां, बड़ा भाई और छोटी बहन. उससे 3 साल बड़ा बड़ा भाई पहले से ही किराए पर लेकर ई-रिक्शा चलाता है और छोटी बहन पढ़ती है. सोनू अपनी ई-रिक्शा पर पूरे पांच सवारियों को आस-पास के इलाकों से निर्माण विहार मेट्रो स्टेशन पहुंचाता है. बात करने के मकसद से मैं उसके ई-रिक्शे में ही बैठ गई.

भाई तो रिक्शा चलाता है फिर तुम्हें इतनी छोटी उम्र में ये काम करने की जरूरत क्यों पड़ी?

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'पापा ने हर जगह से कर्जा कर रखा था. वो तो चले गए फिर सब हमसे आकर मांगते... मेरा भाई जो कमाता था उससे घर का ही खर्चा नहीं चल पाता था. फिर बहन की पढ़ाई...'

किस स्कूल में पढ़ती है बहन?

सरकारी में पढ़ती है लेकिन कागज-कलम का पैसा तो लगता है.

तुम कहां तक पढ़े?

सातवीं तक पढ़ा

स्कूल जाने का मन करता है?

हां... इसी बीच सोनू को सवारी दिखी...वो मेरे सवाल का जवाब बीच में छोड़ चिल्लाया...निर्माण विहार..निर्माण विहार. उधर से कोई आशाजनक उत्तर न मिलता देख मेरी तरफ देखकर बोला...मन तो बहुत करता है लेकिन फिर घर की मजबूरी दिख जाती है. मेरे दोस्त सब स्कूल जाते हैं...तो मेरा मन तो होगा न कि उनके साथ पढ़ूं, खेलूं.

स्कूल कब छोड़ा?

पापा गुजरे तभी छोड़ दिया, तीन साल से रिक्शा चला रहा हूं.

किसने सिखाया रिक्शा चलाना

कुछ दोस्त हैं जो पहले से ही चलाते हैं... उनसे ही पूछ-पूछकर सीख लिया.

तुम्हारे दोस्तों की उम्र कितनी होगी?

पता नहीं, कुछ तो मेरे जैसे हैं, कुछ बड़े हैं.

ये ई-रिक्शा किसका है?

ये तो मालिक का है

मुझे अपने मालिक से मिलवा दोगे या फिर उनका कोई नंबर होगा?

वो घर पर नहीं मिलते...हमेशा बाहर रहते हैं. नंबर तो है नहीं उनका क्योंकि मेरे पास फोन नहीं.

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एक दिन में कितना कमा लेते हो?

कभी 700 तो कभी 800 तक हो जाती है कमाई.

और रिक्शे में कुछ टूट-फूट हुई तो...मालिक से मदद मिलती है.

नहीं, वो क्यों करेंगे मदद. हमें अपने पैसों से सब ठीक कराना पड़ता है

अब सोनू मुझसे बात करने में सहज दिख रहा था. यह देख मैंने पूछा लिया, 'सोनू, तुम्हें पता है कि 18 साल से कम उम्र में गाड़ी चलाना गलत है...कानून इसे अपराध मानता है.

नाबालिगों के हाथ में रिक्शे का हैंडल, पुलिस हो जाती है 'मैनेज'

ट्रैफिक पुलिस वाले रोकते नहीं हैं?

हमें क्यों रोकेंगे जी... उनकी बात मालिक से है, हमसे कोई बात नहीं है. हमें कोई नहीं रोक सकता. सब मैनेज हो जाता है... सोनू ने ये शब्द ऐसे बोले जैसे ट्रैफिक रूल को ठेंगा दिखा रहा हो.
सब मैनेज हो जाता है मतलब...मैंने उसे कुरेदा

वो थोड़ा गंभीर होकर धीमी आवाज में बोला, 'पैसा खाते हैं बस... पैसा खाते हैं पुलिस वाले. एक गाड़ी से हजार रुपये लेते हैं. हर महीने हमें पैसे देने पड़ते हैं इनको.'

इसी बीच सामने से आते ई-रिक्शा में उसे उसके दो दोस्त दिख गए. वो दोनों का नाम लेकर चिल्लाया. मैं अब सोनू के ई-रिक्शा से उतर उसके दोस्तों के ई-रिक्शा पर थी.

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सांकेतिक तस्वीर

क्या नाम है तुम दोनों का...

एक ने अपना नाम आकाश बताया और दूसरे ने पवन. जब बेहद कमजोर से दिख रहे आकाश ने अपनी उम्र 14 साल बताई तो मैंने उससे पूछ लिया, '14 साल के लगते नहीं तुम...खाना-पीना ठीक ढंग से नहीं करते?'

बाहर का ही खाना खाता हूं...घर पर बनता तो है लेकिन घर का खाना अच्छा नहीं लगता. दिनभर बाहर ही रहना तो बाहर का ही खा लेता हूं.

आकाश के मुंह से गुटखे की बू आ रही थी... पान-मसाला चबाने से दांत भी हल्के लाल थे. उसके परिवार में पापा-मम्मी, दो छोटे बहन-भाई हैं. उसके पापा भी गाड़ी चलाते हैं. परिवार उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद से है और वहां रहने को कोई घर नहीं था तो कर्ज लेकर घर बनाया है. सात लाख का कर्ज है... अब वही कर्ज चुकाने में आकाश पिता की मदद कर रहा है.

यहां पर कैसे रहते हो?

यहां तो किराए पर

पढ़ाई की है?

हां. आठवीं तक पढ़ा हूं.

जब पहली बार ई-रिक्शा चलाने की बात मम्मी से कही तो उन्होंने तुम्हें रोका नहीं था

रोका था न...बोली कि पुलिस पकड़ लेगी...गाड़ी-वाड़ी जब्ती कर लेगी फिर बहुत ज्यादा खर्चा हो जाएगा, गाड़ी छुड़वानी पड़ेगी. मैंने भी बोल दिया कि मम्मी कोई बात नहीं... कुछ नहीं होगा. घर में दिक्कत है चलाने दो.

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भाई-बहन पढ़ते हैं?

हां.

उन्हें देखकर तुम्हारा मन स्कूल जाने को नहीं होता?

स्कूल तो जाता था मैं भी पहले लेकिन स्कूल में लड़ाई हो गई... टीचर ने निकाल दिया. दो लड़कों और मेरे बीच लड़ाई हो गई थी. मैंने एक के सिर पर मार दिया था.

ये किसकी ई-रिक्शा है... किराए की?

नहीं ये तो अपनी है... 2 लाख 30 हजार में लिया है. हर महीने 10 हजार जाते हैं किस्त के.

हर महीने कितना कमा लेते हो

हो जाता है 800, हजार रोज का

जब पहली बार ई-रिक्शा चलाया तो डर नहीं लगा?

लगा न. फिर दोस्तों को देखकर सारा डर निकल गया. अब तो बिल्कुल डर नहीं लगता.

ऐसा भी होता है क्या कि किसी सवारी ने तुम्हारी उम्र देखकर तुम्हारी ई-रिक्शा में बैठने से मना कर दिया हो?

हां, होता है न... कुछ लोग कहते हैं कि तुम लोग इतने छोटे हो, ई-रिक्शा कैसे चला रहे हो. पुलिस वाले तुम्हें रोक नहीं रहे क्या. हम लोग भी कह देते हैं कि ये पुलिस वालों को बस "एंट्री" के पैसे से मतलब है. एंट्री देते हैं हम हर जगह की.

एंट्री का पैसा मतलब?

हर महीने हमें पुलिस वालों को पैसे देने पड़ते हैं निर्माण विहार और प्रीत विहार रूट पर गाड़ी चलाने के लिए. निर्माण विहार का 800 और प्रीत विहार के 500.

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आकाश ने मुझे आगे बताया कि इन रास्तों पर चलने वाले अधिकतर ई-रिक्शे, लगभग 150, किसी "मामा" नाम के व्यक्ति के हैं. मामा ने किराए के रिक्शे उस जैसे कुछ छोटे बच्चों को भी दे रखे हैं. मैंने मामा से बात करने की कोशिश की लेकिन उससे संपर्क नहीं हो पाया.

सिर पर पिता का साया नहीं, गरीबी ने बच्चे के हाथ में पकड़ा दिया रिक्शा

पवन ने बताया कि उसका रिक्शा दूसरा है और आज रविवार है तो अपने काम से छुट्टी लेकर उसने अपनी गाड़ी कुछ घंटों के लिए पार्किंग में खड़ी की है. उसने भी किस्तों पर ई-रिक्शा ली है और 10-10 हजार की 60 किस्त अभी देनी बाकी है. पवन ने अपनी उम्र 13 साल बताई.

निर्माण विहार और प्रीत विहार इलाके में ई-रिक्शा चलाने वाले 18 साल से कम उम्र के जितने बच्चों से भी मैंने बात की, अधिकांश में एक कॉमन बात थी- उनके सिर पर पिता का साया नहीं था.

पवन के पिता की भी मौत हो चुकी है. वो बताता है, 'जब छोटे थे तभी पापा गुजर गए. तब मम्मी और बड़े भाई ने घर संभाला. मम्मी झाड़ू-पोंछा करती है. पहले भाई गांधीनगर में काम करता था और अब घर पेंट करता है. एक छोटा भाई है...पढ़ता है.'

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तुमने कहां तक पढ़ाई की है?

मैं तो स्कूल नहीं गया...पापा तो गुजर गए बहुत पहले फिर भाई के कमाने से खाना भी बहुत मुश्किल से हो पाता था. मम्मी तो हमें खिलाने के फेर में खुद खाती भी नहीं थी. लोगों के घर काम के लिए जाती, वहां से किसी ने कुछ बचा-खुचा खाने को दिया तो लाकर हमें ही दे देती थी.

फिर थोड़ा रुककर बोला- पहले मन करता था कि स्कूल जाऊं, देखूं कि अंदर से कैसा दिखता है स्कूल.. . मेरे दोस्त आकर बताते थे कि इस टीचर ने ये किया, ऐसे पढ़ाया तो मन ललचता था...लेकिन अब मन मर गया. अब तो बस परिवार दिखता है और इसकी मजबूरी. बस ये सोच रहती है कि कैसे चार पैसे ज्यादा आ जाए चाहे जितनी देर गाड़ी चलानी पड़ जाए.

ई-रिक्शा के सारे डॉक्यूमेंट्स हैं तुम्हारे पास..?

सब कुछ है.

ड्राइविंग लाइसेंस तो नहीं होगा न

नहीं... वो तो जब 18 साल के होंगे कभी बनेगा. पुलिस वाले पकड़ते हैं. लेकिन उन्हें तो बस पैसों से काम है. पैसे लेते हैं फिर छोड़ देते हैं.

आकाश की तरह पवन ने भी आरोप लगाया कि उसे हर महीने निर्माण विहार के लिए 800 रुपये पुलिस वालों को देने पड़ते हैं. चूंकि वो अभी प्रीत विहार नहीं जाता तो वहां की एंट्री उसे नहीं देनी पड़ती.

सांकेतिक तस्वीर

नाबालिगों के ई-रिक्शा चलाने पर क्या बोले अधिकारी?

लाके में 18 साल से कम उम्र के बच्चों के ई-रिक्शा चलाने और उनके एंट्री मनी के आरोपों को लेकर एसीपी ट्रैफिक, पूर्वी दिल्ली खुशहाल सिंह से बात की गई. उन्होंने नाबालिगों के ई-रिक्शा चलाने की जानकारी होने से साफ इनकार किया.

पुलिसवालों के पैसे लेकर छोटे बच्चों को गाड़ी चलाने देने के आरोप पर उन्होंने कहा, 'इस तरह के आरोप तो कोई भी लगा सकता है. इसमें कोई सच्चाई नहीं है... उनके आरोप बेबुनियाद हैं.'

मयूर विहार के ट्रैफिक इंस्पेक्टर ने कहा कि 'इन लोगों' पर कार्रवाई होगी तो ये इस तरह के बेबुनियाद आरोप लगाएंगे ही. इस तरह के ई-रिक्शा का रजिस्ट्रेशन नहीं है और पुलिस इन पर कार्रवाई कर रही है, इसलिए पैसे वसूलने के आरोप लगाए जा रहे हैं.

बिना रेजिस्ट्रेशन वाली ई-रिक्शा पर सरकार सख्त

राजधानी दिल्ली में लगभग 1.2 लाख रजिस्टर्ड ई-रिक्शा हैं लेकिन इनकी वास्तविक संख्या इससे दोगुनी से भी ज्यादा है. अधिकारियों का कहना है कि बिना रजिस्ट्रेशन वाले ई-रिक्शा पर नबंर प्लेट नहीं होता इसलिए वो ट्रैफिक नियमों को उल्लंघन करते हैं, कहीं से भी ई-रिक्शा निकाल लेते हैं और ट्रैफिक जाम का बड़ा कारण बनते हैं तो भी नंबर प्लेट न होने की वजह से उनका चालान नहीं हो पाता.

बिनारेजिस्ट्रेशन वाली ई-रिक्शा पर कार्रवाई के लिए इसी साल 8 अगस्त को दिल्ली के उपराज्यपाल वीके सक्सेना की अध्यक्षता में एक हाई लेवल मीटिंग हुई थी. इसमें परिवहन विभाग को बिना रजिस्ट्रेशन वाले ई-रिक्शा की जब्ती के आदेश दिए गए थे. रजिस्ट्रेशन कराने के लिए 90 दिनों का वक्त दिया गया और अवैध ई-रिक्शा की जब्ती के 7 दिनों के भीतर रजिस्ट्रेशन न होने पर उसे कुचल देने के आदेश हैं.

सांकेतिक तस्वीर

हालांकि, न तो सोनू और न ही आकाश, पवन को इस बारे में कोई जानकारी है. मैंने सोनू से पूछा कि अगर गाड़ी पकड़ी गई तो क्या करोगे?

उसने पहले तो कुछ सोचा फिर बोला, 'पुलिसवालों को बराबर तो पैसे देते हैं, फिर क्यों पकड़ लेंगे. पकड़ेंगे तो फिर कुछ ले-दे के हो जाएगा. '

लेकिन अगर पैसों से बात न बनी तो...

फिर तो किस्मत अपनी... भूखे मरेंगे और क्या करेंगे... 60 किस्तें अभी बाकी हैं गाड़ी की, भगवान जाने फिर क्या होगा...लेकिन जब तक काम हो रहा, कर रहे, तब की तब देखेंगे.

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मनोज शर्मा

मनोज शर्मा (जन्म 1968) स्वर्णिम भारत के संस्थापक-प्रकाशक , प्रधान संपादक और मेन्टम सॉफ्टवेयर प्राइवेट लिमिटेड के मुख्य कार्यकारी अधिकारी हैं।

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