क्या है वो नियम, जिसके तहत रिकॉर्ड से हट जाती हैं सांसदों की विवादित बातें, क्या कोर्ट में दी जा सकती है चुनौती?

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लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी के 1 जुलाई को दिए गए भाषण के कई हिस्सों को रिकॉर्ड से हटा दिया गया. इसके लिए स्पीकर ओम बिरला ने सदन संचालन के नियम 380 का हवाला दिया था. अब इसी बात पर राहुल समेत कांग्रेस नाराजगी जता रही है. उनका कहना है कि स्पीच के जिन हिस्सों को हटाया गया, उसमें किसी भी तरह की असंसदीय बात या शब्द नहीं. नेता विपक्ष समेत उनकी पार्टी हटाए हुए हिस्से को दोबारा रिकॉर्ड में लाने की मांग कर रही है. जानिए, क्या ये मुमकिन है.

क्या है वो नियम

लोकसभा के प्रक्रिया तथा कार्य संचालन नियमों के नियम 380 (निष्कासन) में कहा गया है कि अगर अध्यक्ष की राय है कि वाद-विवाद में ऐसे शब्दों का प्रयोग किया गया है जो अपमानजनक या अशिष्ट या असंसदीय या अशोभनीय हैं, तो अध्यक्ष अपने विवेक का प्रयोग करते हुए आदेश दे सकते हैं कि ऐसे शब्दों को सदन की कार्यवाही से निकाल दिया जाए.

ऐसा नहीं है कि बोलने की आजादी के साथ सांसद कुछ भी कह सकने के लिए आजाद हैं. कोई भी शब्द या टर्म ऐसा न हो जो संसद की गरिमा को भंग करता हो. यही हवाला देते हुए सदन की कार्यवाही के दौरान कई बार सांसदों के भाषणों से कुछ शब्द, वाक्य या बड़े हिस्से भी हटाए जाते रहे. इस प्रोसेस को एक्सपंक्शन कहते हैं. लोकसभा के प्रक्रिया और कार्य संचालन नियम 380 के तहत ऐसा किया जाता रहा.

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किसके पास है हटाने का अधिकार

यह नियम कहता है कि लोकसभा अध्यक्ष की ये जिम्मेदारी है कि वो अपने विवेक से किसी सांसद के बयान के कुछ हिस्सों या शब्दों को हटा सकता है. वैसे सत्ताधारी पार्टी भी अगर एतराज उठाए और स्पीकर का ध्यान दिलाए तो भी ये एक्शन लिया जाता है. रिपोर्टिंग सेक्शन भी ऐसे असंसदीय शब्दों या वाक्यों को लेकर अलर्ट रहता है. अगर कोई सदस्य ऐसा शब्द बोले, जो किसी को परेशान करे, या सदन की मर्यादा को तोड़ता हो, तो रिपोर्टिंग सेक्शन उसे पीठासीन अधिकारी या स्पीकर को भेजता है. साथ में पूरा संदर्भ रखते हुए उस शब्द को हटाने का आग्रह रहता है.

rahul gandhi lok sabha speech expunged controversy photo PTIक्या हर सांसद के

रखी जाती है पारदर्शिता

रूल्स ऑफ प्रोसिजर एंड कंडक्ट ऑफ बिजनेस इन लोकसभा का नियम 381 कहता है कि कार्यवाही का वह भाग जो इस तरह हटाया जाए, उसे तारांकन चिह्न से चिह्नित किया जाए और साथ में फुटनोट डाला जाए कि ऐसा क्यों किया जा रहा है.

भाषण मॉनिटर होते हैं

इसके लिए लोकसभा सचिवालय में पूरी टीम होती है जो हर भाषण और पूरी कार्यवाही को रिकॉर्ड करती है. अगर टीम को कुछ भी विवादित लगे तो उसे अध्यक्ष के संज्ञान में लाया जाएगा. स्पीकर इसपर अपना नोट डालेंगे और फिर वीडियो में उसे बीप कर दिया जाता है. साथ ही साथ लिखित रिकॉर्ड से भी हटा दिया जाता है.

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क्या विवादित बयान देने वालोंपर एक्शन हो सकता है

सदनमें वैसे तो अपनी बात कहने या विरोध करने की पूरी आजादी है, लेकिन इस दौरान भाषा का ध्यान रखना होता है. संविधान के अनुच्छेद 105(2) के मुताबिक, किसी भी सदन में कही गई बात पर कोर्ट में कार्रवाई नहीं हो सकती. मेंबर ऑफ पार्लियामेंट को केवल उसकी पार्टी या विपक्षी पार्टी लताड़ लगा सकती है. कारण बताओ नोटिस दिया जा सकता है. उचित वजह न दिखने पर पार्टी संबंधित नेता पर कार्रवाई कर सकती है.

rahul gandhi lok sabha speech expunged controversy photo PIB

हटाए जाने के बाद शब्दों का क्या होता है

विवादित अंश संसद के रिकॉर्ड से गायब हो जाते हैं. मीडिया उनपर आधारित रिपोर्ट्स नहीं कर सकती. इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि वे लाइव चले और सुने गए. वैसे सोशल मीडिया के आने के बाद से ये नियम ढीला पड़ा है. लोग लगातार रिकॉर्ड से हटे वाक्य बोल या उसे रिपोर्ट कर रहे हैं.

क्याफैसले को चैलेंज किया जा सकता है

चूंकि ये फैसला स्पीकर लेते हैं इसलिए सांसद इसे चुनौती नहीं दे सकते. लेकिन हां, वे हटाए हुए अंश को रिस्टोर करने की रिक्वेस्ट कर सकते हैं. वे बता सकते हैं कि क्यों उनकी बात असंसदीय नहीं थी. हालांकि इसे किसी भी तरह से अदालत में चुनौती नहीं दिया जा सकता, सबकुछ केवल लोकतांत्रिक ढंग से हो सकता है. कई बार पहले भी ऐसा हुआ है कि हटाए गए शब्द रिस्टोर किए गए.

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क्या हैं असंसदीय शब्द

बहुत से ऐसे शब्द या बातें हैं, जिन्हें संसद में बोलना वर्जित है. सांसदों के पास फ्रीडम ऑप स्पीच तो है, पर उतनी ही, जितने में किसी की डिग्निटी या भावनाएं आहत न हों. इनमें हिंदी-अंग्रेजी या किसी भी भाषा के शब्द शामिलहैं. इसमें कहावतें, मुहावरें भी हो सकतेहैं, जो किसी को चोट पहुंचाते हों. या किसी खास कल्चर में जिसे खराब माना जाता हो.

rahul gandhi lok sabha speech expunged controversy photo PTI

साल 1999 में निकली थी असंसदीय शब्दों कीपहली लिस्ट

लोकसभा सचिवालय ने इसे लेकर एक बुकलेट निकाली, जिसका टाइटल है- अनपार्लियामेंट्री एक्सप्रेशन्स. पहली बार इसे साल 1999 में छापा गया था. इसमें पुरानी बहसों को संदर्भ के तौर पर लिया गया है. ये एक तरह की नियमावली है, जो हरेक सांसद को पता होनी चाहिए. असंसदीय शब्दों की लिस्ट दो हिस्सों में बंटी हुई है. पहले पार्ट में अंग्रेजी के शब्द हैं, जबकि दूसरे में हिंदी. बाकी भाषाओं के शब्दों-एक्सप्रेशन का जिक्र भी अंग्रेजी में है.

ये हैं हिंदी के कुछ शब्द

जुमलाजीवी, बाल बुद्धि, कोविड स्प्रेडर, शर्मनाक, धोखा, चमचागिरी, स्नूपगेट, तानाशाह, शकुनी, अनपढ़, अनर्गल, अहंकार, औकात जैसे कई शब्द हैं, जो लोकसभा और राज्यसभा दोनों ही जगहों पर बहस में नहीं बोले जा सकते. नाटकबाजी, झूठा, धोखा, उचक्का, नस्लभेदी जैसे वर्ड्स भी इसी श्रेणी में हैं.

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अंग्रेजी के कुछ एक्सप्रेशन ऐसे हैं

यू हैव डबल स्टैंडर्ड्स, यू हैव टू बी फेयर, डोन्ट ट्राय टू गैग माय माउथ, बीटन विद शूज, ब्लडशेड, ब्लडी, ब्लडी ओथ, करप्ट, क्रुअल, डिसीव्ड, डॉग, ड्रामा, मिसलीड. ये सारे शब्द अल्फाबेट में अरेंज किए हुए हैं, मतलब ए से लेकर जेड तक. साथ ही शब्द के बगल में ये भी लिखा हुआ है कि वो कब और कहां, किस दौरान बोला गया था. विदेशी संसदों में बोले गए शब्द भी इसका हिस्सा हैं.

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मनोज शर्मा

मनोज शर्मा (जन्म 1968) स्वर्णिम भारत के संस्थापक-प्रकाशक , प्रधान संपादक और मेन्टम सॉफ्टवेयर प्राइवेट लिमिटेड के मुख्य कार्यकारी अधिकारी हैं।

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