महाराष्ट्र का किला फतह करना आसान नहीं... कांग्रेस को हरियाणा के नतीजों से सीखने होंगे 5 सबक

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कांग्रेस और उनके रणनीतिकारों के लिए हरियाणा में जीत पक्की थी. वहीं कांग्रेस के नेता और इसके रणनीतिकार महाराष्ट्र को एक चुनौती के रूप में देख रहे थे, क्योंकि आगामी विधानसभा में उन्हें न केवल भाजपा से मुकाबला करना है, बल्कि अपने सहयोगियों उद्धव ठाकरे और शरद पवार को भी साधना है. लेकिन हरियाणा विधानसभा चुनावों के चौंकाने वाले नतीजों से कांग्रेस को यह एहसास जरूर हुआ होगा कि उसे अभी भी लंबा रास्ता तय करना है और अगर वो महाराष्ट्र में अच्छा प्रदर्शन नहीं करती है तो लोकसभा में उसका प्रदर्शन सिर्फ़ एक संयोग माना जाएगा. उद्धव ठाकरे की पार्टी ने पहले ही कांग्रेस के खिलाफ अपने तीखे तेवर दिखाते हुए कहा है कि यह कांग्रेस के क्षेत्रीय नेताओं का अहंकार है जिसकी वजह से पार्टी हरियाणा में चुनाव हारी है. कांग्रेस को हरियाणा में लगभग जीते गए चुनाव से सबक सीखने की जरूरत है.

1. वोट शेयर पर्याप्त नहीं

देखा जाए तो कांग्रेस ने हरियाणा में अपने वोट शेयर में उल्लेखनीय सुधार किया है. 2019 के मुकाबले 2024 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के वोट शेयर में 18% की बढ़ोतरी हुई है. विधानसभा चुनावों में भी कांग्रेस को 2019 के मुकाबले 12% की बढ़ोतरी मिली है, लेकिन भाजपा के वोट शेयर में भी 2019 के मुकाबले 3% की बढ़ोतरी देखी गई है. इससे पता चलता है कि कांग्रेस अभी भी भाजपा के बेस वोटर को अपनी ओर खींचने में सक्षम नहीं है. महाराष्ट्र में भी भाजपा अपने वोट बेस को बनाए रखने में कामयाब रही है, लेकिन 2024 के लोकसभा चुनावों में इसमें मामूली 1.7% की गिरावट देखी गई है. महाराष्ट्र में कांग्रेस और भाजपा एक-दूसरे के खिलाफ अधिकतम सीटों पर चुनाव लड़ने जा रही हैं, इसलिए वोट शेयर में बढ़ोतरी के बावजूद कांग्रेस को राज्य में भाजपा के वोट बरकरार रहने से सावधान रहना होगा. कांग्रेस को भाजपा के गैर हिंदुत्व वोट को अपनी ओर खींचने पर भी काम करना होगा.

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2. गठबंधन सहयोगियों को साधना

लोकसभा चुनाव में जीत के बाद कांग्रेस का आक्रामक रुख उसके सहयोगी दल शिवसेना को रास नहीं आ रहा है. सीटों के बंटवारे के लिए एमवीए की बैठकों में कांग्रेस अपनी आंतरिक टीमों द्वारा किए गए सर्वेक्षणों से लैस होकर कई सीटों पर दावा कर रही है, जिन पर शिवसेना यूबीटी की भी नजर है. कई कांग्रेस नेताओं ने सार्वजनिक और निजी तौर पर कहा है कि अगर सीटों का बंटवारा उनकी मांगों के मुताबिक नहीं हुआ तो वे दोस्ताना मुकाबला करेंगे. हरियाणा में आम आदमी पार्टी के साथ गठबंधन न करने से कांग्रेस को कम से कम 6 से 7 सीटों का नुकसान हुआ. आम आदमी पार्टी हरियाणा में 3 सीटों की मांग कर रही थी. इससे सबक लेते हुए कांग्रेस को महाराष्ट्र में एमवीए (भारत गठबंधन) के भीतर लड़ाई की अपनी रणनीति पर फिर से विचार करना होगा.

3. लोकसभा की सफलता विधानसभा में जीत में तब्दील नहीं होगी

भाजपा के खिलाफ सत्ता विरोधी लहर और ‘संविधान’ की कहानी ने हरियाणा और महाराष्ट्र में कांग्रेस को 2024 के लोकसभा चुनावों में अपना प्रदर्शन सुधारने में मदद की थी. दोनों जगहों पर भाजपा और कांग्रेस के वोट शेयर में लगभग बराबरी थी. हरियाणा में भाजपा और कांग्रेस की सीटें बराबर थीं, लेकिन महाराष्ट्र में कांग्रेस ने 2019 में 1 सीट से 2024 में 13 सीटें हासिल कीं. इनमें से 11 सीटें उसने भाजपा के खिलाफ जीतीं, क्योंकि कांग्रेस के लोकसभा के नैरेटिव ने दलित, मुस्लिम और आदिवासियों के अपने पारंपरिक वोट बैंक को मजबूत किया. मराठवाड़ा में मराठा आंदोलन ने भी कांग्रेस के पक्ष में काम किया और इसने महाराष्ट्र में मोदी फैक्टर को नकार दिया. हरियाणा ने साबित कर दिया कि विधानसभा चुनावों में समान परिणाम पाने के लिए लोकसभा का कथानक पर्याप्त नहीं होगा. कांग्रेस को स्थानीय कारकों पर काम करने की आवश्यकता होगी. स्थानीय मुद्दे जो उन्हें अपने समर्थन आधार पर बढ़त दिला सकते हैं, जिसे उन्होंने लोकसभा चुनावों में जीता था.

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4. राज्य नेतृत्व को संतुलित करना

पिछले कुछ वर्षों में कांग्रेस ने जहां भी क्षेत्रीय क्षत्रपों को पूरी ताकत देने का काम किया है, वहां विद्रोहियों को बढ़ावा मिला है और टिकट वितरण में समस्याएं आई हैं. छत्तीसगढ़ में भूपेश बघेल, मध्य प्रदेश में कमलनाथ, राजस्थान में अशोक गहलोत और अब हरियाणा में भूपेंद्र हुड्डा के साथ ऐसा हुआ है. महाराष्ट्र में कांग्रेस के पास ऐसा कोई नेता नहीं है जिसकी पूरे महाराष्ट्र में मौजूदगी हो. लोकसभा में पार्टी ने अपने गढ़ों में उप क्षेत्रीय क्षत्रपों पर भरोसा किया. लातूर में अमित देशमुख, गढ़चिरौली और चंद्रपुर में विजय वडेट्टीवार, भंडारा में नाना पटोले, रामटेक में सुनील केदार, अमरावती में यशोमति ठाकुर, कोल्हापुर में सतेज पाटिल और उत्तर महाराष्ट्र में बालासाहेब थोराट को स्पष्ट नेतृत्व निर्देश दिए बिना कांग्रेस को रणनीति जारी रखने की आवश्यकता होगी क्योंकि इससे उन्हें अतीत में बेहतर प्रदर्शन करने में हमेशा मदद मिली है. इससे पार्टी में अंदरूनी कलह को बढ़ावा नहीं मिलेगा.

5. भाजपा के सामाजिक संयोजन को समझना

कांग्रेस को भाजपा के ओबीसी मतदाताओं के सामाजिक संयोजन पर बारीकी से नजर डालने की जरूरत होगी. लोकसभा में मुस्लिम, दलित, आदिवासी और मराठवाड़ा में मराठा ने पार्टी की मदद की, लेकिन विधानसभा में कांग्रेस को माली, धनगर, वंजारी, कुनबी और तेली जैसे छोटे जाति समूहों को एक साथ लाने की भाजपा की क्षमता पर नजर रखने की जरूरत होगी. हरियाणा में कांग्रेस पूरी तरह से जाट पर निर्भर थी, जो पार्टी का पारंपरिक आधार था, क्योंकि इसने लोकसभा में पार्टी के लिए परिणाम दिए. लेकिन विधानसभा में यह पर्याप्त नहीं था, जैसा कि परिणाम दिखा रहे हैं. अगर कांग्रेस बेहतर प्रदर्शन करना चाहती है तो उसे अन्य छोटे वर्गों तक भी पहुंच बनाने की जरूरत होगी क्योंकि भाजपा पहले से ही ओबीसी एकीकरण की रणनीति पर काम कर रही है.

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महाराष्ट्र में दो गठबंधनों में हर पार्टी का अपना प्रतिद्वंद्वी और क्षेत्र बंटा हुआ है. शिवसेना यूबीटी को मुंबई, कोंकण और मराठवाड़ा के कुछ हिस्सों में शिंदे की शिवसेना से मुकाबला करना होगा. एनसीपी एसपी का पश्चिमी महाराष्ट्र और उत्तरी महाराष्ट्र में अजीत पवार की एनसीपी और बीजेपी से मुख्य मुकाबला होगा, जबकि कांग्रेस का विदर्भ और मराठवाड़ा के अधिकांश हिस्से में बीजेपी से सीधा मुकाबला होगा. जिसमें लगभग 100 सीटें शामिल हैं, इसलिए बीजेपी और कांग्रेस का एक दूसरे के खिलाफ प्रदर्शन उनके संबंधित गठबंधनों का भाग्य तय करने वाला है.

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मनोज शर्मा

मनोज शर्मा (जन्म 1968) स्वर्णिम भारत के संस्थापक-प्रकाशक , प्रधान संपादक और मेन्टम सॉफ्टवेयर प्राइवेट लिमिटेड के मुख्य कार्यकारी अधिकारी हैं।

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