नीतीश कुमार को केंद्र में बीजेपी की सरकार बनवाने के बदले क्या मिला?

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नीतीश कुमार को लोकसभा चुनाव के बाद पहला झटका लगा है. केंद्र सरकार ने बिहार को विशेष राज्य का दर्जा देने से साफ साफ इनकार कर दिया है - और ये बात संसद में हुए सवाल-जवाब से निकल कर आई है.

अब ये नीतीश कुमार के लिए जोर का झटका है या नहीं, अभी नहीं कहा जा सकता? और ये भी नहीं कहा जा सकता कि नीतीश कुमार बीजेपी की राजनीति में गच्चा खा गये हैं या बाजी मार लिये हैं?

लेकिन एक बात तो है, बिहार को विशेष राज्य के दर्जे के मुद्दे पर नीतीश कुमार को निराशा हाथ लगी है. खुद नीतीश कुमार भले ही ऐसा महसूस न कर रहे हों, और हो सकता है वो आगे के लिए पहले से ही कोई और रणनीति बना चुके हों, लेकिन अलग से देखने पर तो ऐसा ही लगता है.

संसद से पहले ये मांग सत्र से पहले बुलाई गई सर्वदलीय मीटिंग में उठाई गई थी. बैठक में बिहार के लिए जेडीयू, आंध्र प्रदेश के लिए की वाईएसआर कांग्रेस और ओडिशा के लिए विशेष दर्जा देने की मांग बीजू जनता दल की तरफ से उठाई गई थी. बिहार के लिए उठाई गई मांग में जेडीयू को एनडीए सहयोगी एलजेपी (राम विलास) और आरजेडी का भी साथ मिला था.

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कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने मीटिंग में टीडीपी की चुप्पी पर हैरानी जताई है. और हैरानी की बात इसलिए भी है क्योंकि 2019 के आम चुनाव के पहले टीडीपी ने इसी मुद्दे पर एनडीए छोड़ दिया था - और उसके बाद 2024 के चुनाव से पहले फिर से बीजेपी के साथ आई है.

तेलंगाना बनाये जाने के समय 2014 में केंद्र में यूपीए की सरकार थी. भी आंध्र प्रदेश के लिए ये मांग हुई थी, लेकिन सरकार बदलने के साथ ही ये मांग ठंडे बस्ते में चली गई - अभी नीतीश कुमार की ही तरह चंद्रबाबू नायडू ने भी केंद्र में बीजेपी का सपोर्ट किया हुआ है.

बिहार को विशेष राज्य का दर्जा देने से केंद्र का इनकार क्यों?

लोकसभा में JDU सांसद रामप्रीत मंडल ने केंद्र सरकार से सवाल किया था, क्या वित्त मंत्री ये बताने की कृपा करेंगे कि सरकार आर्थिक विकास और औद्योगीकरण को बढ़ावा देने के लिए बिहार और अन्य सबसे पिछड़े राज्यों को विशेष दर्जा प्रदान करने का प्रस्ताव रखती है? अगर हां, तो उससे संबंधित ब्योरा क्या है? और यदि नहीं, तो इसके क्या कारण हैं?

जेडीयू सांसद के सवाल का जवाब देते हुए वित्त राज्य मंत्री पंकज चौधरी ने कहा कि बिहार को विशेष राज्य का दर्जा नहीं दिया जा सकता. कारणों का जिक्र करते हुए बताया गया कि विशेष श्रेणी का दर्जा राष्ट्रीय विकास परिषद की तरफ से कुछ राज्यों को दिया गया था, जिनमें कई विशेषताएं थीं, जिन पर विशेष विचार की आवश्यकता थी. मसलन, पहाड़ी और मुश्किल इलाका, कम जनसंख्या घनत्व और/या जनजातीय आबादी का बड़ा हिस्सा, पड़ोसी देशों के साथ सीमाओं पर रणनीतिक स्थान, आर्थिक और ढांचागत पिछड़ापन और गैर-राज्य वित्त की व्यवहार्य प्रकृति.

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बिहार चूंकि ऐसी किसी भी कैटेगरी में नहीं आता, लिहाजा राज्य को लेकर विशेष दर्जे की मांग खत्म समझ लेनी चाहिये - शायद आगे से हमेशा के लिए ही. कम से कम तब तक जब तक कि नियमों में संशोधन नहीं किया जाता.

क्या ये महज राजनीतिक डिमांड है? या डिमांड की राजनीति है?

नीतीश कुमार चाहे जैसे भी बिहार के लिए स्पेशल स्टेटस मांग रहे हों, लेकिन अब तो ये साफ हो चुका है कि मौजूदा परिस्थितियों में ये असंभव ही है. केंद्र सरकार पहले भी साफ कर चुकी है कि वो किसी नये राज्य को विशेष राज्य का दर्जा नहीं देने वाली है. पिछले साल ही वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने साफ कर दिया था कि किसी भी राज्य को विशेष राज्य का दर्जा नहीं मिलेगा.

केंद्र सरकार के इनकार के बाद आरजेडी नेता लालू यादव, नीतीश कुमार से इस्तीफा मांगने लगे हैं. सोशल साइट एक्स पर आरेडी की तरफ से लालू यादव का बयान पोस्ट किया गया है, 'नीतीश कुमार तुरंत इस्तीफा दें, बोला था विशेष राज्य का दर्जा दिला देंगे! अब केंद्र ने मना कर दिया!'

ये तो नीतीश कुमार भी तो जानते ही होंगे कि मौजूदा हालात में बिहार के लिए विशेष राज्य का दर्जा मिल पाना बिलकुल भी संभव नहीं है, लेकिन राजनीति के लिए तो ये मुद्दा अच्छा ही है. नीतीश कुमार तो बिहार में जातिगत गणना कराये जाने से पहले भी समझते ही होंगे कि पूरी कवायद से लोगों के लिए कुछ होना जाना है नहीं, लेकिन राजनीति तो हो ही जाएगी, हुई भी. चुनावी मुद्दा बनाने की कोशिश तो हुई ही.

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विधानसभा जातिगत गणना के आंकड़े पेश करने के बाद, आरक्षण कोटा बढ़ाने का प्रस्ताव भी पास कर दिया गया, ये बात अलग है कि अदालत ने उसे खारिज कर दिया है. आगे अपील होती है या नहीं बाद की बात है, लेकिन अब तक हासिल तो शून्य ही है. फिर भी राजनीतिक फायदा तो हुआ ही. राहुल गांधी और तेजस्वी यादव ने भी कास्ट सेंसस का क्रेडिट लेने की भरपूर कोशिश की है.

आम चुनाव से पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कहा करते थे, अगला कार्यकाल कड़े फैसलों वाला होगा - बिहार के राजनीतिक समीकरण और हालात के हिसाब से देखें तो केंद्र सरकार का विशेष राज्य के दर्जे से इनकार करना भी तो कड़ा फैसला ही लगता है.

लेकिन नीतीश कुमार के हाल के कई एक्ट ने सस्पेंस पैदा कर दिया है. अब तो सवाल ये उठता है कि आखिर नीतीश कुमार किस बात के लिए मोदी के पैर छू रहे थे? बिहार के विशेष दर्जे के लिए या मुख्यमंत्री की अपनी कुर्सी को कायम रखने के लिए?

बाकी बातें अपनी जगह है, लेकिन अब तो सवाल ये भी उठ रहा है कि क्या बीजेपी ने नीतीश कुमार को फिर से पलटी मारने का बढ़िया बहाना दे दिया है?

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मनोज शर्मा

मनोज शर्मा (जन्म 1968) स्वर्णिम भारत के संस्थापक-प्रकाशक , प्रधान संपादक और मेन्टम सॉफ्टवेयर प्राइवेट लिमिटेड के मुख्य कार्यकारी अधिकारी हैं।

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