सरकारी अधिकारियों के RSS के कार्यक्रमों में जाने की छूट का फैसला क्या BJP का ब्लंडरहै?

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सरकारी कर्मचारी अब राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की गतिविधियों में शामिल हो सकेंगे. केंद्र सरकार ने आरएसएस की गतिविधियों में सरकारी कर्मचारियों के भाग लेने पर लगे प्रतिबंध को 58 साल बाद हटा लिया है. इस आदेश के बाद राजनीतिक गलियारों में हलचल मची हुई है. विपक्ष इस फैसले की जमकर आलोचना कर रहा है. कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने अपने एक्स हैंडल पर पोस्ट लिखकर इसका विरोध किया है. उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री मायावती ने इस फैसले को वापस लेने की डिमांड रख दी है. दरअसल आरएसएस भले ही राजनीतिक संगठन नहीं है पर उसकी विचारधारा और केंद्र में सत्तासीन भारतीय जनता पार्टी की विचारधारा में कोई अंतर नहीं है. आम तौर पर यह माना जाता है आरएसएस और भारतीय जनता पार्टी भले ही दोअलग संगठन हैं पर आपस में इस तरह गुंथे हुए हैं कि चाहकर भी अलग नहीं हो सकते हैं.

भारत में सिविल सर्विस को इस तरह डिजाइन किया गया है सरकारें आती जाती रहती हैं, सिविल सर्वेंट बना रहता है. पर जो भी दल सरकार बनाता है,सिविल सर्वेंट उसके प्रति जिम्मेदार होता है. इसलिए ही सरकारी कर्मचारियों की गलतियों के लिए मंत्रियों को जिम्मेदार बनाया जाता है. जब रेल दुर्घटना में 2 लोगों को मौत हो गई तो उस समय के रेल मंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने इसे अपनी गलती मानते हुए रिजाइन कर दिया था. बाद के दौर में भी ऐसा ही चलता रहा.मतलबब्यूरोक्रेसी के काम कीजिम्मेदारी नेता लेते रहे हैं. यही कारण हैकि ब्यूरोक्रेसी ने अगर अच्छा काम किया तो श्रेय सरकार को मिलता है, और खराब काम करने का दोष भीसरकार पर ही मढ़ा जाता है. शायद भारत में नौकरशाही को इसलिए ही राजनीति से दूर रखा गया. पर अब इस आदेश के बाद आरएसएस के कार्यक्रमों में अधिकारियों की भागीदारी से ये स्पष्ट हो जाया करेगा कि अमुक अधिकारी की निष्ठा बीजेपीके साथ है. यह परंपरा देश में नौकरशाही के भविष्य के लिए जहां घातक है,वहीं उम्मीद की किरण भी है.

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भारतीय नौकरशाही शुरू से ही अमेरिकन लूट प्रणाली से प्रभावित रही है

अमेरिकी ब्यूरोक्रेसी में एक व्यवस्था है जिसके तहत जिस दल की सरकार बनती है उसे अपनी विचारधारा के लोगों को शासन के प्रमुख पदों पर बैठाने का अधिकार होता है. इसके चलते सत्ता मिलतेही राजनीतिक दल अपने लोगों को महत्वपूर्ण पदों पर बैठाने का काम करते हैं. कुल मिलाकर यह एक तरह से सरकारी पदों की लूट ही होती है. इसलिए ही इस प्रणाली को लूट प्रणाली की संज्ञा दी गई. भारत में यह प्रणाली सैद्धांतिक रूप से लागू नहीं है पर व्यवहारिक तौर पर यहां भी लूट प्रणाली प्रचलन मेंहै.देश पर करीब 5 दशकों तक कांग्रेस का शासन रहा तो जाहिर है कांग्रेस पार्टी की विचारधारा वाले लोग ही केंद्र और राज्य सरकार के उपक्रमों में खास पदों पर बैठे हुए थे. यहां तक कि सरकार से रिलेटेड एजुकेशनल, कल्चरल, एकेडेमिक, आयोग, संस्थाओं पर भी कांग्रेस यालेफ्ट के लोगों का कब्जा रहा है. 2014 के बाद इन सभी संस्थाओं में राइटिस्ट लोगों को शामिल करने की प्रक्रिया लगातार चल रही है. अब केंद्र सरकार की ओर से आया यह आदेशब्यूरोक्रेसी के निचले लेवल तक पार्टी विचारधारा को ले जाने की तैयारी है.

हालांकि देश का कानून सरकारी कर्मचारियों को किसी भी राजनीतिक दल में शामिल होने का विरोध करता है.सरकारी कर्मचारियों के मैनुअल में यह बात क्लीयर कीगयीहै कि कोई भी सरकारी कर्मचारी किसी राजनीतिक दल या किसी ऐसे संगठन का सदस्य नहीं होगा और न ही उससे अन्यथा संबद्ध होगा जो राजनीति में भाग लेता है और न ही वह किसी राजनीतिक आंदोलन या गतिविधि में भाग लेगा, सहायता के लिए चंदा देगा या किसी अन्य तरीके से सहायता करेगा.

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बीजेपी को क्यों ऐसी जरूरत पड़ी

सवाल उठ रहा है कि अचानक बीजेपी नीतकेंद्र सरकार कोइस तरह का नोटिफिकेशन क्यों जारी करना पड़ा. आखिर पिछले 10 साल से बीजेपी की सरकार है कभी इस तरह की न डिमांड की गई और न ही सरकार ने इस पर विचार किया. इसके पहले अटल बिहारी वाजपेयी की 2000 से 2004 तक भी बीजेपी की केंद्र में सरकार थी उस समय भी कभी सरकार ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर लगे इस प्रतिबंध को हटाने के बारे में नहीं सोचा. फिर ऐसी क्या जल्दी मच गई?कहा जा रहा है कि पिछले दिनों आरएसएस के खास लोगों ने जिस तरह बीजेपी को टार्गेट पर लिया है उससे बीजेपी अंदर ही अंदर बहुत परेशान है. हो सकता है कि आरएसएस से खटास और न बढ़े या पुराने जैसे रिश्ते स्थापित करने कीयह सब कवायदहो.

पर एक बात और है जिसके चलते भारतीय जनता पार्टी के लिए इस तरह का आदेश निकालने के लिए मजबूर होना पड़ा होगा. उत्तर प्रदेश में लोकसभा चुनावो में मिली बीजेपी को करारी शिकस्त के बाद हार के कारणों की समीक्षा में जो बात सामने आई है उसके अनुसार प्रदेश के कई हिस्सों में अधिकारियों ने पार्टी कार्यकर्ताओं की मदद नहीं की. लोकसभा चुनावों में कम सीट मिलने का यहकारण मामूली नहीं है. बताया जा रहा है कि उत्तर प्रदेश में बीजेपी की सरकार होने के बावजूद कई जिलों में बीजेपी वोटर्स के नाममतदाता सूची से काट दिए गए. प्रशासन के सरकार के साथ होने का फायदाअन्य कई तरह से सत्ताधारी पार्टियां उठाती रही हैं. यह कोई ढंकी छुपी बात नहीं है.बीजेपी कार्यसमिति की बैठक के दौरान पार्टी नेताओं ने ही नहीं बल्कि सहयोगी दलों ने भी आरोप लगाया है कि चुनावों में अधिकारी विपक्ष की मदद कर रहे थे. निषाद पार्टी के अध्यक्ष और प्रदेश सरकार में मंत्री संजय निषाद ने तो यहां तक कहा कि सरकार में बहुत से अधिकारी ऐसे हैं जिनकी निष्टा आज भी समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी की तरफ है.

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कुल मिलाकर मतलब यही निकलता है कि प्रशासन में बीजेपी के लोग बहुत कम हैं. इसलिए सरकार की कोशिश है कि इस संख्या को बढ़ाया जाए चूंकि कोई भी सरकारी कर्मचारी किसी तरह की राजनीतिक गतिविधियों में भाग नहीं ले सकता और न ही राजनीतिक दल में भी शामिल हो सकता है इसलिए आरएसएस के नाम का सहारा लिया जा रहा है. क्योंकि आरएसएस एक सांस्कृतिक संगठन है.

खास पार्टी की नौकरशाही का मतलब भेदभाव वाला प्रशासन या कुशल प्रशासन

कांग्रेस नेता जयराम रमेश आशंका जताते हैं कि नौकरशाही अब निक्कर में भी आ सकती है. उनके कहने का मतलब है कि इस आदेश के चलते भारतीय नौकरशाही पर आरएसएस की विचारधारा वाले लोग हॉवी हो जाएंगे.

दरअसल इसमें कोई दोराय नहीं है कि सरकार भी यही चाहती है. हर सरकार के अपने एजेंडे होते हैं, पब्लिक के प्रति उसकी जवाबदेही होती है, चुनावी घोषणापत्र में किए गए वादे होते हैं . जाहिर है कि इनको पूरा करने के लिए सरकार को अपनी विचारधारा वाले लोग चाहिए. कांग्रेस की विचारधारा या लेफ्ट की विचारधारा वाला प्रशासक किस तरह भारतीय जनता पार्टी के विचारों को आगे बढ़ाने में सफल साबित होगा. दूसरी बात यह भी है कि सरकारी अधिकारियों का काम पहले कानून व्यवस्था तक ही सीमित था. अब सरकारी कर्मचारियों का काम केंद्र की नीतियों का क्रियान्वयन ज्यादा हो गया है. मोदी सरकार पिछले 2 टर्म तो पुरानी नौकरशाही से काम चला लिया पर शायद तीसरा टर्म में सरकार और तेजी से काम चाहती है . इसके लिए जरूर है कि सरकार अपनी विचारधारा वाले अपने लोगों को काम पर लगाए.

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मनोज शर्मा

मनोज शर्मा (जन्म 1968) स्वर्णिम भारत के संस्थापक-प्रकाशक , प्रधान संपादक और मेन्टम सॉफ्टवेयर प्राइवेट लिमिटेड के मुख्य कार्यकारी अधिकारी हैं।

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