आबादी के असंतुलन को लेकर RSS की चिंता बेवजह नहीं है

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आरएसएस ने एक बार फिर अपनी वीकली मैगजीन ऑर्गेनाइजर के जरिए देश में नई जनसंख्या नीति पर चर्चा की है. इसके पहले भी कई मौकों पर आरएसएस यह कहतारहाहै कि देश की एक समान जनसांख्यिकीय योजना न होने के चलते देश पर आबादी के असंतुलनका खतरा मंडरा रहा है जो भारतीय लोकतंत्र के लिए खतरे का संकेत है.

अपनी नवीनतम कवर स्टोरी में ऑर्गनाइज़र एक राष्ट्रीय जनसंख्या नीति पर जोर देते हुए लिखता है कि न केवल हिंदुओं की तुलना में बढ़ती मुस्लिम आबादी बल्कि उत्तर भारत की तुलना में दक्षिण और पश्चिम में घटती जनसंख्या की स्थिति भी चिंतनीय विषय है. दरअसल पीएम नरेंद्र मोदी के तीसरे कार्यकाल के दौरान लोकसभा क्षेत्रों के परिसीमन होने की उम्मीद है. मैगजीनमें इस परिसीमन के चलते दक्षिणी राज्यों को होने वाले नुकसान को भी रेखांकित किया गया है.

जाहिर है कि बीजेपी के लिए यह बहुत कठिन होगा. क्योंकि उत्तर भारत में सीटें बढ़ने से बीजेपी को फायदा होना तय है. इसके साथ ही दक्षिण भारत की सीटें उत्तर भारत की तुलना में कम होने पर दक्षिण की पार्टियां इसे मुद्दा बनाएंगी. जबकि बीजेपी दक्षिण विजय की कगार पर है. ऑर्गेनाइज़र संपादकीय और कवर स्टोरी 22 जुलाई को 18वीं लोकसभा के पहले बजट सत्र के शुरू होने से कुछ हफ्ते पहले आई है. फरवरी में अंतरिम बजट भाषण में, केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने इस पर विचार करने के लिए एक उच्चाधिकार प्राप्त समिति गठित करने की योजना की घोषणा की थी. हालांकि तीव्र जनसंख्या वृद्धि और जनसांख्यिकीय परिवर्तनों से उत्पन्न चुनौतियां पर विचार करने के लिए अभी तक किसी कमेटी का गठन नहीं हुआ है. इसके पहले 31 मई 2022 को तत्कालीन खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्री प्रहलाद पटेल ने रायपुर में कहा कि जनसंख्या को नियंत्रित करने के लिए एक क़ानून जल्द लाया जाएगा. इस बीच उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने पिछले साल जनसंख्या नियंत्रण करने वाला कानून बना भी दिया है . पर सवाल यह है कि क्या वाकई भारत को जनसंख्या नियंत्रण कानून की ज़रूरत है भी?

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1-उत्तर बनाम दक्षिण का जनसंख्या असंतुलन

परिसीमन के बारे में विपक्षी दलों, विशेष रूप से दक्षिण भारत के लोगों ने संसद में इसे लेकर पहले ही चिंता व्यक्त करते रहे हैं. ऑर्गेनाइजर के संपादक प्रफुल्ल केतकर लिखते हैं कि क्षेत्रीय असंतुलन एक और महत्वपूर्ण आयाम है जो भविष्य में संसदीय निर्वाचन क्षेत्रों की परिसीमन प्रक्रिया को प्रभावित करेगा. पश्चिम और दक्षिण के राज्य जनसंख्या नियंत्रण उपायों के संबंध में अपेक्षाकृत बेहतर प्रदर्शन कर रहे हैं और इसलिए, जनगणना के बाद जनसंख्या कम होने पर पर संसद में इन राज्यों को कुछ सीटें खोने का डर है.

केतकर तर्क देते हैं कि देश में सामाजिक-आर्थिक असमानताओं और राजनीतिक संघर्ष जन्म न लें इसलिये यह सुनिश्चित करने के लिए एक नीति की आवश्यकता है कि जनसंख्या वृद्धि किसी भी धार्मिक समुदाय या क्षेत्र पर असमान रूप से प्रभाव न डाले. केतकर जो कह रहे हैं वह यूं ही नहीं है. दक्षिण और पश्चिम के राज्यों ने जनसंख्या नियंत्रण में बेहतर काम किया है इसके एवज में उन्हें पुरस्कार मिलना चाहिए था पर ऐसा लगता है कि परिसीमन में उनके साथ अन्याय हो जाएगा.
पिछले साल महिला आरक्षण विधेयक पर संसद में बहस के दौरान परिसीमन प्रक्रिया पर डीएमके ने गंभीर चिंता व्यक्त की थी. डीएमके सांसद कनिमोझी ने तमिलनाडु के सीएम एमके स्टालिन का एक बयान पढ़ा, जिसमें कहा गया था, यदि जनसंख्या जनगणना पर परिसीमन होने जा रहा है, तो यह दक्षिण भारतीय राज्यों के प्रतिनिधित्व को और कम कर देगा. कनिमोझी का समर्थन करते हुए, तृणमूल कांग्रेस की सांसद महुआ मोइत्रा ने कहा था कि आंकड़ों के अनुसार, केरल की सीटों में शून्य प्रतिशत की वृद्धि होगी, तमिलनाडु के लिए केवल 26%, लेकिन एमपी और यूपी दोनों के लिए 79% की भारी वृद्धि होगी.

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2-धर्म आधारित जनसंख्या असंतुलन

संघ प्रमुख मोहन भागवत ने अक्तूबर 2022 में जनसंख्या नीति पर जोर देते हुए कहा कि जनसंख्या में संतुलन बिगड़ने का परिणाम है कि इंडोनेशिया से ईस्ट तिमोर, सूडान से दक्षिण सूडान और सर्बिया से कोसोवो नाम से नए देश बन गए. जनसंख्या नीति गंभीर मंथन के बाद तैयार करना चाहिए और इसे सभी पर लागू करना चाहिए.मोहन भागवत ने नागपुर में बोलते हुए कहा था कि जनसंख्या पर एक समग्र नीति बनाए जाने की जरूरत है. यह सब पर समान रूप से लागू हो, किसी को छूट नहीं मिले, ऐसी नीति लानी चाहिए.मोहन भागवत ने कहा कि चीन को जब लगा कि जनसंख्या बोझ बन रही है तो उसने रोक लगा दी.जनसंख्या असंतुलन से भौगोलिक सीमाओं में परिवर्तन होता है. जन्म दर में अंतर के साथ-साथ बल, लालच और घुसपैठ ये सब धर्मांतरण के भी बड़े कारण हैं.

ऑर्गेनाइजर का यह लेख भागवत के उसी भाषण के विस्तार जैसा है. संघ प्रमुख की चिंता को ही एक बार फिर सामने ला रहा है. केतकर लिखते हैं कि राष्ट्रीय स्तर पर जनसंख्या स्थिर होने के बावजूद, यह सभी धर्मों और क्षेत्रों में समान नहीं है. कुछ क्षेत्रों, विशेषकर सीमावर्ती जिलों में मुस्लिम जनसंख्या में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है.लोकतंत्र में जब संख्या बल प्रतिनिधित्व के संबंध में महत्वपूर्ण हो जाता है तब जनसांख्यिकी चुनावों में प्रत्याशी के किस्मत का फैसला करती है. इसलिए हमें इस प्रवृत्ति के प्रति और भी अधिक सतर्क रहना चाहिए.

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हालांकि इंडियन एक्सप्रेस ने अपनी रिपोर्ट में बताया है कि दोनों समुदायों (हिंदू और मुसलमानो) की जन्म दर उत्तरोत्तर समान हो रही है. 1991 से 2011 के बीच मुसलमानों की दशकीय वृद्धि दर में गिरावट हिंदुओं की तुलना में अधिक दर्ज की गई है. राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस) के आंकड़ों के अनुसार, पिछले दो दशकों में सभी धार्मिक समुदायों के बीच मुसलमानों की प्रजनन दर में सबसे तेज गिरावट देखी गई है.

3-योगी सरकार भी कर चुकी है पहल

उत्तर प्रदेश की बढ़ती जनसंख्या को स्थिर करने के उद्देश्य से योगी आदित्‍यनाथ सरकार ने उत्‍तरप्रदेश जनसंख्या कानून पेश किया है. मुख्‍यमंत्री योगी आदित्‍यनाथ ने कहा है कि जनसंख्या को स्थिर करना बेहद जरूरी है और बढ़ती जनसंख्या प्रमुख समस्याओं का मूल है. राज्‍य में वर्ष 2026 तक कुल प्रजनन 2.1 और वर्ष 2030 तक 1.9 प्रतिशत तक लाने का लक्ष्य रखा गया है. उत्‍तर प्रदेश जनसंख्या नीति को वर्ष 2022 से वर्ष 2030 तक लागू किया जाना है.

इस नीति के तहत सरकारी सुविधाओं को जारी रखने के इच्‍छुक अभिभावकों के लिये शर्तें रखी गई है, जिनकी दो से ज्यादा संतान हैं वे सरकारी नौकरी के पात्र नहीं होंगे. राशन कार्ड में भी केवल परिवार के चार सदस्यों के नाम ही दर्ज किये जायेंगे. ऐसे ही जो सरकारी नौकरी में है उन्हें इस आशय का शपथ पत्र देना होगा कि वह कानून नहीं तोड़ेंगे. दो से ज्यादा संतान होने पर पंचायत और स्थानीय निकायों के चुनाव लड़ने पर रोक होगी तथा दो से अधिक संतान होने पर सरकारी योजनाओं का लाभ नहीं मिलेगा. इस तरह का कंपल्सनपंचायत चुनावों के लिए कई राज्यों में बनाई गई थी. पर वह सफल नहीं हो सकी है.इस योजना को लागू करने के लिये इच्‍छाशक्ति की जरूरत है.

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4- उल्टा भी पड़ सकता है जनसंख्या में कमी होना

भारत की जनसंख्या वृद्धि स्थिर होने के बावजूद अभी भी 0.7% प्रतिवर्ष की दर से बढ़ रही है और वर्ष 2023 में इसकी आबादी दुनिया के सबसे अधिक आबादी वाले देश चीन से अधिक होने की संभावना है. संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, चीन की जनसंख्या अब बढ़ नहीं रही है और वर्ष 2023 की शुरुआत से इसमें कमी आनी शुरू हो सकती है. इसी तरह 2048 के बाद भारत की आबादी भी घटनी शुरू हो जाएग. आज की तारीख में भी देश में कम से कम एक दर्जन राज्यों में आबादी घटनी शुरू हो गई है. भारत में भी बहुत जल्दी ये सेचुवेशन आ सकती है कि क्रियाशील युवा आबादी की संख्या कम हो जाए. जो भारत की तरक्की के लिए चिंताजनक स्थित हो सकती है. जनसंख्याविदों का कहना है कि इस सदी के अंत तक भारत की आबादी गिरकर एक अरब 10 करोड़ रह जायेगी. वर्ष 2030 तक भारत के सबसे ज़्यादा युवा जनसंख्या वाला देश बने रहने की संभावना है. उसके बाद भारत में युवा कम होते जाएंगे. शायद यही कारण है कि केंद्र सरकार ने जनसंख्या के संबंध में एक याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में वह परिवार नियोजन को अनिवार्य बनाने का कानून बनाने के पक्ष में नहीं है. परिवार नियंत्रण कार्यक्रम को स्वैच्छिक रखना ही सही होगा. सरकार पहले भी इस मामले पर अपना रुख साफ कर चुकी है. चूंकि मामला कानून बनाने का है तो यह संभव है कि उच्‍चतम न्‍यायलय इस पर सरकार को ही फैसला लेने का अधिकार दे.

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मनोज शर्मा

मनोज शर्मा (जन्म 1968) स्वर्णिम भारत के संस्थापक-प्रकाशक , प्रधान संपादक और मेन्टम सॉफ्टवेयर प्राइवेट लिमिटेड के मुख्य कार्यकारी अधिकारी हैं।

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