UCC यानी समान नागरिक संहिता को देश के 14 राज्यों में लागू किया जाना पक्का हो गया है. अमित शाह ने साफ कर दिया है कि उत्तराखंड की तरह ही सारे बीजेपी शासित राज्यों में यूसीसी लागू होकर रहेगा.
लेकिन, उन राज्यों में क्या होगा, जहां एनडीए की सरकार है. देश में ऐसे 6 राज्य हैं जहां एनडीए का शासन हैं, जहां नीतीश कुमार और एन. चंद्रबाबू नायडू जैसे गैर-बीजेपी मुख्यमंत्री हैं.
केंद्र की एनडीए सरकार नीतीश कुमार और चंद्रबाबू नायडू के समर्थन पर ही टिकी हुई है, और समान नागरिक संहिता ऐसा मुद्दा है जिस पर जेडीयू और टीडीपी के लगभग एक जैसी ही विचार हैं.
यूसीसी बरसों से बीजेपी के एजेंडे और चुनाव घोषणा पत्र का हिस्सा रहा है. लोकसभा चुनाव 2024 के दौरान बीजेपी के घोषणा पत्र में कहा गया था, जब तक भारत समान नागरिक संहिता नहीं अपनाता, तब तक लैंगिक समानता नहीं हो सकती.
आम चुनाव के नतीजे आने के बाद भी ये सवाल उठा था. खासकर नीतीश कुमार और नायडू के रुख को लेकर. लेकिन एक इंटरव्यू में अमित शाह ने कहा था, 'पांच साल पर्याप्त समय है' इसे लागू करने के लिए.
क्या बीजेपी का दबाव एनडीए मुख्यमंत्रियों पर असर डालेगा
स्वतंत्रता दिवस के मौके पर 15 अगस्त, 2024 को लाल किले से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी यूसीसी का जोर देकर जिक्र किया था. कहा था, हमारे देश में सुप्रीम कोर्ट ने बार-बार यूसीसी की चर्चा की है. अनेक बार आदेश दिये हैं. क्योंकि, देश का एक बहुत बड़ा वर्ग मानता है कि जिस सिविल कोड को लेकर हम जी रहे हैं, वो सचमुच में एक कम्युनल और भेदभाव करने वाला है.
मोदी का कहना था, जो कानून धर्म के आधार पर बांटते हैं... ऊंच-नीच का कारण बन जाते हैं... उन कानूनों का आधुनिक समाज में कोई स्थान नहीं हो सकता... अब देश की मांग है कि देश में सेकुलर सिविल कोड हो.
उससे पहले भी मोदी ने एक रैली में अपने तरीके से समझाने की कोशिश की थी, परिवार के एक सदस्य के लिए एक नियम हो, दूसरे सदस्य के लिए दूसरा नियम हो तो क्या वो घर चल पाएगा? ऐसी दोहरी व्यवस्था से देश कैसे चल पाएगा?
राज्यसभा के भाषण से पहले भी यूसीसी को लेकर अमित शाह का कहना था, हमने उत्तराखंड में एक प्रयोग किया है... जहां हमारी बहुमत वाली सरकार है... क्योंकि ये केंद्र के साथ-साथ राज्यों से जुड़ा विषय भी है... मेरा मानना है कि समान नागरिक संहिता एक बड़ा सामाजिक, कानूनी और धार्मिक सुधार है.
यूसीसी का मुद्दा बीजेपी ही नहीं, उसके पुराने अवतार जनसंघ के नेता श्यामा प्रसाद मुखर्जी के जमाने में भी उठाया जाता रहा. बीजेपी सांसद तो इसे लेकर प्राइवेट बिल भी ला चुके हैं. और बीजेपी भी हमेशा ही कहती रही है कि वो देश में यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू करेगी - अब तो अमित शाह ने संसद में भी ये बात बोल दी है.
नीतीश कुमार शुरू से ही समान नागरिक संहिता लागू किये जाने के खिलाफ रहे हैं. पिछली पारी में भी जब वो बीजेपी के साथ थे, साफ तौर पर कहा था कि किसी भी कीमत पर वो यूनिफॉर्म सिविल कोड बिहार में लागू नहीं होने देंगे. नीतीश कुमार तो इस सिलसिले में केंद्र सरकार को पत्र भी लिख चुके हैं.
बीजेपी अपनी तरफ से यूसीसी लागू करने की पूरी कोशिश कर रही है, लेकिन अभी तक नीतीश कुमार पर दबाव नहीं बना पाई है. एक बार भोपाल में अमित शाह ने बीजेपी कार्यकर्ताओं से यूसीसी लागू किये जाने की बात कही थी, तब नीतीश कुमार का भी बयान आ गया था कि वो बिहार में तो नहीं ही लागू होने देंगे. तब बीजेपी नेता सुशील मोदी को पार्टी का स्टैंड साफ करना पड़ा था कि यूसीसी लागू करने के लिए कोई दबाव नहीं बनाया जाएगा.
अब जिस तरह से अमित शाह ने माहौल बनाने की कोशिश की है, देखना होगा कि एनडीए सहयोगियों पर बीजेपी कितना दबाव बना पाती है.
नीतीश-नायडू को मना पाना आसान नहीं होगा
लोकसभा चुनाव के नतीजे आने के बाद जब यूसीसी को लेकर चर्चा चली तो जेडीयू नेता केसी त्यागी ने कहा था, हमारा रुख पहले की तरह ही साफ है... सभी स्टेक-होल्डर को साथ लेकर चलने की आवश्यकता है... समान नागरिक संहिता पर बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने विधि आयोग के चेयरमैन को लेटर लिखा था, और कहा था कि हम इसके खिलाफ नहीं हैं... लेकिन काफी विचार विमर्श की जरूरत है.
यूसीसी को लेकर टीडीपी का स्टैंड भी नीतीश कुमार जैसा ही रहा है. जब देश में यूसीसी पर बहस चल रही थी तब मुस्लिम समुदाय के कुछ लोगों ने टीडीपी नेता चंद्रबाबू नायडू से मुलाकात की थी... मुलाकात के बाद चंद्रबाबू नायडू का कहना था कि वो हमेशा मुस्लिमों के हितों की रक्षा के लिए उनके साथ खड़े रहेंगे... और उनकी पार्टी मुस्लिम हितों के खिलाफ कोई कदम नहीं उठाएगी.
केंद्र की बीजेपी सरकार फिलहाल नीतीश और नायडू नाम की ही बैसाखी पर खड़ी है. अभी तक ऐसा कोई मुद्दा तो सामने नहीं आया है जिस पर जेडीयू और टीडीपी की तरफ से विरोध देखना पड़ा हो, लेकिन जरूरी नहीं कि ये बात यूसीसी पर भी लागू होगी.
और ये भी जरूरी नहीं कि बिहार चुनाव के बाद बीजेपी सत्ता का महाराष्ट्र फॉर्मूला लागू कर पाये, क्योंकि उसकी भारी कीमत भी चुकानी पड़ सकती है.
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