बिटकॉइन न कैश फॉर वोट, महाराष्ट्र चुनावों में ये 5 फैक्टर तय करेंगे किसकी बनेगी सरकार । Opinion

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महाराष्ट्र में वोटिंग के एक दिन पहले जिस तरह महायुति और एमवीए ने एक दूसरे को टार्गेट किया है वो अंतिम दौर में अपने विरोधी पर बढ़त लेने की रणनीति है. पर यह कितना काम करेगी, यह कहना मुश्किल है. वोटिंग से सिर्फ एक दिन पहले जनता का मूड डायवर्ट करने के लिए बहुत बड़े इशू की जरूरत होती है. पर उस स्तर का आरोप न तो महायुति लगा सकी है और न ही एमवीए लगा सकी है. बीजेपी महासचिव विनोद तावड़े पर नोट बांटने का आरोप लगाना, फिर शरद पवार फैमिली के रोहित पवार पर वोट के लिए कैश बांटने का आरोप प्रत्यारोप लगे. इन दोनों मामलों में एफाईआर दर्ज हुए हैं.

भारतीय जनता पार्टी ने सांसद सुप्रिया सुले की आवाज वाली एक क्लिप वायरल करके बढ़त बनाने की कोशिश की. इस क्लिप में बिटकॉइन के लेन देन की बातें की जा रही हैं. दरअसल राजनीतिक भ्रष्टाचार के मामलों को सुनते सुनते महाराष्ट्र की जनता केकान पक चुके हैं. इसलिए कम से कम महाराष्ट्र में भ्रष्टाचार मुद्दा नहीं बनने वाला है. दूसरे ये मामले इतने देर से आम लोगों के सामने आई है कि अब जनता के सामने सोचने का समय नहीं है. महाराष्ट्र की 90 प्रतिशत जनता तक वोटिंग करने से पहले ये बातें पहुंच भी नहीं पाईं होंगी. पर महाराष्ट्र की राजनीति में जिन मुद्दों को लेकर वोट पड़ रहा है वो ये हैं.

1- उद्धव और शरद पवार कितना सिम्पैथी बटोर पाते हैं

महाराष्ट्र की कुल 288 सीटों में कम से कम 89 सीटों पर मुकाबला केवल असली और नकली का है. कम से कम 51 सीटों पर शिवसेना शिंदे गुट और शिवसेना यूबीटी के बीच आमने सामने का मुकाबला है. इसी तरह कम से कम 38 सीटों पर एनसीपी अजीत पवार और एनसीपी शरद पवार के बीच आमने सामने का मुकाबला है. लोकसभा चुनावों में जहां तक दोनों शिवसेना के बीच मुकाबले में जीत कास्ट्राइक रेट शिंदे गुट काज्यादा था. हालांकि उद्धव गुट को भी जनता ने वोट दिया. पर असली मुकाबला इस बार विधानसभा चुनावों मेंहै. उद्धव ठाकरे बार-बार एकनाथ शिंद को गद्दार कहकर संबोधित करते हैं. वहीं एकनाथ शिंदे भी उद्धव पर कुर्सी के लिए बाला साहब की विचारधारा को ताक पर रखने का आरोप लगाते हैं. अब देखना यह है कि जनता को किसकी बात में दम लगता है. अगर उद्धव ठाकरे जनता के बीच विक्टिम कार्ट खेलने में सफल होते हैं तो यह एमवीए के लिए प्राणवायु साबित हो सकती है. लोकसभा चुनावों में एनसीपी अजीत पवार का सफाया हो गया. वहीं चाचा शरद पवार को जनता ने खुलकर समर्थन दिया. पर भतीजे ने इस बार ऐसा गेम खेला है कि जनता कन्फ्यूज है. अजीत पवार इस तरह लड़ाई लड़ रहे हैं कि जैसे चाचा शरद पवार का उन्हें आशीर्वाद मिला हुआ है. फिलहाल आम लोग शरद पवार के राजनीतिक जीवन का यह अंतिम चुनाव मानकर अगर उनके साथ हो लेते हैं तो एमवीए की सरकार बनने से कोई रोक नहीं पाएगा.

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2- मराठा और दलित को कितना तोड़ पाती है महायुति

मराठा वोटों को लेकर एमवीए में बहुत उम्मीद है. कारण यह है कि जरांगे पाटील जो मराठा आरक्षण को लेकर पिछले कई सालों से सक्रिय हैं वो विशेषकर देवेंद्र फडणवीस से बहुत नाराज हैं. हालांकि जिस तरह उन्होंने पिछले पखवाड़े मराठों को अपने विवेक के आधार पर वोट करने का ऐलान कर दिया उससे यह उम्मीद जगी कि हो सकता है कि महायुति को कुछ फायदा हो जाए. दरअसल जारांगे के समर्थकों का मानना है कि शिंदे, पवार सभी माराठा हैं. जरांगे पाटील की सहानुभूति मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के प्रति भी है. फिर भी इतनातय है कि मराठों का वोट बीजेपी को कम मिलना है. यह कम कितना हो सकता है इस पर निर्भर रहेगा कि ओबीसी वोट कहां जा रहे हैं. इसी तरह दलित वोटों को बांटने पर बीजेपी का जोर रहा है. विशेषकर गैरआंबेडकराइट जातियां बीजेपी के साथ जाती हैं तो एमवीए का नुकसान होना तय है. बीजेपी ने गैरआंबेडकराइट दलितों को मौखिकआश्वासन दिया है कि सरकार में आने पर जिस तरह हरियाणा में सुप्रीम कोर्ट के दलित सब कोटे के फैसले को लागू करने के लिए कानून बनाया जा रहा है वैसा ही कुछ महाराष्ट्र में किया जाएगा. बीजेपी को ऐसा लगता है कि इसके चलते बीजेपी को बड़े पैमाने पर दलितों का वोट मिल रहा है.

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3- वेलफेयर स्कीम का जादू कितना काम करता है

महाराष्ट्र में मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे की पूरे राज्य में महिलाएं जय जयकार कर रही हैं. कारण यह है लड़की बहिन योजना में प्रदेश की कुल 2 करोड़ महिलाओं को हर महीने 1500 रुपये दिए जा रहे हैं. शिंदे सरकार और बीजेपी ने अपने घोषणापत्र में वादा किया है कि दुबारा सरकार बनने पर महिलाओं को 2100 रुपये हर महीने दिए जाएंगे. इसी तरह छात्रों और बुजर्गों आदि के लिए भी की स्कीम शुरू की गईं हैं. कई महत्वपूर्ण जगहों पर टोल हटाए गए हैं. इन सब कार्यों के चलते महाराष्ट्र के लोगों में एक उम्मीद जगी है कि यह सरकार कुछ लोकल्याण वाले काम कर रही है. अगर सरकार दुबारा नहीं बनती है तो हो सकता है कि यह स्कीम बंद ही हो जाएं. पर एमवीए ने भी इस तरह के कई लोकलुभावन स्कीमों का वादा किया है. बल्कि कई मामलों में एमवीए के वादे महायुति के वादों पर भारी भी पड़ रहे हैं. जैसे एमवीए ने कहा है कि सरकार बनने पर वो लड़की बहिन योजना में हर महीने 3000 रुपये महिलाओं को देंगे. अब देखना है कि जनता किसके वेलफेयर स्कीमों पर अपनी मुहर लगाती है.

4- संविधान बचाओ से OBC वोटमें सेंध को कितना रोक पाती है महायुति

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महाराष्ट्र में महायुति का फोकस विशेषकर अन्य पिछड़ा वर्ग के वोटों पर उसी तरह है जिस तरह हरियाणा विधानसभा चुनावों में रहा.महाराष्ट्र में अन्य पिछड़ा वर्ग की आबादी लगभग 38% के करीब है.इनमें कुनबी, माली, वंजारी और धनगर जैसे राजनीतिक रूप से महत्वपूर्ण समुदाय शामिल हैं जो बीजेपी के वोटर माने जाते हैं. भारतीय जनता पार्टी के इन कोर वोटर्स पर एमवीए अपने संविधान बचाओ के नारे से एक बार फिर स्ट्राइक करने को तैयार है. उधर पीएम मोदी लगातार पिछड़ी जातियों के आरक्षण को किस तरह हड़पने की तैयारी हो रही उससे आगाह करते रहे हैं. इसके साथ ही बीजेपी ने पार्टी में ओबीसी का प्रतिनिधित्व बढ़ाकर उनके बीच अपना आधार बढ़ाने की कोशिश की है. छगन भुजबल और अन्य जैसे ओबीसी नेता भी महायुति के पक्ष में ओबीसी को संगठित करने के लिए कड़ी मेहनत कर रहे हैं. अगर एमवीए लोकसभा चुनावों के बराबर फिर से ओबीसी वोटों में हिस्सेदारी बना लेती है तो समझो महायुति का काम खत्म है.

5- उद्योगों को महाराष्ट्र से गुजरात भेजने का मुद्दा

उद्धव ठाकरे और आदित्य ठाकरे लगातार भारतीय जनता पार्टी नीत केंद्र सरकार पर आरोप लगाते रहे हैं कि महाराष्ट्र से उद्योगों को गुजरात ले जाया जा रहा है. पूरे महाराष्ट्र में यह बात इस तरह फैला दी गई है कि सारे कंस्ट्रक्शन वर्क के ठेके गुजरातियों को मिल रहे हैं. विमान और रॉकेट के इंजन बनाने वाली सेफ्रॉन कंपनी के महाराष्ट्र छोड़कर गुजरात जाने की घोषणा के बाद से विपक्ष का हमला शिंदे सरकार पर तेज हो गया था. बाद में उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस को प्रेस कॉन्फ्रेंस करके सफाई देनी पड़ी . फडणवीस का कहना था कि पूर्व की महाविकास आघाडी सरकार इसके लिए जिम्मेदार है. फडणवीस का कहना था कि टाटा एयरबस कंपनी के अधिकारियों ने उनसे पिछले साल मुलाकात के दौरान राज्य में निवेश का अनुकूल माहौल नहीं होने की बात कही थी. परियोजना को महाराष्ट्र से ले जाने का फैसला उस समय लिया गया, जब उद्धव ठाकरे मुख्यमंत्री थे. पर जनता को इस बाबत क्या समझा पाएगी बीजेपी?

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मनोज शर्मा

मनोज शर्मा (जन्म 1968) स्वर्णिम भारत के संस्थापक-प्रकाशक , प्रधान संपादक और मेन्टम सॉफ्टवेयर प्राइवेट लिमिटेड के मुख्य कार्यकारी अधिकारी हैं।

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