बीजेपी ने महाराष्ट्र विधानसभा का चुनाव जीतने के लिए तकरीबन हर नुस्खा आजमाया है. हिंदुत्व का एजेंडा आगे बढ़ाने से लेकर, मुख्यमंत्री के चेहरे पर रहस्य बनाने की कोशिश तक. ये सब शायद इसलिए भी क्योंकि उद्धव ठाकरे के तख्तापलट के बाद बीजेपी सत्ता पर काबिज तो हो गई, लेकिन लोकसभा चुनाव के नतीजों ने दिग्गज नेताओं के कान खड़े कर दिये.
बीजेपी के संकल्प पत्र की घोषणा के मौके पर केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने एकनाथ शिंदे की मुख्यमंत्री की कुर्सी के साथ 'अभी तो' वाला क्लॉज जोड़ कर सस्पेंस पैदा कर दिया. डिप्टी सीएम देवेंद्र फडणवीस तो खुद को पहले ही रेस से बाहर बता चुके थे, लेकिन अमित शाह के बयान के बाद एकनाथ शिंदे को भी कहना पड़ा कि वो भी मुख्यमंत्री पद की रेस से बाहर हैं.
20 नवंबर को महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव की 288 सीटों के लिए वोट डाले जाएंगे, और नतीजे 23 नवंबर को आने की अपेक्षा है.
सवाल ये है कि चुनावों के दौरान बीजेपी को ये खेल आखिर क्यों खेलना पड़ा? और अगर एकनाथ शिंदे और देवेंद्र फडणवीस दोनो ही रेस से बाहर हैं तो क्या महायुति से मुख्यमंत्री का कोई नया चेहरा सामने आएगा?
महायुति का मुख्यमंत्री, लेकिन चेहरा अधोषित क्यों
महाविकास आघाड़ी की सरकार गिरने के बाद बीजेपी ने महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री रह चुके देवेंद्र फडणवीस को डिप्टी सीएम बना दिया, लेकिन आलाकमान का ये फैसला महाराष्ट्र बीजेपी के कई नेताओं को भी अच्छा नहीं लगा था - और लोकसभा चुनाव के नतीजे आने के बाद देवेंद्र फडणवीस के इस्तीफे की पेशकश भी कहीं न कहीं, उसी मनोदशा का हिस्सा था.
चुनावों में मुख्यमंत्री का चेहरा न घोषित करना हर पार्टी की स्टैटेजी का हिस्सा होता है. फिलहाल सत्ताधारी महायुति और महाविकास आघाड़ी के बीच एक कॉमन बात भी यही है. उद्धव ठाकरे ये जरूर चाहते थे कि उनको MVA का सीएम फेस घोषित कर दिया जाये, लेकिन वहां भी शरद पवार और राहुल गांधी अपनी अपनी रणनीति पर काम कर रहे हैं.
सवाल उठने पर देवेंद्र फडणवीस कई बार बोल चुके थे कि महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव 2024 मौजूदा मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के नेतृत्व में ही लड़ा जा रहा है. लेकिन, चुनाव बाद महायुति के मुख्यमंत्री का फैसला सीटों के आधार पर ही होना है. देखा जाये तो एक तरीके से एकनाथ शिंदे का पहले से ही पत्ता साफ कर दिया गया है, क्योंकि सबसे ज्यादा सीटों पर तो बीजेपी चुनाव लड़ रही है.
बीजेपी के संकल्प पत्र की घोषणा के मौके पर अमित शाह का बयान सुनकर तो एकनाथ शिंदे को भी वैसा ही लगा होगा, जैसे कभी डिप्टी सीएम बनने की बात पर देवेंद्र फडणवीस मन मसोस कर रह गये होंगे.
बीजेपी नेता अमित शाह ने महाराष्ट्र में कहा था, 'अभी तो हमारे मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे हैं, लेकिन चुनाव के बाद हम सभी बैठकर इसपर विचार-विमर्श करेंगे.' ये तो देवेंद्र फडणवीस के बयानों की ही प्रसंग सहित व्याख्या थी.
फिर क्या था, एकनाथ शिंदे को भी बयान देने के लिए मजबूर होना पड़ा. आजतक से खास बातचीत में कहा, 'मैं महाराष्ट्र के सीएम पद की रेस में नहीं हूं, लेकिन ये भी तय है कि सीएम महायुति का ही होगा.'
बीजेपी को किस बात का डर था?
अब अगर आपके मन में ऐसे सवाल उठ रहे हैं कि बीजेपी ने ऐसा खेल क्यों खेला, तो उसके कई जवाब हो सकते हैं, मसलन -
1. क्या बीजेपी ने सत्ता विरोधी लहर के डर से मुख्यमंत्री का चेहरा छुपाने का फैसला किया? लोकसभा चुनाव के नतीजे बीजेपी के पक्ष में नहीं आये थे जिसके तमाम कारण हैं, लेकिन सत्ता विरोधी लहर भी तो एक लगती ही है.
2. क्या बीजेपी को हिंदुत्व के एजेंडे पर भरोसा नहीं रहा? लोकसभा चुनाव में ही अयोध्या में बीजेपी की हार को इसी तरह से लिया गया. लेकिन, महाराष्ट्र चुनाव में यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के 'बंटेंगे तो कटेंगे' और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के 'एक हैं, तो सेफ हैं' पर खूब चर्चा हुई. महायुति में सत्ता के हिस्सेदार और डिप्टी सीएम अजित पवार की ही तरह पंकजा मुंडे और अशोक चव्हाण जैसे नेताओं ने भी इस एजेंडे से खुद को अलग कर लिया है.
3. क्या बीजेपी लोकसभा चुनाव जैसे नतीजों की आशंका सता रही थी? कहीं बीजेपी को ये डर तो नहीं था कि अगर एकनाथ शिंदे को महाराष्ट्र के लोग लोकसभा चुनाव जैसा ही फैसला सुना देंगे - और सहानुभूति का फायदा उद्धव ठाकरे कैंप को मिल जाएगा?
4. अगर एकनाथ शिंदे और देवेंद्र फडणवीस को मुख्यमंत्री पद की रेस से बाहर रख, क्या बीजेपी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चेहरे पर चुनाव लड़ रही है? 2023 के विधानसभा चुनावों में तो बीजेपी ने यही प्रयोग किया था, लेकिन लोकसभा चुनाव के नतीजे आने के बाद मोदी के जादू पर भी सवाल खड़े होने लगे थे - हालांकि, हरियाणा की सत्ता में वापसी के साथ चीजें काफी हद तक बदल चुकी हैं.
+91 120 4319808|9470846577
स्वर्णिम भारत न्यूज़ हिन्दी के एंड्रॉएड ऐप के लिए आप यहां क्लिक कर सकते हैं.