कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने बीते रोज मुंबई में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का नाम लिए बिना उन पर कटाक्ष करके कांग्रेस के लिए एक और मुश्किल खड़ी कर दीहै. खड़गे ने कहा था कि कई नेता साधु के वेश में रहते हैं और अब राजनेता बन गए हैं. कुछ तो मुख्यमंत्री भी बन गए हैं. उन्होंने भाजपा को संबोधित करके कहा कि उनके नेतासफेद कपड़े पहनें. या अगर वेसंन्यासी हैं तो गेरुआ कपड़े पहनें, औरराजनीति से बाहर हो जाएं. खड़गे के इस बयान का सीधा अर्थ यह लगाया जा रहा है कि कांग्रेस कह रही है कि गेरुआ और भगवा वस्त्र यानी साधु के कपड़े पहनने वालों को राजनीति में नहीं आना चाहिए.
दरअसल कांग्रेस का इतिहास रहा है कि पार्टी में मुल्ला और मौलाना अगर होते थे तो साधु और संतों को भी पर्याप्त सम्मान मिलता रहा. शायद यही कारण रहा कि मुस्लिम लीग के सामने हिंदुओं की पार्टी के रूप में कांग्रेस को मान्यता दी गई. आजादी के बाद आरएसएस और जनसंघ के मेन स्ट्रीम में न आने का यही कारण रहा कि कांग्रेस अपरोक्ष रूप से एक हिंदू पार्टी ही बनी रही. जैसे-जैसे पार्टी वामपंथी होती गई और पार्टी की छवि हिंदू विरोधी बनती गई और बीजेपी ने उसकी जगह ले ली. महाराष्ट्र और झारखंड विधानसभा चुनावों के पहले कांग्रेसखुद को एंटी हिंदू साबित करके क्या अपना नुकसान कर रही है फायदा ? आइये समझते हैं.
1- एके एंटनी रिपोर्ट को आज तक नहीं समझ पाए कांग्रेसी
2014 में कांग्रेस के हाथ से सत्ता गई तो पार्टी ने हार के कारणों की समीक्षा के लिए सीनियर नेता एके एंटनी को समीक्षा करने के लिए कहा. एंटनी नेअपनी रिपोर्ट में बतायाथा कि कांग्रेस की दुर्गति का सबसे बड़ा कारण यह है कि उसकी छवि मुस्लिम तुष्टिकरण करने वाली पार्टी का बन गईहै. मुसलमानों के प्रति कांग्रेस की अंध श्रद्धा का परिणाम यह हुआ कि पार्टी को लगातारपराजय का मुंह देखना पड़ा है. भाजपा ने हिन्दुत्व के अपने पारंपरिक हथियार से न सिर्फ अपनी जीत सुनिश्चित की, बल्कि आगे की राह भी आसान करती जा रही है.
2024 के लोकसभा चुनावों के पहले भी एके एंटनी ने कांग्रेस के लिए हिंदू वोटों की भूमिका को महत्वपूर्ण बताया था. पर किसी ने गौर नहीं किया. सोनिया और राहुल की कांग्रेस अब पहले वाली कांग्रेस नहीं रही. इंदिरा गांधी और राजीव गांधी तकपार्टी का पलडा हिंदुओं के पक्ष में थोड़ा झुका रहता था पर सोनिया गांधी के नेतृत्व में मुसलमानोंका पलड़ा थोड़ा अधिक झुक गया. राहुल गांधी के कट्टर समाजवादी विचारकोढ में खाज की तरह बन गए. इस बीच कई बार राहुल गांधी और प्रियंका गांधी ने मंदिरों के दौरे किए, राहुल गांधीअपनी जनेऊ और गोत्र को भी पब्लिक के सामने लाए पर सफलता नहीं मिली. क्योंकि इस बीच मल्लिकार्जुन खरगे जैसे कई लोगों ने ऐसे बयान दिए जिसके चलते सॉफ्ट हिंदुत्व के लिए किए गए प्रयासों का पलीता लग गया.
2- कांग्रेस में भी कभी साधु संतों का रहा है दबदबा
आजादी के पहले की बात हो या बाद की,कांग्रेस कभी साधु संतों से खाली नहीं रही. अपने समय के सभी बड़े साधु संतों का आशीर्वाद कांग्रेस का प्राप्त होता था. कभी पार्टी के बाहर से तो कभी पार्टी के नेता के रूप में पार्टी साधु संतों से दूर कभी नहीं रही. इतिहास जानता है किइंदिरा गांधी के हर फैसले में धीरेंद्र ब्रह्मचारी की भूमिका होती थी. इसी तरह कभी पार्टी पर चंद्रास्वामी का भी प्रभाव था. स्वामी अग्निवेश से लेकर जयेंद्र सरस्वती तक का पार्टी पर गहरा प्रभाव होता था. पुरुषोत्तम दास टंडन और आचार्य जेबी कृपलानी तो सक्रिय कांग्रेसी ही थे. चुनावी लाभ के लिए कांग्रेस ने समय समय पर इनका लाभ उठाया.
अयोध्या जीतने के लिए तो पार्टी ने एक धुर कांग्रेसी रह चुके समाजवादी नेता आचार्य नरेंद्र देव को हराने के लिए एक भगवाधारी संत बाबा राघव दास को कांग्रेस के टिकट पर चुनाव तक लड़वाया. इतना ही नरेंद्र देव को चुनाव हराने के पार्टी के बड़े नेता अयोध्या पहुंचे और यह साबित किया गया कि नरेंद्र देव नास्तिक हैं. राजीव गांधी की मौत के बाद धीरे-धीरे पार्टी पर वामपंथियों का वर्चस्व हो गया. दुर्भाग्य से सोनिया गांधी और राहुल गांधी पूरी तरह वामपंथियों को चंगुल में हैं. इसके बावजूद 2019 में कांग्रेस नेलखनऊ कल्की पीठ के आचार्य प्रमोद कृष्णम को टिकट दिया. इसके अलावा भाजपा छोड़ कांग्रेस में शामिल हुईं भगवाधारी साध्वी सावित्री बाई फुल को बहराइच से मैदान में उतारा.
3- क्या किसी और धर्म के बारे में ऐसी टिप्पणी कर सकते हैं कांग्रेस अध्यक्ष
भारतीय जनता पार्टी के प्रवक्ता शहजाद पूनावाला ने साधुओं पर खड़गेकी टिप्पणी पर कांग्रेस से सवाल किया कि क्या वह मौलाना और मौलवी के बारे में कभी ऐसा कहेंगे? दरअसल हिंदू साधु संतों के बारे में टिप्पणी करना किसी भी कांग्रेसी के लिए आसान है पर क्या वो ये ही बात मुल्लामौलिवियों के बारे में कर सकते हैं. कांग्रेस में तमाम ऐसे नेता हैं दूसरे धर्मों में रिलिजियस पदों को धारण करते हैं पर उनके बारे में बोलने की किसी के पासहैसियत नहीं है. सरदारों की धार्मिक संस्था मेन स्ट्रीम की राजनीति में है. क्या खड़गे कभी एक शब्द उनके बारे में बोल सकते हैं. ईसाइयों और मुसलमानों के तमाम धार्मिक पदों को धारण करने वाले लोग कांग्रेस में हैं पर उनके बारे में खड़गे सपने में नहीं बोल सकते हैं. बस इसी के चलते बीजेपी खड़गे जैसे नेताओं के बयान पर खेल जाती है. जनता को ये सोचने को मजबूर कर देती है कि कांग्रेस हिंदुओं के बजाय मुस्लिम और अन्य धर्मों को फर्स्ट प्रॉयरिटी में रखती है.
4- जिन राज्यों में कांग्रेस हिंदू पार्टी वहां बीजेपी का घुसना आज भी मुश्किल है
मल्लिकार्जुन खड़गे को यह समझना चाहिए कि आज की तारीख में भी कांग्रेस की छवि जिन राज्यों में हिंदू पार्टी की है,वहां उसका प्रदर्शन बेहतर है. और इतना ही नहीं उन राज्यों में बीजेपी कई सालों से घुस भी नहीं पा रही है. देश में पंजाब और केरल दो राज्य आज भी ऐसे हैं जहां हिंदुओं का वोट कांग्रेस को जाता है. इन राज्यों में कांग्रेस रणनीतिक दृष्टि से भी इस तरह का व्यवहार करती है जिससे हिंदू उससे नाराज न हो जाए. जैसे केरल में लोकसभा चुनावों के दौरान कांग्रेस ने कभी भी सीएए के विरोध में आवाज बुलंद नहीं की. प्रदेश के मुख्यमंत्री पिनराय विजयन बार-बार कांग्रेस को चैलेंज करते रहे कि वो सीएए पर क्यों नहीं बोल रही है? इतना ही नहीं वायनाड़ में जब राहुल गांधी ने रैली की तो मुस्लिम लीग जो कांग्रेस की सहयोगी पार्टी थी उसे दूर रहने को कहा गया ताकि हिंदुओं के बीच बीजेपी अपनी पैठ न बना ले.पंजाब में भी हिंदुओं का वोट कांग्रेस को ही जाता है. बीजेपी लगातार हिंदुओं के बीच पैठ बनाने की कोशिश कर रही है पर सफल नहीं हो पा रही है.
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