महाराष्‍ट्र BJP के लिए गेमचेंजर साबित होगा हरियाणा में दलितों के लिए लिया गया यह फैसला । Opinon

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हरियाणा में तीसरी बार सत्ता में वापसी के बाद अपनी पहली ही कैबिनेट बैठक में भाजपा सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के अगस्त में दिए गए दलित सब कोटा वाले आदेश को लागू करने का फैसला किया है.इस आदेश के कानून बनने के बाद राज्य में अनुसूचित जातियों को उनके पिछड़ेपन के आधार पर बांटकर आरक्षण देने का प्रावधान लागू किया जा सकेगा.सवाल यह है कि जब पार्टी के दलित सांसदों को पीएम नरेंद्र मोदी ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश को लागू न करने का वादा कर चुके हैं तो फिर हरियाणा सरकार ऐसा कदम क्यों उठा रही है? क्या बीजेपी सरकार इसे लागू करके आगामी विधानसभा चुनावों में फायदे का उम्मीद कर रही है. पर क्या यह बीजेपी के लिए महाराष्ट्र और झारखंड के विधानसभा चुनावों में उल्टा नहीं पड़ स सकता है?

1-हरियाणा में क्या हो रहा है?

हाल के विधानसभा चुनावों में हरियाणा में बाजी पलटने वाली भाजपा के बारे में समझा जा रहा है कि यह कारनामा पार्टी ने दलित वोटों को विभाजित करने में सफलता से संबंधित है. नायब सिंह सैनी सरकार का यह कदम 36 से अधिक पिछड़ी जातियों, जैसे वाल्मीकि, बाजीगर, सांसी, देहा, धनक और सपेरा जैसी एससी की उप-श्रेणियों में अपनी पकड़ को और मजबूत करने में मदद कर सकता है.जाटव समुदाय को छोड़कर कई दलित समूह, हरियाणा में एससी के लिए कुल 20% आरक्षण के भीतर उप-कोटा की मांग कर रहे थे, ताकि उन्हें सरकारी नौकरियों में आरक्षण का लाभ बेहतर तरीके से मिल सके. बीजेपी ने कई स्थानीय गैर जाटव दलित जातियों को आश्वासन दिया था कि वो चुनाव जीतने पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले को लागू करेंगे. कैबिनेट के फैसले के बाद हरियाणा के मुख्यमंत्री नयाब सिंह सैनी ने कहा, हमारी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश का सम्मान किया है.

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1 अगस्त को, सुप्रीम कोर्ट ने 6:1 के एक ऐतिहासिक फैसले में आरक्षण में एससी के उप-श्रेणीकरण की अनुमति दी ताकि दलितों में अति पिछड़े समूहों को कोटा का लाभ मिल सके. हरियाणा में दलित-ए महापंचायत नामक एक संगठन जिसका नेतृत्व जींद के देवी दास वाल्मीकि कर रहे हैं, कई वर्षों से एससी आरक्षण के भीतर कोटा की मांग कर रहे थे. मार्च 2020 में, दलित समूहों की इस मांग को स्वीकार करते हुए हरियाणा विधानसभा ने एक विधेयक पारित किया था, जिसमें राज्य के उच्च शिक्षण संस्थानों में सीटों के लिए एक नई वंचित अनुसूचित जातियों की श्रेणी के लिए एससी कोटा के भीतर एक कोटा बनाया गया था. हरियाणा सरकार के फैसले का स्वागत करते हुए, वाल्मीकि ने कहा, यह एक अच्छा निर्णय है जिसे काफी देरी के बाद लिया गया है. यह निर्णय भाजपा सरकार को बहुत पहले लेना चाहिए था क्योंकि पार्टी ने 2009 और 2014 के विधानसभा चुनावों से पहले एससी के भीतर उप-श्रेणीकरण का वादा किया था.

2-महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों में बीजेपी के लिए कितना अहम हैं दलित वोटर्स का विभाजन

महाराष्ट्र में बहुत पहले से ही अनुसूचित जातियों के कोटे में विभाजन की मांग को लेकर आंदोलन चल रहा है. वर्तमान में अनुसूचित जातियों को शिक्षा और नौकरियों में 13 प्रतिशत का यहां आरक्षण मिलता है. हिंदू दलित संगठन आरोप लगा रहे हैं कि बौद्ध दलित—जो पहले महार समुदाय के सदस्य थे और 1956 में डॉ. बाबासाहेब अंबेडकर के साथ बौद्ध धर्म में परिवर्तित हो गए थे. उन्होंने इन दलित कोटा अधिकांश लाभ हासिल कर लिए हैं और अन्य समूहों को इसका नुकसान हुआ है. महाराष्ट्र में SC श्रेणी के अंतर्गत 59 जातियां सूचीबद्ध हैं, जिनमें बौद्ध दलितों की संख्या सबसे अधिक है. कुल मिलाकर अनुसूचित जातियों को राज्य की जनसंख्या का लगभग 13 प्रतिशत हिस्सा हैं.

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दलित सब कोटे की मांग को लेकर महाराषट्र में असंतोष पिछले साल सड़कों पर आ गया था. पिछले साल ही 22 फरवरी को, मातंग समुदाय के संगठनों ने इस मांग को लेकर मुंबई में विरोध प्रदर्शन किया. अखिल भारतीय मातंग संघ के कार्यकारी अध्यक्ष फकीरा उकारांडे चाहते थे कि वर्तमान 13 प्रतिशत SC कोटे को चार उप-श्रेणियों—A, B, C और D—में विभाजित किया जाए.

गौरतलब है कि महाराष्ट्र की कुल अनुसूचित जातियों की सख्या 13.2 मिलियन है. जिसमें से बौद्ध दलितों की संख्या 6.5 मिलियन है, मातंगों की संख्या 4 मिलियन है और जाटवों की संख्या 1.5 मिलियन है. आरोप है कि दलितों के हित के लिए जारी योजनाओं और आरक्षण का बड़ा हिस्सा बौद्ध दलितों को मिलता है. महाराष्ट्र में रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया जैसी पार्टियां विभाजित कोटे के विचार का विरोध करती रही हैं. जाहिर है कि दलितों को बांटने से बीजेपी को हरियाणा जैसा फायदा मिलने की उम्मीद दिख रही है.

3-विपक्ष इसे मुद्दा बनाएगा, दलितों का विरोधी साबित करेगा

दलित सब कोटे को लेकर देश के 2 प्रमुख राजनीतिक दलों बीजेपी और कांग्रेस में क्या चल रहा है अस्पष्ट है. सुप्रीम कोर्ट के फैसले के तुरंत बाद कांग्रेस शासित दो राज्यों के मुख्यमंत्रियों ने इस फैसले का स्वागत किया था और वादा किया था अब उनके राज्य तेलंगाना और कर्नाटक में सब कोटे को लागू करके ही भर्तियां होंगी. पर बाद में बीजेपी के बदलते रुख ने कांग्रेस साइलेंट हो गई. सुप्रीम कोर्ट के फैसले का शुरू में कुछ बीजेपी नेताओं ने भी समर्थन किया था. पर बाद में ऐसा लगा कि सरकार इस फैसले को लागू करने वाली नहीं है.
पर जिस तरह बीजेपी दलित सब कोटे को लेकर अलग रुख अपना रही है. जाहिर है कि कांग्रेस भी उसी तरह पलटी मारेगी. हो सकता है कि कांग्रेस इसे संविधान की हत्या की साजिश करार दे. बीजेपी को लोकसभा चुनावों में आरक्षण बचाओ-संविधान बचाओ नारे का बहुत नुकसान हुआ है. राहुल गांधी हरियाणा की हार के बाद भी अपने संविधान बचाओ नारे पर अडिग हैं.

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फिलहाल बीजेपी और कांग्रेस का चाहे जो रुख रहे देश के प्रमुख दलित चेहरे इस प्रकार के बंटवारे के विरोधी हैं. उत्तर प्रदेश की पूर्व सीएम मायावती ने सुप्रीम कोर्ट के वर्गीकरण के आदेश पर सवाल उठाया था. मायावती ने पूछा है कि सामाजिक उत्पीड़न की तुलना में राजनीतिक उत्पीड़न कुछ भी नहीं? क्या देश के करोड़ों दलितों व आदिवासियों का जीवन द्वेष व भेदभाव-मुक्त आत्म-सम्मान व स्वाभिमान हो पाया है? अगर नहीं तो फिर जाति के आधार पर तोड़े व पछाड़े गए इन वर्गों के बीच आरक्षण का बंटवारा कितना उचित? बीआर अंबेडकर के पोते प्रकाश अंबेडकर ने कहा था कि अगर इन आरक्षित समूहों का कोई उप-वर्गीकरण किया जाना है, तो यह संसद द्वारा किया जाना चाहिए. सुप्रीम कोर्ट का राज्यों को अनुसूचित जातियों का उप-वर्गीकरण करने की अनुमति देने वाला फैसला उन वर्गों की जीत है जो इसकी मांग कर रहे हैं.

भीम आर्मी के संस्थापक और आज़ाद समाज पार्टी (कांशी राम) के प्रमुख, चन्द्रशेखर आज़ाद ने कहते हैं कि बांटोऔर राज करो की नीति यही रही है. शीर्ष अदालत के फैसले पर चिंता व्यक्त करते हुएसमस्तीपुर से लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) की सांसद शांभवी चौधरी ने कहा, मुझे लगता है कि यह अनुचित है क्योंकि क्रीमी लेयर की अवधारणा केवल ओबीसी के लिए है.आरक्षण स्वयं सामाजिक प्रतिनिधित्व के लिए लागू किया गया था न कि आर्थिक पिछड़ेपन के लिए. केंद्र सरकार में शामिल केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान और उनकी पार्टी ने भी सुप्रीम कोर्ट के आदेशों को लागू करने का कड़ा विरोध किया है. हालांकि जेडीयू और तेलगुदेशम जैसे एनडीए के साथी दलों ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले का समर्थन किया था.

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मनोज शर्मा

मनोज शर्मा (जन्म 1968) स्वर्णिम भारत के संस्थापक-प्रकाशक , प्रधान संपादक और मेन्टम सॉफ्टवेयर प्राइवेट लिमिटेड के मुख्य कार्यकारी अधिकारी हैं।

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