न करिश्मा चला, न सहानुभूति मिली... अरविंद केजरीवाल के सामने अब दिल्ली बचाने की चुनौती | Opinion

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बहुत अच्छी और बुरी खबरें वहीं से आती हैं, जहां से बिलकुल भी उम्मीद नहीं होती. अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी के साथ बिलकुल यही हुआ है.

हरियाणा चुनाव में कुछ सीटों पर जीत की उम्मीद थी, तो बुरी खबर आ गई - जबकि जम्मू-कश्मीर से कोई उम्मीद नहीं थी, तो वहां से एक उम्मीदवार के जीत की अच्छी खबर आ गई.

आम आदमी पार्टी के डोडा विधानसभा से उम्मीदवार मेहराज मलिक ने जीत हासिल कर ली है. एक ही सीट सही, लेकिन जीत के साथ ही जम्मू-कश्मीर में तो आम आदमी पार्टी का खाता खुल ही गया है, ये बड़ी बात है. दिल्ली, गुजरात, पंजाब और गोवा के बाद जम्मू कश्मीर ऐसा पांचवां राज्य है जहां आम आदमी की विधानसभा में एंट्री हुई है.

आम आदमी पार्टी के साथ ऐसा शुरू से ही होता आ रहा है. 2013 के दिल्ली विधानसभा चुनाव के जरिये राजनीति में कदम रखने और जीतकर सत्ता हासिल करने के बाद, आम आदमी पार्टी ने 2014 के लोकसभा चुनावों का रुख किया था - और ऐसा ही मिला-जुला अनुभव देखने को मिला था.

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पंजाब से भगवंत मान सहित चार सांसद लोकसभा पहुंच गये, और आम आदमी पार्टी के सबसे बड़े नेता अरविंद केजरीवाल बनारस से चुनाव हार गये थे.

अरविंद केजरीवाल ने वाराणसी लोकसभा सीट से तब बीजेपी के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी के खिलाफ चुनाव लड़ा था. नतीजे कैसे होंगे ये तो सबको मालूम था, हो सकता है अरविंद केजरीवाल को लगा हो कि जैसे पहली ही कोशिश में दिल्ली की तत्कालीन मुख्यमंत्री शीला दीक्षित को हरा दिये थे, तो वाराणसी के नतीजे भी वैसे ही हो सकते हैं. लेकिन, हर तुक्का तीर साबित हो, ऐसा कहां होता है. होना भी नहीं चाहिये.

लेकिन, हरियाणा में आम आदमी पार्टी का बार बार हार जाना, अरविंद केजरीवाल के राजनीतिक भविष्य के लिए खतरनाक संदेश है. आखिर क्या वजह है कि हरियाणा से ही आने वाले अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी अब तक अपना खाता भी नहीं खोल पा रही है?

1. ब्रांड केजरीवाल फीका क्यों पड़ने लगा है?

पहली बार को छोड़ दें, तो अरविंद केजरीवाल दिल्ली में लगातार दो बार जबरदस्त जीत दर्ज कर चुके हैं. 2015 में दिल्ली विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी को 70 में से 67 सीटें मिली थीं, और 2020 में भी 62 सीटों पर शानदार जीत मिली थी. बीजेपी जरूर पांच साल में 3 से 8 सीटों पर पहुंच गई, लेकिन कांग्रेस का तो खाता तक नहीं खुल पा रहा है.

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लेकिन, एक बड़ी सच्चाई ये भी है कि लोकसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी दिल्ली में एक भी सीट नहीं जीत पा रही है. और अब तक ये लगातार तीन बार हो चुका है. विधानसभा के साथ साथ अब तो आम आदमी पार्टी का एमसीडी पर भी कब्जा हो गया है, लेकिन मौजूदा हालात तो ऐसे इशारे कर रहे हैं, जैसे दिल्ली भी दूर होने वाली हो.

दिल्ली शराब घोटाले के आरोप में प्रवर्तन निदेशालय और फिर सीबीआई के अरविंद केजरीवाल को जेल भेज देने के बाद माना जा रहा था कि आम आदमी पार्टी को दिल्ली के लोगों की सहानुभूति का फायदा मिलेगा.

लोकसभा चुनाव के दौरान कैंपेन के नाम पर अरविंद केजरीवाल अंतरिम जमानत पर छूट कर आये थे, और अभी हरियाणा चुनाव के लिए वोटिंग से पहले ही जमानत मिल गई थी, लेकिन न तो लोकसभा चुनाव में दिल्ली के लोगों की कोई सहानुभूति मिली, न ही विधानसभा चुनाव में हरियाणा के लोगों की.

क्या अरविंद केजरीवाल का करिश्मा कम पड़ने लगा है? क्या ब्रांड केजरीवाल दिल्ली में फीका और हरियाणा में बेअसर साबित होने लगा है?

2. सुनीता केजरीवाल को भी प्रियंका गांधी बना दिया गया

2024 के लोकसभा चुनाव में रायबरेली और अमेठी की जीत से पहले तो प्रियंका गांधी वाड्रा को फेल ही बताया जाने लगा था. क्योंकि 2019 में राहुल गांधी की अमेठी में हार के बाद कांग्रेस 2022 का यूपी विधानसभा चुनाव भी हार गई थी.

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अरविंद केजरीवाल के जेल चले जाने के बाद उनकी पत्नी सुनीता केजरीवाल को दिल्ली के मैदान में उतारना मजबूरी थी, और जरूरी भी था - लेकिन हरियाणा के चुनाव कैंपेन में झोंक देना तो फालतू की कवायद साबित हुई.

दिल्ली में सुनीता केजरीवाल खुद को अरविंद केजरीवाल का संदेश देने तक सीमित बताती थीं, और लोकसभा चुनावों के दौरान रोड शो भी किया, और रैलियां भी की थी.

हरियाणा विधानसभा चुनाव में खुद को वहां की बहू के रूप में प्रोजेक्ट किया था, और बेटे अरविंद केजरीवाल के लिए इंसाफ मांग रही थीं. सुनीता केजरीवाल ने हरियाणा में कैंपेन तो काफी पहले ही शुरू कर दिया था. अरविंद केजरीवाल जेल से तो छूट गये, लेकिन आम आदमी पार्टी के हाथ कुछ भी नहीं लगा.

अरविंद केजरीवाल हरियाणा से ही आते हैं. दिल्ली और पंजाब में आम आदमी पार्टी की सरकार है, लेकिन हरियाणा में अब तक खाता नहीं खुल सका है - और इसीलिए हरियाणा को लेकर सवाल उठते हैं.

3. कांग्रेस पर आम आदमी हमलावर क्यों है?

जिस तरह के बयान अरविंद केजरीवाल और संजय सिंह के आर रहे हैं, ऐसा लगता है जैसे आम आदमी पार्टी कांग्रेस के साथ चुनावी गठबंधन का इरादा बदलने पर विचार करने लगी है.

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हालांकि, आम आदमी पार्टी की तरफ से नये सिरे से कहा गया है कि वो कांग्रेस के हरियाणा चुनाव में अति आत्मविश्वास होने की वजह से दिल्ली चुनाव में कोई गठबंधन नहीं होगा.

हरियाणा चुनाव के नतीजे आने के फौरन बाद से ही अरविंद केजरीवाल और संजय सिंह कांग्रेस को लेकर जिस तरह से आक्रामक हैं, वो काफी अजीब लगता है.

संजय सिंह कह रहे थे कि अगर कांग्रेस ने आम आदमी पार्टी और समाजवादी पार्टी के साथ हरियाणा में गठबंधन किया होता, तो अरविंद केजरीवाल और अखिलेश यादव चुनाव कैंपेन करते, और नतीजे अलग आये होते.

दिल्ली में लोकसभा चुनाव के दौरान अरविंद केजरीवाल ने कांग्रेस के साथ चुनावी गठबंधन किया था. जेल से रिहा होकर कांग्रेस उम्मीदवारों के लिए वोट भी मांगे थे, लेकिन नतीजे आये तो मालूम चला आप और कांग्रेस दोनो में से किसी को भी एक भी सीट नहीं मिली.

हरियाणा चुनाव लड़ कर अरविंद केजरीवाल को अपनी ताकत समझ में आ गई है, और हरियाणा की हार के बाद कांग्रेस की भी ऐंठन कम हो जाएगी - ऐसे में दिल्ली में बीजेपी से मुकाबले के लिए दोनो का साथ फायदेमंद भी हो सकता है.

4. दिल्ली की अग्निपरीक्षा में पास होने का केजरीवाल के पास कोई उपाय बचा है क्या?

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जो बातें अरविंद केजरीवाल कांग्रेस के लिए कटाक्ष में कह रहे हैं, वही बातें अपने नेताओं को नसीहत के तौर पर समझा रहे हैं - अति आत्मविश्वास से नुकसान हो सकता है.

कश्मीर से आई खबर आम आदमी पार्टी का जोश बढ़ाने वाली तो है, लेकिन सवाल ये भी है कि दिल्ली की अग्निपरीक्षा में पास होने का कोई उपाय है क्या?

एक रणनीति के तहत आतिशी को दिल्ली की मुख्यमंत्री बनाकर अरविंद केजरीवाल दिल्ली में घूम घूम कर जनता की अदालत में इंसाफ मांग रहे हैं - 2013 की 49 दिन की सरकार के लिए माफी तो मिल गई थी, अगले चुनाव में भी दिल्ली वालों का आशीर्वाद मिलेगा क्या?

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मनोज शर्मा

मनोज शर्मा (जन्म 1968) स्वर्णिम भारत के संस्थापक-प्रकाशक , प्रधान संपादक और मेन्टम सॉफ्टवेयर प्राइवेट लिमिटेड के मुख्य कार्यकारी अधिकारी हैं।

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