बांग्लादेशी शरणार्थियों को भारत आने का ऑफर, क्या ममता बनर्जी आग से खेल रही हैं?

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बांग्लादेश में नौकरी में आरक्षण के विरोध में 147 से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है. पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने रविवार को कहा था कि वह पड़ोसी देश के असहाय लोगों के लिए अपने राज्य के दरवाजे खुले रखेंगी. बनर्जी ने बांग्लादेश की जनता के प्रति दया और सहानुभूति जताते हुए कहा था कि अगर कोई भी बंगाल के दरवाजे पर दस्तक देता है तो उन्हें आश्रय की पेशकश की जाएगी. दूसरी तरफ केंद्र और भारतीय जनता पार्टी ने उनके इस फैसले को हास्यास्पद बताया.भारत का विदेश मंत्रालय अब तक इसे बांग्लादेश का आंतरिक मामला मानते हुए विरोध प्रदर्शनों पर टिप्पणी न करने को लेकर सतर्क रहा है.पर बीजेपी ममता की इस कोशिश को देश तोड़ने वाला काम मानती है. सवाल यह है कि दूसरे देशों के लोगों शरण देने का मामला जब केंद्र के अधिकार क्षेत्र में है तो ममता बनर्जी अनावश्यक बयानबाजी का मतलब क्या है? दूसरे बांग्लादेश से आए शरणार्थियों के चलते ही पूरा पूर्वोंत्तर आज डेमोग्राफी के संकट से जूझ रहा है. खुद बांग्लादेश से आए लाखों लोगों का आज तक भारत की सिटीजनशिप नहीं मिल सकी है ऐसे में क्या ममता बनर्जी आग से नहीं खेल रही हैं?

क्या संवैधानिक व्यवस्था के खिलाफ जा रही हैं ममता?

विदेश मंत्रालय के एक अधिकारी के हवाले से इंडियन एक्सप्रेस लिखता है कि मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की बांग्लादेश के असहाय लोगों को भारत में बुलाने का ऑफर देना पूरी तरह से गलत है. दरअसल दूसरे देशों से संबंधित ऐसे मामले संविधानिक व्यवस्था में केंद्र सरकार द्वारा नियंत्रित है. राज्य सरकार के पास इस मुद्दे पर कोई अधिकार नहीं है और इस तरह, उनकी टिप्पणियां पूरी तरह से गलत हैं. भारत सरकार खुद बांग्लादेश में विरोध प्रदर्शनों को लेकर कई टिप्पणी नहीं कर रहा है. ममता बनर्जी एक तरफ तो कहती हैं कि मैं बांग्लादेश पर टिप्पणी नहीं करूंगा क्यों कि यह एक अलग देश का मामला है.दूसरी ओर यह भी कहती हैं कि अगर कोई हमारे राज्य के पास आकर मदद की गुहार लगाएगा तो पीछे भी नहीं हटेंगी . सवाल उठता है कि क्या दीदी इसके लिए भारतीय सीमाओं को खोल सकेंगी. क्या भारतीय सीमाओं पर तैनात सुरक्षा बल उनकी बात मानेंगे. या दीदी यूं ही सस्ती लोकप्रियता के लिए इस तरह की हवाबाजी कर रही हैं. जैसा कि सभी जानते हैं कि भारतीय संविधान में राज्यों के पास दूसरे देशों के साथ कैसे संबंध रखना है इसका कोई अधिकार नहीं है. ऐसी स्थिति में जब दुनिया के किसी भी देश में कोई संकट है तो उसपर बोलने का अधिकार केवल विदेश मंत्रालय के पास है. पर राजनीतिक गोटी सेट करने के चक्कर में ममता बनर्जी अपने अधिकार भी भूल जा रही हैं.

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ममता बनर्जी जिस यूनाइटेड नेशन समझौते का हवाला दे रही हैं, उसमें भारत शामिल ही नहीं है. मसलन, इस प्रस्ताव पर भारत के हस्ताक्षर नहीं हैं और ऐसे में भारत यूएन के इस प्रस्ताव के तहत किसी को भी नागरिकता नहीं देता है. भारत में शरणार्थियों पर अपने नियम-कानून हैं, जिसके तहत किसी को शरण देने का प्रावधान है. किसी विदेशी नागरिक को शरणार्थी स्टेटस देने का अधिकार राज्यों को नहीं है.

पूरी दुनिया शरणार्थियों को अपने देश में आने नहीं देना चाहती

ममता बनर्जी को छोड़ दें तो पूरी दुनिया शरणार्थियों को अपने देश में नहीं आने देना चाहती हैं. सबसे बड़ी बात यह है कि खुद ममता बनर्जी भी नहीं चाहती हैं कि उनके राज्य में शरणार्थी आएं. फर्क ये है कि वो हिंदू शरणार्थियों का विरोध करती है.सीएए का विरोध उन्होंने खुलकर किया है. वो नहीं चाहती हैं कि पड़ोसी देशों के किसी हिंदू शरणार्थी को भारत की सिटीजनशिप दी जाए.

दुनिया के अमीर देशों का उदाहरण है कि ये लोग शरणार्थियों को अपने देश में घुसना नहीं देना चाहते. दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था चीन , जिसकी आबादी 1.4 बिलियन के करीब है. पिछले दस सालों में केवल 526 शरणार्थियों को चीन ने स्वीकार किया है. चाइना की कुल जनसंख्या का यह कितना छोटा सा हिस्सा है आप समझ सकते हैं. जापान दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है और इसकी आबादी 123 मिलियन है.यहां भी पिछले दस सालों में केवल 16,150 शरणार्थियों जगह मिली है. दक्षिण कोरिया भी एक अमीर देश बन चुका है पर यहां का रिकॉर्ड भी ऐसा ही है.

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अपनी समृद्धि के मशहूर खाड़ी देशों की मिसाल देखिए. गाजा के लोगों को आर्थिक मदद दे देंगे पर अपने देशों में टेंप्रेरी वीजा देने में भी आनाकानी करते हैं. लेबनान, सीरीया जैसे युद्धग्र्स्त देशों के लोगों को भी खाड़ी के अमीर देश वीजा नहीं देते.खाड़ी देशों ने बड़ी संख्या में सीरियाई लोगों को श्रमिक आप्रवासियों के रूप में स्वीकार किया है, लेकिन उन्हें शरणार्थी का दर्जा नहीं दिया गया है. बांग्लादेशी मुसलमानों को भी दुनिया के इस्लामिक राष्ट्र शरण देने को तैयार नहीं होंगे. पर ममता दीदी की करुणा इनके लिए समझने की बात है.

ममता क्यों ऐसा कर रही हैं

पर ऐसा नहीं है कि ममता बनर्जी को अपनी हदें नहीं पता हैं. पर वोट बैंक का चक्कर ही ऐसा है कि वो बांग्लादेशी मुसलमानों की सिंपैथी गेन करना उनकी मजबू है. 2011 की जनगणना के मुताबिक पश्चिम बंगाल में 27.1 प्रतिशत मुस्लिम आबादी है. लोकसभा की 42 में से 13 और विधानसभा की 294 सीटों में से करीब सौ सीटों पर इनका प्रभाव है. अगले साल ही पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनाव हैं. इसलिए बंगाल में मुस्लिम फैक्टर को नजरंदाज नहीं किया जा सकता. टीएमसी की मुश्किल ये है कि कांग्रेस और वाममोर्चा इस वोट बैंक में सेंध लगाने की कोशिश कर रहे हैं.इसलिए ममता अपने इस खास वोट बैंक के लिए आउट ऑफ बॉक्स जाकर मदद करने का ऐलान कर रही हैं.जाहिर है कि बीजेपी को भी इसमें फायदा ही फायदा है. जितना ममता बनर्जी बांग्लादेश में रिफ्यूजियों को बुलाने का जोर लगाएंगी बीजेपी हिंदुओं के ध्रुवीकरण की कोशिश उतनी ही सफल होती दिखेगी. वैसे भी बंगाल बीजेपी के नेता सुवेंदु अधिकारी ने अभी हाल ही में सबका साथ सबका विकास के नारे से छुटकारा पाने की वकालत की है. जाहिर है उनको ममता के इस फैसले से ताकत मिल रही होगी.
बीजेपी नेता रविशंकर प्रसाद कहते हैं कि ममता जी आप वही हैं जिन्होंने सीएए के बारे में कहा था कि हम किसी भी हिंदू, सिख, पारसी और ईसाई शरणार्थी को, जो हिंसा से पीड़ित होकर बंगाल में आएंगे उनको घुसने नहीं देंगे.
ममता जी ने सीएए का हमेशा विरोध किया है जबकि सीएए का कोई संबंध भारत के नागरिकों से बिलकुल नहीं था. आज वो कह रही हैं कि जो भी आएगा हम उसे बसाएंगे, इसका मतलब क्या है? ममता, अखिलेश और राहुल गांधी संविधान की बात करते हैं. ये अधिकार तो केंद्र सरकार के पास है.

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ममता जी को याद दिलाऊंगा कि साल 1971 में जो विस्थापित भारत आए थे उन्हें केंद्र सरकार ने बसाया था लेकिन एक मुख्यमंत्री सीधी घोषणा करे इसका क्या मतलब है, क्या आप भारत को तोड़ना चाहती हैं?

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मनोज शर्मा

मनोज शर्मा (जन्म 1968) स्वर्णिम भारत के संस्थापक-प्रकाशक , प्रधान संपादक और मेन्टम सॉफ्टवेयर प्राइवेट लिमिटेड के मुख्य कार्यकारी अधिकारी हैं।

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