महाकुंभ में सोमवार को हुई धर्म संसद वैसे तो संपन्न हो गई पर इस आयोजन में लिए गए फैसलों की चर्चा होती नहीं दिख रही है. कारण यह रहा कि इस धर्म ससंद से सभी अखाड़े और शंकराचार्य सहित विश्व हिंदू परिषद आदि दूर रहे. हालांकि आयोजन में करीब 5 हजार साधु-संत और भक्त मौजूद थे. जगद्गुरु श्रीजी महाराज, जगद्गुरु विद्या भास्कर, जगद्गुरु वल्लभाचार्य, चिन्मयानंद बापू, साध्वी प्राची, महंत राजू दास, साध्वी सरस्वती, जगद्गुरु सूर्याचार्य आदि जैसे बड़े नामों कीमौजूदगी रही. बीजेपी सांसद हेमामालिनी और फिल्म एक्टर सुनील शेट्टी भी इस अयोजन को लेकर बहुत सक्रिय देखे गए थे. सवाल उठता है कि जब अखाड़ों की ओर से पहले यह धर्म संसद होनी थी तो अचानक सबने ये दूरी क्यों बना ली?
क्या सनातन बोर्ड पर अभी संतों के बीच सहमति नहीं बन पाई है
यह तो तय है कि पूरे देश का संत समाज , हिंदू धर्म से जुड़े सभी संगठन चाहते हैं कि हिंदुओं का एक सनातन बोर्ड बने. पर हिंदू धर्म के कुछ प्रगतिशील गुरु जैसे सदगुरु , श्री रविशंकर , कथावाचक देवकीनंदन ठाकुर वगैरह सनातन बोर्ड को लेकर काफी उत्साहित रहते हैं. जब कि हिंदुओं का पारंपरिक संत समाज सनातन का बोर्ड तो चाहता है पर उसके स्ट्रक्चर और राइट्स आदि को लेकर अभी सर्व सहमति की स्थिति संभवतया नहीं बन पा रही है. शायद यही कारण रहा कि ऐन मौके पर अखाड़ा परिषद ने धर्म संसद से अपने को दूर कर लिया.
अखाड़ा परिषद और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) से जुड़ीवीएचपी, दोनों इस बात पर सहमत हैं कि मंदिरों और हिंदू मठों को सरकारी नियंत्रण से मुक्त किया जाना चाहिए और मुस्लिम समुदाय के वक्फ बोर्ड को समाप्त किया जाना चाहिए. बताया जा रहा है कि वीएचपी अखाड़ा परिषद की उस राय से सहमत नहीं है कि मंदिरों का प्रबंधन एक केंद्रीकृत बोर्ड के माध्यम से किया जाए. वीएचपी के अंतरराष्ट्रीय अध्यक्ष आलोक कुमार ने कहा कि ‘सनातन बोर्ड’ के विचार पर और चर्चा की आवश्यकता है.आलोक कुमार की यह बात सही भी है. क्योंकि हिंदू धर्म में भिन्न भिन्म मतावलंबी हैं. इस धर्म की विविधता ही इसकी खूबसूरती है . इसलिए कोई भी फैसला सोच समझकर होना चाहिए. इसके लिए जल्दबाजी भी ठीक नहीं है.
इसके पहले अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष रविंद्र पुरी ने शुक्रवार को मेले में पत्रकारों को संबोधित करते हुए एक केंद्रीकृत बोर्ड की आवश्यकता पर जोर दिया था. उन्होंने कहा था कि जब वक्फ बोर्ड है, तो सनातन बोर्ड क्यों नहीं होना चाहिए? कानून सभी के लिए समान होना चाहिए और न्याय सभी को मिलना चाहिए. सनातन बोर्ड के माध्यम से हम उन सभी मठों और मंदिरों का पुनः अधिग्रहण करेंगे जो कब्जे में ले लिए गए हैं.
योगी आदित्यनाथ क्या चाहते हैं?
सनातन धर्म एक विशाल बरगद का पेड़ है और इसकी झाड़ी से तुलना नहीं की जा सकती. इस उपमा के साथ, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने 25 जनवरी को हिंदू धार्मिक नेताओं द्वारा हिंदू मंदिरों और मठों की संपत्तियों के रखरखाव और नियंत्रण के लिए वक्फ बोर्ड जैसे ‘सनातन बोर्ड’ की बढ़ती मांगों के बारे में अपने विचार व्यक्त किए. योगी ने ये बातें प्रयागराज में महाकुंभ मेले के दौरान विश्व हिंदू परिषद के एक कार्यक्रम में कहीं. हालांकि उन्होंने सनातन बोर्ड के बारे में सीधे कुछ नहीं कहा. योगी ने कहा कि सनातन धर्म को किसी संकीर्ण सीमा में न बांधें. इसे उन छोटे-छोटे बोर्डों से तुलना न करें. आदित्यनाथ का यह बयान उस दिन आया था जब अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद ने घोषणा की थी कि वह 27 जनवरी को महाकुंभ में धर्म संसद में सनातन बोर्ड की घोषणा करेंगे. योगी के इस बयान के कई अर्थ निकाले गए. जिसमें से एक यह है भी कि सनातन बोर्ड का फैसला सर्वसम्मत से लिया जाएगा. यानि कि जब तक पूर्ण संत समाज का समर्थन न मिल जाए तब तक इस पर कुछ फैसला नहीं लिया जाएगा.
सरकार को भी अभी मोहलत की जरूरत थी
सोमवार को धर्म संसद में जिस तरह की डिमांड सामने आईं हैं वो अभी सरकार के लिए मुसीबत ही हो सकती थी. धर्म संसद में काशी मथुरा के साथ संभल की डिमांड, प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट को खत्म करना,गैर सरकारी सनातन बोर्ड को बनाने की मांग आदि इस तरह की डिमांड हैं जिसे पूरा करना अभी फिलहाल सरकार के लिए संभव नहीं दिख रहा है. राष्ट्रीय स्वंय सेवक संघ खुद नहीं चाहता है कि हर मस्जिद में मंदिर को ढूंढा जाए. संघ प्रमुख मोहन भागवत कई बार इस बात को दुहरा चुके हैं. सरकार भी अभी अल्पमत में है. इस तरह का फैसला लेने और कानून बनाने की पूरी शक्ति बीजेपी सरकारके पास नहीं है. जाहिर है कि सरकार भी चाहती रही होगी कि इस धर्म संसद को सर्व सम्मत की आवाज न मिले.
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