व्हाइट हाउस में डोनाल्ड ट्रंप की वापसी ने अमेरिकी विदेश नीति में दुनिया की रुचि जगा दी है. ट्रंप ने आते ही कई सारे कार्यकारी आदेशों पर हस्ताक्षर किए जिसे लेकर यह कयास लगाए जा रहे हैं कि मध्य-पूर्व के उनकी नीति में बदलाव आएगा, खासकर ईरान के परमाणु कार्यक्रम को लेकर. ट्रंप का दूसरा कार्यकाल अमेरिका-ईरान संबंध फिर से परिभाषित करने का एक मौका है. इसकी जरूरत इसलिए और बढ़ गई है क्योंकि ईरान की बढ़ती परमाणु क्षमता को लेकर तनाव बढ़ रहा है.
अमेरिका-ईरान के बीच का पुराना परमाणु समझौता
मई 2018 में, अपने पहले कार्यकाल के दौरानट्रंप ने ईरान के साथ परमाणु समझौते से अमेरिका को हटा लिया था. ट्रंप ने इस समझौते को एकतरफा समझौता बताया था. समझौते से बाहर होते ही ट्रंप ने ईरान पर अपनी दबाव की रणनीति तेज कर दी जिसमें 12 मांगें शामिल थीं. उन मांगों में से अधिकतर तो परमाणु समझौते से संबंधित ही नहीं थी बल्कि उनका संबंध ईरान की क्षेत्रीय गतिविधियों से था. ट्रंप ने हिज्बुल्लाह और हमास जैसे समूहों के लिए उसका समर्थन, इराक और यमन में सैन्य हस्तक्षेप और उसका बैलिस्टिक मिसाइल कार्यक्रम पर रोक की मांग की थी.
जो बाइडेन प्रशासन ने ईरान के साथ परमाणु डील को फिर से बहाल करने की कोशिश की थी लेकिन ईरान ने डील में वापसी के लिए तीन शर्तें लगा दी. ईरान ने कहा था कि अमेरिका पहले ये स्वीकार करे कि समझौते से उसका हटना अनुचित था, उस पर लगे सभी प्रतिबंधों को हटाए और यह गारंटी दे कि भविष्य में कभी अमेरिका एकतरफा तरीके से समझौते से नहीं हटेगा. ईरान की इन शर्तों पर अमेरिका राजी नहीं हुआ था जिस कारण दोनों देशों के बीच समझौता बहाल नहीं हो पाया था.
अब क्या है स्थिति
पिछले चार सालों में ईरान ने अपने परमाणु संवर्धन को काफी हद तक उन्नत किया है. 22 जनवरी कोअंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (IAEA) के प्रमुख राफेल ग्रॉसी ने कहा कि ईरान अपने यूरेनियम को हथियार ग्रेड के करीब समृद्ध करने के लिए बहुत तेजी से आगे बढ़ रहा है.
नवंबर 2024 की IAEA रिपोर्ट के अनुसार, ईरान का कुल समृद्ध यूरेनियम भंडार 6,604 किलोग्राम था, जिसमें से ईरान के पास अनुमानतः 182.3 किलोग्राम यूरेनियम 60 प्रतिशत शुद्धता तक संवर्धित था. IAEA की परिभाषा के अनुसार, 60 प्रतिशत तक संवर्धित लगभग 42 किलोग्राम यूरेनियम एक परमाणु बम के लिए पर्याप्त है. परमाणु बम बनाने के लिए यूरेनियम का 90 प्रतिशत से अधिक संवर्धित होना जरूरी है और ईरान इस दिशा में काफी आगे बढ़ रहाहै. ईरान के पास पहले से ही चार परमाणु बम बनाने के लिए जरूरी संवर्धित यूरेनियम है.
दिसंबर 2024 की IAEA की एक अन्य रिपोर्ट में संकेत दिया गया है कि ईरान 60 प्रतिशत अत्यधिक संवर्धित यूरेनियम बनाने की आड़ में हथियार-ग्रेड यूरेनियम बनाने की क्षमता स्थापित कर रहा है. रिपोर्ट में कहा गया कि ईरान संभवतः अपने मौजूदा स्टॉक का उपयोग किए बिना भी हथियार-ग्रेड यूरेनियम का उत्पादन कर सकता है. अगर यह सच है, तो यह खतरे वाली बात है.
इसी बीच एक और पहलू पर विचार किया जाना चाहिए: पिछले 15 महीनों में, और विशेष रूप से अप्रैल 2024 से, ईरान को गाजा युद्ध में बार-बार झटके लगे हैं. प्रॉक्सी समूहों के जरिए इजरायल से लड़ने की इसकी क्षेत्रीय रणनीति ध्वस्त हो गई है और इसकी अर्थव्यवस्था नीचे की ओर जा रही है.
इसके अलावा, मई 2024 में राष्ट्रपति रईसी की एक विमान दुर्घटना में मौत से देश राजनीतिक नाजुकता के दौर में भी है, साथ ही सर्वोच्च नेता अली होसैनी खामेनेई केउत्तराधिकार को लेकर भी अनिश्चितता है. खामेनेई 85 साल के हैं और खराब सेहत से गुजर रहे हैं.
इस कमजोर स्थिति में, परमाणु प्रोग्रामही ईरान के पास अमेरिका से डील करने का एकमात्र साधन है और इसलिए वो अंतरराष्ट्रीय समुदाय से बिना किसी ठोस आश्वासन के समझौते पर नहीं लौटेगा.
विकल्प क्या हैं?
ट्रंप की वापसी ने ईरान पर अधिकतम दबाव रणनीति का खतरा फिर से पैदा कर दिया है. हालांकि, ट्रंप ने कूटनीति को आगे बढ़ाने की इच्छा का संकेत दिया है. हाल ही में एक इंटरव्यू में उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि ईरान को परमाणु हथियार हासिल करने से रोकना उनकी पहली चिंता है.
इसी तरह, ईरानी अधिकारियों ने भी बातचीत में दिलचस्पी दिखाई है. 13 जनवरी को जेनेवा में यूरोपीय भागीदारों के साथ बैठक को ईरानी अधिकारियों ने "गंभीर, स्पष्ट और रचनात्मक" बताया है. इसे देखते हुए उम्मीद है कि दोनों पक्ष बातचीत को एक मौका देना चाहते हैं. ऐसे में अमेरिका और ईरान के बीच नया परमाणु समझौता कैसा होगा?
कैसा होगा नया समझौता?
जुलाई 2015 में अमेरिका और ईरान के बीच हुए परमाणु समझौते में ईरान के परमाणु कार्यक्रम पर सख्त प्रतिबंध लगाए गए थे. प्रतिबंधों में ईरान यूरेनियम को संवर्धित करने के लिए केवल 5,000 पहली पीढ़ी के IR-1 सेंट्रीफ्यूज ही चला सकता था. वो यूरेनियम को केवल 3.67 प्रतिशत तक ही संवर्धित कर सकता था. 20 प्रतिशत तक समृद्ध सभी यूरेनियम को नष्ट कर दिया जाना था या बाहर भेज दिया जाना था, अराक में उसके भारी पानी संयंत्र के मुख्य हिस्से को नष्ट कर दिया जाना था और सबसे बड़ीबात यह थी कि ईरान अपनी परमाणु सुविधाओं के "कहीं भी, कभी भी" IAEA निरीक्षण के लिए सहमत हो गया था.
लेकिन मई 2018 में यह समझौता रद्द हो गया था. इसके साथ ही, मूल समझौते के कुछ प्रमुख प्रावधान, जैसे ईरान पर यूरेनियम संवर्धन के लिए केवल पहली पीढ़ी के सेंट्रीफ्यूज (आईआर-1) का उपयोग करने पर प्रतिबंध, 2025 में "सनसेट क्लॉज" के तहत समाप्त होने वाले हैं. कुछ अन्य खंड 2030 तक लागू हैं, जैसे यूरेनियम संवर्धन पर 3.67 प्रतिशत शुद्धता तक प्रतिबंध और इसके समृद्ध यूरेनियम भंडार पर 300 किलोग्राम की सीमा.
किसी भी नए समझौते पर बातचीत करने के लिए, समझौते की इन शर्तों पर फिर से बातचीत करनी होगी. ईरान 2015 में परमाणु समझौते के जिन शर्तों पर राजी हो गया था, इस बात की कोई संभावना नहीं है कि वो फिर से उन शर्तों पर राजी होगा. फिर रास्ता क्या है?
अमेरिका को परमाणु समझौते की नई वार्ता में एक नई सीमा पर बात करनी होगी जिस पर ईरान अपने परमाणु प्रोग्राम को सीमित करेगा. वर्तमान में खतरा, जैसा कि IAEA ने बताया है, 60 प्रतिशत शुद्धता तक संवर्धित यूरेनियम से है. ईरान को 60 प्रतिशत तक यूरेनियम के संवर्धन को रोकने और पहले से संवर्धित भंडार को किसी तटस्थ एजेंसी को सौंपने के लिए सहमत होने के लिए मजबूर किया जा सकता है.
किसी भी समझौते के लिए ईरान को IAEA निरीक्षकों के लिए अपनी परमाणु लैब और साइटों को खोलना होगा और कैमरों आदि के जरिए संवर्धन की निगरानी की अनुमति देनी होगी. साथ ही, एक लिखित आश्वासन भी देना होगा कि ईरान परमाणु हथियार नहीं चाहता है.
बदले में, ईरान आर्थिक प्रतिबंधों को वापस लेने और एक “ठोस” आश्वासन की मांग करेगा कि अमेरिका भविष्य में इस समझौते को रद्द नहीं करेगा. साथ ही, यह भी मांग कर सकता है कि परमाणु मुद्दे से जुड़े बाकी मुद्दों जैसे कि बैलिस्टिक मिसाइल कार्यक्रम को वार्ता से बाहर रखा जाएगा.
अमेरिका ईरान की कुछ चिंताओं को ध्यान में रखकर काम कर सकता है और शायद उसने ईरान के लिए तय रेड लाइन भी बदल दी है. हाल ही में फॉक्स न्यूज से बात करते हुए ट्रंप ने यह बात साफ तौर पर कही थी, 'मैंने सिर्फ इतना कहा कि उनके पास परमाणु हथियार नहीं हो सकते.'
इसके अलावा, सऊदी अरब, यूएई या मिस्र जैसे क्षेत्रीय हितधारकों को बातचीत की प्रक्रिया में शामिल करने से समझौते की विश्वसनीयता बढ़ सकती है और व्यापक क्षेत्रीय सुरक्षा चिंताओं का समाधान हो सकता है. ईरान की कार्रवाइयों से सीधे प्रभावित ये देश परमाणु समझौता का पालन सुनिश्चित कराने में मददगार साबित हो सकते हैं.
नहीं हुई डीलतो ईरान-अमेरिका के बीच लंबा चलेगा गतिरोध
अमेरिका और ईरान के बीच अगर किसी तरह का समझौता नहीं होता तो दोनों देशों के बीच एक लंबा गतिरोध पैदा हो सकता है. पिछले दशकों में ईरान ने अमेरिकी प्रतिबंधों को नाकाम करने की कोशिश की है. रूस और चीन जैसे सहयोगियों के साथ रिश्ते बढ़ाकर इसमें वो काफी हद तक सफल भी रहा है. अमेरिका अगर लंबे समय तक ईरान पर प्रतिबंध लगाए रखता है तो इससे ईरानी शासन के लिए घरेलू समर्थन भी बढ़ता जाएगा जिससे अमेरिका के उद्देश्य कमजोर हो सकते हैं.
अमेरिका ने आर्थिक दबाव के जरिए ईरान में सत्ता परिवर्तन की कोशिश कई बार की है लेकिन यह रणनीति अप्रभावी रही है. ऐसा इसलिए क्योंकि ईरान के नेतृत्व ने अंदरूनी और बाहरी चुनौतियों के बावजूद सत्ता बनाए रखी है.
ईरान के परमाणु संयंत्रों पर सैन्य हमला एक विवादास्पद विकल्प है. हालांकि, इजरायल इसकी वकालत करता रहा है. लेकिन ईरान के परमाणु संयंत्रों को निशाना बनाना कोई आसान काम नहीं है क्योंकि ये बहुत मजबूत हैं, पहाड़ों के नीचे दबी हुई हैं और उनकी सुरक्षा काफी मजबूत है जिससे मिसाइल या हवाई हमलों से उन्हें नुकसान की बहुत कम संभावना है.
ईरान के परमाणु संयंत्रों पर अगर हमला किया जाता है तो यह ईरान के लिए एक रेड लाइन होगी जो ईरान को अपने परमाणु प्रोग्राम को तेज करने के लिए उकसा सकती है. इससे ईरान कुछ हफ्तों के अंदर ही परमाणु हथियार बनाने की दिशा में जा सकता है. इस तरह के परिणाम क्षेत्र के सुरक्षा परिदृश्य को काफी हद तक बदल देंगे, जिसका वैश्विक स्थिरता पर व्यापक प्रभाव पड़ेगा.
मध्य पूर्व जैसे अस्थिर और अशांत क्षेत्र में, जहां गाजा में 15 महीने के युद्ध ने क्षेत्रीय सुरक्षा परिदृश्य को हमेशा के लिए बदल दिया है, ट्रंप के अगले चार सालों के समय और अवसर को गतिरोध में बर्बाद नहीं होने दिया जा सकता.
(लेखक: कर्नल राजीव अग्रवाल (सेवानिवृत्त). अपने 30 साल के करियर में राजीव अग्रवाल ने सैन्य खुफिया विभाग में निदेशक और विदेश मंत्रालय में निदेशक के अलावा अन्य महत्वपूर्ण भूमिकाएं निभाई हैं. इस लेख में व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं.)
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