पिछले एक साल से जेडीयूके अंदर बिहार के सीएम नीतीश कुमार के पुत्र निशांत कुमार के एंट्री की चर्चा चल रही है. पार्टी के अंदर काफी दिनों से निशांत कुमार को शामिल करने और नहीं करने को लेकर माथापच्ची चलती रही है. कार्यकर्ता निशांत कुमार को लाने की डिमांड करते रहे हैं तो वरिष्ठ नेता इसे खारिज करते रहे हैं. इस बीच 8 जनवरी को, 48 वर्षीय निशांत, जो अब तक पर्दे के पीछे रहे हैं, अपने पिता के साथ उनके गृह नगर बख्तियारपुर गए थे, जहां स्वतंत्रता सेनानियों की मूर्तियों का अनावरण किया गया. इस कार्यक्रम के दौरान, अपने पिता से कुछ कदम की दूरी पर खड़े होकर उन्होंने पत्रकारों से कहा, अगर संभव हो, तो जेडीयूऔर मेरे पिता को वोट दें और उन्हें फिर से वापस लाएं. निशांत कुमार का यह बोलना ही जेडी यू में उनकी एंट्री का आधार माना जा रहा है. पर सवाल उठता है कि बिहार विधानसभा चुनावों से पहले क्या वास्तव में निशांत कुमार आ रहे हैं. जेडीयू और नीतीश कुमार जो वंशवाद की राजनीति के घोर विरोधी रहे हैं अचानक अपने सिद्धांतोंके खिलाफ क्या निशांत कुमार को सक्रिय राजनीति में लाएंगे?
क्या होली के बाद सक्रिय राजनीति में आ सकते हैं निशांत
विधानसभा चुनावों से पहले अचानक जेडीयू शायद अपनी पार्टी में एक राजनीतिक उत्तराधिकारी का स्वागत करने की तैयारी कर रहा है. इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट को सही माने तो निशांत कुमार होली के बाद सक्रिय राजनीति में शामिल हो सकते हैं. जेडीयू के एक करीबी सूत्र के हवाले से अखबार लिखता है कि निशांत राजनीति में आने के लिए तैयार लग रहे हैं. यह सिर्फ नीतीश कुमार से हरी झंडी मिलने की बात है. पार्टी कार्यकर्ताओं की ओर से निशांत के राजनीति में आने की लगातार बढ़ती मांग की जानकारी नीतीश कुमार को दी गई है.
दरअसल बख्तियारपुर में जेडीयू के लिए निशांत की पहली सार्वजनिक अपील थी. इससे पहले, वह आखिरी बार 2015 में अपने पिता के शपथ ग्रहण समारोह के दौरान राजनीतिक मंच पर दिखाई दिए थे. इस कार्यक्रम के एक हफ्ते बाद जेडीयू के वरिष्ठ नेता और मंत्री श्रवण कुमार ने निशांत के राजनीति में आने को लेकर संकेत दिए. श्रवण कुमार ने कहा कि हम उनके बयान का स्वागत करते हैं. उन्हें मौजूदा सरकार की अच्छी समझ है. जब उनसे पूछा गया कि क्या निशांत को राजनीति में आना चाहिए, तो उन्होंने कहा, बिलकुल. ऐसे प्रगतिशील विचारों वाले युवाओं का राजनीति में स्वागत है. फैसला सही समय पर लिया जाएगा.
पार्टी को बचाने के लिए सबसे कारगर उपाय
पिछले एक साल से नीतीश कुमार को जो लोग बहुत नजदीक से देख रहे हैं उन्हें पता है कि उनके स्वास्थ्य पर उनका उम्र हावी होने लगा है. नीतीश कुमार जिस तरह बीमार दिखने लगे हैं उससे पार्टी और उनके शुभेच्छुओं को चिंता होने लगी है. वे केवल कमजोर ही नहीं लग रहे हैं बल्कि कई कई बार कही हुई बातें भी भूल जाते हैं.क्षेत्रीय पार्टियों की तकदीर यही होती है कि उनका नेता अपने प्रदेश के लिए लिविंग लिजेंड हो जाता है. पार्टी कार्यकर्ताओं और नेताओं को जीवित किवदंति बन चुके अपने नेता के रहते हुए एक और नेता चुनने का दबाव होता है. जाहिर है कि यह बहुत कठिन दौर होता है. पार्टी के क्षत्रप एक दूसरे को बर्दाश्त करने की हालत में नहीं होते हैं.इसलिए विरासत संभाल सकने लायक योग्य नेतृत्व केवल लिविंग लीजेंड के खून के संबंधों में ही दिखता है. इसमें कोई दो राय नहीं हो सकती कि नीतीश कुमार के कमजोर पड़ते ही शुरू होने वाले पावर स्ट्रगल को रोकने के लिए जेडीयू में भी निशांत कुमार सर्वोत्तम साबित होंगे. पर जब पार्टी के फाउंडर का कोई ब्लड रिलेशन वाला शख्स नेता बनता है तो सारे गुट उसकी अधीनता स्वीकार करने में संकोच नहीं करते हैं. यही कारण रहा कि वंशवादी पार्टियों में जब कोई परिवार का आदमी नेतृत्व करता है तो चाहे वो जैसा हो विद्रोह या संघर्ष की स्थिति अपेक्षाकृत कम पैदा होती है.
जेडीयू के अस्तित्व के लिए जरूरी
जनता दल यूनाइडेट ऐसी अवस्था से गुजर रहा है जहां उसके टूटने पर गिद्ध दृष्टि लगाए बिहार का पार्टियां बैठी हुईं हैं.दरअसल नीतीश कुमार के चलते पार्टी के लिए ईबीसी वोट यानि अति पिछड़ा वोट जेडीयू के लिए समर्पित है. अपने इन्हीं कोर वोटर्स की बदौलत नीतीश कुमार पिछले तीन दशक से बिहार पर राज कर रहे हैं. नीतीश कुमार जब तक बिहार की राजनीति में सक्रिय हैं तब तक तो ये वोट उनके साथ हैं. उनके बाद बिहार में अति पिछडे़ वोटों को एकजुट करके उनका नेतृत्व करने वाला फिलहाल जेडीयू में कोई नहीं है. आरजेडी और भारतीय जनता पार्टी जेडीयू के इस कोर वोटर्स को हथियाने में अभी से लगी हुईं हैं. नीतीश कुमार के कमजोर होते ही पार्टी के नेता अपना अस्तित्व बचाने के लिए बीजेपी और आरजेडी की शरण लेंगे.पर निशांत कुमार अगर आते हैं तो यही नेता उनको पार्टी का फेस बनाकर सर्वाइव कर जाएंगे. जैसे राहुल गांधी को फेस बनाकर पिछले 2 दशक से कांग्रेस अपना अस्तित्व बचाए हुए है.
नीतीश के लिए इसलिए जरूरी हो गए हैं निशांत
देश में भारतीय जनता पार्टी और वामपंथी पार्टियों को छोड़कर जितने भी दल हैं सभी किसी न किसी परिवार के सहारे ही चल रहे हैं.भारत में राजनीतिक दलों का इतिहास यही बताता है कि शीर्ष नेतृत्व की संतानें ही पार्टियों की विरासत संभालती हैं. जिस पार्टी को संस्थापक के पारिवारिक विरासत की छत्र छाया नहीं मिली उसका पतन हो गया. तमिलनाडु में अन्नाद्रमुक पतन के करीब है. यही कारण है कि बसपा सुप्रीमो मायावती और टीएमसी मुखिया ममता बनर्जी को अपने भतीजों को आगे बढ़ा रही हैं. कांग्रेस इसलिए ही एक बार फिर से फल फूल रही है. लोगों को जितना विश्वास राहुल गांधी और प्रियंका पर है उतना भरोसा शशि थरूर या मलिल्कार्जुन खरगे जैसे नेताओं पर नहीं है. डीएमके के एमके स्टालिन, झामुमो के हेमंत सोरेन, सपा के अखिलेश यादव, राजद के तेजस्वी यादव, शिवसेना के उद्धव ठाकरे . थोड़ी और डेप्थ में जाइये तो कश्मीर के 2 राजनीतिक परिवार अब्दुल्ला परिवार और मुफ्ती परिवार के नाम पर 2 पार्टियां चल रही हैं. पंजाब में बादल परिवार, कैप्टन परिवार, हरियाणा में चौटाला परिवार, हुड्डा परिवार, बंसीलाल का परिवार, भजनलाल का परिवार, तेलुगुदेशम और वाईएसआरपी, बीआरएस आदि तो हैं ही. ये बात नीतीश को समझ में शायद आ रही है पर अभी वो कुछ दिनों पहले तक कन्फ्यूज थे. अब शायद वो निशांत को लेकर कन्फ्यूजन से बाहर निकल चुके हैं.
निशांत की राजनीतिक उदासीनता
निशांत शायद राजनीति के लिए नहीं बने हैं. अगर वो राजनीति में आते हैं तो वो राजीव गांधी, राहुल गांधी, उद्धव ठाकरे , नवीन पटनायक, चौधरी अजीत सिंह की तरह अनिच्छा से राजनीति में आएंगे. पर अकसर देखा गया है कि अनिच्छा से आए लोगों ने भी कम से कम पार्टी तो बचा ही लिया है. शुरूआत में ऊपर लिखे सारे नाम राजीनीति को लेकर उदासीन भाव रखते थे . पर बाद में इन लोगों ने परिपक्व राजनीति की.
निशांत कुमार के रानजीति उदासीनता की बात इसलिए की जा रही है क्योंकि कई बार उन्होंने पब्लिकली यह बात कही है कि वो राजनीति में नहीं आना चाहते हैं. बीटेक की पढ़ाई कर चुके निशांत का झुकाव अध्यात्म की ओर रहा है. 2007 में अपनी मां मंजू सिन्हा के निधन के बाद से निशांत लगातार अपने पिता के साथ मुख्यमंत्री निवास में ही रहते हैं.पर कुछ दिनों से निशांत की राजनीतिक सक्रियता को जेडीयू के हित में बताया जा रहा है.
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