दिल्ली को अभी पूर्ण राज्य का दर्जा भी नहीं मिला है. दूसरे विधानसभा सीटों की लिहाज से भी ये राज्य देश की राजनीति में महत्वहीन होना चाहिए. पर यहां के चुनावों में पूरे देश के लोगों की दिलचस्पी को नैशनल मीडिया में मिल रही कवरेज से आंका जा सकता है. यह दिलचस्पी दिल्ली के नेशनल कैपिटल होने की वजह से ज्यादा यहां के पूर्व मुख्यमंत्री और आम आदमी पार्टी के मुखिया अरविंद केजरीवाल के चलते है.अरविंद केजरीवाल ने देश में नई तरह की राजनीति शुरू की है. सरकारें आम जनता के फायदे के लिए काम बहुत पहले से करती रही हैं. पर अरविंद केजरीवाल की जनता को सीधे फायदा पहुंचाने के लिए की जाने वाली घोषणाओं ने उन्हें दिल्ली और पंजाब का हीरो बना दिया है. इसके साथ ही जिस तरह वो बीजेपी और पीएमपर हार्ड हिटिंग करते हैं उससे देश में बहुत से लोग यह मानने लगे हैं कि मोदी का मुकाबला वही कर सकते हैं.
जिस तरह आम चुनावों के दौरान देश की राजनीतिप्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के इर्द गिर्द घूमतीहै, कुछ उसी तरह दिल्ली में होने वाला विधानसभा चुनाव अरविंद केजरीवाल के आसपास ही रहताहै. चाहे वे जीतें या हारें, वे चुनाव का चेहरा हैं, और बाकी सभी उनकी प्रतिक्रिया में अपनी रणनीति बना रहे हैं. वह चौथी बार मुख्यमंत्री बनते हैं या दिल्ली की जनता उनको बुरी तरह नकार देती है, दोनों ही स्थितियों में दिल्ली की राजनीति ही देश की राजनीति पर प्रभाव पड़ना तय है.
1-आप जीतती है तो दिल्ली में सीएम कौन बनेगा?
दिल्ली में आम आदमी पार्टी की सबसे बड़ी मुश्किल यह होने वाली है कि अगर पार्टी दिल्ली में जीत भी जाती है तो सीएम कौन बनेगा. जिन कारणों के चलते अरविंद केजरीवाल को प्रदेश का मुख्यमंत्री पद छोड़ देना पड़ा था वो अभी भी जस की तस हैं. सुप्रीम अदालत द्वारा केजरीवाल को जमानत पर रिहा करने के दौरान लगाई गई शर्तें ऐसी बाधाएं हैं जो उन्हें फिर से मुख्यमंत्री बनने से रोकती हैं. कोर्ट ने जमानत देते हुए कहा था कि वे मुख्यमंत्री के रूप में अपने कार्यालय नहीं जा सकते या फाइलों पर हस्ताक्षर नहीं कर सकते. अभी तक वो आदेश जस का तस हैं. केजरीवाल ने कहा है कि वे जनता की अदालत का इंतजार कर रहे हैं कि क्या वे फिर से मुख्यमंत्री बनेंगे, लेकिन सवाल यह है कि क्या कानूनी अड़चनें उन्हें फिर से मुख्यमंत्री बनने से रोकेंगी नहीं? हालांकि आम आदमी पार्टी हर रोज दावा करती है कि पार्टी के बहुमत में आने पर मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ही बनेंगे.
पर जैसा कि हम केजरीवाल की राजनीति को देख रहे हैं वो झुकने वाले नहीं हैं. वो जेल चले गए पर उन्होंने रिजाइन नहीं किया. दिल्ली की दुर्दशा हो गई फिर भी राज्य में नहीं आए. कानूनी बाधाओं के कारण केजरीवाल मुख्यमंत्री नहीं बनते हैं तो उनसे ये उम्मीद करना कि वो सत्ता किसी और को सौंप देंगे यह नामुमकिन लगताहै. हो सकता है कि केजरीवाल पर्दे के पीछे से फैसले लेने का कोई और मॉडल विकसित करें. या आतिशी को सीएम बनाकर यूपीए के दिनों में सोनिया गांधी की तरह रिमोट से सरकार चलाएं.
2-बीजेपी के लिए संकट बनेंगे अरविंद केजरीवाल
नरेंद्र मोदी और राहुल गांधी को छोड़कर कोई और नेता नहीं है जिसकी पार्टी दो राज्यों में सत्ता में हो. राहुल गांधी और कांग्रेस की राजनीति उतार पर है. जबकि अरविंद केजरीवाल और आम आदमी पार्टी की राजनीति कल के सूरज की तरह हो सकती है.हालांकि आप ने पिछले कुछ वर्षों में अपनी अलग पार्टी वाली छवि को खो दिया है. भाजपा ने शीश महल और शराब नीति मामले पर आम आदमी पार्टी को बहुत नुकसान पहुंचाया है.
फिर भी, पिछले 12 वर्षों में एक राष्ट्रीय पार्टी के रूप में आप का उदय उल्लेखनीय रहा है. स्वतंत्रता के बाद से, असम गण परिषद को छोड़कर कोई अन्य समूह जो आंदोलन से निकला हो, लगातार चुनाव जीतने वाली पार्टी नहीं बन सका.भाजपा के कई लोगों के लिए, केजरीवाल भविष्य में पार्टी के लिए सबसे बड़ा खतरा हो सकते हैं, भले ही उनकी पार्टी केवल पंजाब और दिल्ली में सत्ता में है.वे राजनीतिक रूप से चतुर हैं, जनता का मूड समझते हैं. सबसे बड़ी बात यह है कि भाजपा को उसी की भाषा में जवाब देने का हिम्मत रखते हैं.
उनका बिना मुसलमानों का विरोधी हुए हिंदू समर्थक होनाएक अलग पहचान देती है.वो हिंदू प्रतीकों जैसे हनुमान और लक्ष्मी का इस्तेमाल करते हैं, तीर्थ यात्रा करवाते हैं, राममंदिर के उद्घाटन पर जाते हैं आदि ने उन्हें बीजेपी के खिलाफ तनकर खड़ा होने की ताकत देती है. एक खास तबके में उनकी लोकप्रियता उनमें देश का लीडर बनने के लिए आवश्यक योग्यता प्रदान करती है. दिल्ली में अगर चौथी बार वो मुख्यमंत्री बनते हैं तो जाहिर है कि अगले कुछ वर्षों में वो नरेंद्र मोदी के टॉप कॉम्पिटीटर बनकर उभर सकते हैं.
3-आम आदमी पार्टी के लिए संकट की घड़ी हो सकती
अगर केजरीवाल दिल्ली हार जाते हैं,जैसा कि इस बार बीजेपी के आक्रामक हमलों को देखकर लगता है. यह आम आदमी पार्टी के अस्तित्व को बचाए रखने के लिए मुश्किल समय हो सकता है. पत्रकार नीरजा चौधरी लिखती हैं किपराजित आप भाजपा के लिए आसान निशाना बन जाएगी और इसके टुकड़े-टुकड़े होने की संभावना बढ़ जाएगी. सत्ता से बाहर और हमलों के घेरे में, आप के विधायकों के लिए दबाव का सामना करना मुश्किल होगा. हर हाल में, भाजपा पहले से ही एक प्लान बी पर काम कर रही है अगर वह सत्ता में नहीं आ पाती है. दरअसल 12 साल से सत्ता में रहने के बाद, इस बार आप का कुछ वोट शेयर और सीटें खोने की संभावना है. वर्तमान स्थिति में अगर पार्टी बहुमत के करीब जैसे तैसे पहुंच जाती है तो भी यह आम आदमी पार्टी के लिए ठीक नहीं होगा. जब तक यह 70 में से 50 से अधिक सीटें नहीं जीतती, पार्टी कभी भी अपने आपको सुरक्षित महसूस नहीं करेगी.
4-कांग्रेस के लिए मुसीबत बनेंगे अरविंद केजरीवाल
भाजपा से भी ज्यादा, आप का भविष्य इस बात पर निर्भर करता है कि दिल्ली में कांग्रेस कितनी पुनर्जीवित होती है. कांग्रेस से अधिक सीटें जीतने की उम्मीद नहीं है लेकिन यह आप के वोटों में सेंध लगा सकती है. राहुल गांधी की यात्राओं के बाद, दलितों के बीच पार्टी की अपील बढ़ी है. कांग्रेस अभी भी मुसलमानों की पसंदीदा पार्टी बनी हुई है, पर यह समुदाय वोट देने के पहले यह देखता है कि पार्टी बीजेपी को हराने की स्थिति में है या नहीं. इसलिए मुसलमानों का वोट कांग्रेस को मिलेगा इसे मानना जल्दीबाजी ही होगी. हालांकि दलितों का वोट कटना तो तय है.
कांग्रेस चाहेगी कि केजरीवाल हारें- आखिरकार, वे कांग्रेस की राख से उठे हैं. उनकी जीत विपक्षी इंडिया ब्लॉक के नेतृत्व के लिए क्षेत्रीय नेताओं के दावों को नई गति दे सकती है, जो कांग्रेस को बरबाद करने के लिए काफी होगी. जिस तरह विपक्ष ने दिल्ली की लड़ाई में आप का समर्थन किया है उससे यही लगता है कि इंडिया गुट में कोई कांग्रेस की जीत नहीं चाहता है. अगर केजरीवाल दिल्ली में सरकार बनाते हैं तो कांग्रेस का पतन और तेजी से शुरू हो जाएगा.
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