महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के नतीजे अगर किसी के लिए सबसे ज्यादा बुरे रहे तो वो हैं राज ठाकरे. क्योंकि पहली बार चुनाव मैदान में उतरे राज ठाकरे के बेटे अमित ठाकरे चुनाव हार गये. वो माहिम विधानसभा सीट से महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के उम्मीदवार के रूप में चुनाव मैदान में थे.
और इससे बुरा क्या होगा कि अमित ठाकरे किसी और से नहीं बल्कि शिवसेना-यूबीटी के उम्मीदवार से चुनाव हार गये. हार भी इतनी खराब रही कि अमित ठाकरे तीसरे नंबर पर पहुंच गये थे - और दूसरे नंबर पर वहां शिवसेना-शिंदे का उम्मीदवार रहा.
राज ठाकरे से लिए इससे भी दुखदाई खबर क्या होगी कि वर्ली में आदित्य ठाकरे ने अपनी सीट बचा ली, और वो भी शिवसेना उम्मीदवार मिलिंद देवड़ा को हराकर. ध्यान देने वाली बात ये है कि वर्ली में हार-जीत का जो अंतर था, उससे ज्यादा वोट एमएनएस उम्मीदवार को मिले थे.
ये तो महज दो सीटों का उदाहरण है, पूरे महाराष्ट्र में ऐसी 10 सीटें देखी गईं, जिन पर हार जीत के फैसले में एमएनएस उम्मीदवार की सबसे बड़ी भूमिका लगती है - ये ठीक है कि राज ठाकरे के लिए बेटे की हार बड़ा सदमा है, लेकिन ऐन उसी वक्त ये क्या कम है कि राज ठाकरे की पार्टी महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना चुनाव मैदान में बनी हुई है.
1. महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना ने मुंबई की 36 में से 25 विधानसभा सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे थे. राज ठाकरे ने 7 सीटों पर कोई उम्मीदवार नहीं खड़ा किया था, जहां से बीजेपी के बड़े नेता चुनाव लड़ रहे थे. हालांकि, बीजेपी के खिलाफ 10 और एकनाथ शिंदे की शिवसेना के 12 उम्मीदवारों के खिलाफ एमएनएस के प्रत्याशी चुनाव मैदान में थे.
2. महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में एमएनएस के 125 उम्मीदवार चुनाव मैदान में उतरे थे, और एक-दो को छोड़कर सभी की जमानत जब्त हो गई है. एमएनएस की स्थापना के बाद ये पहला मौका है जब राज ठाकरे का कोई भी विधायक मंत्रालय बिल्डिंग में नहीं पहुंच सका है.
3. देखा गया है कि राज ठाकरे के उम्मीदवारों के कारण शिवसेना को कम से कम 10 सीटें गवांनी पड़ी है, जिसमें वर्ली से मिलिंद देवड़ा और दिंडोशी से संजय निरुपम की हार भी शुमार है.
4. वर्ली सीट पर मिलिंद देवड़ा की हार में एमएनएस उम्मीदवार की बड़ी भूमिका रही है. ऐसे भी समझ सकते हैं कि अगर एमएनएस उम्मीदवार संदीप देशपांडे को 19,367 वोट नहीं मिले होते, ये वोट मिलिंद देवड़ा के खाते में चले जाते तो आदित्य ठाकरे हार भी सकते थे - क्योंकि हार-जीत का अंतर सिर्फ 8801 वोट ही था.
5. स्थिति ऐसी हो गई है कि महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना को मिले राजनीतिक दल का दर्जा भी खतरे में माना जा रहा है. और, इससे पार्टी के चुनाव निशान रेल इंजन पर भी खतरा मंडराने लगा है.
राज ठाकरे की पार्टी को महज 1.55 फीसदी वोट मिले हैं. किसी भी राजनीतिक दल को मान्यता बरकरार रखने के लिए कम से कम एक सीट और कुल वोटों का 8 फीसदी या 6 फीसदी वोट के साथ 2 सीटें जीतना जरूरी होता है. अगर कोई राजनीतिक दल एक भी शर्त पूरी नहीं करता तो चुनाव आयोग उसकी मान्यता रद्द कर देता है.
ऐसा भी नहीं है कि राज ठाकरे की पार्टी अगला चुनाव नहीं लड़ सकती, लेकिन तब उसे रिजर्व सिंबल नहीं मिलेगा. झंडा-बैनर भले हो, लेकिन उम्मीदवार को बतौर निर्दलीय ही चुनाव लड़ना होगा.
देखा जाये तो राज ठाकरे की महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना राजनीतिक दल के रूप में अंतिम सांसे ही गिर रही है - ये बात अलग है कि जानी दुश्मन उद्धव ठाकरे की शिवसेना को उसी की वजह से फायदा मिल गया है.
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