देवेंद्र फडणवीस को महाराष्ट्र सीएम बनाकर बीजेपी किन खतरों से खेलने जा रही है? । Opinion

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महायुतिको महाराष्ट्र विधानसभा के चुनाव में प्रचंड बहुमत मिलने के बाद सीएम का चुनाव मुश्किल टास्क हो गया है. महायुति गठबंधन में बीजेपी को 132 सीट मिलने के पीछे एक तरफ देवेंद्र फडणवीस की रणनीति को जिम्मेदार बताया जा रहा है वहीं एकनाथ शिंदे की लोक कल्याणकारी नीतियों का भी योगदान माना जा रहा है. समस्या यह है कि एक साथ महाराष्ट्र के दो मुख्यमंत्री बन नहीं सकते. किसी एक को तो डिप्टी सीएम बनना ही पड़ेगा. गठबंधन के एक महत्वपूर्ण सहयोगी अजित पवार ने मुख्यमंत्री पद के लिए देवेंद्र फडणवीस के नाम का समर्थन किया है. पर शिवसेना की ओर से लगातार बिहार मॉडल लागू करने की बात की जा रही है. शिवसेना के सांसदों और विधायकों ने एकनाथ शिंदे के लिए बैटिंग तेज कर दी है. पर देवेंद्र फडणवीस के जिस तरह आरएसएस और बीजेपी आलाकमान की नेचुरल चॉइस होने की जानकारी सामने आ रही है उससे उनके सीेएम बनने की संभावना को बल मिल रहा है. पर फडणवीस के नाम पर इतनी जल्दी फैसला न होने के पीछे ये तीन कारण महत्वपूर्ण बताए जा रहे हैं.

1- ओबीसी वोट की राजनीति और सीएम ब्राह्मण

भारतीय जनता पार्टी का पिछले दशक का इतिहास बताता है कि किसीभी संवैधानिक पोस्ट पर नियुक्ति में टैलेंट से अधिक सोशल इंजीनियरिंग को महत्व दिया गया है. इस तरह देखा जाए तो बीजेपी इस बात से वाकिफ है कि सरकार का चेहरा ओबीसी हो तो ही बेहतर है. भाजपा सरकार ने राष्ट्रपति और राज्यपालों तक की नियुक्तियों में भी पिछड़े -दलित और एससी को तवज्जो दी है. देवेंद्र फडणवीस को ऐसे समय में सीएम बनाने की बात हो रही हैजब राहुल गांधी जाति जनगणना को लेकर अभियान चलाए हुए हैं.

कांग्रेस लगातार यह कह रही है कि बीजेपी सवर्णों और अमीरों के हितों का ख्याल रखने वाली पार्टी है. इसके साथ ही जिसकी जितनी आबादी उसकी उतनी हिस्सेदारी की बात हो रही है. ऐसी दशा में महाराष्ट्र जैसे राज्य में बीजेपी अगर एक ब्राह्मण को मुख्यमंत्री बनाती है तो इसका नरेटिव निश्चित ही गलत जाएगा. अभी कुछ महीने बाद ही बिहार और दिल्ली में चुनाव होने वाले हैं. बिहार में पार्टी का ओबीसी चेहरा दिखाकर ही सफलता दर्ज की जा सकती है. और इस बार बिहार बीजेपी के लिए बहुत चुनौतीपूर्ण होने वाला है.अगर महाराष्ट्र में देवेंद्र फडणवीस सीएम बन जाते हैं तो बिहार में बीजेपी के खिलाफ यह नरेटिव सेट किया जाएगा कि वोट पिछड़ों का लेकर एक ब्राह्मण की ताजपोशी की गई.

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2-एकनाथ शिंदे की नाराजगी कभी भी पड़ सकती है भारी

महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों में एकनाथ शिंदे को 57 सीटों पर सफलता मिली है. अजित पवार के पास 41 विधायक हैं. पिछले पांच साल में जिस तरह की राजनीति महाराष्ट्र में देखने को मिली है उसका लब्बोलुआब यह है कि कुर्सी के लिए यहां कुछ भी हो सकता है. अजित पवार के भरोसे अगर बीजपी रहती है तो उसकी बेवकूफी ही कही जाएगी. अगर बीजेपी एकनाथ शिंदे को नाराज करके देवेंद्र फडणवीस को सीएम बना देती है तो महाराष्ट्र में एक बार फिर से असंतुष्टों वाला माहौल बन जाएगा.

बीजेपी सरकार को इस बात का डर हमेशा बना रहेगा कि शिंदे और अजित पवार एक होकर कभी भी बीजेपी के साथ खेला कर सकते हैं. देवेंद्र फडणवीस मुख्यमंत्री बनकर भी एक कमजोर मुख्यमंत्री ही साबित होंगे. एमवीए हर रोज रास्ता देखेगी कि किस तरह शिंदे और अजित को सरकार से तोड़ा जा सके.अगर शरद पवार चाहे तो फिर से अपने भतीजे के साथ मिलकर कभी भी खेल कर सकेंगे. शिंदे की नाराजगी को कैश कराने की एमवीए कुछ भी करने को तैयार हो सकता है. शिंदे के 57, अजित पवार के 41 और एमवीए के 46 लोग मिलकर हुए 144 जो 288 विधायकों के सदन के बहुमत से केवल एक कम है.

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3-फडणवीस से मराठों की नाराजगी

लोकसभा चुनावों में जिस तरह मराठों ने वोटिंग की उसका नतीजा सामने था. मराठा इलाकों में बीजेपी का सूपड़ा साफ हो गया था. इसके पीछे मराठों की नाराजगी केवल और केवल देवेंद्र फडणवीस से ही थी. मराठा आरक्षण आंदोलन के नेता जरांगे पाटील जिस तरह से देवेंद्र फडणवीस का विरोध करते रहे हैं वह कोई छुपा नहीं है. जारांगे पाटील का मानना रहा है कि देवेंद्र फडणवीस के चलते ही मराठा आरक्षण लागू नहीं हो सका. जबकि फडणवीस भी लगातार यह कहते रहे हैं कि केवल उन्हीं के कार्यकाल में मराठों को आरक्षण देने की कोशिश की गई. कुछ तो महाराष्ट्र की सामाजिक पृष्ठभूमि भी ऐसी है कि ब्राह्रणों से मराठों के संघर्ष का इतिहास रहा है. जैसे राजस्थान में राजपूत और ब्राह्मणों में हमेशा बेहतर संबंध रहा है. राजपूतों ने कभी ब्राह्मण नेताओं का विरोध नहीं किया पर महाराष्ट्र में बिल्कुल ऐसा नहीं है. चूंकि मराठों की बहुत सी जातियां ओबीसी भी हैं इसलिए ब्राह्मण विऱोध का दायरा यहां और बढ़ जाता है. दूसरे पार्टी के भीतर भी देवेंद्र फडणवीस ने कई मराठी और ओबीसी नेताओं का अपना दुश्मन बना रखा है. जो कभी नहीं चाहेंगे कि देवेंद्र फडणवीस मुख्यमंत्री के रूप में अपना कार्यकाल पूरा करें. इस तरह पार्टी में अंतर्कलह की स्थिति लगातार बनी रहेगी.

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मनोज शर्मा

मनोज शर्मा (जन्म 1968) स्वर्णिम भारत के संस्थापक-प्रकाशक , प्रधान संपादक और मेन्टम सॉफ्टवेयर प्राइवेट लिमिटेड के मुख्य कार्यकारी अधिकारी हैं।

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