उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग (यूपीपीएससी) द्वारा ‘पीसीएस प्री’ और ‘आरओ-एआरओ’ परीक्षाओं को दो दिन में संपन्न कराने के फैसले के खिलाफ प्रयागराज में छात्रोंका आंदोलन लगातार चौथे दिन था. मामला और पेचीदा हो इसके पहले ही यूपी सरकार ने दूरदृष्टि दिखाते हुए यूपीपीएसी को छात्रों की मांग के अनुसार पीसीएस की परीक्षा को एक दिन में एक ही शिफ्ट में कराने का आदेश दे दिया.अब PCS और RO/ARO की परीक्षा स्थगित कर दी गई है.दरअसल एक हफ्ते के अंदर प्रदेश में 9 विधानसभाओं में उपचुनाव होने वाले हैं. और जिस तरह विपक्ष इस मुद्दे को हवा दे रहा था उससे मुद्दे के तूल पकड़ने की संभावना बढ़ती जा रही थी. सीएम योगी आदित्यनाथ के लिए ये उपचुनाव जीवन-मरण का प्रश्न बन चुके हैं. इसके पहले आज प्रदर्शनकारियों ने अपनी बात आयोग तक पहुंचाने के लिए आयोग के दफ्तर की ओर रुख किया. एक दिन पहले चूंकि प्रदर्शनकारी छात्रों पर पुलिस को बल प्रयोग करना पड़ा था इसलिए गुरुवार को पुलिस कुछ ज्यादा ही मुस्तैद थी. इसके बावजूद बैरिकेड्स तोड़ते हुए छात्र आयोग के मुख्यालय तक पहुंच गए. जाहिर है कि मामले को गंभीर होता देख सरकार ने आनन फानन में यूपीपीएससी से संपर्क किया गया होगा.
1- छात्रों की मांग तो जायज थी
छात्रों का आरोप है कि पिछले दो वर्षों से आयोग परीक्षाओं के आयोजन में असफल रहा है. जनवरी 2024 में जारी यूपी सिविल सर्विसेज का नोटिफिकेशन मार्च की परीक्षा के लिए था, जो अक्टूबर तक टलता रहा. इसके अलावा, फरवरी में आरओ-एआरओ परीक्षा पेपर लीक के कारण रद्द कर दी गई थी. अक्टूबर में फिर से परीक्षा निर्धारित की गई, लेकिन अब दिसंबर में परीक्षा कराने और दो शिफ्ट में आयोजित करने की अचानक घोषणा से छात्र भड़के हुए थे. लगातार परीक्षाओं के टलने और रद्द होने से पहले ही सरकार की किरकिरी हो रही थी.
छात्रों का कहना थाकि नॉर्मलाइजेशन प्रक्रिया उनके लिए अनुचित है और इससे उनकी मेहनत का सही मूल्यांकन नहीं हो पा रहा है. इसमें कोई दो राय नहीं हो सकती कि नॉर्मलाइजेशन कांपिटीटिव परीक्षाओं के लिए कभी यूजफुल नहीं रहा है. इसके चलते डकवर्थ लुइस फॉर्मूले से रिजल्ट घोषित होते हैं जो निहायत ही पिटी हुई पद्धति है. इसका विरोध 90 के दशक से होता रहा है. नार्मलाइजेश के तहत हुए एग्जाम में ये जरूरी नहीं है कि हर शिफ्ट के पेपर एक जैसे टफ हों या आसान हों. सभी की अलग-अलग मेरिट बनाकर उन्हें एक नॉर्मल कैटगरी में लाने में बहुत से मानदंड टूटते हैं. प्रदर्शन कर रहे छात्रों का आरोप है कि परीक्षा प्रणाली में किए गए बदलावों के कारण उनकी रैंकिंग और चयन पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है. अगर छात्र एक ही दिन और एक ही शिफ्ट में परीक्षा आयोजित करने की मांग कर रहे हैं तो उसमें कोई बुराई नहीं थी.
आयोग का कहना था कि एक ही साथ परीक्षा कराने में कई ऐसे सेंटरों पर परीक्षा कराई जाती थी जहां पेपर लीक होने और अन्य तरह के चीटिंग की व्यवस्था होने का डर होता है. पर यह समस्या तो और संसाधनों की जरिए हल की जा सकती है. पर डकवर्थ लुइस की समस्या ऐसी है जिसका कोई समाधान नहीं है. आयोग अगर पीसीएस की परीक्षा को नॉर्मलाइजेशन से बाहर करने की बात पर एग्री हो गया तो मतलब है कि उसे भी इस प्रक्रिया में कहीं न कहीं खोट नजर आ रही होगी. अगर कोई नियम एक परीक्षा के लिए सही नहीं है तो जाहिर है कि दूसरी परीक्षाओं में किस आधार पर उसे सही ठहराया जा सकता है . प्रतियोगी छात्रों का कहना है कि आयोग 7 और 8 दिसंबर को आरो-एआरओ की 411 पदों पर परीक्षा 41 जिलों में आयोजित कर रहा है, जबकि इसे सभी 75 जिलों में एक ही दिन एक शिफ्ट में आयोजित किया जाना चाहिए. यह परीक्षा अब कैंसल हो चुकी हैउम्मीद है कि आयोग जल्द ही इसके लिए भी गाइडलाइंस जारी करेगा.
2- उपचुनावों के ऐन पहले इतना बड़ा आंदोलन खटकता है
ऐन उपचुनावों के पहले इस तरह का आंदोलन होने के पीछे कौन है. जिस तरह अचानक आंदोलन ने तेजी पकड़ ली उससे यही लगता है कि जरूर इसके पीछे कुछ लोग काम कर रहे थे. क्यों कि प्रयागराज मेंप्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करने वाले छात्र संगठित नहीं होते हैं. तो क्या इस आंदोलन के पीछे विपक्ष की शक्तियां थी या योगी सरकार केही अंतर्कलह का नतीजा था यह आंदोलन. जिस तरह से अखिलेश यादव लगातार ट्वीट कर रहे थे,उससे कम से कम यह तो संदेश जा ही रहा था कि विपक्ष इस पर राजनीति कर रहाहै. और राजनीति ऐसे मामले में होनी भी चाहिए क्योंकि तभी अधिकार हासिल किए जाते हैं. पर जानबूझकर भड़काकर आंदोलन खड़ा करना कहीं से भी ठीक नहीं माना जा सकता. वह भी ऐसे समय जब एक हफ्ते में प्रदेश में उपचुनावों के लिए वोटिंग होनी है. खुद अखिलेश यादव Xपर लिखते हैं कि...
भाजपा अगर केवल चुनाव का गणित समझती है तो सुन ले कि PCS/RO/ARO/LOWER SUBORDINATE जैसी अन्य प्रतियोगी छात्रों और उनके परिवार के लोगों को मिला लिया जाए तो ये संख्या लगभग 1 करोड़ होती है. अगर इस ‘महा-संख्या’ को लगभग 400 विधानसभा सीटों से भाग दें तो भाजपा के लगभग 25,000 वोट हर विधानसभा सीट पर कम होंगे मतलब भाजपा दहाई के अंक में सिमट जाएगी.उम्मीद है, इस गणित को ही समझ कर आज ही भाजपा की हृदयहीन सरकार अत्याचार बंद करेगी और आंदोलनकारी युवाओं की लोकतांत्रिक जायज़ मांग को पूरा करेगी. भाजपा की एक आदत पड़ गयी है, जनाक्रोश से डरकर आख़िरकार बात तो वो मानने पर मजबूर होती है, लेकिन तभी जब उसके सारे हिंसक तरीक़े नाकाम हो जाते हैं और जब उसकी नौकरी विरोधी नकारात्मक राजनीति पूरी तरह फेल हो जाती है. भाजपा हमेशा के लिए ख़त्म होनेवाली है. अभ्यर्थी कहे आज का, नहीं चाहिए भाजपा!
फिलहाल शायद अखिलेश यादव की यह गणित सरकार को समझ में आ गई. और समय रहते सरकार ने सही फैसला ले लिया. अन्यथा उपचुनावों में डैमेज को रोक नहीं सकती थी बीजेपी.
3- छात्रों से बात करने 4 दिन तक कोई मंत्री क्यों नहीं पहुंचा?
पर हैरानी इस बात की है कि उत्तर प्रदेश में लोकसभा चुनावों में जिस एक खास मुद्दे को लेकर भारतीय जनता पार्टी को अपेक्षित सफलता नहीं मिल सकी थी वह प्रतियोगी परीक्षाओं को लेकर सरकार की उदासीनता ही थी. इसके बावजूद उत्तर प्रदेश सरकार इस मुद्दे को लेकर इतनी गंभीर नहीं दिखी जितनी होनी चाहिए थी. सोचिए एक हफ्ते में 9 सीटों के लिए उपचुनाव होने वाले हैं और छात्र आंदोलन जिसकी आग कभी भी पूरे प्रदेश में फैल सकती थी को लेकर सरकार चैन की बंसी बजा रही थी. चार दिन बीतने के बाद भी स्पॉट पर कोई मंत्री तक नहीं पहुंचा. प्रदेश में 2-2 डिप्टी चीफ मिनिस्टर हैं पर सभी केवल ट्वीटर पर खेल रहे थे. डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य की सारी राजनीति इलाहाबाद की ही है इसके बावजूद उन्हें वहां पहुंचने नहीं दिया गया या खुद वो जानबूझकर गायब थे? दैनिक भास्कर की एक रिपोर्ट बताती है कि इलाहाबाद के सारे एमएलए और एमपी प्रतियोगी परीक्षाओं के छात्रों की हां में हां मिला रहे थे. इसमें केवल समाजवादी पार्टी के विधायक और सांसद नहीं थे. छात्रों की मांगों का समर्थन करने वालों में बीजेपी के विधायकऔर सांसद शामिल थे.
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