उत्तर प्रदेश में 9 विधानसभा सीटों पर होने जा रहे उपचुनाव ने बीजेपी और समाजवादी पार्टी दोनो ही के लिए करो या मरो जैसी स्थिति पैदा कर दिये हैं - और दोनो ही पक्षों के लिए कॉमन फैक्टर लोकसभा चुनाव के नतीजे हैं.
समाजवादी पार्टी का यूपी में सबसे ज्यादा सीटें जीत लेना और बीजेपी का नये दौर में सबसे कम सीटों पर सिमट जाना - और उसमें भी अयोध्या का नतीजा समाजवादी पार्टी के पक्ष में चले जाना, ऐसी सारी बातों ने यूपी के राजनीतिक अखाड़े को कुछ देर के लिए महाराष्ट्र और झारखंड से भी बड़ा बना देता है.
अखिलेश यादव के लिए योगी आदित्यनाथ की अहमियत उतनी ही है, जितनी राहुल गांधी के लिए नरेंद्र मोदी का महत्वपूर्ण होना है - क्योंकि INDIA ब्लॉक के दोनो ही नेताओं को बीजेपी के दोनो नेताओं की वजह से ही अथक परिश्रम और संघर्ष करना पड़ रहा है. ये तो योगी आदित्यनाथ का ही असर है कि अखिलेश यादव सत्ता से चूक जा रहे हैं, और बिलकुल वही कहानी दिल्ली में भी समानांतर चल रही है.
जैसे राहुल गांधी जब तब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पनौती तक कह डालते हैं, अखिलेश यादव भी योगी आदित्यनाथ को माफिया और धूर्त जैसे न जाने क्या क्या बोल चुके हैं - लेकिन उपचुनावों के बीच अखिलेश यादव ने योगी आदित्यनाथ के बारे में जो दावा किया है, वो आम आदमी पार्टी के नेता अरविंद केजरीवाल की कॉपी जैसा है.
योगी आदित्यनाथ के बहाने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को टार्गेट करने का अरविंद केजरीवाल को तो कोई फायदा नहीं मिल पाया - क्या अखिलेश यादव को चुनाव बाद योगी आदित्यनाथ की कुर्सी चली जाने वाली भविष्यवाणी से कोई फायदा मिल पराएगा?
अखिलेश यादव का केजरीवाल जैसा दावा
अखिलेश यादव का दावा है कि महाराष्ट्र चुनाव खत्म होते ही योगी आदित्यनाथ को यूपी के मुख्यमंत्री पद से हटा दिया जाएगा. ये ठीक वैसा ही बयान है, जैसा लोकसभा चुनाव के दौरान अरविंद केजरीवाल के मुंह से सुनने को मिला था. तब अरविंद केजरीवाल ने भी योगी आदित्यनाथ को चुनाव बाद हटाये जाने का दावा किया था, लेकिन उसमें मोदी के साथ साथ केंद्रीय मंत्री अमित शाह का भी नाम लिया गया था.
अरविंद केजरीवाल ऐसे समझाने की कोशिश कर रहे थे कि बीजेपी अगर लोकसभा चुनाव जीत भी जाती है, तो नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री कुछ ही दिन तक रहेंगे. अरविंद केजरीवाल का दलील थी कि मोदी के 75 साल के होते ही अमित शाह प्रधानमंत्री बन जाएंगे, और ऐसा होते ही योगी आदित्यनाथ को तत्काल प्रभाव से यूपी के मुख्यमंत्री की कुर्सी से हटा दिया जाएगा.
अखिलेश यादव ने इतने सारे कंडीशन तो नहीं सुझाये हैं, लेकिन उनका इशारा योगी आदित्यनाथ और बीजेपी नेतृत्व के साथ चल रहे टकराव की तरफ ही है - और चूंकि सामने महाराष्ट्र चुनाव है, इसिलए उसके नतीजे आने तक अपनी तरफ से डेडलाइन तय कर दी है.
अखिलेश यादव ने कोई मजबूत दांव खेला हो ऐसा नहीं लगता. बल्कि बड़ी की कमजोर चाल चली है, अरविंद केजरीवाल को भी कोई फायदा नहीं मिला था. वो तो मोदी लहर को काउंटर करना चाहते थे. वो चाहते थे कि दिल्ली के लोग मोदी के नाम पर बीजेपी को वोट न दें. वो चाहते थे कि लोगों को योगी आदित्यनाथ के भी नरेंद्र मोदी के उत्तराधिकारी बनने पर शक पैदा हो जाये, इसीलिए एक सियासी शिगूफा छोड़ा था.
यूपी के उपचुनावों पर कोई असर होगा क्या
अखिलेश यादव अपनी तरफ से कहानी सुनाकर ये संदेश देने की कोशिश कर रहे हैं कि अगर योगी आदित्यनाथ मुख्यमंत्री ही नहीं रहेंगे, तो उपचुनावों में बीजेपी को वोट देने से क्या फायदा?
असल में कोशिश तो दोनो पक्षों की सभी 9 सीटें जीतने की होगी, लेकिन ऐसी आदर्श परिस्थितियां किसी के पक्ष में तो होने से रहीं. जब वोट जाति और धर्म के आधार पर ही दिये जाने हों, तो बीजेपी और सपा दोनो में से कोई भी सबको अपनी तरफ नहीं कर सकता.
लेकिन, दोनो के लिए सबसे महत्वपूर्ण सीट फिलहाल करहल की है. अगर मिल्कीपुर में भी उपचुनाव होते तो निश्चित तौर पर वो भी हो सकती थी. करहल सीट अखिलेश यादव के ही कन्नौज से सांसद बन जाने की वजह से खाली हुई है.
कन्नौज सीट पर बीजेपी ने मुलायम सिंह परिवार के ही दामाद को टिकट दिया है, जबकि अखिलेश यादव ने परिवार के तेज प्रताप यादव को उम्मीदवार बनाया है. अखिलेश यादव हर हाल में करहल सीट बचाने की कोशिश करेंगे, जबकि योगी आदित्यनाथ जीत कर लोकसभा की हार का बदला चुकता करना चाहते हैं. करहल विधानसभा सीट मैनपुरी लोकसभा सीट के तहत आती है, जिसका प्रतिनिधित्व फिलहाल अखिलेश यादव की पत्नी डिंपल यादव कर रही हैं.
योगी के बढ़ते प्रभाव को रोकने की कोशिश
योगी आदित्यनाथ के बढ़ते प्रभाव को रोकने भी अखिलेश यादव की कोशिश होगी. जबसे योगी आदित्यनाथ ने 'बंटेंगे तो कटेंगे' का नारा दिया है, हर तरफ उनका आभामंडल और भी फैलता जा रहा है. योगी आदित्यनाथ के एजेंडे को संघ प्रमुख मोहन भागवत तो एनडोर्स कर ही रहे हैं, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी उसी बात को अपने लहजे में दोहराये जा रहे हैं - एक रहें, सेफ रहें.
सवाल है कि क्या योगी आदित्यनाथ यूपी की कास्ट पॉलिटिक्स में रोड़ा बनने लगे हैं, और इसीलिए अखिलेश यादव उनको काउंटर करने की नई तरकीब अपना कर रोकने की कोशिश कर रहे हैं?
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