अभी कुछ दिनों पहले तक ऐसा लग रहा था कि बीजेपी ने महाराष्ट्र में बिहार वाले प्रयोग पर ही चलने का इरादा कर लिया है. यानि कि अधिक विधानसभा सीटजीतने के बावजूद सहयोगी पार्टी के नेता को प्रदेश में मुख्यमंत्री पद की कुर्सी देना. बिहार और महाराष्ट्र में भारतीय जनता पार्टी नेकम से कम अपने सहयोगी पार्टी को अपना बड़ा भाई बनाने में कोई संकोच नहीं किया. महाराष्ट्र में पहले ऐसा समझा जा रहा था कि विधानसभा चुनाव में शायद अधिक सीट आने पर बीजेपी फिर से महाराष्ट्र का दायित्व पूर्व सीएम और वर्तमान डिप्टी सीएम देवेंद्र फडणवीस को सौंप देगी. पर पिछले दिनों एक पीसी में प्रदेश के डिप्टी सीएम देवेंद्र फडणवीस ने यह कबूल किया कि महाराष्ट्र के सीएम एकनाथ शिंदे ही होंगे. इसके बाद राजनीतिक गलियारों में यह मानकर लोग चल रहे थे कि हो सकता है कि एकनाथ शिंदे प्रदेश के अगले नीतीश कुमार बन जाएं. पर अचानक एक बार फिरसे देवेंद्र फडणवीस के नाम का घोड़ा महाराष्ट्र में दौड़ने लगा है. शीर्ष भाजपा नेतृत्व और पार्टी कार्यकर्ताओं द्वारा यह कहा जाने लगा है कि महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री पद के लिए फडणवीस का नाम उपयुक्त है. ऐसे संकेत मिल रहे हैं कि यदि राज्य में महायुति को बहुमत मिलता है तो भाजपा बड़े भाई की भूमिका निभाने के लिए उत्सुक है ताकि उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस की राज्य के शीर्ष पद पर वापसी सुनिश्चित कराई जा सके.
1- कैसे आया चर्चा में फडणवीस का नाम
रविवार को मुंबई में पार्टी का घोषणापत्र जारी करते हुए केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कहा वर्तमान में एकनाथ शिंदे मुख्यमंत्री हैं, लेकिन चुनाव के बाद महायुति के सभी तीन घटक भाजपा, शिवसेना और एनसीपी मिल बैठकर अगले मुख्यमंत्री का फैसला करेंगे. सबसे बड़ी बात यह है कि यह पहली बार नहीं था जब शाह ने सीएम के मुद्दे पर बात की हो. पिछले हफ्ते सांगली में एक रैली में उन्होंने दावा किया था कि जनता महायुति और फडणवीस की वापसी देखना चाहती है.लेकिन यह इतना आसान भी नहीं है, इसलिए हीइंडियन एक्सप्रेस को एक इंटरव्यू में राज्य भाजपा अध्यक्ष चंद्रशेखर बावनकुले बताते हैं कि इस समय हमारे एजेंडे में मुख्यमंत्री पद नहीं है.भले ही भाजपा संकेत दे रही है परशिवसेना ने स्पष्ट कर दिया है कि महायुति की वापसी होने पर मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ही बने रहेंगे.शिवसेना के एक वरिष्ठ कैबिनेट मंत्री ने कहा, “हमारे लिए, एकनाथ शिंदे मुख्यमंत्री हैं और चुनाव के बाद भी मुख्यमंत्री रहेंगे.
हालांकि, शिवसेना और एनसीपी के सूत्रों का मानना है कि गठबंधन की राजनीति में कई कारक मुख्यमंत्री के चेहरे को निर्धारित करते हैं, खासकर जब कोई भी पार्टी अकेले बहुमत नहीं पाती है.इसलिए अभी इस चर्चा में जाने का कोई मतलब नहीं है. वैसे भी महाराष्ट्र की राजनीति पिछले 5 सालों में जैसे बदल रही है उसके हिसाब से कुछ भी कहा नहीं जा सकता है.
2- फडणवीस को मिल रहे समर्थन के 2 कारण
सीएम पद के लिए फडणवीस को मिल रहे समर्थन के दो कारण गिनाएं जा रहे हैं. जैसा कि 2014 से 2019 के बीच जब फडणवीस राज्य के शीर्ष पर थे, महाराष्ट्र ने राज्य के कल्याण के लिए साहसिक प्रशासनिक कदम उठाए. पार्टी और आरएसएस में बहुत से लोग मानते हैं कि उन्हें 2022 में एनडीए में शिवसेना को समायोजित करने के लिए मुख्यमंत्री का पद त्यागना पड़ा था और अगर भाजपा अपनी ताकत के बलबूते सत्ता में लौटती है, तो ऐसा फिर नहीं होना चाहिए.
2019 विधानसभा चुनावों से पहले, जब भाजपा अविभाजित शिवसेना के साथ गठबंधन में थी, उसने फडणवीस को मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार के रूप में पेश किया गया. उनके राज्यव्यापी जनादेश यात्रा के बाद भाजपा ने 105 सीटे जीत लीं.इसके साथ ही बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी, जबकि अविभाजित शिवसेना 56 सीटों पर सिमट गई. बाद में उद्धवठाकरे ने अविभाजित एनसीपी और कांग्रेस के साथ मिलकर सरकार बनाई. इस गठबंधन केविद्रोह के सूत्रधार के रूप में फडणवीस को देखा गया था. फडणवीस नेशिंदे को मुख्यमंत्री बनाने की पेशकश की और कहा कि वे सरकार में शामिल नहीं होंगे.बाद में उन्हेंउपमुख्यमंत्री के रूप में शामिल होने के लिए पार्टी ने मना लिया.इन दो कारणों के चलते पार्टी में लोग चाहते हैं कि उन्हें फिर से वो सम्मान दिलाया जाए.
3- एनसीपी के रुख पर भी निर्भर करेगामुख्यमंत्री का नाम
अजित पवार की राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी ने अधिक सतर्क रुख अपनाया है. एनसीपी राज्य प्रमुख सुनील तटकरे ने दावा किया कि फिलहाल महायुति को सत्ता में वापस लाना ही प्राथमिकता है. सीएम जैसे बड़े मुद्दों को चुनाव के बाद शीर्ष नेतृत्व पर छोड़ देना चाहिए. दरअसल अजित पवार अपने लिए दोनों गठबंधनों में अपने लिए ऑप्शन तैयार रखते हैं. जिस तरह एनसीपी ने योगी आदित्यनाथ के बयान बंटेंगे तो कटेंगे पर अपनी प्रतिक्रिया जताई है उससे साफ हो गया है कि पार्टी बीजेपी के दबाव में नहीं है. यही नहीं नवाब मलिक और उनकी बेटी को टिकट देने के मामले में भी एनसीपी नेता अजित पवार ने गठबंधन धर्म का पालन नहीं किया इसके बावजूद महायुति में बने हुए हैं.बीजेपी यह जानती है कि अजित पवार के आने से गठबंधन को कोई फायदा नहीं हुआ है.
लोकसभा चुनावों में सबसे खराब पर्फार्मेंस भी एनसीपी का ही था . इसके बावजूद जिस तरह बीजेपी ने एनसीपी के कई फैसलों के सामने हथियार डाले हैं वो बताता है कि सबसे बेहतरीन सौदेबाजी अजित पवार ही कर रहे हैं. अजित पवार मुस्लिम समुदाय के मुद्दों पर इस तरह डटे रहे हैं कि चुनाव परिणामों के बाद बहुत आसानी से यह कह सकेंगे कि सिद्धांतों के आधार पर हम एवीए के साथ जा रहे हैं. इतना ही नहीं अगर कुछ सीटें बीजेपी की कम होती हैं तो अजित पवार सौदेबाजी के फुल मोड में होंगे. और बिना उनकीसलाहके सीएम के नाम परफैसला नामुमकिन ही होगा.
4- त्रिशंकु विधानसभाहुई तो एकनाथ शिंदे ही फिर सीएम बनेंगे
लोकसभा में मिली हार के बाद भाजपा कोर्स करेक्शन मोड में दिखाई दे रही है. भले ही फडणवीस सीएम पद के प्रमुख दावेदार हो सकते हैं, फिर भी महायुति के भीतर अपनी पसंद को अपने सहयोगियों पर थोपने के लिए भाजपा को सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरना होगा. बल्कि सबसे बड़ी पार्टी के साथ-साथ इस तरह का बहुमत लाना होगा कि शिवसेना या एनसीपी के साथ बीजेपी को सौदेबाजी न करनी पड़े. पत्रकार विनोद शर्मा कहते हैं कि यदि ऐसा नहीं हुआ तो अजित पवार और शिंदे अपनी शक्ति दिखा सकते हैं. क्योंकि महाविकास अघाड़ी किसी भी शर्त पर सरकार बनाने के लिए तैयार होगी. एनसीपी तो अभी से इस तरह व्यवहार कर रही है जैसे चुनाव बाद किसी के साथ जाने को स्वतंत्र है. हंग विधानसभा होने की स्थित में बहुत कम विधायकों के साथ भी ये दोनों पार्टियां सौदेबाजी के लिए स्वतंत्र होंगी.इसलिए अभी से फडणवीस का नाम क्यों बीजेपी ले रही है यह समझ से बाहर है. हंग असेंबली हुई तो एकनाथ शिंदे को सीएम पद का ऑफर दोनों ही ओर होगा.
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