US President Election जीतने के लिए भारत की तरह सिर्फ वोट जुटाना काफी नहीं

4 1 5
Read Time5 Minute, 17 Second

अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में सबसे अधिक वोट पाने वाला व्यक्ति भी चुनाव में हार सकता है. इसे अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव प्रणाली का सबसे अजीबोगरीबपक्ष समझा जा सकताहै. दरअसल इलेक्टोरल कॉलेज का चुनाव अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव प्रणाली कोएक जटिल प्रक्रिया बना देती है. इसे आसान भाषा में कुछ यूं समझिए कि आम जनता राष्ट्रपति चुनाव में ऐसे लोगों को वोट देती है जो इलेक्टोरल कॉलेज बनाते हैं और उनका काम देश के राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति को चुनना है. नवंबर के पहले सप्ताह में मंगलवार को वोटिंग उन मतदाताओं के लिए होती है जो राष्ट्रपति को चुनते हैं. ये लोग इलेक्टर्स कहलाते हैं. ये इलेक्टर्स निर्वाचित होने के बाद 17 दिसंबर को अपने-अपने राज्य में एक जगह इकट्ठा होते हैं और राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के लिए वोट करते हैं.

अमेरिकी जनता आज वोट करके सीधे तौर पर स्वयं अपने राष्ट्रपति का चुनाव नहीं कर रहीहै. ठीक ऐसा ही नियम उपराष्ट्रपति पद के लिए भी है. हां वोटर्स इस इलेक्टोरल कॉलेज के अलावाकांग्रेस में रिप्रेजेंटेटिव एसेंबली के प्रतिनिधियों को भी चुन रहे हैं. रिप्रजेंटेटिव असेंबली के435 सीटों के लिए काउंटिंग हो रही है इसके साथ ही सीनेट के 33 सीटों के लिए चुनाव हुआ है. फिलहाल रिपब्लिकन मौजूदा सदन को नियंत्रित कर रहेहैं.हालांकि सीनेट में डेमोक्रेट बहुमत में हैं. कई मामलों मेंसीनेट का सरकार पर ज्यादा प्रभाव होता है. हालांकिदोनों सदन मिलकर कानून पारित करते हैं.

1-ज्यादा वोट मतलब बहुमत की गारंटी नहीं

इलेक्टोरल कॉलेज में 538 इलेक्टर्स शामिल हैं. जो सभी 50 राज्यों और कोलंबिया जिले का प्रतिनिधित्व करते हैं. प्रत्येक राज्य में तीन से 54 के बीच इलेक्टर्स शामिल हैं. किसी भी राज्य के निर्वाचकों की संख्या उसके अमेरिकी सीनेटरों और अमेरिकी प्रतिनिधियों की कुल संख्या को जोड़कर निर्धारित की जाती है. अमेरिका में करीब 51 स्टेट हैं . हर स्टेट से 2 सीनेटर्स के हिसाब से कुल 102 सीनेटर्स चुने जाते हैं.अमेरिका एक राज्यों का संघ है इसलिए राज्यों के अधिकार बराबर विभाजित रहें, कोई बड़ा राज्य छोटे राज्यों को दबा न सके इसलिए सभी राज्यों का बराबर प्रतिनिधि भेजने का राइट संविधान में दिया गया है.जिसे इस तरह समझ सकते हैं कि उत्तर प्रदेश और महाराष्ट जैसे बड़े राज्य और अरुणांचल प्रदेश और सिक्किम जैसे छोटे राज्यों सभी को राज्यसभा में 2 ही प्रतिनिधि भेजने का अधिकार मिले. पर भारत में ऐसा नहीं है. भारत में अधिक जनसंख्या वाले राज्यों को राज्यसभा में अधिक प्रतिनिधि भेजने का राइट मिला हुआ है . पर भारत में राज्यसभा का महत्व कम है, जबकि अमेरिका में सीनेट को बहुत ताकत मिली हुई है. अमेरिका में कुल 538 सीटों पर चुनाव का विजेता वह उम्मीदवार होता है जो 270 या उससे अधिक सीटें जीतता है, लेकिन यह जरूरी नहीं कि वही राष्ट्रपति बन जाए. यह संभव है कि कोई उम्मीदवार राष्ट्रीय स्तर पर सबसे अधिक वोट जीत ले लेकिन फिर भी वह इलेक्टोरल कॉलेज की ओर से जीत नहीं पाए. ऐसा मामला 2016 में सामने आया था, जब हिलेरी क्लिंटन इलेक्टोरल कॉलेज की ओर से नहीं जीत पाई थीं.

Advertisement

2-भारत में होता तो इस प्रकार होता

अमेरिका के राष्ट्रपति का चुनाव एक अप्रत्यक्ष प्रक्रिया है, जिसमें सभी राज्यों के नागरिक इलेक्टोरल कॉलेज के कुछ सदस्यों के लिए वोट करते हैं. इन सदस्यों को इलेक्टर्स कहा जाता है. ये इलेक्टर्स इसके बाद प्रत्यक्ष वोट डालते हैं जिन्हें इलेक्टोरल वोट कहा जाता है. इनके वोट अमेरिका के राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के लिए होते हैं. ऐसे उम्मीदवार जिन्हें इलेक्टोरल वोट्स में बहुमत मिलता है राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति पद के लिए चुने जाते हैं. इलेक्टर्स सीनेटर्स और प्रतिनिधिसभा के सदस्यों की संख्या को मिलाकर तैयार किया जाता है.जैसे भारत में अभी एनडीए को कुल 28 में से 18 राज्यों में बहुमत है. अमेरिकी प्रणाली के अनुसार इन राज्यों के सारे प्रतिनिधियों के वोट राष्ट्रपति कैंडिडेट को मिल जाते . इसे ऐसे समझ सकते हैं कि अगर उत्तर प्रदेश में कुल वोटर्स की संख्या 14 करोड़ 71 लाख वोटर्स में 9 करोड़ वोट राहुल गांधी को मिलते और 9 करोड़ एक वोट नरेंद्र मोदी को मिलते तो मोदी को उत्तर प्रदेश के सारे प्रतिनिधियों के वोट उन्हें मिल जाते.

3- भारतीय चुनावों में भी वोटिंग परेंटेज और सीटों की संख्या में बहुत बड़ा अंतर सामने आ रहा है

आजकल भारत में भी चुनावों में ऐसी बातें सामने आ रही हैं जो अमेरिकी लोकतंत्र के तरीके से हैरान करने वाली हैं. जिस तरह अमेरिका में अधिक वोट पाने का मतलब यह नहीं है कि आप राष्ट्रपति चुन लिए जाएं उसी तरह भारत में भी अधिक वोट पाने का मतलब यह नहीं है कि उसी अनुपात में आप की सीटें भी अधिक हो जाएं. भारत में लगातार यह टेंडेंसी देखने को मिल रही है कि मात्र कुछ परसेंट के वोटों की कमी के चलते सीटों के रूप में बहुत बड़ा अंतर हो जा रहा है. हरियाणा के चुनावों में कांग्रेस को 54 लाख वोट मिले तो बीजेपी को 55 लाख वोट पर सीटों में भारी अंतर रहा. कई बार ऐसा भी हुआ है कि वोट परसेंटेज अधिक होने के बावजूद सीटों की संख्या कम हो गई है. जैसे हरियाणा में कुछ मुस्लिम बहुल सीटों पर कांग्रेस को 90 प्रतिशत तक वोट मिले हैं. और दूसरी सीटों जहां बीजेपी को लीड मिली वहां मात्र कुछ परसेंट वोट से पार्टी आगे थी. इस तरह कुल वोट्स के बीच अंतर काफी कम रह जाता है. वोटों के ध्रुवीकरण के चलते इस तरह की जटिलताएं सामने आ रही हैं.

Live TV

\\\"स्वर्णिम
+91 120 4319808|9470846577

स्वर्णिम भारत न्यूज़ हिन्दी के एंड्रॉएड ऐप के लिए आप यहां क्लिक कर सकते हैं.

मनोज शर्मा

मनोज शर्मा (जन्म 1968) स्वर्णिम भारत के संस्थापक-प्रकाशक , प्रधान संपादक और मेन्टम सॉफ्टवेयर प्राइवेट लिमिटेड के मुख्य कार्यकारी अधिकारी हैं।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Laptops | Up to 40% off

अगली खबर

मलयालम अभिनेता निविन पॉली को बड़ी राहत, यौन उत्पीड़न केस में मिली क्लीन चिट

News Flash 06 नवंबर 2024

मलयालम अभिनेता निविन पॉली को बड़ी राहत, यौन उत्पीड़न केस में मिली क्लीन चिट

Subscribe US Now