कर्नाटक (Karnataka) में चन्नपटना विधानसभा सीट पर होने वाले उपचुनाव के लिए कैंडिडेट्स के सेलेक्शन में देवेगौड़ा परिवार और डीके शिवकुमार परिवार के बीच करीब दो महीने तक हाई-वोल्टेज ड्रामा चला, लेकिन आखिराकर दो बड़े खिलाड़ियों के बीच मुकाबला हुआ. ये दोनो खिलाड़ी हैं- सीपी योगेश्वर और निखिल कुमारस्वामी.
परिवार और पार्टी की सेफ्टी
लेकिन, हमेशा ऐसा नहीं होता था. चन्नपटना से चार बार विधायक रहे बीजेपी के योगेश्वर, जिन्हें एनडीए का उम्मीदवार माना जा रहा था, आखिरी वक्त में कांग्रेस के उम्मीदवार बन गए, जबकि जनता दल (एस) ने दावा किया कि उसके पास कोई और विकल्प नहीं था, इसलिए उसने केंद्रीय मंत्री एचडी कुमारस्वामी के बेटे निखिल कुमारस्वामी को मैदान में उतारने का फैसला किया, जिससे "पार्टी और परिवार की इज्जत बचाई जा सके."
लोगों की नब्ज टटोलने के लिए चन्नपटना की यात्रा करने और योगेश्वर, निखिल कुमारस्वामी और एच.डी. कुमारस्वामी के कारवां में उनके प्रचार अभियान के दौरान अलग-अलग घुसकर बातचीत करने के मौके तलाशने के बाद पत्रकार ने उनसे कुछ सुना.
योगेश्वर: "मैं एनडीए उम्मीदवार के तौर पर बीजेपी के टिकट पर चुनाव लड़ने को लेकर सीरियस था लेकिन, कुमारस्वामी किसी भी कीमत पर मेरा सपोर्ट नहीं करना चाहते थे. मैंने आखिरी वक्त तक बीजेपी के साथ रहने की कोशिश की, लेकिन जब मुझे एहसास हुआ कि कुमारस्वामी सिर्फ अपने बेटे को ही मैदान में उतारना चाहते हैं, तो मैंने बीजेपी से इस्तीफा दे दिया और कांग्रेस में शामिल होकर पार्टी का कैंडिडेट बन गया. मैं कुमारस्वामी की स्वार्थी, पारिवारिक राजनीति को उजागर करना चाहता था."
निखिल कुमारस्वामी: "मैंने अप्पाजी (दादा देवेगौड़ा) से कहा था कि मैं चुनाव लड़ने के लिए उत्सुक नहीं हूं और हमें किसी पार्टी कार्यकर्ता को मैदान में उतारना चाहिए. शुरू में तो वे सहमत हो गए, लेकिन बाद में जब योगेश्वर कांग्रेस में चले गए, तो मुझे चुनाव लड़ने के लिए कहा गया क्योंकि हमारे पार्टी कार्यकर्ताओं का बहुत दबाव था. यह अब मेरे लिए एक अप्रत्याशित चुनाव है, लेकिन मैं इसे लड़ूंगा."
कुमारस्वामी: "हम योगेश्वर का समर्थन करने के लिए तैयार थे और मैंने उनसे कहा कि उन्हें जेडी(एस) उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ना चाहिए क्योंकि चन्नपटना हमारी सीट है. लेकिन, ऐसा लगता है कि उन्होंने महीनों पहले ही कांग्रेस नेतृत्व के साथ 'सौदा' कर लिया था और आखिरी तक सभी को अंधेरे में रखा. जब योगेश्वर ने हमें छोड़ दिया, तो हमारे पास अपने पार्टी कार्यकर्ताओं का मनोबल बढ़ाने के लिए निखिल को कैंडिडेट के रूप में लाने के अलावा कोई च्वाइस नहीं थी."
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‘बदले’ की सियासत
लोकसभा चुनाव के 18 महीने बाद, जहां बीजेपी-जेडी(एस) गठबंधन ने सिद्धारमैया के नेतृत्व वाली सत्तारूढ़ कांग्रेस पार्टी को बुरी तरह हराया, वोक्कालिगा के गढ़ में चन्नापटना उपचुनाव में स्थानीय कद्दावर नेता शिवकुमार के खेमे से ‘बदले’ की आवाजें गूंज रही हैं.
लोकसभा चुनावों में शिवकुमार को दोहरा 'अपमान' सहना पड़ा था, क्योंकि उनके भाई डीके सुरेश को कुमारस्वामी के साले डॉ. सीएन मंजूनाथ से हार का सामना करना पड़ा था, जो बीजेपी के टिकट पर अपना सियासत शुरू कर रहे थे. यहां तक कि कुमारस्वामी ने मांड्या में भारी जीत दर्ज की थी, जिसने बमुश्किल 11 महीने पहले के विधानसभा परिणामों को पूरी तरह से पलट दिया था.
लोकसभा के लिए चुने जाने और नरेंद्र मोदी कैबिनेट में केंद्रीय मंत्री बनने के बाद कुमारस्वामी ने चन्नपटना विधानसभा सीट खाली कर दी थी. मई 2023 में होने वाले विधानसभा चुनाव में कुमारस्वामी ने बीजेपी उम्मीदवार योगेश्वर को 15 हजार वोटों के मामूली अंतर से हराया था. एक साल बाद, जब बीजेपी ने लोकसभा चुनावों के लिए जेडी(एस) के साथ गठबंधन किया, तो कुमारस्वामी और योगेश्वर खुद को एक ही कश्ती में पाया. हालांकि, वे राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी बने रहे और एक-दूसरे पर संदेह करते रहे.
योगेश्वर एक भूतपूर्व सैनिक, फिल्म अभिनेता और चन्नपटना के निवासी हैं. उनका सियासी करियर तीन दशक से भी ज्यादा वक्त से उतार-चढ़ाव भरा रहा है. वे पहले निर्दलीय, दो बार कांग्रेस के टिकट पर और एक-एक बार समाजवादी पार्टी (उत्तर प्रदेश के मुलायम सिंह यादव की पार्टी) और बीजेपी के टिकट पर विधानसभा के लिए चुने गए हैं. वे पिछले छह साल से बीजेपी के साथ हैं.
चुनाव आयोग द्वारा चन्नपटना उपचुनाव का नोटिफिकेशन जारी किए जाने से बहुत पहले ही योगेश्वर ने नई दिल्ली में अमित शाह और जेपी नड्डा से कई बार मुलाकात की और चुनाव लड़ने की अपनी ख्वाहिश जाहिर की. उन्हें साफ तौर से कोई आश्वासन नहीं मिला क्योंकि बीजेपी नेताओं ने सोचा कि यह सीट कुमारस्वामी पर छोड़ देना ही समझदारी होगी क्योंकि यह उनके द्वारा खाली की गई सीट थी.
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कुमारस्वामी की दुविधा
ऐसा लगता है कि कुमारस्वामी अपने बेटे निखिल के डगमगाते सियासी करियर को चन्नपटना से फिर से शुरू करने के इच्छुक थे, क्योंकि वे पहले ही दो चुनाव हार चुके थे और निखिल ने जून की शुरुआत में ही स्थानीय नेताओं से बातचीत शुरू कर दी थी. लेकिन, कोई औपचारिक घोषणा नहीं की गई, क्योंकि कुमारस्वामी योगेश्वर के दावे को सीधे खारिज नहीं कर सकते थे और साथ ही केवल “वंशवादी राजनीति” को बढ़ावा देने के आरोप से भी बचना चाहते थे.
यह संदेह करते हुए कि उन्हें एनडीए टिकट से वंचित किया जा सकता है, योगेश्वर ने कांग्रेस नेताओं के साथ संपर्क शुरू किया और शिवकुमार के साथ कुछ सार्वजनिक बैठकों में भी दिखाई दिए. ‘डीके बंधु’ योगेश्वर को शामिल करने के लिए तैयार थे, क्योंकि कांग्रेस के पास चन्नपटना में एक मजबूत उम्मीदवार की कमी थी और योगेश्वर के पास गौड़ा परिवार को चुनौती देने के लिए आदर्श साख थी.
नामांकन पत्र दाखिल करने से 48 घंटे पहले तक पार्टियों के बीच यह लड़ाई जारी रही और घटनाओं के इस व्यस्त मोड़ में, योगेश्वर ने कांग्रेस में शामिल होने से पहले बीजेपी और एमएलसी की अपनी सीट से इस्तीफा दे दिया. जबकि, जेडी(एस) ने निखिल को अपना उम्मीदवार घोषित करने के लिए चन्नपटना में एक भव्य रोड शो का आयोजन किया.
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गढ़ की हिफाजत
स्थानीय जानकारों का मानना है कि कुमारस्वामी अपने गढ़ में योगेश्वर को जगह देने के लिए तैयार नहीं थे, क्योंकि वे जेडी(एस) वर्कर्स को लंबे वक्त के फायदे के लिए अपने पक्ष में करने में काफी चतुर थे. निखिल निश्चित रूप से योगेश्वर को कड़ी टक्कर देंगे और जीत भी सकते हैं, क्योंकि अब उनके पास जेडी(एस) और बीजेपी दोनों पार्टी कार्यकर्ताओं का समर्थन है, जो उनके लिए काम कर रहे हैं.
जेडी(एस) के अंदरूनी सूत्रों का कहना है कि पार्टी सुप्रीमो देवेगौड़ा ने निखिल को मैदान में उतारने का आखिरी फैसला किया, क्योंकि "गौड़ा कभी भी किसी चुनौती से पीछे नहीं हटे हैं." निखिल ने खुद कुबूल किया: "अप्पाजी ने मुझसे कहा है कि वे मेरी सफलता के लिए 4 नवंबर से चन्नपटना की यात्रा करेंगे." पूर्व प्रधानमंत्री देवेगौड़ा भले ही 92 साल के हों, लेकिन सभी जानते हैं कि सियासत अभी भी उनकी रगों में दौड़ती है.
(इसलेख में व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं.)
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