रोहिंग्‍या मुसलमानों के बहाने समझिये इस्‍लामिक मुल्क क्‍यों कतराते हैं मुस्लिम शरणार्थीस्‍वीकार करने में । Opinion

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दुनिया में मुस्लिम जनसंख्या वाले सबसे बड़े देश इंडोनेशिया में प्रवेश करने की कोशिश कर रहे रोहिंग्या मुस्लिमों वहां के स्थानीय लोगों ने घुसने से रोक दिया है. लकड़ी की नाव में सवार होकर 140 भूखे रोहिंग्या मुस्लिम इंडोनेशिया के उत्तरी प्रांत आचे के तट से लगभग 1 मील (0.60 किलोमीटर) दूर उतरने की कोशिश कर रहे थे. दरअसल रोहिंग्या ही नहीं गाजा के मुसलमानों के लिए भी अरब देशों या किसी भी मुस्लिम देश के लोगों में सिर्फ संवेदना ही होती है . कोई भी उन्हें शरण देने को राजी नहीं होता है. इजरायल के हमले को देखते हुए फिलिस्‍तीनी लोगों ने जब मिस्र की ओर जाना चाहा तो मिस्र ने बॉर्डर सील कर दियाथा. पिछले कुछ सालों में लाखो्ं सीरियाई मुसलमानों ने यूपोपीय देशों में शरण ली है. आज भी कोई मुसलमान देश उन्हें अपने यहां बुलाने के लिए तैयार नहीं है. पाकिस्तान जैसा कट्टर इस्लामिल मुल्क भी अफगानी शरणार्थियों के साथ अच्छा सुलूक नहीं किया. उन्हें जबरन अफगानिस्तान भेज दिया. भारत में भी बांग्लादेशी मुसलमानों और रोहिंग्या मुसलमानों को लेकर जबरदस्त राजनीति होती रही है. नॉर्थ ईस्ट की पूरी डेमोग्रेफी ही इन शरणार्थियों के चलते गड़बड़ हो चुकी है. जो भारत मेंअशांति का प्रमुख कारण है. हाल ही सुप्रीम कोर्ट ने 1971 के बाद आए शरणार्थियों को वापस उनके घर भेजने का आदेश दिया है. पर क्या आपको लगता है कि हमारे देश में कभी यह संभव हो पाएगा?

पिछले साल ही गाजा शरणार्थियों के लिए मिस्र और तुर्की ने दिखाए थे तेवर

पिछले साल अक्टूबर में ही मिस्र गाजा के साथ अपनी राफा सीमा पर अपने सैनिकों की संख्‍या बढ़ा रहा था. कारण यह था कि मिस्र सोच रहा है कि अगर इजरायल के दबाव में गाजा से चलकर उसके देश में फिलिस्तीनी घुस गए तो उनकी सुरक्षा और अर्थव्यवस्था का क्या होगा.मिस्र के राष्ट्रपति चाहते थे कि गाजा में फिलिस्तिनियों को डटे रहना चाहिए ताकि उनकी जमीन पर उनका हक बना रहे. मिस्र ही नहीं दुनिया के कई मुस्लिम देशों भी ऐसा ही करते रहे हैं. तुर्की के तत्कालीन विदेश मंत्री ने भी तबमिस्र की बात से पूरी तरह सहमति जताई थी.अरब देश वैसे तो फिलिस्तिनियों को नागरिकता या शरण न देने के पीछे कई कारण देते हैं पर सबसे बड़ा कारण उन्हें अपने देश की डेमोग्रेफी गड़बड़ होने की आशंका ही रहती है. अरब देश फिलिस्तीनियों कोकाम के लिए तो स्वीकार कर लेते हैं, पर ऐसे काम ही देना पसंद करते हैंजो निम्न स्तर के हैं.

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जार्डन का उदाहरण सबके सामने है

जार्डन ने लाखों फिलिस्तिनियों को अपने देश मेंशरण दी बाद में वे जार्डन के शाह के ही दुश्मन हो गए.देखा जाए तो अरब देशों में जॉर्डन अकेला है, जिसने फिलिस्तीन के लोगों को स्थाई नागरिकता दी. हालांकि अस्सी के दशक के आखिर मेंउसने भी येबंद कर दिया.इजरायल का एक हिस्सा पश्चिम में जॉर्डन से सटा है, जो वेस्ट बैंक कहलाता है. यह भी फिलिस्तीनियों का इलाका है. वेस्ट बैंक से भागकर काफी सारे लोग एक समय पर जॉर्डन पहुंचे और वहां के नागरिक भी बन गए.

साल 1967 से पहले जॉर्डन वेस्ट बैंक को अपना हिस्सा मानता था. यही वजह है कि इस दौरान और इसपर इजरायल के आने के बाद भी लगभग 2 दशक तक वो लोगों को नागरिकता देता रहा. ये सिर्फ वही फिलिस्तीनी थे वेस्ट बैंक में रहते थे. गाजा पट्टी से जॉर्डन का कोई वास्ता नहीं था. इसलिए देखा जाए तो जॉर्डन भी मुस्लिम होने के आधार पर उन्हें शरण दे रहा था यह तो नहीं ही कहा जाएगा.क्यों कि इस्लामी आधार पर या मानवीय आधार पर अगर जॉर्डन वेस्ट बैंक वालों क नागरिकता दे रहा था तो गाजा वालों को सिटिजनशिप देने में उसे क्या दिक्कत थी? यही बात उसके खिलाफ भी जाती है कि वो एक तरफ के फिलिस्तीनियों को अपने यहां बसा रहा है, जबकि दूसरी तरफ से कोई सरोकार नहीं रखता. हालांकि जब वेस्ट बैंक से आए ये मुसलमान जॉर्डन के शाह के खिलाफ ही काम करने लगे तो यहां भी उनकी न केवल रोक लगी बल्कि जिन लोगों को नागरिकता मिल गई थी उनसे छीनी भी गई. दरअसलजॉर्डन की अपनी इकनॉमी अस्थिर हो रही थी. साथ ही स्थानीय और नए लोगों में फसाद भी होने लगा था. तभी जॉर्डन सरकार ने एक फैसला लिया. वो ऐसे लोगों की नागरिकता लेने लगी, जो मुश्किलें पैदा कर रहे थे.

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ईसाई देश ईसाइयों को शरण दे रहे हैं , भारत जैसा देश हिंदुओं को शरण दे रहा है तो मुस्लिम देश क्यों नहीं?

सीरिया संकट के समय यह देखने में आया कि मध्य एशिया में उन्हें जगह नहीं मिली.यूरोप के कई देशों ने ना नुकर करते हुए लाखों शराणार्थियों को पनाह दिया. अधिकतर इस्लामी देश इन्हें अपने यहां शरण देने को तैयार नहीं थे. हालांकि पूर्वी यूरोप के कुछ ऐसे देश भी हैं जिन्होंने धर्म के आधार पर शरणार्थियों को चुनने की नीति बनाई.स्लोवाकिया , पोलैंड, बुल्गारिया आदि देशों ने खुलकर कहा कि उन्हें ईसाई शरणार्थी मंजूर होंगे पर मुस्लिम नहीं.बल्गेरियाई प्रधान मंत्री ने भी कहा था कि हम मुसलमानों के खिलाफ लेकिन मुस्लिम शरणार्थियों को स्वीकार करने से देश की धार्मिक संरचना में बदलाव आ सकता है. एस्टोनियाई ने भी मुस्लिम प्रवासियों को लेने के खिलाफ तर्क देते हुए कहा, "आखिरकार, हम ईसाई संस्कृति से संबंधित देश हैं. भारत ने भी सीएए कानून में ऐसा प्रावधान किया है कि आस पड़ोस के देशों में अगर हिंदुओं को सताया जा रहा है तो वो भारत में शरण ले सकते हैं उनको नागरिकता भी दी जाएगी. ऐसा कानून मुस्लिम देशों को भी क्यों नहीं बनाना चाहिए?

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मनोज शर्मा

मनोज शर्मा (जन्म 1968) स्वर्णिम भारत के संस्थापक-प्रकाशक , प्रधान संपादक और मेन्टम सॉफ्टवेयर प्राइवेट लिमिटेड के मुख्य कार्यकारी अधिकारी हैं।

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