16 अक्टूबर को गाजा में चल रहे युद्ध में एक और बड़ी जीत हासिल करते हुए इजरायली सेना ने हमास के नेता याह्या सिनवार को मुठभेड़ में मार गिराया. पिछले एक साल से, खासकर 30 जुलाई के बाद से, इजरायल की रणनीति में हमास और हिजबुल्लाह के बड़े नेताओं को मारना एक आम तरीका बन गया है, ताकि दुश्मन कमजोर हो सके. इससे पहले लेबनान में हिजबुल्लाह पर हुए हमलों और उसके नेता हसन नसरल्लाह की हत्या इस जंग के अहम मोड़ रहे हैं.
वैसे ये तरीका कोई नया नहीं है. इजरायल हमेशा से हमास और हिजबुल्लाह के बड़े नेताओं पर नजर रखता है और सही समय पर उन्हें खत्म कर देता है. पिछले साल 25 दिसंबर को, तीन महीने चले युद्ध के बाद, दमिश्क (सीरिया) में ईरान के एक बड़े सैन्य कमांडर सैयद रजी मूसवी मारे गए थे. वे कुद्स फोर्स के जनरल थे और कासिम सुलेमानी के बाद सबसे बड़े नेता माने जाते थे.
2 जनवरी को हमास के दूसरे बड़े नेता सालेह अल-अरूरी, जो वेस्ट बैंक में हमास के सैन्य विंग के नेता थे, को बेरूत (लेबनान) में इजरायली हमले में मार दिया गया. फिर 4 जनवरी को इराक की राजधानी बगदाद में अमेरिकी ड्रोन हमले से हरकत अल-नुजाबा के उप कमांडर मुश्ताक तालीब अल-सैदी मारे गए. इसके बाद 1 अप्रैल को दमिश्क में ईरानी कौंसलेट पर हुए इजरायली हमले में ईरान के बड़े कमांडर मोहम्मद रजा जाहेदी की मौत हुई.
लेकिन सबसे बड़ा हमला 30 जुलाई को हुआ, जब नए ईरानी राष्ट्रपति के शपथ ग्रहण के दिन हमास के राजनीतिक नेता इस्माइल हनियेह को उनके घर पर मार गिराया गया. उसी रात हिजबुल्लाह के बड़े सैन्य नेता फुआद शुकर को भी मार दिया गया. इसके बाद सितंबर में हिजबुल्लाह के कई बड़े नेताओं को खत्म किया गया, जिसमें 27 अगस्त को हसन नसरल्लाह भी मारे गए.
क्या ये तरीका काम कर रहा है?
बड़े नेताओं की हत्या से संगठन के लोगों का मनोबल गिरता है, इसमें कोई शक नहीं. हिजबुल्लाह के मामले में पूरे नेतृत्व का सफाया और इसकी संचार प्रणाली को तबाह करना एक बड़ा झटका था. इस मौके का फायदा उठाकर इजरायली सेना ने लेबनान में जमीनी हमला किया ताकि उत्तरी इजरायल में लोग वापस लौट सकें. इजरायल में सभी को ये साफ था कि जब तक हिजबुल्लाह फिर से तैयार न हो, तब तक इसका पूरा फायदा उठाया जाए.
लेकिन, इजरायली सेना को रोक दिया गया और उन्हें भारी नुकसान भी हुआ. मर्कवा टैंकों को भी नुकसान पहुंचा. हिजबुल्लाह के रॉकेट और मिसाइल हमलों की तीव्रता बढ़ गई है, जिससे इजरायल के हाइफा, किरयात शमोना, अकरी और तेल अवीव को भी नुकसान हो रहा है. गाजा में भी नेताओं की हत्या के बावजूद हमास का प्रतिरोध जारी है और इजरायली सेना को हर दिन नुकसान उठाना पड़ रहा है. हमास को खत्म करने का इजरायल का सपना अब भी दूर है.
यह रणनीति इजरायल के खिलाफ भी जा रही है. ईरान और उसके समर्थक इस मौके का फायदा उठाकर और ज्यादा लड़ाके तैयार कर रहे हैं. दूसरी बात, इजरायल पहले से ही युद्ध में नागरिकों की मौत को लेकर अंतरराष्ट्रीय दबाव में है. इन हत्याओं की वजह से कई देश अब इसके खिलाफ खुलकर बोल रहे हैं और ईरान का समर्थन कर रहे हैं.
क्या कभी हत्याओं से जीत मिली है?
सबसे बड़ा उदाहरण अफगानिस्तान है. अमेरिका ने ओसामा बिन लादेन को मारकर क्या अफगानिस्तान से अल-कायदा और तालिबान को हटा दिया? बिल्कुल नहीं. उल्टा, 2021 में अमेरिका को वहां से जल्दबाजी में निकलना पड़ा और तालिबान ने फिर से सत्ता हासिल कर ली, और हालत पहले से भी बदतर हो गई.
इराक में सद्दाम हुसैन की हत्या का भी यही नतीजा हुआ. क्या इराक में शांति और स्थिरता आई? नहीं. पिछले दो दशकों में इराक लगातार अस्थिर रहा है और ईरान का करीबी बन गया है, जिससे अमेरिका और इजरायल नाखुश हैं.
लीबिया का उदाहरण देखिए, गद्दाफी की हत्या के बाद क्या लीबिया में शांति आई? बिल्कुल नहीं. लीबिया अब भी अस्थिर है और वहां कोई पक्का नेतृत्व नहीं है.
अब क्या करना चाहिए?
चाहे पारंपरिक सेनाओं से लड़ाई हो या मिलिशिया और प्रॉक्सी समूहों से, जंग तभी जीती जा सकती है जब साफ-सुथरे और हासिल करने योग्य लक्ष्य हों. इजरायल ने पहले छोटे और तेज युद्धों से ऐसी जंगें जीती हैं.
लेकिन इस बार इजरायल के युद्ध के लक्ष्य अवास्तविक हैं. इजरायल के जनरलों और युद्ध कैबिनेट के सदस्यों ने भी इस पर सवाल उठाए हैं. 9 जून को इजरायल के नेशनल यूनिटी पार्टी के नेता बेनी गैंट्ज ने युद्ध कैबिनेट से इस्तीफा दे दिया, क्योंकि वे इन लक्ष्यों से सहमत नहीं थे. बाद में 19 जून को इजरायल के रियर एडमिरल डैनियल हागारी ने कहा कि "हमास को पूरी तरह खत्म करने की बात लोगों को बहकाने जैसा है."
हिजबुल्लाह और हमास जैसे संगठन जो लोगों के उत्पीड़न पर आधारित विचारधारा से पैदा हुए हैं, उनके लिए ऐसी हत्याएं केवल और ज्यादा गुस्सा और नफरत पैदा करती हैं, और उनका संघर्ष करने का संकल्प और मजबूत कर देती हैं. ये संगठन अपनी अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे हैं. उनके पास खोने के लिए कुछ भी नहीं है. इस तरह के हमलों से उनके समर्थक जैसे ईरान को और ज्यादा लड़ाई बढ़ाने का मौका मिलता है, जिससे जंग का समाधान और मुश्किल हो जाता है.
इजरायल को सोचना होगा कि क्या ये हत्याएं उसके युद्ध के लक्ष्यों को पूरा करने में मदद कर रही हैं या नहीं. हर हमास, हिजबुल्लाह या आईआरजीसी नेता की हत्या प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू के लिए एक राजनीतिक जीत मानी जा सकती है, लेकिन क्या इससे बंधकों को वापस लाने का काम आसान हो रहा है? नए नेता अक्सर ज्यादा आक्रामक होते हैं और बातचीत से दूरी बनाते हैं, जिससे शांति और मुश्किल हो जाती है.
इजरायल को अपने युद्ध के लक्ष्यों के बारे में फिर से सोचना चाहिए और उन्हें ज्यादा स्पष्ट और हासिल करने योग्य बनाना चाहिए. युद्ध खत्म करने का सही समय अभी हो सकता है. शीर्ष नेताओं की हत्या जंग जीतने का सही तरीका नहीं हो सकता.
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