प्रशांत किशोर को नये रोल में खुद को आजमाने का एक बेहतरीन मौका मिला है. बिहार चुनाव 2025 के ठीक एक साल पहले 4 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव होने जा रहे हैं - और प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी सभी सीटों पर चुनाव लड़ रही है.
पीके के नाम से चुनाव रणनीतिकार के रूप में देश की राजनीति में शोहरत हासिल कर चुके प्रशांत किशोर ने 2 अक्टूबर को जन सुराज पार्टी के गठन का औपचारिक ऐलान किया था, और ये उपचुनाव उनके पहले इम्तिहान के चार सेमेस्टर की तरह हैं. तरारी विधानसभा के लिए उम्मीदवार की घोषणा पहले ही कर चुके प्रशांत किशोर ने कहा है कि वो बेलागंज, इमामगंज और रामगढ़ सभी सीटों पर प्रत्याशी उतारेंगे - सभी सीटों पर पीके की पार्टी का मुकाबला NDA और INDIA ब्लॉक के उम्मीदवारों से होगा.
तरारी में सीपीआई के सुदामा प्रसाद, बेलागंज में आरजेडी के सुरेंद्र यादव, इमामगंज में हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा के जीतनराम मांझी और रामगढ़ में आरजेडी के सुधाकर सिंह के लोकसभा पहुंच जाने से ये चारों सीटें खाली हुई हैं. सभी सीटों पर 13 नवंबर को वोटिंग होगी, और 23 नवंबर को चुनाव नतीजे आएंगे.
ये पीके का पहला इम्तिहान क्यों है?
अब तक पीके पर अपने क्लाइंट को चुनाव जिताने की जिम्मेदारी हुआ करती थी, पहली बार खुद चुनाव जीतने का दारोमदार आ गया है. वैसे पीके ने अपनी भूमिका में अभी ज्यादा बदलाव नहीं किया है, फर्क बस इतना ही है कि पहले कोई भी कदम उठाने के लिए मंजूरी लेनी पड़ती थी, अब खुद जोखिम लेकर कदम बढ़ाना पड़ रहा है - और ये सब तो जोखिमभरा होता ही है.
प्रशांत किशोर कहते हैं, अब कोई इसे सेमीफाइनल कह ले, या फाइनल. जन सुराज इसी उपचुनाव में बता देगी कि हमारी ताकत क्या है? जन सुराज के साथ बिहार की जनता खड़ी हो चुकी है. लोगों के मन में उम्मीद है... और इसी उम्मीद पर इस बार के उपचुनाव में नतीजे सामने आने वाले हैं.
एक बात तो है. प्रशांत किशोर हर बात का जवाब दे रहे हैं. चाहे वो खुद के ब्राह्मण होने को लेकर उठाये जाने वाले सवाल हों, या कारोबारी बताये जाने वाले. कहते हैं, 'हां, हम व्यापारी हैं... हम अपना सामान बेच रहे हैं... हम अपना विचार बेच रहे हैं... हमारा विचार है कि हम युवाओं का पलायन रोकें... बिहार के लोगों को बिहार में ही रोजगार दें... सब लोग मिलकर कंधा लगाएं और एक नए बिहार की स्थापना करें.
और साथ ही, अपनी सारी बातें सोशल मीडिया पर भी लगातार शेयर कर रहे हैं. X पर उनकी पार्टी जन सुराज की तरफ से वादा किया गया है, 'दिवाली में घर की और राजनीति में हक मारने वाले नेताओं की सफाई जरूरी!'
प्रशांत किशोर जन सुराज अभियान की शुरुआत से ही राजनीति में काबिलियत की अहमियत को मुद्दा बनाते आ रहे हैं, क्योंकि उनको तेजस्वी यादव को टारगेट करना होता है. बिहार विधानसभा में विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव को 'नौंवी फेल' बताने के साथ ही वो आरजेडी नेता लालू यादव को 'परिवारवाद की राजनीति' के नाम पर घेरते हैं - ये बात अलग है कि ऐसा करने से सिर्फ प्रशांत किशोर को ही फायदा नहीं होता. परिवारवाद की राजनीति के मुद्दा बनने पर फायदा उठाने वाले और भी हैं. मसलन, भारतीय जनता पार्टी को भी फायदा हो जाता है, जबकि उपचुनावों में प्रशांत किशोर को बीजेपी से भी मुकाबला करना है.
जब मनोज भारती को प्रशांत किशोर ने जन सुराज की कमान सौंपने की घोषणा की तो जोरशोर से काबिलियत का ही जिक्र किया, और वैसे ही जब तरारी से फौजी अफसर श्रीकृष्ण सिंह को उम्मीदवार बनाया तब भी योग्यता पर ही जोर रहा. जातीय समीकरणों को साध लेने की कला तो उनको आती ही है.
बिहार में उपचुनावों के माहौल में सोशल मीडिया के जरिये वो अपनी पुरानी बात याद दिलाना नहीं भूलते, 'अगले छठ में जो लड़का बिहार लौटेगा, उसे 10-12 हजार कमाने के लिए पलायन नहीं करना पड़ेगा.'
जन सुराज जैसा उम्मीदवार मैदान में उतारने का चैलेंज
एक खास मौके पर जन सुराज पार्टी के कार्यकारी अध्यक्ष मनोज भारती ने उपचुनाव के लिए पहले प्रत्याशी का ऐलान किया, तरारी विधानसभा सीट से जन सुराज के टिकट पर रिटायर्ड लेफ्टिनेंट जनरल एसके सिंह ताल ठोकेंगे.
और फिर प्रशांत किशोर अपनी बात पर आ गये, एसके सिंह काबिल उम्मीदवार हैं... और बाकी तीनों विधानसभा सीटों पर भी हम काबिल कैंडिडेट्स को ही जन सुराज का प्रत्याशी बनाएंगे... हम चुनौती देते हैं कि दूसरी पार्टियां एसके सिंह से काबिल उम्मीदवार ढूंढ कर दिखा दें!
श्रीकृष्ण सिंह के बारे में ये चर्चा रही है कि लोकसभा चुनाव 2024 में बीजेपी श्रीकृष्ण सिंह को बिहार की आरा लोकसभा सीट से चुनाव लड़ाना चाह रही थी, लेकिन कुछ निजी कारणों से उन्होंने ये ऑफर ठुकरा दिया था. रिटायर्ड लेफ्टिनेंट जनरल श्रीकृष्ण सिंह भोजपुर जिले के करथ गांव के निवासी हैं, और बेहद सख्त छवि के सेना के अधिकारी माने जाते हैं.
तरारी विधानसभा सीट के लिए जन सुराज पार्टी के उम्मीदवार श्रीकृष्ण सिंह को लेकर प्रशांत किशोर ने कहा कि ये मेरा पहला उदाहरण है. बोले, जिस तरारी की पहचान भू-माफिया और अपराधों से रहा है... उसी तरारी में एसके सिंह खड़े हैं.
प्रशांत किशोर ने कहा कि एसके सिंह तरारी की जनता को माफिया से मुक्ति दिलाएंगे... और हम लोग जनरल साहब के पीछे चलेंगे, और लगे हाथ यहां तक कह डाला कि अगर किसी और पार्टी की ओर से जनरल एसके सिंह से बेहतर कैंडिडेट मिलेगा, तो हम उसका समर्थन करेंगे.
बेलागंज में जन सुराज के लिए संभावना क्यों है
तरारी की लड़ाई कैसी होती है ये तो अभी नहीं मालूम, लेकिन बेलागंज और रामगढ़ को लेकर बिहार की राजनीति के जानकार प्रशांत किशोर के लिए बड़ी संभावना जता रहे हैं. देखना ये है कि रामगढ़ में प्रशांत किशोर स्थानीय जातिगत समीकरणों में कैसे अपना उम्मीदवार फिट कर पाते हैं.
रामगढ़ आरजेडी की सीट रही है. 2015 में बीजेपी की जीत को छोड़ दें तो लंबे अर्से से रामगढ़ पर आरजेडी का ही कब्जा रहा है. आरजेडी के प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद सिंह के बेटे सुधाकर सिंह के लोकसभा चले जाने के बाद यहां उपचुनाव हो रहा है - जहां यादव और मुस्लिम के साथ साथ ठाकुर वोट भी हैं. अगर प्रशांत किशोर ऐसा उम्मीदवार लाते हैं जो यादव वोटों में बंटवारे की सूरत में मुस्लिम वोट भी जुटा ले तो जन सुराज के लिए रामगढ़ में अच्छी संभावना बनती है.
बेलागंज में अभी न तो जन सुराज के उम्मीदवार की घोषणा हुई है, और न ही दूसरे राजनीतिक दलों की ओर से. बेलागंज से सुरेंद्र यादव 90 के दशक से विधायक बनते आ रहे हैं. सुनने में आया है कि जेडीयू की तरफ से मनोरमा देवी या उनके परिवार से किसी उम्मीदवार बनाया जा सकता है.
ये भी सुनने में आया है कि प्रशांत किशोर बेलागंज से कोई मुस्लिम उम्मीदवार चुनाव मैदान में उतार रहे हैं. बेलागंज में अगर यादव वोटों का बंटवारा हुआ तो आरजेडी और जेडीयू दोनो को नुकसान हो सकता है. ऐसे में प्रशांत किशोर का मुस्लिम कार्ड चल सकता है.
वैसे भी प्रशांत किशोर ने बिहार विधानसभा चुनाव में जन सुराज की तरफ से 40 मुस्लिम उम्मीदवार उतारने का ऐलान कर रखा है, और पीके अपना ये सिक्का चला लेते हैं, तो बिहार में पहली ही बार में जन सुराज का खाता खुल सकता है.
और सबसे महत्वपूर्ण बात - प्रशांत किशोर उपचुनाव में कोई विधानसभा सीट जीतें या न जीतें, वोट शेयर जरूर बताएगा कि बिहार में जन सुराज का भविष्य क्या है?
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