मिल्‍कीपुर उपचुनाव को योगी आदित्यनाथ ने बना लिया नाक का सवाल, देना चाहते हैं ये 5 संदेश । Opinion

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चुनाव आयोग ने मंगलवार को उत्तर प्रदेश के लिए भी विधान सभा उपचुनावों का ऐलान कर दिया है. कुल 10 सीटों पर उपचुनाव होने थे पर अयोध्या की मिल्कीपुर सीट पर उपचुनाव की घोषणा न होने से उत्तर प्रदेश में राजनीति गरम हो गई है.बावजूद इसके कि चुनावआयोग ने स्‍पष्‍ट कर दिया कि पिछले विधानसभी चुनाव के दौरान अनियमितता के आरोप वाली एक याचिका के कोर्ट में लंबित रहतेवहमिल्कीपुर में चुनाव कराने में असमर्थ है. पर विपक्ष का कहां मानने वाला था. विपक्ष की ओर से कहा गया किबीजेपी को ऐसा लग रहा है कि वह मिल्कीपुर चुनाव हार जाएगी इसलिए जानबूझकर यहां चुनाव नहीं कराए जा रहे हैं. प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव ने एक्स पर तंज कसाकि 'जिसने जंग टाली है,समझो उसने जंग हारी है.'

दूसरी तरफ खबर आ रही है कि मिल्कीपुर विधानसभा चुनाव में अनियमितता के संबंध में याचिका दायर करने वाले बीजेपी नेता गोरखनाथ बाबा ने अपनी याचिका वापस लेने का फैसला कर लिया है. बताया जा रहा है कि उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ चाहते हैं कि मिल्कीपुर में भी चुनाव अन्य 9 जगहों के साथ हीकराएं जाएं. यानि कि प्रदेश की अन्य नौ सीटों पर होने वाले उपचुनाव के साथ ही 13 नवंबर को मिल्कीपुर के लिए भी वोटिंग हो जाए. पर सवाल उठता है कि आखिर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ मिल्कीपुर को लेकर इतनी जल्दबाजी में क्यों हैं?

1- अयोध्‍या का बदला

दरअसल लोकसभा चुनावों में अयोध्या की हार को अभी तक भारतीय जनता पार्टी भूली नहीं है.सीएम योगी आदित्यनाथ के लिए भी यह एक बहुत बड़ा झटका था. दूसरी बार मुख्यमंत्री पद संभालने के बाद सीएम योगी ने सर्वाधिक यात्राएं अयोध्या की ही की थीं.प्रदेश में ही नहीं बल्कि पूरे देश की गिनती की जाए तो जितना विकास अयोध्या में हुआ था उतना विकास भी कहीं नहीं हुआ था. लोकसभा चुनावों से कुछ दिन पहले ही अयोध्या में श्रीराम मंदिर का भी शिलान्यास हुआ था. जो इस क्षेत्र के लिए बहुत बड़ी उपलब्धि थी. लाखों टूरिस्टों के आवागमन का रास्ता क्लीयर होने के चलते हजारों लोगों को रोजी रोजगार के भी रास्ते यहां खुले. पर अयोध्या लोकसभा सीट बीजेपी नहीं जीत सकी. अयोध्या सीट से जीतने वाले अवधेश पासी समाजवादी पार्टी के प्रत्याशी थे और उन्होंने यह सीट जीतकर इतिहास रच दिया.

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योगी आदित्यनाथ इस कलंक को धुलना चाहते हैं. शायद इसलिए ही वो उन्होंने इस विधानसभा सीट को अपने लिए प्रतिष्ठा का प्रश्न बना लिया है. वो लगातार यहां विकास कार्य करवा रहे हैं. रोजगार मेला लगवा रहे हैं. करीब आधा दर्जन मंत्री यहां पर कैंपिंग कर रहे हैं.यहां किहार ने योगी की छवि को न केवल प्रदेश में बल्कि में पार्टी में भी डेंट किया. जाहिर है कि योगी चाहते हैं कि अयोध्या को जीतकर अपने उस दाग को धों दें.

2- लोकसभा चुनाव के बाद लगे थे गुटबाजी के आरोप

लोकसभा चुनावों में हार के कारणों के विश्लेषण में यह सामने आया था कि पार्टी में बहुत ऊंचे लेवल पर गुटबाजी चल रही थी. योगी के दोनों डिप्टी खुलकर अपने कैप्टन के खिलाफ बोल रहे थे.योगी यह साबित करना चाहते हैं कि उन्हें गुटबाजी को हैंडल करने आता है. शायद यही कारण है कि इस बार उन्होंने ऐसे लोगों को जो पार्टी के अंदर उन्हें आगे बढते नहीं देखना चाहते मिल्कीपुर और अन्य सीटों पर जहां उपचुनाव होने हैं वहां से दूर ही रखा है. योगी आदित्यनाथ ने हर विधानसभा सीट जहां उपचुनाव होना है वहां के लिए खुद मंत्रियों ड्यूटी लगाई है. मिल्कीपुर और अयोध्या में वे लगातार करीब दर्जन भर बार वो जा चुके हैं. मिल्कीपुर में रोजगार मेला भी लग चुका है. अयोध्या की एक दलित लड़की के साथ रेप होने पर उसे न्याय दिलाने के लिए योगी ने खुद मोर्चा संभाल लिया.

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3- योगी आदित्‍यनाथ को वापस पाना है अपना चुनाव जिताऊ रुतबा

सीएम योगी अपने आप को प्रूव करना चाहते हैं. पूरे देश में चुनाव प्रचार के लिए उनकी डिमांड होती है. चाहे लोकसभा चुनाव हो या विधानसभा चुनाव उनकी मांग उत्तर में कश्मीर से लेकर दक्षिण में कुर्ग तक में होती है. नॉर्थ ईस्ट हो या पश्चिम में गुजरात और महाराष्ट्र हर कोई चाहता है कि योगी आदित्यनाथ उनके क्षेत्र में आकर अपनी सभा करें. पर जब खुद उनके स्टेट की बात आई तो वो अपनी पार्टी के उपयोगी नहीं सिद्ध हो सके. जाहिर है कि उन्हें यह दुख हमेशा सालता होगा. शायद यही कारण है कि मिल्कीपुर ही नहीं अन्य 9 सीटों को लेकर भी वो उतने ही गंभीर हैं.

4- भाजपा के भीतर योगी को एक लेवल ऊपर जाना है तो प्रदर्शन सुधारना होगा

दरअसल बीजेपी में सबसे युवा नेताओं में से योगी आदित्यनाथ एक हैं. अभी उनके पास तीन दशक की राजनीति बची हुई है. जबकि भारतीय जनता पार्टी में अधिकतर बड़े नेता अब रिटायरमेंट की ओर जा रहे हैं. योगी आदित्यनाथ को पता है कि अगर बीजेपी में लंबी पारी खेलनी है तो उन्हें चुनाव जिताऊ छवि बनानी होगी. उत्तर प्रदेश लोकसभा चुनावों में पार्टी को अपेक्षित सफलता न दिला सकने के पीछे चाहे जो कारण रहे हों किरकिरी तो सबकी हुई है. एक दो और हार मिलने पर वो पार्टी में हाशिए पर जा सकते हैं. यह कांग्रेस नहीं है कि राहुल गांधी को हार पर हार के बाद भी पार्टी के नेतृत्व उनके ही हाथ में है. पार्टी में चुनाव जिताऊ छवि बनाए रखनी है तो मिल्कीपुर सहित सभी विधानसभाएं जहां उपचुनाव होने जा रहे हैं उन्हें जीतना होगा. बीजेपी एक लेवल और ऊपर जाने का रास्ता भी तभी खुलेगा जब वो उपचुनावों को जीतकर पार्टी को यकीन दिला सके कि उन्हें चुनाव जिताने भी आता है.

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5- दलित-ओबीसी में लोकप्रियता का पैमाना बनेगा सु‍रक्षित सीटमिल्‍कीपुर का नतीजा

मिल्कीपुर एक सुरक्षित सीट है. समाजवादी पार्टी ने यहां से अयोध्या के सांसद और मिल्कीपुर के पूर्व विधायक अवधेश प्रसाद के बेटे को टिकट दिया है.जाहिर है कि विपक्ष की ओर से कोई कमजोर प्रत्याशी नहीं है. मिल्कीपुर सीट पर दलितों की आबादी अच्छी खासी है.इस विधानसभा क्षेत्र में अनुमानों के मुताबिक करीब 36 फीसदी सामान्य वर्ग के मतदाता हैं. यहां ओबीसी वर्ग के 34, अनुसूचित जाति के 20 फीसदी और 9 फीसदी से जज्यादा मुस्लिम मतदाता हैं. जातीय आधार पर देखें तो 2022 के विधानसभा चुनाव में मिल्कीपुर विधानसभा क्षेत्र में कुल 3 लाख 69 हजार मतदाता थे. अनुमानों के मुताबिकइस विधानसभा क्षेत्र में करीब 60 हजार ब्राह्मण, 55-55 हजार यादव और पासी, 30 हजार मुस्लिम, 25 हजार ठाकुर मतदाता हैं. चूंकि यादव और मुस्लिम सपा के परंपरागत वोटर माने जाते हैं और पासी जाति का कैंडिडेट होने के नाते पासियों का वोट समाजवाद पार्टी की ओर जा सकता है. अगर बीजपी यह सीट जीत लेती है तो पूरे देश को यह संदेश जाएगा कि बीजेपी की पकड़ दलित और ओबीसी वोटों पर बरकरार है. बीजेपी के लिए आज इस तरह का नरेटिव तैयार करना बहुत जरूरी हो गया है.

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मनोज शर्मा

मनोज शर्मा (जन्म 1968) स्वर्णिम भारत के संस्थापक-प्रकाशक , प्रधान संपादक और मेन्टम सॉफ्टवेयर प्राइवेट लिमिटेड के मुख्य कार्यकारी अधिकारी हैं।

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