फारूक अब्दुल्ला को भले लगता हो कि PDP साथ आ रही है लेकिन महबूबा कन्फ्यूज हैं | Opinion

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एग्जिट पोल को सिर्फ वे नेता खारिज करते हैं, नतीजे जिनके खिलाफ होते हैं. जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव के लिए कराये गये एग्जिट पोल सर्वे ने नेशनल कांफ्रेंस और कांग्रेस गठबंधन के बहुमत के करीब होने की भविष्यवाणी की है. यही वजह है कि फारूक अब्दुल्ला कोे भी अपनी पार्टी के सत्ता में आने की बात पर यकीन हो गया है - और ऐसा ही पीडीपी खेमे में भी समझा जा रहा है.

नेशनल कांफ्रेंस नेता फारूक अब्दुल्ला ने सरकार बनाने को लेकर पीडीपी की तरफ से मिले सकारात्मक संकेत का खुले दिल से स्वागत किया है - लेकिन, मुश्किल ये है कि महबूबा मुफ्ती की तरह से अभी तक साफ तौर पर कुछ भी नहीं बताया गया है.

C-Voter के एग्जिट पोल में नेशनल कांफ्रेंस-कांग्रेस गठबंधन को 40-48 सीटें मिलने का अनुमान है, जबकि बीजेपी को 27 से 32 सीटें मिल सकती हैं. पीडीपी को 6-12 सीटें, और निर्दलीयों को भी 6-11 सीटें मिलती नजर आ रही हैं.

फारूक अब्दुल्ला और मुफ्ती का रुख अलग अलग क्यों?

नेशनल कॉन्फ्रेंस अध्यक्ष फारूक अब्दुल्ला ने नेशनल कांफ्रेंस और कांग्रेस के मिलकर सरकार बनाते देख खुशी का इजहार किया है.

फारूक अब्दुल्ला ने इस बात पर भी खुशी जताई है कि महबूबा मुफ्ती की पार्टी पीडीपी गठबंधन के साथ जुड़ने को तैयार है. नेशनल कांफ्रेंस नेता का कहना है, पीडीपी हमसे जुड़ने के लिए तैयार है, ये अच्छी बात है.

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असल में, पीडीपी नेता जुहैब यूसुफ मीर ने एग्जिट पोल के नतीजे सामने आने के बाद कहा था कि बीजेपी को सत्ता से बाहर रखने के लिए वो नेशनल कॉन्फ्रेंस और कांग्रेस के साथ गठबंधन करने के लिए तैयार हैं.

पीडीपी नेता के बयान पर ही फारूक अब्दुल्ला कहने लगे, उनको बधाई… उनकी सोच अच्छी है, हम सभी एक राह पर हैं… नफरत को हमें खत्म करना है, और जम्मू-कश्मीर को एकजुट रखना है.

लेकिन फारूक अब्दुल्ला की ये खुशी पीडीपी उम्मीदवार इल्तिजा मुफ्ती से बर्दाश्त नहीं हो पाई. इल्तिजा मुफ्ती, महबूबा मुफ्ती की बेटी हैं, और बिजबेहड़ा से विधानसभा चुनाव वो भी लड़ रही हैं.

इल्तिजा मुफ्ती से खास तौर पर इसी मसले पर सोशल साइट X पर एक पोस्ट लिखकर जुहैब यूसुफ मीर की बातों को खारिज करने की कोशिश की है. जुहैब यूसुफ मीर भी पीडीपी के सीनियर नेता हैं, और लाल चौक से चुनाव मैदान में हैं.

इल्तिजा मुफ्ती ने लिखा है, मुझे रिकॉर्ड सीधे रखने दीजिये… नतीजे आने के बाद ही पीडीपी का सीनियर नेतृत्व सेक्युलर मोर्चे को समर्थन देने पर फैसला करेगा.

खास बात ये है कि इल्तिजा मुफ्ती ने ये भी बताया है कि ये पीडीपी का आधिकारिक स्टैंड है.

मतलब, जुहैब यूसुफ मीर का बयान गठबंधन के साथ जाने को लेकर उनकी निजी राय हो गई - और, एक तरीके से इल्तिजा मुफ्ती ने फारूक अब्दुल्ला के वेलकम नोट को भी खारिज कर दिया है.

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गुंजाइश सिर्फ ये बची है कि इस मसले पर महबूबा मुफ्ती ने कहीं कुछ नहीं कहा है, या कोई कोई रिएक्शन नहीं दिया है. हो सकता है, महबूबा मुफ्ती किसी खास रणनीति पर विचार कर रही हों - वैसे भी अंतिम नतीजे आने से पहले ऐसी बातों का तो कोई मतलब भी नहीं है.

जम्मू-कश्मीर में एक बार के पीडीपी-बीजेपी गठबंधन की सरकार को छोड़ दें तो अब्दुल्ला और मुफ्ती परिवार की राजनीति हमेशा ही एक-दूसरे के खिलाफ रही है. लेकिन, ये भी है कि कांग्रेस के अलावा पूरी सियासत दोनो परिवारों के इर्द गिर्द ही घूमती रही है.

2019 में जम्मू-कश्मीर से धारा 370 हटाये जाने के बाद नेशनल कांफ्रेंस और पीडीपी एक ही बैनर, गुपकार गठबंधन तले आ गये थे. काफी दिनों तक बैठकें भी होती रहीं, और साथ में चुनाव लड़ने तक की बातें होती रहीं.

तब तो फारूक अब्दुल्ला ने कहा भी था कि सभी एक साथ चुनाव लड़ेंगे. और पीडीपी की तरफ से महबूबा मुफ्ती ने भी ऐसी ही राय जाहिर की थी. महबूबा मुफ़्ती का कहना था, हम एक साथ चुनाव लड़ने का इरादा रखते हैं… क्योंकि ये लोगों की इच्छा है कि हमें अपनी खोये हुए सम्मान की बहाली के लिए मिलकर प्रयास करना चाहिये.

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जब चुनावों से पहले गठबंधन होते होते रह गया

जब चुनावी गठबंधन के लिए राहुल गांधी और मल्लिकार्जुन खड़गे जम्मू-कश्मीर पहुंचे थे, तभी पीडीपी नेता नईम अख्तर का बयान आया था. राहुल गांधी की तारीफ करते हुए नईम अख्तर ने कांग्रेस नेता से काफी उम्मीद जताई थी.

अंदर क्या हुआ ये तो सामने नहीं आया, लेकिन अचानक नेशनल कांफ्रेंस और कांग्रेस के बीच चुनावी गठबंधन और सीटों के बंटवारे की भी घोेषणा कर दी गई - और पीडीपी उसी वक्त गठबंधन से दूर नजर आने लगी.

महबूबा मुफ्ती भी पीडीप के अकेले चुनाव लड़ने की बातें करने लगीं. लेकिन तभी ये भी कहा कि उनकी पार्टी कांग्रेस और नेशनल कांफ्रेंस गठबंधन को पूरा समर्थन देगी, बशर्ते - गठबंधन को भी पीडीपी का एजेंडा कबूल हो, और अगर ऐसा मुमकिन हुआ तो पेशकश यहां तक थी कि जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव में पीडीपी गठबंधन की राह में अड़ंगा नहीं डालेगी.

महबूबा मुफ्ती की पेशकश पर नेशनल कांफ्रेंस नेता उमर अब्दुल्ला ने अपनी तरफ से तस्वीर साफ करते हुए कहा कि उनकी पार्टी और पीडीपी के एजेंडे में ज्यादा अंतर नहीं है. नेशनल कांफ्रेंस के खिलाफ उम्मीदवार न उतारने की सलाह देते हुए उमर अब्दुल्ला ने कहा था, ‘आइये, हम जम्मू-कश्मीर के लिए एक बेहतर भविष्य का निर्माण करें.'

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हालांकि, उमर अब्दुल्ला पीडीपी पर अपनी पार्टी का मैनिफेस्टो कॉपी करने का भी इल्जाम लगा डाला था. एक चुनावी रैली में भी उमर अब्दुल्ला ने लोगों के सामने अपनी शिकायत दर्ज कराई, सभी ने हमारे घोषणापत्र की नकल कर ली है... कुछ तो अंतर रखना चाहिए था. उमर अब्दुल्ला समझा रहे थे कि सत्ता में आने पर 200 यूनिट मुफ्त बिजली देने का वादा नेशनल कांफ्रेंस ने भी किया है, और पीडीपी भी यही कह रही है…हमने कहा था… पहले साल में एक लाख सरकारी नौकरियां देंगे, उसे अपने घोषणापत्र में शामिल कर लिया.

उमर अब्दुल्ला ने ऐसी तमाम चीजें गिनाईं, लेकिन महबूबा मुफ्ती ने न तो उनकी साथ आने की सलाह मानी, न ही नेशलन कांफ्रेंस उम्मीदवारों के खिलाफ पीडीपी उम्मीदवार न खड़ा करने की.

क्या महबूबा बीजेपी के साथ जाने का ऑप्शन खुला रखना चाहती हैं?

इल्तिजा मुफ्ती की तरफ से पीडीपी का आधिकारिक रुख जाहिर कर देने के बाद तो फारूक अब्दुल्ला को उम्मीद तो छोड़ ही देनी चाहिये. कम से कम अंतिम नतीजे आने तक तो सवाल भी नहीं उठता.

ऐसा भी तो हो सकता है, महबूबा मुफ्ती को एग्जिट पोल के गलत साबित होने की आशंका हो, और इसलिए अभी से वो सार्वजनिक तौर पर कुछ जाहिर न करना चाहती हों.

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हो सकता है, महबूबा मुफ्ती बीजेपी के साथ जाने का विकल्प भी खुला रखना चाह रही हों. ये भी तो हो सकता है कि नेशनल कांफ्रेंस गठबंधन बहुमत से पीछे रह जाये, और निर्दलीय विधायक उसके साथ न जाने को तैयार हों. ऐसी सूरत में तो बीजेपी की दावेदारी बढ़ ही जाएगी - और महबूबा मुफ्ती अच्छे मोलभाव की पोजीशन में भी होंगी.

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मनोज शर्मा

मनोज शर्मा (जन्म 1968) स्वर्णिम भारत के संस्थापक-प्रकाशक , प्रधान संपादक और मेन्टम सॉफ्टवेयर प्राइवेट लिमिटेड के मुख्य कार्यकारी अधिकारी हैं।

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