प्रशांत किशोर ने कांशीराम के विजन और मायावती के प्रयोग से साधा बिहार का सियासी समीकरण | Opinion

4 1 70
Read Time5 Minute, 17 Second

प्रशांत किशोर अपने हिसाब से बिहार की दलित राजनीति को बहुत उम्मीद से देख रहे हैं, वो भी ऐसे दौर में जब पड़ोस के उत्तर प्रदेश में मायावती की राजनीति ढलान पर है. बिहार में अब भी कई नेता ऐसे हैं जो दलित वोट बैंक के बूते राजनीति में मैदान में बने हुए हैं.

ये प्रशांत किशोर की प्रयोगधर्मिता ही है कि लोग उनमें अक्सर अरविंद केजरीवाल का अक्स देखने लग रहे हैं. बेशक दोनोंकी राजनीति मेंकई चीजें कॉमन नजर आती हैं, लेकिन कई ऐसे फर्क भी हैं, जो डेमोग्राफी की डिमांड के हिसाब से ठीक लगते हैं.

प्रशांत किशोर जिस राइट-टू-रिकॉल का वादा कर रहे हैं, कभी अरविंद केजरीवाल भी ऐसी बातें करते थे, जब वो जन लोकपाल की मांग के साथ आंदोलन कर रहे थे. अरविंद केजरीवाल के भाषणों में तो ऐसी चीजें अब कभी भी सुनाई नहीं देतीं, प्रशांत किशोर ने तो अभी अभी जमीन पर कदम ही रखा है, उनको भी मौका तो मिलना ही चाहिये.

जन सुराज पार्टी की घोषणा के मौके पर प्रशांत किशोर का कहना था, जनसुराज देश का पहला ऐसा दल है जो राइट टू रिकॉल लागू करेगा… हमारे दल में जनता ही अपने उम्मीदवारों का चयन करेगी.

Advertisement

चुनाव घोषणा पत्र तो आजकल जनता की राय से ही तैयार किये गये बताये जा रहे हैं, लेकिन उम्मीदवारों के चयन और राइट-टू-रिकॉल जैसी बातों को अभी परखा जाना बाकी है.

देखा जाये तो प्रशांत किशोर वे सारे ही आजमाये हुए नुस्खे अपना रहे हैं, जो बीते चुनावों में कारगर साबित हो चुके हैं. फर्क बस ये है कि ये नुस्खे अभी तक प्रशांत किशोर अपने क्लाइंट के कैंपेन में आजमाते रहे हैं.

दलित राजनीति में भरोसे के पीछे कई कारण हैं. जिस तरह से प्रशांत किशोर ने मनोज भारती को जन सुराज पार्टी का कार्यकारी अध्यक्ष बनाया है, उसमें मायावती वाले सफल सोशल इंजीनियरिंग की झलक देखी जा सकती है - लेकिन विजन तो मायावती को राजनीति में लाने वाले कांशीराम से ही प्रेरित लगता है.

बहुजन आबादी पर इतना भरोसा क्यों?

बहुजन आबादी के अब नये मायने समझाये जाने लगे हैं. कांशीराम के बहुजन की परिभाषा जातीय राजनीति के नये दौर में बदल चुकी है.

देश में दलित राजनीति के प्रभावी होने का क्रेडिट तो बिना किसी शक शुबहे के कांशीराम को ही जाता है, लेकिन वो उत्तर भारत में ब्राह्मणवाद या सवर्णों के राजनीति में हावी होने के खिलाफ थी. अब जातीय जनगणना में जातियों के बहुमत से बहुजन की बात होने लगी है.

Advertisement

ये सही है कि भीम आर्मी वाले चंद्रशेखर की ‘जिसकी जितनी आबादी, उसकी उतनी हिस्सेदारी’ वाली जिद के चलते अखिले्श यादव से चुनावी गठबंधन नहीं हो पाया था, लेकिन जातीय जनगणना का जो बिगुल राहुल गांधी और तेजस्वी यादव मिल कर फूंक रहे हैं, उसमें जरूरी नहीं कि दलित ही बहुजन रह जायें. ये तो असली आंकड़े ही बताएंगे, लेकिन दावेदारी तो ओबीसी को लेेकर भी वैसी ही जताई जा रही है.

और यही वजह है कि प्रशांत किशोर का बहुजन कांशीराम से प्रेरित होने के बावजूद अलग नजर आता है. जिसमें दलित आबादी की कमी मुस्लिम वोट बैंक से पूरी करने की कोशिश चल रही है.

ये कांशीराम की मूल विचारधारा से आगे की चीजें हैं, जिसे मायावती ने कांशीराम के बताये दायरे में रहते हुए आगे बढ़ाया और सफल भी रहीं, लेकिन उसे बरकरार रखने में चूक गईं - तभी तो दलित राजनीति के जरिये नगीना लोकसभा सीट से संसद पहुंचे चंद्रशेखर आजाद, मायावती पर आरोप लगाते हैं कि वो कांशीराम के विचार से भटक गईं, और कांशीराम की राजनीतिक विरासत पर खुद दावेदारी पेश कर रहे हैं.

मायावती जैसी सोशल इंजीनियरिंग से शुरुआत

मनोज भारती को जन सुराज का कमान सौंपा जाना, मायावती के 2007 वाले सोशल इंजीनियरिंग एक्सपेरिमेंट की याद दिला रहा है. उसी सोशल इंजीनियरिंग एक्सपेरिमेंट के बूते मायावती पहली बार अपने बल पर यूपी में बीएसपी की सरकार बनाने में सफल हुई थीं, लेकिन धीरे धीरे बहुत कुछ गवां चुकी हैं.

Advertisement

मायावती ने दलितों का नेता होते हुए ब्राह्मणों के साथ गठजोड़ किया था, ब्राह्मण परिवार से आने वाले प्रशांत किशोर दलित नेता को सामने रख कर वही प्रयोग आजमाने की कोशिश कर रहे हैें.

मायावती ने आगे बढ़ कर ब्राह्मण-दलित गठजोड़ बनाकर सत्ता जरूर हासिल की - लेकिन ऐसा करने के चक्कर में वो कहीं की नहीं रहीं. बीएसपी का लगातार घटता वोट शेयर सबूत है. कांशीराम के जमाने में ‘तिलक-तराजू और तलवार…’ जैसे नारे चलते थे, लेकिन मायावती ऐसी बातों से दूरी बनाने लगीं और उसका खामियाजा भी भुगतना पड़ रहा है.

प्रशांत किशोर के निशाने परहैं लालू, सियासत चिराग वाली, विकल्‍प नीतीश कुमार का

प्रशांत किशोर भी खुद को अरविंद केजरीवाल की तरह ही पेश कर रहे हैं, भले ही वो पूछे जाने पर इनकार करते हों, और अलग दलील देते हों. इसके पीछे मकसद ये है कि वे बिहार की जनता को यह स्‍पष्‍ट करना चाहते हैं कि वे राजद की तरह लालू यादव के परिवारवादी फॉर्मूले का ध्‍वस्‍त करना चाहते हैं.

प्रशांत किशोर, मनोज भारती को अपने से काबिल बता रहे हैं, और ऐसे पेश कर रहे हैं कि सत्ता मिली तो वो मुख्यमंत्री भी बनेंगे - लेकिन क्या प्रशांत किशोर खुद को मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठने से रोक पाएंगे? आगे जो भी हो, फिलहाल वे अपनी बयानों और एक्‍शन से खुद को दलित हितैषी साबित कर रहे हैं. और चिराग पासवान और उनकी राजनीति को अपनी तरफ खींच रहे हैं.

Advertisement

अरविंद केजरीवाल ने राजनीति में आने के लिए अन्ना हजारे के चेहरे को आगे किया था, ये तो प्रशांत किशोर भी जानते हैं कि मनोज भारती और अन्ना हजारे में बड़ा फासला है - अरविंद केजरीवाल तो अभी अभी कुर्सी का मोह छोड़ पाये हैं, प्रशांत किशोर के लिए भी ये सब काफी मुश्किल होगा. लेकिन, फिलहाल वे नी‍तीश कुमार का विकल्‍प बनना चाह रहे हैं. एक सर्व समावेशी नेता की तरह.

अगर प्रशांत किशोर खुद को कुर्सी से दूर रख पाते हैं, तो सफल होने के चांस ज्यादा लगते हैं. ऐसा करने के लिए प्रशांत किशोर को कांशीराम की तरह सत्ता से दूर रह कर मायावती की तरह मनोज भारती को ही आगे रखना होगा.

Live TV

\\\"स्वर्णिम
+91 120 4319808|9470846577

स्वर्णिम भारत न्यूज़ हिन्दी के एंड्रॉएड ऐप के लिए आप यहां क्लिक कर सकते हैं.

मनोज शर्मा

मनोज शर्मा (जन्म 1968) स्वर्णिम भारत के संस्थापक-प्रकाशक , प्रधान संपादक और मेन्टम सॉफ्टवेयर प्राइवेट लिमिटेड के मुख्य कार्यकारी अधिकारी हैं।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Laptops | Up to 40% off

अगली खबर

संभल में अब मिली विशाल रानी की बावड़ी, मिट्टी से भर दी गई थी 250 फीट गहरी ऐतिहासिक विरासत, राजस्व विभाग करा रहा खुदाई

आपके पसंद का न्यूज

Subscribe US Now