बनारसी गिलौरी का कमाल...पान खाए सिंगापुरी भैइया हमार...

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प्रधानमंत्री मोदी ने सिंगापुर दौरे पर वहां के बिजनेस लीडर्स को भारत आने और पान खाने का न्यौता दे डाला. कह भी दिया- भारत में पान की बात बनारसी पान के बिना अधूरी है. सो आप पान खाने का आनंद लेना चाहते हैं तो बनारस आइए, पान खाइए, बनारस में निवेश कीजिए...

मोदीजी के इस इन्विटेशन पर मैं कल्पनाओं में डूबने उतरने लगता हूं. मन में यह विचार भी उठता है कि इस आमंत्रण के चलते वहां के व्यापारी भले ही बनारस नहीं आ पाएं कहीं हमारे वाले ही सिंगापुर पहुंच गए तो वहां का क्या होगा? या वहां के लोगों को भी हमारे जैसी आदतें हो गईं तो भी वहां का क्या होगा?

वैसे कभी हमारा देश कृषिप्रधान देश था. अब पान-गुटखा प्रधान है. यहां पान खाना एक कला है. एक संस्कृति है. एक परंपरा है. कई कलाकारों ने इस कला-संस्कृति-परंपरा को नई ऊंचाइयां दी हैं. डॉन उर्फ बच्चन साहब ने बहुत पहले ही बता दिया था कि खाइके पान बनारस वाला खुल जाए बंद अकल का ताला..अर्थात् पान खाने से बुद्धि भयंकर तरीके से खुल जाती है. आर्यभट्ट के शून्य के आविष्कार के बाद पान पिपासुओं ने इस देश के लिए महान खोजें की हैं. लेकिन उनके बारे में इतिहास मौन है. मुंह पर ताला लगाकर बैठा है. चाबी दरिया में डालने के चक्कर में घूम रहा है. अब जो हमारे देश में हुआ है कहीं, वो सिंगापुर में हो जाए तो...यह सोचकर ही कांप उठता हूं. अगर ऐसा हो गया तो वहां का क्या होगा?

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गुरु तो अब मैं पान के अध्यात्म में सराबोर हो रहा हूं. प्लीज! आप भी मुझे रोकिए मत...रोक भी नहीं पाएंगे, मैं बहुत आगे निकल चुका हूं...एक दो टोल नाके भी पार कर चुका हूं. मेरी जुबान लाल हो रही है...आंखें लाल हो रही हैं...शरीर और पूरे शहर की दीवारें भी लाल ही दिखाई दे रही हैं....पान और मैं, एक जिस्म दो जान हो रहे हैं...मैं पान-पान हो रहा हूं...जान है तो जहान है...मेरा दिल हिन्दुस्तान है...पीला पत्ता बनारसी पान है...जय बनारस...जय सिंगापुर...रुक जाइए..जरा हांफ लूं..सांस ले लूं...

हां तो सिंगापुर दिख रहा है. दिमाग में पान की पच्चकारी...पिच्चकारी...पुच्चकारी...जैसी बातों में उलझा है. पान का सीधा संबंध है पीक से...पान है तो पीक है...पीक है तो पिच्चकारी है...पिच्चकारी है तो दीवार पर पच्चकारी है... पूरे शहर में लाल पीक से इतनी मॉडर्न आर्ट पेंटिंग बनाई जाती हैं लेकिन किसी महान कला समीक्षक की नज़र इस पर नहीं पड़ी है. कोई महान कलाकार देख भी ले तो इन्हीं पान खाने वालों के यहां सुबह-शाम ट्यूशन पढ़ने आ जाया करे...लेकिन क्या करें `पुच्चकारी` से बनी इस `पच्चकारी` का कलाकार अन्जान ही रह जाता है. दुनिया को उसके बारे में कोई जानकारी नहीं मिल पाती है...

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अब सोचिए ज़रा, जब बनारसी पान के साथ बनारसी कल्चर भी सिंगापुर पहुंचेगा तो क्या होगा? ज़रा एक दृश्य की कल्पना कीजिए...

बनारस के असी घाट की तरह ही सिंगापुर के किसी बड़े मैदान में लोग आकर बैठे हैं. सामने कार्यक्रम चल रहा है. वीररस के कवि धरतीमल 'धमक' कविता सुना रहे हैं. धरती को हिला देने वाली काया पर तरबूजे की तरह सिर भी रखे हुए हैं. उनके सर और घड़ का जिक्र आया है, तो मुंह का उल्लेख भी आवश्यक है. तो वे मुंह भी रखते हैं. इसी मुंह में वे जीभ भी रखते हैं, जो दांतों के पीछे रहती है. दांतों और इस तंतु की सहायता से वे पान भी खा रहे हैं...चबा-चबाकर कविता सुना रहे हैं. उनके कई दांत नकली हैं. कई ढीले दांतों को वे सुपारी मानकर खा चुके हैं. जिस पर वे पानवाले को शिकायत करके ही आ रहे हैं कि अबे!, आजकल सुपारी पत्थर की तरह आने लगी है, जिसे खाना उन जैसे पत्थर के दांतों वाले के ही बूते की बात है. तो जिस चीज से उनके पान खाने का जिक्र चल रहा है, उसकी सहायता से वे पान के ओज से भरी कविता रौद्र रूप में सुना रहे हैं..,

'भींच लो मुट्ठियां, सिर उठाओ
भींच लो मुट्ठियां, सिर उठाओ
पान लाओ, बड़े भिया किमाम लाओ
विरहा की बेला है, नैनाभर लाओ
परदेस हैं बालम, सखी पान लाओ
इंकलाब लाओ, इंकलाब लाओ
जालिम वक्त है, झुलसती तमन्ना
पान में कोई चमन बहार भी डलवाओ...
इंकलाब लाओ, इंकलाब लाओ...

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खैर, अभी तो कवि ने स्टार्ट ही लिया है. कविता तो लंबी चलेगी...आप अगले मुद्दे पर गौर फरमाइए...

पान की गिलौरी मुंह में भरे लोगों का अपना सिटिंग अरेंजमेंट भी अद्भुत. किसी लकड़ी पटरे पर बैठ गए. साइड में 500 ग्राम मूंगफली रख लीं। खाते गए, कवियों को दाद देते गए। ज्यादा जोश आने पर सीटी मार दी। बीच-बीच में बाजूवाले ने दाद दी तो बांछें खिल गईं कि जिस मुकाम का इंतजार था, वो आ गया है. तूने उसे दाद क्यों दी? इस बात पर बाजूवाले से इतने सात्विक तरीके से रिश्तेदारियां जोड़ी जाने लगती थीं कि वो भी बदले में और ज्यादा निकटतम रिश्तेदारियों पर बल देना शुरू करता था. आसपास के लोग भी इन नवीन रिश्तेदारी गठबंधन समारोह के भव्य अवसर पर आशीर्वाद देने प्रस्तुत हो जाते थे. बाद में स्वयंसेवकनुमा कुछ चीजों की मदद से दोनों रिश्तेदारों के आयोजन स्थल से नजदीक ले जाकर फेंक दिया जाता था. सोचिए..सिंगापुर के घाट पर लोग मुंह में पान भरे...बातों का चंदन घिसें...आपस में भिड़ें. अहा! क्या सीन होगा...

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कविता से खेल पर आते हैं...

ओलंपिक को ही ले लें तो...सोचिए ज़रा, हमारे इन पान चैंपियन्स से कोई भिड़ा पाएगा भला...हमसे ज्यादा लंबी-ऊंची पीक थूकने की प्रतियोगिता कोई कर पाएगा क्या? सोना-चांदी-कांसा सभी मेडल लाएंगे और अपनी सफलता का राज़ बताने को कहोगे तो मुंह तक ना खोलेंगे... काहै से कि वहां तो पान भरा है. ज़रा सी बात के लिए अब पान कौन थूकें! वैसे भी देश में कई महान लड़ाइयां सिर्फ इसी बात पर खत्म हो जाती हैं कि भिया अब कौन थूककर इसे जवाब दे...तुझसे कीमती तो मुंह में भरी गिलौरी है..तो जाने दो...तो बिना लड़े जाने देते हैं. किसी को इस रहस्य के बारे में पता नहीं है...आप भी मत बताना...अब आप ही कहो यह टेक्नोलॉजी सिंगापुर चली गई तो हमारे देश की इस महान खोज का हो सकता है वे पेटेंट करवा लें... यूं भी कभी यह बात पुतिन को कभी पता चल जाए तो फिर रूस युक्रेन वॉर तीसरे दिन ही खत्म हो जाता...क्या करें वेचारे पान खाते नहीं हैं...पीक से प्यार जानते नहीं हैं...खैर, जाने दीजिए..

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वैसे पुराने जमाने के एक अज्ञात टाइप शायर जबर्दस्त बात कह गए हैं...आसमान की तरफ मुंह करके थूकोगे तो खुद पर गिरेगा...कहते समय उनके ज़हन में यह बात नहीं आई होगी कि हम आसमान की तरफ मुंह करके थूकेंगे क्यों? हम तो सामने वाले पर थूकने के एक्सपर्ट हैं! उसी पर जोर लगाकर थूकेंगे...वो अलग बात है कि वो हमसे ज्यादा एक्सपर्ट निकला तो झट से चाटने का तगड़ा अभ्यास भी कर रखा है...कौन लफड़े में फंसे, आप ही बताओ भला! अगर कहीं ये बातें सिंगापुर एक्सपोर्ट हो जाएं तो फिर हमारी ओरिजिनलिटी का क्या होगा?

इस नज़र से देखें तो हमारे देश में सिंधुघाटी के बाद देश की अगली सभ्यता के रूप में इसी `पुच्चकारी सभ्यता` को रखा जा सकता है. कल को हम यह भी कह सकते हैं कि हमारे देश की सभ्यता का विस्तार सिंगापुर तक था. सबूत के रूप में इसी पच्चकारी सभ्यता का जिक्र कर सकते हैं. ग्रेटर इंडिया वाला कॉन्सेप्ट बता सकते हैं...

अब क्या कहें...कहने को तो बहुत कुछ है..लेकिन भिया क्या करें पान तो हमारे मुंह में भी भरा है...तो ज्यादा कहा थोड़ा समझना...लोड मत ले लेना और इसे पढ़ने में भयंकर टाइप की गंभीरता की तो कोई ज़रूरत ही नहीं है... पढ़कर पानी-पानी भी मत होना...पान-पान होना. क्योंकि पान है तो जहान है, बाकी सब हल्का मीठा पान है! क्या समझे..!!

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मनोज शर्मा

मनोज शर्मा (जन्म 1968) स्वर्णिम भारत के संस्थापक-प्रकाशक , प्रधान संपादक और मेन्टम सॉफ्टवेयर प्राइवेट लिमिटेड के मुख्य कार्यकारी अधिकारी हैं।

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