हरियाणा बीजेपी में बगावत से विधानसभा चुनावों में पार्टी को कितना नुकसान?

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हरियाणा की 90 विधानसभा सीटों के चुनाव के लिए बीजेपी ने बुधवार को 67 उम्मीदवारों की सूची जारी की थी. लेकिन यह लिस्ट जारी होने के बाद से बीजेपी में भयंकर असंतोष सामने आया है. बीजेपी ने शायद ऐसीबगावत के बारे में सोचा भी नहीं होगा. वैसे करीब सभी राज्यों में विधानसभा चुनावों के मौकों पर टिकट बंटवारे को लेकर पार्टियों में बगावत होती ही है. इस तरह की बगावत से बीजेपी और कांग्रेस दोनों ही को जूझना पड़ता रहा है. मध्यप्रदेश और राजस्थान में भी बीजेपी को बड़े पैमाने पर टिकट बंटवारे को लेकर बगावत हुई थी.जाहिर है बगावत से फर्क पड़ता है पर इतना भी नहीं पड़ता कि जीत रही पार्टी को हारना पड़ जाए. पर हरियाणा में बीजेपी को जो स्थिति है वह मध्य प्रदेश या राजस्थान जैसी नहीं है. दूसरी बात यह भी है कि हरियाणा में छोटी-छोटी विधानसभाएं हैं जहां किसी छोटे कार्यकर्ता के बागी होने का असर सीधे जीत और हार पड़ता है. इस लिहाज से देखा जाए तो बीजेपी के लिए यह बहुत सेटबैक है.

पर जब हम बगावत करने वालों के पृष्ठभूमि पर जाते हैं तो लगता है बीजेपी पर फिलहाल कोई ऐसा संकट नहीं है जिससे पार्टी पार न पा सके. बीजेपी में बगावत करने वाले नेताओं की कुल संख्या के बारे में अलग नंबर्स आ रहे हैं. फिर भी कम से कम 2 दर्जन प्रभावी नेताओं ने तो टिकट न मिलने के विरोध में रिजाइन किया ही है.पर इनमें बमुश्किल 4 से 5 लोग ही ऐसे हैं जो बीजेपी के लिए खतरा बन सकते हैं. वह भी तब जब बगावत करने वाले नेता खुद प्रत्याशी बनते हैं.

कितना खेल बिगाड़ सकते हैं रणजीत चौटाला?

अपने समर्थकों के सामने पार्टी और कैबिनेट मंत्री पद से इस्तीफे की घोषणा करते हुए रानिया से निर्दल चुनाव लड़ने की घोषणा की है. पूर्व सीएम और आईएनएलडी प्रमुख ओम प्रकाश चौटाला के भाई रणजीत सिं ने 5 साल तक निर्दल विधायक के तौर पर सरकार में मंत्री पद का आनंद भोगा है. लोकसभा टिकट के लिए ऐन चुनाव के पहले भाजपा में शामिल हो गए थे. पर लोकसभा चुनाव में जीत नहीं सके. वे कांग्रेस उम्मीदवार जयप्रकाश से चुनाव हार गए थे. अब कहते हैं कि वह पार्टी के टिकट के लिए भीख नहीं मांगेंगे और रानिया विधानसभा क्षेत्र से निर्दलीय के रूप में चुनाव लड़ेंगे. रणजीत चौटाला ने 2019 में रानिया से निर्दलीय विधायक के रूप में जीत हासिल की थी और बाद में भाजपा सरकार का समर्थन किया था. चौटाला कहते हैं कि मुझे दिल्ली से फोन आया, जिसमें पार्टी नेताओं ने मुझे डबवाली विधानसभा सीट की पेशकश की है लेकिन मैंने स्पष्ट कर दिया कि मैं केवल रानिया से चुनाव लड़ूंगा.

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हालांकि इस बार रानिया सीट उनके लिए आसान नहीं है.क्योंकि यहां चौटाला फैमिली के दादा-पोता आपस में भिड़ेंगे. इंडियन नेशनल लोकदल ने पार्टी के वरिष्ठ नेता अभय चौटाला के बेटे अर्जुन चौटाला को रानिया सीट से उम्मीदवार घोषित कर दिया है. सोमवार को इनेलो ने सात उम्मीदवारों की दूसरी लिस्ट जारी की है. अर्जुन पहली बार विधानसभा चुनाव लड़ने जा रहे हैं.

पर हरियाणा की राजनीति की समझ रखने वाले लोगों का कहना है कि रणजीत चौटाला के लिए इस बार रानिया से भी अपनी सीट बचाना मुश्किल ही है. रणजीत सिंह चौटाला ने 2019 के विधानसभा चुनाव में रानिया सीट से जीत हासिल की थी. वे निर्दलीय चुनाव मैदान में थे. इससे पहले रणजीत को रानियां सीट परकांग्रेस के टिकट पर दो बार हार का मुंह देखना पड़ा. 2009 में नए परिसीमन के बाद रणजीत रानियां विधानसभा सीट से लड़े, लेकिन कृष्ण कंबोज से हार गए. 2014 में रामचंद्र कंबोज से चुनाव हार गए. इसलिए यह कहना कि रानिया रणजीत चौटाला के लिए सुरक्षित सीट है गलत ही होगा.

सावित्री जिंदल का मामला दूसरा है

कांग्रेस से लोकसभा चुनावों के कुछ महीनों पहले बीजेपी में आए जिंदल फैमिली की हरियाणा की कई सीटों पर अच्छी पकड़ है. यही कारण है कि मुश्किल परिस्थितियों में भी कुरुक्षेत्र से नवीन जिंदल बीजेपी के टिकट पर चुनाव जीत गए थे. पर भाजपा के कुरूक्षेत्र सांसद नवीन जिंदल की मां सावित्री जिंदल भी टिकट बंटवारे से नाराज हैं. उन्होंने कहा है कि वह पार्टी के आधिकारिक उम्मीदवार और स्वास्थ्य मंत्री कमल गुप्ता के खिलाफ हिसार से चुनाव लड़ेंगी. द हिंदू अखबार में छपी एक खबर के अनुसार स्वास्थ्य मंत्री कमल गुप्ता राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) द्वारा समर्थित हैं. हालांकि, वह भाजपा की सदस्य नहीं हैं. हरियाणा के एक वरिष्ठ पत्रकार का कहना है कि बीजेपी के ही कुछ बड़े नेता चाहते हैं कि सावित्री जिंदल हिसार से निर्दल चुनाव लड़कर कमल गुप्ता को हरा दें.
इंडियन एक्सप्रेस अखबार में छपी एक रिपोर्ट के अनुसार सावित्री जिंदल कहती हैं कि हिसार के लोग, जो मेरे परिवार हैं, मुझसे चुनाव लड़ने का अनुरोध कर रहे हैं. अगर वे मुझे इतना सम्मान देते हैं, तो मुझे उनके निर्णय का सम्मान करना पड़ेगा. एक बार जब मैं कुछ कहती हूं, तो मैं पीछे नहीं हटती. जब उनसे पूछा गया कि क्या कांग्रेस में लौटने की संभावना है, तो जिंदल ने कहा कि यह समय बताएगा. जिंदल ने यहां तक कहा कि भूपेंद्र सिंह हुड्डा के साथ हमारे अच्छे संबंध रहे हैं और मैंने उनसे ही राजनीति सीखी है. वह मेरे बड़े भाई जैसे हैं. जब मैंने राजनीति में प्रवेश किया, तो मुझे ज्यादा जानकारी नहीं थी. मैंने उनसे बहुत कुछ सीखा है.
जाहिर है कि हिसार पर अगर सावित्री जिंदल चुनाव लड़ती हैं तो बीजेपी को एक सीट का नुकसान तो तय है. अगर जिंदल कांग्रेस में जाती हैं तो कुछ और सीटों पर प्रभाव डाल सकती हैं.

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लक्षमण नापा कितनेप्रभावी

टिकट नहीं मिलने से नाराज रतिया विधायक लक्षमण नापा ने दो लाइन के इस्तीफे पत्र में घोषणा की कि वह तत्काल प्रभाव से पार्टी की प्राथमिक सदस्यता छोड़ देंगे.नापा खुलकर कह रहे हैं कि वे कांग्रेस में शामिल होने के लिए तैयार हैं.नापा यहां तक कह रहे हैं कि अगर कांग्रेस उन्हें टिकट नहीं भी देती है तो भी मैं कांग्रेस को जिताने के लिए काम करूंगा. दरअलस बीजेपी ने रतिया (एससी-आरक्षित) सीट से पूर्व सिरसा सांसद सुनीता दुग्गल को उतारा है. नापा कहते हैं कि पार्टी द्वारा कराए गए हर सर्वे में मैं जीत रहा था. मेरे साथ 80-90 सरपंचों का समर्थन भी है. जिन्होंने पार्टी को लिखित में भी दिया कि वे मेरे समर्थन में हैं. फिर भी, पार्टी ने मुझे चुनाव लड़ने के लिए टिकट नहीं दिया. यह मेरे लिए बेहद चौंकाने वाला और हतोत्साहित करने वाला था. मैंने मुख्यमंत्री सैनी और राज्य बीजेपी अध्यक्ष मोहन लाल बडोली से बात की और उनसे पूछा कि क्या उन्हें मेरे या मेरे काम में कोई कमी दिखी.नापा कहते हैं कि जब पार्टी ने मेरे जैसे कार्यकर्ता पर विचार नहीं किया, तो मेरे पास बीजेपी में बने रहने का कोई कारण नहीं था.

पूर्व मंत्री करण देव कंबोज की जिद

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बीजेपी ओबीसी मोर्चा के राज्य अध्यक्ष और पूर्व मंत्री करण देव कंबोज, जिन्होंने नापा की तरह ही पार्टी छोड़ दी है. बीजेपी के लिए कितना महत्वपूर्ण हैं इससे समझा जा सकता है कि उन्हें मनाने के लिए स्वयं मुख्यमंत्री नायब सैनी उनके गांव पहुंचे.पर कंबोज की नराजगी इतनी थी कि उन्होंने सीएम से हाथ मिलाना भी उचित नहीं समझा. सीएम ने हाथ बढ़ाया तो कंबोज नमस्कार करके आगे बढ़ गए.कंबोज को करनाल जिले के इंद्री निर्वाचन क्षेत्र में नजरअंदाज कर दिया गया. बीजेपी ने मौजूदा विधायक राम कुमार कश्यप को मैदान में उतारा है. अपने इस्तीफे में कंबोज ने बीजेपी नेतृत्व पर निशाना साधते हुए पार्टी पर समर्पित कार्यकर्ताओं की उपेक्षा करने और नए लोगों को प्राथमिकता देने का आरोप लगाया.

क्या बीजेपी के कमजोर होने का सबूत है बगावत

टिकट बंटवारे के बाद पार्टियों में बगावत कोई नई बात नहीं है. गुजरात विधानसभा चुनावों के दौरान भी बीजेपी को बगावत का सामना करना पड़ा था.जबकि वहां बीजेपी के पक्ष में हवा चल रही थी फिर भी जिन विधायकों को टिकट नहीं मिला उन्होंने बगावत कर दी थी. पर जिस तरह की बगावत हरियाणा में बीजेपी में देखने को मिल रही है वह इसका सबूत है कि पार्टी राज्य में कमजोर हुई है. लोगों को ऐसा लग रहा है कि बीजेपी की सरकार में वापसी तो होनी नहीं है. अगर बागी नेताओं को ये यकीन होता कि बीजेपी की लोकप्रियता राज्य में चरम पर है तो वे कम से कम बयानबाजी नहीं करते. जब पार्टी की स्थित राज्य में मजबूत रहती है तो टिकट नहीं मिलने पर निर्दल चुनाव लड़ने वाले भी नेतृत्व को भला बुरा नहीं कहते क्योंकि उन्हें उ्म्मीद होती है कि चुनाव जीतने के बाद भी सरकार बनने पर वापसी की संभावना बनी रहे. फिलहाल जिस तरह टिकट से वंचित होने पर पूर्व मंत्रियों, पूर्व विधायकों और अन्य नेताओं के रोने की तस्वीर आ रह है उससे यही लगता है कि कुछ दिनों बाद ये सभी बागी फिर से बीजेपी का ही रुख करेंगे.हरियाणा के वरिष्ठ पत्रकार अजय दीप लाठर कहते हैं कि अभी तक बीजेपी टक्कर में दिख रही थी पर जिस तरह की बगावत देखने को मिल रही है वो इसका सबूत है कि राज्य में पार्टी कमजोर हो रही है. आम आदमी पार्टी और कांग्रेस के साथ आने से वैसे भी बीजेपी बैकफुट पर थी. अगर 4 से 5 बागियों ने भी निर्दल प्रत्याशी के रूप में चुनाव लड़ गए तो कांग्रेस को बढ़त मिल जाएगी.

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मनोज शर्मा

मनोज शर्मा (जन्म 1968) स्वर्णिम भारत के संस्थापक-प्रकाशक , प्रधान संपादक और मेन्टम सॉफ्टवेयर प्राइवेट लिमिटेड के मुख्य कार्यकारी अधिकारी हैं।

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