उमर अब्दुल्ला को तो चुनाव ही नहीं लड़ना था, अब 2 सीटों से लड़ेंगे – क्या राहुल गांधी ने कोई मंत्र दिया है?

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उमर अब्दुल्ला को लोकसभा चुनाव में मिली शिकस्त भी काफी दिलचस्प वाकया रहा. दिलचस्प इसलिए भी क्योंकि बारामूला से वो जेल में बंद इंजीनियर राशिद से चुनाव हार गये थे. हार का फासला भी दो लाख से ज्यादा वोटों का रहा. इंजीनियर राशिद के नाम से मशहूर कश्मीरी नेता शेख अब्दुल राशिद 2017 के एक जम्मू-कश्मीर टेरर फंडिंग केस में जेल में बंद है. सांसद बन चुके इंजीनियर राशिद की जमानत अर्जी पर अगली सुनवाई 11 सितंबर को होनी है.

क्या लोकसभा चुनाव की हार की भी उमर अब्दुल्ला के इरादा बदलने में भूमिका हो सकती है? क्योंकि धारा 370 हटाये जाने के बाद से ही वो लगातार कहते आ रहे हैं, जब तक जम्मू-कश्मीर को पूर्ण राज्य का दर्जा और पुरानी स्थिति बहाल नहीं की जाती, वो विधानसभा का चुनाव नहीं लड़ेंगे.

लेकिन अब देखिये. इतने बदल गये हैं कि बड़गाम और गांदरबल दो-दो विधानसभा सीटों से नामांकन दाखिल कर चुके हैं. बड़गाम विधानसभा क्षेत्र बारामूला में ही पड़ता है, और लोकसभा चुनाव के दौरान वहां वो अपने प्रतिद्वंद्वी से आगे पाये गये थे.

उमर अब्दुल्ला की पार्टी नेशनल कांफ्रेंस INDIA ब्लॉक के बैनर तले लड़ रही है, जिसमें कांग्रेस के अलावा सीपीएम और पैंथर्स पार्टी के साथ गठबंधन हुआ है. 90 सीटों वाली जम्मू-कश्मीर विधानसभा में नेशनल 51 सीटों पर और कांग्रेस 32 सीटों पर चुनाव लड़ रही है, जबकि पांच सीटों पर दोनो ने फ्रैंडली मैच खेलने का फैसला किया है. गठबंधन में एक एक सीट सीपीएम और पैंथर्स पार्टी को दी गई है.

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वैसे तो उमर अब्दुल्ला ने चुनाव लड़ने के फैसले के बारे में अपनी तरफ से वजह खुद भी वजह बताई है, लेकिन वो पर्याप्त नहीं लगता - ऐसे में ये समझने की जरूरत है कि सिर्फ कांग्रेस के साथ गठबंधन या राहुल गांधी का कोई खास मशविरा उमर अब्दुल्ला के फैसले में मददगार बना है?

विधानसभा चुनाव को लेकर उमर अब्दुल्ला का इरादा कैसे बदला?

गांदरबल से नामांकन दाखिल करते वक्त उमर अब्दुल्ला काफी भावुक हो गये थे. अपनी टोपी हाथ में लेकर कश्मीरी में ही एक इमोशनल अपील में लोगों से कहा, 'आज मैं आपसे सिर्फ एक बात कहूंगा... मेरी पगड़ी, मेरी इज्जत और ये टोपी आपके हाथों में है.'

गांदरबल विधानसभा क्षेत्र अब्दुल्ला परिवार का गढ़ रहा है. नेशनल कांफ्रेंस के संस्थापक शेख अब्दुल्ला और उनके बेटे फारूक अब्दुल्ला के अलावा उमर अब्दुल्ला भी वहां की नुमाइंदगी कर चुके हैं. हालांकि, 2002 में अपने पहले ही चुनाव में उमर अब्दुल्ला को पीडीपी उम्मीदवार से हार का मुंह देखना पड़ा था, लेकिन 2008 के चुनाव में वो जीत गये थे.

गांदरबल के अलावा उमर अब्दुल्ला मध्य कश्मीर की बड़गाम विधानसभा सीट से भी चुनाव लड़ने जा रहे हैं. अब से पहले जम्मू-कश्मीर में आखिरी विधानसभा चुनाव 2014 में हुआ था, और तब उमर अब्दुल्ला बड़गाम की बगल वाली बीरवाह सीट से विधायक चुने गये थे. ये दोनो ही सीटें बारामूला लोकसभा क्षेत्र में ही आती हैं. ध्यान देने वाली बात ये है कि बीरवाह इलाके में उमर अब्दुल्ला, इंजीनियर राशिद से पिछड़ गये थे, जबकि बड़गाम में ज्यादा वोट पाये थे - बड़गाम से उमर अब्दुल्ला के चुनाव लड़ने की एक वजह ये भी मानी जा रही है.

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बड़गाम से चुनाव लड़ने की वजह तो मालूम हो गई, लेकिन उमर अब्दुल्ला चुनाव न लड़ने की जिद छोड़ कर दो-दो सीटों से चुनाव लड़ने के स्टैंड तक कैसे पहुंचे, बड़ा सवाल ये है. और उमर अब्दुल्ला ने अपनी तरफ से लोगों के मन में उठते इस सवाल का जवाब देने की कोशिश भी की है.

उमर अब्दुल्ला का कहना है, 'हमने ये लड़ाई अपना स्वाभिमान, अपना सम्मान और अपनी पहचान के लिए लड़ रहे हैं, जिसे दिल्ली ने छीन लिया है.'

अपनी बात कहने का, अपना पक्ष रखने का उमर अब्दुल्ला को पूरा हक है. जो बात वो अभी कह रहे हैं, 5 अगस्त, 2019 के बाद से अनगिनत बार कह चुके हैं, और ये सब जानते हुए ही वो विधानसभा चुनाव लड़ने से साफ तौर पर इनकार करते रहे - जब हालात में कोई बदलाव नहीं हुआ है, तो वो चुनाव न लड़ने का फैसला किस वजह से बदल लिये.

कोई दो राय नहीं कि जम्म-कश्मीर की प्रशासनिक व्यवस्था में दिल्ली का अक्स साफ साफ नजर आता है. उमर अब्दुल्ला ही नहीं, बल्कि पीडीपी नेता महबूबा मुफ्ती भी ऐसी ही आशंका जताती रही हैं कि जब तक जम्मू-कश्मीर का राज्य का दर्जा बहाल नहीं हो जाता, विधानसभा चुनाव का कोई मतलब नहीं है.

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उमर अब्दुल्ला का कहना है, मुझसे ये नहीं हो सकता कि मैं लेफ्टिनेंट गवर्नर के दफ्तर के बाहर बैठूं... और उनसे पूछूं कि सर, मैं डीजी को हटाना चाहता हूं, इसलिए आप दस्तखत कर दीजिये.

कश्मीरी नेताओं की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात में भी यही मांग रही कि पहले राज्य का दर्जा बहाल हो, फिर चुनाव हो. लेकिन केंद्र सरकार का शुरू से यही स्टैंड रहा कि पहले चुनाव कराएंगे, फिर राज्य का दर्जा बहाल किया जाएगा.

कांग्रेस के सत्ता में आने पर राहुल गांधी ने भी जम्मू-कश्मीर को स्टेटहुड दिलाने का वादा किया है, लेकिन धारा 370 पर कांग्रेस नेता ने चुप्पी साध ली है. बीजेपी नेता और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह तो अब भी अपनी बात पर कायम हैं कि जम्मू-कश्मीर का राज्य का दर्जा सही समय आने पर बहाल किया जाएगा.

सवाल ये है कि कोई भी नेता दो-दो सीटों से चुनाव क्यों लड़ता है? राहुल गांधी तो दो बार ऐसा कर चुके हैं, और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी 2014 में ऐसा ही किया था. क्या उमर अब्दुल्ला को राहुल गांधी से प्रेरणा मिली है? राहुल गांधी 2019 में भी लोकसभा चुनाव दो सीटों से लड़े थे, और इस बार भी. दोनो में वायनाड लोकसभा सीट कॉमन थी. पिछली बार वो अमेठी से हार गये थे, लेकिन इस बार रायबरेली से भी जीत गये, और वायनाड छोड़ दिया है.

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उमर अब्दुल्ला का कहना है कि दो सीटों से चुनाव लड़ने को कमजोरी की निशानी के तौर पर नहीं देखा जाना चाहिये. कहते हैं, 'दो सीटों से चुनाव लड़ना नेशनल कांफ्रेंस की ताकत को दिखाता है. नेशनल कांफ्रेंस के पक्ष में लहर चल रही है, और जब वोट गिने जाएंगे तो हम कामयाब नजर आएंगे.'

राहुल गांधी ने उमर अब्दुल्ला को कौन से टिप्स दिये हैं?

जम्मू-कश्मीर में कांग्रेस ने नेशनल कांफ्रेंस के साथ गठबंधन में बेहतर डील पाई है. जाहिर है, नेशनल कांफ्रेंस ने भी काफी सोच समझकर ही कांग्रेस को करीब एक तिहाई सीटें देने को तैयार हुई होगी - और बदले में कुछ शर्तें भी रखी होंगी.

राहुल गांधी जम्मू-कश्मीर चुनाव को लेकर बहुत सारी बातें कर रहे हैं, लेकिन धारा 370 का जिक्र उनकी जबान पर नहीं आ रहा है. चुनावी भाषणों में राहुल गांधी देश के बाकी हिस्सों की ही तरह केंद्र सरकार पर हमला बोलते हैं, और कठघरे में खड़ा करने की कोशिश करते हैं. रामबन की रैली में राहुल गांधी का कहना था, आज जम्मू-कश्मीर में राजा बैठा हुआ है... उसका नाम एलजी है... लेकिन है वो राजा है.

असल में जम्मू-कश्मीर में नेशनल कांफ्रेंस के साथ गठबंधन हो जाने के बाद कांग्रेस की सीधी लड़ाई बीजेपी से ही है. जम्मू क्षेत्र में बीजेपी का दबदबा कायम हो गया है, और कांग्रेस के हिस्से में भी ज्यादा सीटें जम्मू की ही हैं.

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जम्मू-कश्मीर पर कांग्रेस का स्टैंड सूबे की पुरानी पोजीशन बहाल करने की ही रही है. तब ये नीति कांग्रेस में रहते हुए गुलाम नबी आजाद ने तैयार की थी. उमर अब्दुल्ला की भी राजनीतिक लाइन यही रही है. यही वजह है कि राहुल गांधी के धारा 370 पर खामोश रहने के बावजूद बीजेपी नेशनल कांफ्रेंस के साथ गठबंधन पर सवाल उठा रही है.

क्या धारा 370 पर राहुल गांधी ने उमर अब्दुल्ला को कोई खास वादा किया है? क्या राहुल गांधी ने कांग्रेस के नेतृत्व में INDIA ब्लॉक के सत्ता में आने उमर अब्दुल्ला से वैसा ही कोई प्रॉमिस किया है, जैसा वो देश के लोगों से कास्ट सेंसस का वादा कर रहे हैं?

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मनोज शर्मा

मनोज शर्मा (जन्म 1968) स्वर्णिम भारत के संस्थापक-प्रकाशक , प्रधान संपादक और मेन्टम सॉफ्टवेयर प्राइवेट लिमिटेड के मुख्य कार्यकारी अधिकारी हैं।

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