उद्धव ठाकरे vs शरद पवार- INDIA गुट में महाराष्‍ट्र सीएम पद को लेकर दिलचस्‍प खींचतान

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कहते हैं, ये शरद पवार ही थे जिन्होंने भाजपा से खफा होकर अलग हुएउद्धव ठाकरे को महाविकास अघाड़ी सरकार मेंमुख्यमंत्री बनने की सलाह दी थी, लेकिन अब वो बीते दिनों की बात हो चुकी है. उद्धव ठाकरे की फिर से महाराष्ट्र का मुख्यमंत्री बनने में वही दीवार बनकर खड़े हो गये हैं - और ये बात कोई अचानक नहीं हुई है.

उद्धव ठाकरे काफी दिनों से प्रयासरत थे. इसी सिलसिले में उद्धव ठाकरे बेटे आदित्य ठाकरे के साथ दिल्ली भी आये थे. मिलने को तो इंडिया ब्लॉक के और भी नेताओं से मिले.राहुल गांधी और मल्लिकार्जुन खरगे से खास मुलाकात हुई, लेकिन किसी ने खुल कर कुछ भी नहीं कहा. तब भी, जबकि खुल कर मीडिया के जरिये मन की बात भी बता दी थी.

सवाल-जवाब के बीच उद्धव ठाकरे ने मीडिया से कहा था, अगर मेरे सहयोगियों को लगता है कि मैंने बेहतरीन काम किया है, तो उनसे पूछें कि क्या वे मुझे मुख्यमंत्री के रूप में चाहते हैं? उद्धव ठाकरे ने अपना स्टैंड भी साफ करने की कोशिश की, मैंने मुख्यमंत्री बनने का सपना नहीं देखा था, न ही मैं ऐसा चाहता था... लेकिन मैं जिम्मेदारी से भागने वाला भी नहीं हूं... मैंने जिम्मेदारी ली, और अपनी क्षमता के मुताबिक सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करने की कोशिश की... अगर मेरे साथियों को लगता है कि मैंने बेहतरीन काम किया है, तो उनसे पूछिये कि क्या वे मुझे मुख्यमंत्री के तौर पर देखना चाहते हैं? लोग फैसला करेंगे.

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वैसे कहने को तो शरद पवार अब भी यही कह रहे हैं कि मुख्यमंत्री पद को लेकर एमवीए में कोई विवाद नहीं है. और ऐसा ही बयान आदित्य ठाकरे की तरफ से भी आया है, लेकिन अब तो ये पक्का हो चुका है कि अपने लिए मुख्यमंत्री पद हासिल करने के लिए उद्धव ठाकरे की तरह शरद पवार की एनसीपी और कांग्रेस को भी बेहतरीन प्रदर्शन करना पड़ेगा. ऐसा लगता है कि लंबे समय तक क्रिकेट की राजनीति करने वाले शरद पवार ने महाराष्ट्र में मुख्यमंत्री पद को भी मेडल जैसा बना दिया है.

देखा जाये तो शरद पवार ने उद्धव ठाकरे की दावेदारी तो नहीं खारिज की है, लेकिन शर्त लगाकर उनकी राह में रोड़ा तो अटका ही दिया है. शरद पवार के बयान से अब ये भी साफ हो गया है कि महाविकास आघाड़ी के सहयोगी दल कांग्रेस, उद्धव ठाकरे की शिवसेना (यूबीटी) और एनसीपी (एसपी) चुनाव से पहले मुख्यमंत्री चेहरे की घोषणा नहीं करने जा रहा है.

उद्धव ठाकरे मुख्यमंत्री चेहरे की घोषणा क्यों चाहते थे?

उद्धव ठाकरे ने सीधे सीधे ये तो कभी नहीं कहा कि मुख्यमंत्री पद का चेहरा वही बनना चाहते हैं, लेकिन मंशा तो वही थी. और उनके हिस्से वाली शिवसेना के कई नेता भी सीएम फेस को लेकर उद्धव ठाकरे का नाम उछाल रहे थे.

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हां, जब देखा की उनकी सलाह पर ध्यान नहीं दिया जा रहा है, तो ऐसी बात जरूर बोल दी जो सहयोगी दलों को निश्चित तौर पर बुरी लगी होगी. उद्धव ठाकरे ने, असल में, यहां तक कह डाला कि कांग्रेस और एनसीपी (एसपी) के पास अगर कोई चेहरा है तो वे उसकी घोषणा करें... हम समर्थन करेंगे.

सहयोगी दलों ने लगता है उद्धव ठाकरे के बयान को कटाक्ष समझा और चैलेंज के रूप में ले लिया. ये बात तो किसी को भी अच्छी नहीं लगेगी. चेहरे तो सभी के पास हैं, अब उद्धव ठाकरे की बराबरी में हैं या नहीं इस पर अलग से बहस हो सकती है. हालांकि विवाद बढ़ने राज्यसभा सांसद संजय राउत का कहना था, उद्धव ठाकरे पूर्व मुख्यमंत्री हैं, और उनका चेहरा महाराष्ट्र में सभी को स्वीकार्य है... कांग्रेस और एनसीपी से अपने सीएम चेहरे की घोषणा करने के लिए बोलकर क्या गलत कहा है? अपनी दरियादिली दिखाई है.

महाराष्ट्र कांग्रेस अध्यक्ष नाना पटोले तो तभी से कांग्रेस के अपने दम पर सरकार बनाने की बातें करते रहे हैं, जब उद्धव ठाकरे मुख्यमंत्री हुआ करते थे. हाल फिलहाल तो वो विधान परिषद चुनाव में सीट शेयरिंग को लेकर भी उद्धव ठाकरे से नाराज चल रहे हैं - एक तो राहुल गांधी के करीबी माने जाते हैं, और दूसरे बीजेपी छोड़ कांग्रेस में आने का कोई खास मकसद तो होगा ही.

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और शरद पवार क्यों नहीं चाहेंगे कि उनकी अपनी पार्टी से कोई मुख्यमंत्री बने. 2019 की बात और थी. अब तो वो बेटी सुप्रिया सुले का नाम भी आगे बढ़ा सकते हैं, क्योंकि अब तो अजित पवार नाम कांटा भी रास्ते से हट गया है - ऐसी बातें उद्धव ठाकरे के दिमाग में भी तो आई ही होंगी, लेकिन मुख्यमंत्री पद को लेकर उनके मन में जो था प्रकट कर दिया और लेने के देने पड़ गये.

महाराष्ट्र के कोल्हापुर में शरद पवार ने कहा कि मुख्यमंत्री पद के चेहरे को लेकर पहले ये देखना होगा कि किस पार्टी के कितने उम्मीदवार चुनकर आते हैं, उसके बाद संख्या बल के हिसाब से फैसला होगा.

अब सवाल उठता है कि उद्धव ठाकरे महाराष्ट्र में INDIA ब्लॉक के मुख्यमंत्री पद के चेहरे की घोषणा क्यों चाहते हैं?

लगता है, उद्धव ठाकरे को उम्मीद है कि अगर उनको मुख्यमंत्री पद का चेहरा घोषित कर दिया गया तो उनके हिस्से की शिवसेना की दस-बीस सीट बढ़ सकती हैं. मुश्किल ये है कि गठबंधन के सही सहयोगी दलों के मन में यही चल रहा होगा. महाराष्ट्र में विपक्षी दलों का गठबंधन महाविकास आघाड़ी वैसे ही है जैसे बिहार में महागठबंधन, लेकिन लोकसभा चुनाव के बाद से ऐसे सभी गठबंधन इंडिया ब्लॉक के बैनर तले चुनाव लड़ने लगे हैं.

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उद्धव को लेकर शरद पवार के मन में चल क्या रहा है

असल में महाविकास आघाड़ी में ये आग लगाई है लोकसभा चुनाव के नतीजों ने. चुनाव से पहले, न तो उद्धव ठाकरे की शिवसेना और न ही शरद पवार की एनसीपी को किसी बेहतर प्रदर्शन की उम्मीद रही होगी, लेकिन चुनाव नतीजों ने तो नये सिरे से आत्मविश्वास से भर दिया - और कांग्रेस का आत्मविश्वास तो महाराष्ट्र में सादवें आसमान पर ही पहुंच गया होगा. कांग्रेस ने महाराष्ट्र में सबसे ज्यादा 13 लोकसभा सीटें जीती भी है, जबकि उद्धव ठाकरे के हिस्से में 9 और शरद पवार के हिस्से में 8 सीटें ही आई हैं.

ध्यान देने वाली बात ये है कि शरद पवार के बयान को कैसे देखा जाना चाहिये? आखिर उनके मन में चल क्या रहा है?

क्या शरद पवार वास्तव में महाविकास आघाड़ी की चुनावी जीत की सूरत में भी अब उद्धव ठाकरे को मुख्यमंत्री के रूप में नहीं देखना चाहते? या वो महाराष्ट्र में राजनीतिक समीकरणों को मनमाफिक बैलेंस करना चाहते हैं.

देखा जाये तो शरद पवार के लिए शिवसेना नहीं, कांग्रेस का ताकतवर होना चिंता की बात है, क्योंकि दोनों की पॉलिटिकल लाइन एक ही है. उद्धव ठाकरे तो उनकी तरफ से बीजेपी का जबाव हैं, जिनके जरिये वो जरूरत आने पर बीजेपी के रास्ते की बाधा बना सकें.

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ऐसा लगता है कि शरद पवार चाहते हैं कि उद्धव ठाकरे विधानसभा चुनाव बाद भी ताकतवर बन कर उभरें, लेकिन विधायकों की संख्‍या उनकी एनसीपी के लगभग बराबर ही रहे. ऐसा हुआ तो कांग्रेस पर दबाव कायम रखा जा सकेगा, वरना नाना पटोले कभी भी खेल कर सकते हैं. वो तो बीजेपी से नाराज होकर ही आये हैं. अगर एकनाथ खड़से घर वापसी की कतार में लग सकते हैं, तो नाना पटोले क्यों नहीं. नाना पटोले का मामला थोड़ा मुश्किल है, क्योंकि एकनाथ खड़से ने देवेंद्र फडणवीस की वजह से बीजेपी छोड़ी थी और नाना पटोले तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ बयान दे चुके हैं.

कांग्रेस की महाराष्ट्र में क्या रणनीति है?

नाना पटोले की महाराष्ट्र की राजनीति को लेकर अपना प्लान हो सकता है. उद्धव ठाकरे के लिए मुश्किल ये है कि नाना पटोले खुद भी सीएम बनना चाहते हैं. और अगर खुद न बन सकें, तो इस बात से भी खुश होंगे कि कम से कम उद्धव ठाकरे न बन पायें.

लेकिन राहुल गांधी कांग्रेस के अखिल भारतीय स्वरूप को ध्यान में रख कर आगे बढ़ रहे हैं. हरियाणा में कांग्रेस की ओर से आम आदमी पार्टी के साथ चुनावी गठबंधन की पहल तो यही बता रही है. निश्चित तौर पर नाना पटोले भरोसेमंद और करीबी होने के नाते राहुल गांधी को अपनी बात समझाने की कोशिश कर सकते हैं, लेकिन राहुल गांधी तो पहले भी अपने मन की ही करते थे, अब तो बहुत कुछ बदल चुका है.

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हरियाणा में कांग्रेस के रुख को देखकर समझने की कोशिश करें तो राहुल गांधी महाराष्ट्र में कांग्रेस किंगमेकर की भूमिका में रखना चाहते हैं - क्‍योंकि कांग्रेस के केंद्र में ताकतवर बनना है, ताकि वो बीजेपी को सीधे सीधे चैलेंज कर सके.

देखना है उद्धव ठाकरे शरद पवार के फॉर्मूले पर कैसे रिएक्ट करते हैं? क्या फैसला लेते हैं? एक बार तो मुख्यमंत्री पद पर तकरार के बाद उद्धव ठाकरे बीजेपी से गठबंधन भी तोड़ चुके हैं - कहीं महाविकास आघाड़ी को लेकर भी मन में वैसे ही ख्याल तो नहीं आ रहे हैं!

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मनोज शर्मा

मनोज शर्मा (जन्म 1968) स्वर्णिम भारत के संस्थापक-प्रकाशक , प्रधान संपादक और मेन्टम सॉफ्टवेयर प्राइवेट लिमिटेड के मुख्य कार्यकारी अधिकारी हैं।

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