बीजेपी ने किस तरह विनेश फोगाट-बजरंग पूनिया को कांग्रेस की झोली में डाल दिया...

4 1 35
Read Time5 Minute, 17 Second

हरियाणा में विधानसभा चुनाव के लिए वोटिंग होने में अब केवल एक महीने शेष रह गए हैं. बुधवार को कांग्रेस नेता राहुल गांधी के आवास पर हरियाणा की रेसलर विनेश फौगाट और बजरंग पुनियापहुंचे. राहुल ने उनकी तस्वीर सोशल मीडिया पर डाली. जाहिर है कि कांग्रेस की ओर सेयहसंदेश था कि दोनों जल्द ही कांग्रेस जॉइन कर सकते हैं .हरियाणा की राजनीतिक समझ रखने वालों को पता है किबीजेपी के लिएविधानसभा चुनावों में यह काफी भारी पड़ने वाला है. महिला पहलवानों के मुद्दों पर जो अदूरदर्शिता भारतीय जनता पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व ने दिखाई थी उसके नुकसान की भरपाई मुश्किल हो गई है.

महिला रेसलरों के यौन उत्पीड़न के खिलाफ विनेश ने तत्कालीन WFI प्रमुख बृज भूषण शरण सिंह के विरोध में लड़ाई लड़कर बीजेपी के विरोध की आवाज बन चुकी है. हरियाणा के चुनावों में वैसे तो कई मुद्दे होंगे पर विनेश फौगाट के बजरंग पूनिया ने जिस मुद्दे को लेकर सक्रिय हैं वो सभी मुद्दों पर भारी पड़ सकता है. विनेश को ओलंपिक में सफलता मिलने के बादजिस तरहहाथ से पदक फिसल गए उससे आम लोगों में उनको लेकर जबरदस्त संवेदना है.विनेश के राजनीतिक अखाड़े में उतरने से जाहिर है कि ब्रजभूषण शरण सिंह विवादकी फिर से हर गली चौक चौबारे पर चर्चा होगी. जो चुनाव परिणाम के लिए गेमचेंजर भी साबित हो सकता है. विनेश का विक्टिम कार्ड खेलना तय है .जो मौजूदा सरकार के खिलाफ किसानों की नाराजगी, जाटों की नाराजगी आदि को और बल प्रदान करेगा.अब सवाल उठता है कि क्या भारतीय जनता पार्टी यह समझ नहीं रही थी. इस सवाल का उत्तर सिर्फ इतना है कि बीजेपी ने अगर थोड़ी तत्परता दिखाई होती तो आज कांग्रेस इसका लाभ उठाने की स्थिति में नहीं होती.

Advertisement

हरियाणा में जाट-किसान और खेल सब आपस में गुत्थमगुत्थ हैं

हरियाणा आज पूरे देश में खेलों में सबसे आगे है. पूरे देश को ओलंपिक में मिले कुल पदकों में करीब 87 प्रतिशत की हिस्सेदारी अकेले हरियाणा से है. इसमें भीखास बात है कि हरियाणा सेआए कुल पदकों में अधिकतर पर जाट समुदाय के खिलाड़ियों का कब्जा होता है.हरियाणा के कुछ पंजाबियों को छोड़ दें तो कभी किसी ब्राह्मण-बनिया या किसी और समुदाय के लोगों कोपदक हासिल करते कम ही सुना गया है. दरअसल खेलों को जाट समुदाय ने गृह उद्योग बना लिया है.

इसी तरह हरियाणा में किसान और जाट शब्द एक दूसरे के पर्याय हैं. शायद चही कारण है कि किसान आंदोलन के आलोचक इसे सिखों और जाटों केआंदोलन की संज्ञा दे देते हैं. यही सब सोचते हुए ही विनेश फौगाट ने हाल ही में शंभू बॉर्डर पर प्रदर्शनकारियों, जींद और रोहतक में खाप पंचायत नेताओं से मुलाकात की. 27 अगस्त को जींद में आयोजित एक कार्यक्रम में विनेश ने कहा कि 'वह राजनीति में प्रवेश को लेकर दबाव में हैं, लेकिन कोई भी निर्णय लेने से पहले वह अपने बुजुर्गों से सलाह लेंगी. उन्होंने कहा, राजनीति में जाने का दबाव है, लेकिन मैं अपने बुजुर्गों से सलाह लूंगी. जब मेरा मन साफ होगा, तब मैं सोचूंगी कि क्या करना है, क्योंकि मैं अभी भी गहरे सदमे में हूं.' मतलब साफ है कि राजनीति में उतरने के पहले पूरा होमवर्क किया गया है. जाहिर है कि विनेश अगर कांग्रेस की ओर से कैंपेन करती हैं तो यह हरियाणा के जाटों को तो एकजुट करेंगी ही बीजेपी विरोधी वोटों को भी एकजुट करने में कामयाब होंगी.

Advertisement

महिला पहलवानों के मुद्दे को इतना बड़ा सरकार ने ही बनने दिया

सवाल यह है कि महिला पहलवानों ने अगर यौन उत्पीड़न की बात की तो उसे तिल का ताड़ किसने बनने दिया? इसका जवाब सीधा है भारतीय जनता पार्टी नेतृत्व इसे शुरू से बहुत हल्के में लेता रहा. बाद में जब मामला बढ़ गया तो इसे जाट और एंटी जाट , हरियाणा बनाम अन्य राज्य बनाने की कोशिशकी गई. पर कोई कोशिश सफल नहीं हुई और विनेश इस कैंपेन की स्टार बन गई. किसी भी देश में ओलंपिक मेडल लाने वालों को बहुत सम्मान से देखा जाता है. भारत में तो वैसे भी उंगली पर गिनती के मेडल ही अभी तक आएं हैं . इसलिए यहां तो और भी सम्मान मिलना चाहिए.

आंदोलन के दौरान विनेश के पास ओलंपिक मेडल तो नहीं था पर साक्षी मलिक और बजरंग पूनिया ओलंपिक मेडलिस्ट हैं. अगर देश के 2 महान खिलाड़ी सड़क पर उतरकर किसी नेता के खिलाफ यौन उत्पी़ड़न जैसा गंभीर आरोप लगा रहे थे सरकार के ऊपर जूं तक नहीं रेंग रही थी. पूरा तंत्र यह साबित करने में जुटा हुआ था कि यह सब राजनीतिक कारणों से हो रहा है. अगर यह विरोध राजनीतिक कारणों से हो रहा था तो बीजेपी सरकार को और ढंग से इस मामले को हैंडल करना चाहिए था. पर सरकार में बैठे लोग और भारतीय जनता पार्टी के नेता यह साबित करने में लगे रहे कि कांग्रेस इन खिलाड़ियों को भड़का रही है. ब्रजभूषण शरण सिंह जैसे माफिया टर्न पॉलिटिशिय़न को सही साबित किया जा सके इसके लिए भी भी तर्क ढूंढे जा रहे थे.

Advertisement

ब्रजभूषण शरण पर एक्शन लिया गया पर इतनी देर कर दी गई कि उसका कोई मतलब नहीं रहा. जैसे लगा कि उन्हें सेफ पैसेज दिया गया हो. दिल्ली पुलिस ने ब्रजभूषण शरण सिंह के खिलाफ एफआईआर दर्द की और जांच के लिए भी तलब किया पर यह सब इस तरह हो रहा था जैसे सरकार अनिच्छा पूर्वक कर रही हो. क्या कोई आम आदमी या कोई सामान्य सांसद यह सोच भी सकता है कि महिला यौन उत्पीड़न का मामला दर्ज हो और उसकी गिरफ्तारी न हो. गौरतलब है कि ब्रजभूषण की गिरप्तारी आज तक नहीं हुई है.

ब्रजभूषण जैसे दर्जनों नेताओं को बीजेपी इतिहास बना चुकी है

बहुत से लोग यह कहते हुए मिल जाएंगे कि पार्टियों को चुनाव जीतना होता है इसलिए वो ब्रजभूषण शरण सिंह जैसे लोगों पर एक्शन नहीं लेती हैं. पर क्या यह सही नहीं है कि ब्रजभूषण शरण सिंह से भी अधिक कद्दावर लोगों को बीजेपी में किनारे लगाया जा चुका है. दूर जाने की जरूरत नहीं है हरियाणा में ही कई ऐसे नेता हैं जो कम से कम आधा दर्जन विधानसभा सीटों पर प्रभाव रखते हैं जिन्हें पार्टी ने कई सालों से कोई महत्व नहीं दिया है. फिर भी वे पार्टी में बने हुए हैं. ब्रजभूषण को भी पार्टी बाहर का रास्ता दिखा सकती थी. नहीं बाहर का रास्ता दिखाती तो कम से कम पैदल ही कर सकती थी. उत्तर प्रदेश में भी कितने कद्दावर नेताओं को पार्टी ने अभिभावक मंडल में भेज दिया या किनारे लगा दिया , क्या फर्क पड़ा? यूपी में योगी और मोदी के नाम पर ही वोट मिलता है.उत्तर प्रदेश में ब्रजभूषण शरण सिंह को टिकट न देकर उनके बेटे करणभूषण शरणसिंह को प्रत्याशी बनाकर पार्टी ने यह दिखा दिया कि उसे महिला पहलवानों के मुद्दे पर किसके साथ खड़ा होना है.

Advertisement

महिला उत्पीड़न पर मोदी सरकार की जीरो टॉलरेंस की पॉलिसी को भी लगा धक्का

पिछले 10 सालों में बीजेपी को सबसे अधिक वोट महिलाओं का मिल रहा है. महिलाएं जाति और धर्म को अलग रखकर भारतीय जनता पार्टी को वोट कर रही हैं. उसके पीछे है पीएम नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कई मौकों पर कहाकि वह महिलाओं के प्रति होने वाले अन्याय को लेकर जीरो टॉलरेंस की पॉलिसी में विश्वास रखते हैं. यही कारण है कि भाजपा शासित राज्यों में महिलाओं के साथ छेड़छाड़ तक मामलों के अलग से सेल , अथॉरिटी या सुरक्षा बलों का गठन किया गया है. हरियाणा की बीजेपी सरकार ने भी महिलाओं से छेड़छाड़ को लेकर जीरो टॉलरेंस की पॉलिसी बना ऱखी है. हरियाणा के खेल मंत्री रहे और ओलंपियन संदीप सिंह ने चंडीगढ़ पुलिस द्वारा जूनियर एथलेटिक्स कोच का यौन उत्पीड़न करने के मामले में एफआईआर के बाद अपने पद से इस्तीफा दे दिया था. नरेंद्र मोदी मंत्रिमंडल में पत्रकार एमजे अकबर को मी टू के आरोपों के चलते कई साल पुराने मामले में रिजाइन करना पड़ा था.परब्रजभूषण शरण सिंह के मामले में सरकार क्यों कमजोर पड़ गई यह आज तक समझ में नहीं आया. हालांकि बाद में कुश्ती संघ से ब्रजभूषण शरण सिंह हटे पर तब तक बहुत देर हो चुकी थी. इस देरी की वजह से विपक्ष को यह मौका मिल गया कि महिलाओं की सुरक्षा को लेकर सरकार गंभीर नहीं है.

Live TV

\\\"स्वर्णिम
+91 120 4319808|9470846577

स्वर्णिम भारत न्यूज़ हिन्दी के एंड्रॉएड ऐप के लिए आप यहां क्लिक कर सकते हैं.

मनोज शर्मा

मनोज शर्मा (जन्म 1968) स्वर्णिम भारत के संस्थापक-प्रकाशक , प्रधान संपादक और मेन्टम सॉफ्टवेयर प्राइवेट लिमिटेड के मुख्य कार्यकारी अधिकारी हैं।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Laptops | Up to 40% off

अगली खबर

नायब कैबिनेट में मौका नहीं, अब CM कैसे बनेंगे अनिल विज? हरियाणा में कितने पावरफुल

Will Anil Vij become CM: हरियाणा में विधानसभा चुनाव के लिए अगले महीने मतदान है और सभी दल प्रचार में जुटे हैं. लेकिन, इस बीच बीजेपी (BJP) के अंदर राजनीतिक रस्साकशी शुरू हो गई है, क्योंकि बीजेपी के वरिष्ठ नेता और हरियाणा के पूर्व मंत्री अनिल विज (An

आपके पसंद का न्यूज

Subscribe US Now