पुलिस या कानून नहीं, हमारी संस्‍कृति में है रेप की समस्‍या का समाधान

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'हर रक्षाबंधन पर भाई अपनी बहन को उसकी रक्षा करने का वचन देता है. लेकिन किससे? किसी और के भाई से? सभी भाई अपनी बहनों से ये क्‍यों नहीं कहते कि वे किसी और की बहन को असुरक्षित महसूस नहीं करवाएंगे?'

आजतक रेडियो पोडकास्‍ट 'तीन ताल' को इस हफ्ते मिला एक पत्र आंखें खोल देने वाला था. इसी हफ्ते पूरा देश पूरब में एक रेप और हत्‍या के खिलाफ प्रदर्शन कर रहा है, जबकि पश्चिम में दो अबोध बच्चियों के साथ हुई ज्‍यादती के खिलाफ भीड़ ने सब ठप कर दिया है. इसी हफ्ते उत्‍तर ने रक्षाबंधन मनाया और पूरा देश आजादी के 77 साला जश्‍न को मनाने एकजुट हुआ.

अगले हफ्ते खबरों का क्रूर पहिया आगे बढ़ जाएगा.

फिर कोई बलात्‍कार होगा. किसी और से ज्‍यादती. नए प्रदर्शन होंगे. इस्‍तीफा देने के नई मांगें होंगी. सत्‍ता में बैठे लोगों से और सवाल होंगे. लेकिन, असली समस्‍या पर कोई बात नहीं होगी. रेप कोई पुलिसिंग की प्रॉब्‍लम नहीं है. रेप एक पारिवारिक, कम्‍युनिटी और संस्‍कृति की समस्‍या है.

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महाभारत के बारे में सोचिये. जब द्रौपदी को अपने खोई इज्‍जत के लिए लड़ना पड़ा था. उन्‍होंने अपनी इज्‍जत की 'रक्षा' के लिए भगवान कृष्‍ण को पुकारा था. और नतीजे में कौरवों को भयानक मौत मिली. हमारे महाकाव्‍यों में न्‍याय भी दैवीय होता है. लेकिन, असली जीवन उतना सरल और आसान नहीं है. बल्कि न्‍याय नकारा ही जाता है. बहुतायत में देर से मिलता है. अजमेर में हुए एक संगठित गैंगरेप कांड को फैसले तक पहुंचने में 32 साल लगे हैं. यदि हमने ट्विटर पर #NotAllMen को पर्याप्‍त ट्रेंड करवा लिया है तो असल में चिंता यह करनी चाहिए कि हम अपने बेटों को सही पर‍वरिश कैसे दें.

'सभी भाई अपनी बहनों को यह क्‍यों नहीं भरोसा दिलाते हैं कि उनकी वजह से किसी और की बहन को असुरक्षित नहीं होना पड़ेगा?'

हमारे देश में एक लड़के और लड़की की परवरिश एक जैसी नहीं होती है. ये कोई नई समस्‍या नहीं है, और न ही रातोंरात ठीक हो जाएगी. लेकिन हम इस पर बात तो कर ही सकते हैं. इसे पहचानना और स्‍वीकार करना समाधान की पहली सीढ़ी होगी. कोई पुलिस बलात्‍कार नहीं रोक सकती, जब तक कि परिवार अपने घर की बेटियों को दोयम दर्जे का नागरिक मानना बंद नहीं करते. उससे बदतर है ये ख्‍याल कि बेटियां परिवार की इज्‍जत होती हैं. इसीलिए उसकी 'रक्षा' की जानी चाहिए.

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निर्भया रेप केस पर बनी लेसली उडविन की डॉक्‍युमेंट्री में बलात्‍कारियों के वकील एमएल शर्मा का खून खौलाने वाला बयान दर्ज है. जिसका हिंदी भाव यह है कि 'उनको सड़क पर यूं ही नहीं छोड़ा जाना चाहिए. औरत, लड़की, महिला, जो भी कहें वे किमती रत्‍न की तरह हैं, जैसे हीरा. अब ये आपके ऊपर है कि उस हीरे को आप कैसे रखते हैं. यदि आप उस हीरे को सड़क पर यूं ही छोड़ देंगे तो कुत्‍ते उसे झपट ही लेंगे. आप रोक नहीं सकते.' यहां शर्मा सिर्फ 2012 के विभत्‍स गैंगरेप कांड पीडि़ता के बारे में ही नहीं, बल्कि आम औरतों के बारे में ये सब कह रहे थे.

आप शर्माजी के बेटे की बातों पर नाराज हो सकते हैं, लेकिन हमारे देश में बेटियों के बारे में इसी तरह की सोच तो ज्‍यादातर बेटों की होती है. बेटे शर्माजी के हों या किसी और के. लड़कियां 'कीमती' हैं. 'हीरे' की तरह है. 'लक्ष्‍मी' हैं. वे दैवीय चीज़ हैं. वे सबकुछ हैं, इंसान होने के सिवाय. उनके बारे में इस तरह बात होती है कि जैसे उन्‍हें पाया नहीं जा सकता. यही वजह है कि निर्भया का बलात्‍कारी कहता था कि देर रात घूमने वाली लड़की को 'सबक' सिखाया जाना चाहिए. उस जैसों के लिए रेप भी सबक ही है.

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जब तक हमारी संस्‍कृति में लड़कों खुल्‍ला छोड़कर लड़कियों को इज्‍जत के रूप में सहेजा जाता रहेगा, कोई ताकत रेप को नहीं रोक सकती. न कोई पुलिस और न ही कोई कानून.

चलिये, बात करते हैं परिवार की. नेशनल फैमिली हेल्‍थ सर्वे (NFHS-5) के 2022 में आए आंकड़े बताते हैं कि करीब हर तीन में से एक महिला पति से प्रताडि़त होती है. जबकि दूसरा दिल दहला देने वाला आंकड़ा यह है कि भारत में 50 फीसदी बच्‍चों ने 18 साल का होने से पहले किसी न किसी तरह की यौन प्रताड़ना झेली है. जिसमें ज्‍यादातर मामलों में प्र‍ताडि़त करने वाला व्‍यक्ति उनके परिवार का या कोई करीबी ही था. ऐसे ज्‍यादातर मामले कभी सार्वजनिक नहीं हो पाते क्‍योंकि हमारे परिवार एक ऐसी इकाई हैं जहां 'घर की बात घर में ही रहती है'. चाहे यौन हिंसा, यौन प्रताड़ना, या रेप. घर की इज्‍जत की खातिर सब दबा दिया जाता है. रेप बर्दाश्‍त हो जाएगी, लेकिन घर की 'इज्‍जत' का मिट्टी में मिलना नहीं.

प्रताड़ना देने वाले अनंत काल से परिवारों में ही रहे हैं. पुराणिक कथाओं में हों चाहे असली जीवन में. कौरव भी तो द्रौपदी के परिजन ही थे. ग्रीक माइथोलॉजी में ग्रीक गॉड Zeus और उनकी बहन Hera का किस्‍सा भी पढ़ लीजिये. आपको सुना-सुना सा लगेगा.कथा कहती है कि Zeus जब‍ पृथ्‍वी और आकाश में औरतों को अपने 'वश' में करते चले जा रहे थे, तभी उनकी नजर Hera पर पड़ी. लेकिन Hera ने उसकी हरकत को नजरअंदाज कर दिया. यह देखZeus ने एक असहाय कोयल का रूप धर लिया. इसपर Hera का दिल पिघल गया और उसने कोयल को उठा लिया. वे कुछ समझपाती,Zeus अपने वा‍स्‍तविक रूप में आ गए और Hera को अपने 'वश' में कर लिया. Hera का रेप कर दिया. आखिर में शर्मिंदगी से बचने के लिए Hera ने Zeus से विवाह कर लिया. जो परिवार में होता है, या आकाश में होता है, वो भी परिवार में ही रहता है.

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NCRB का डेटा कहता है कि 96.5 फीसदी मामलों में रेपिस्‍ट कोई और नहीं, बल्कि पीड़‍ित का कोई दोस्‍त, परिजन, लिव-इन पार्टनर, पूर्व पति या कोई परिवारिक मित्र ही होता है.

रेप कोई आंकड़ा नहीं है. न ही हेडलाइन, रिपोर्ट या कोई प्रोटेस्‍ट. रेप एक संस्‍कृति की समस्‍या है और उसे एक सांस्‍कृति समाधान ही चाहिए. घर से शुरू करिये. परिवार से शुरू करिये. शुरुआत करिये बेटों को भी उसी तरह की सामाजिक संवेदनशीलता वाली परवरिश देने से, जो अब तक बेटियों को देते आए हैं. हर शुरुआत एक छोटे कदम से होती है. लेकिन, सबसे पहले वो कदम उठाना होता है.

क्‍या सभी भाई अपनी बहनों को ये वचन नहीं दे सकते कि उनकी वजह से किसी और की बहन असु‍रक्षित महसूस नहीं करेगी?

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मनोज शर्मा

मनोज शर्मा (जन्म 1968) स्वर्णिम भारत के संस्थापक-प्रकाशक , प्रधान संपादक और मेन्टम सॉफ्टवेयर प्राइवेट लिमिटेड के मुख्य कार्यकारी अधिकारी हैं।

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