कोलकाता रेप-हत्‍याकांड पर BJP ने पर्दे के पीछे रहकर ममता बनर्जी को पहुंचाया है ज्‍यादा नुकसान

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कोलकाता रेप-मर्डर केस में ममता बनर्जी बुरी तरह घिरी हुई हैं. चौतरफा फजीहत हो रही है. कलकत्ता हाई कोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक आरजी कर मेडिकल कॉलेज में ट्रेनी डॉक्टर के साथ रेप और फिर हत्या के बाद भीड़ का हमला - इस पूरे प्रकरण ने पश्चिम बंगाल की पुलिस और प्रशासनिक मशीनरी को कठघरे में खड़ा कर दिया है.

वैसे तो करीब दस साल से, लेकिन पांच साल से तो बीजेपी शिद्दत से तृणमूल कांग्रेस और ममता बनर्जी के पीछे लगी है. 2019 के आम चुनाव में बीजेपी को बंगाल में पांव जमाने का मौका क्या मिला, 2021 के विधानसभा चुनाव में तो ममता बनर्जी के बेहद खास नेता शुभेंदु अधिकारी को अपने पाले में लाकर बीजेपी ने अपने हिसाब से 'खेला' का पूरा इंतजाम कर लिया था, लेकिन चूक गई, और वैसे ही संदेशखाली के बहाने लोकसभा चुनाव में भी कुछ बड़ा करने का इरादा था जो धरा का धरा रह गया.

लेकिन अब बीजेपी संभल गई है. कोलकाता रेप-मर्डर केस में संदेशखाली वाली राजनीतिक गलती नहीं दोहरा रही है. बंगाल की राजनीति को बीजेपी नेतृत्व ने बंगाल के नेताओं के हवाले कर रखा है - और बगैर हो-हल्ला मचाये भी बीजेपी ने ममता बनर्जी को काफी नुकसान पहुंचाया है.

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कोलकाता के रेप-मर्डर केस में ट्रेनी डॉक्टर को इंसाफ दिलाने के लिए अब बीजेपी कार्यकर्ता सड़क पर उतर रहे हैं - और इंसाफ दिलाने की ये मुहिम पांच दिनों तक चलने वाली है.

अव्वल तो केंद्र की सत्ता में होने के कारण बीजेपी के पास ममता बनर्जी की राजनीति को डैमेज करने का बेहतरीन मौका है, लेकिन लगता है बीजेपी ने रणनीति बदल ली है. बीजेपी, असल में, ममता बनर्जी की राजनीति को खुद एक्सपोज होने का मौका दे रही है. वैसे भी बीजेपी के जाहिर तौर पर कुछ खास किये बगैर ही ममता बनर्जी की लगातार फजीहत हो रही है - और बीजेपी के पास ये ऐसा मौका है जब वो ममता बनर्जी के खिलाफ मुकाबले में किसी भी स्थानीय नेता को खड़ा कर सके.

मौका तो है, बशर्ते बीजेपी फायदा उठा लेना चाहे!

बीजेपी के पास ममता बनर्जी के खिलाफ मोर्चेबंदी का भरपूर मौका है. बीजेपी चाहे तो केंद्र सरकार पर दबाव बना सकती है कि पश्चिम बंगाल में राष्ट्रपति शासन लागू कर दिया जाये, हालांकि, अभी तक ऐसा कोई संकेत नहीं मिला है.

निश्चित रूप से पश्चिम बंगाल के गवर्नर सीवी आनंद बोस दिल्ली पहुंचे हैं. राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू से मुलाकात कर कोलकाता रेप-मर्डर केस के बाद की स्थिति के बारे में बताया ही होगा. केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से भी मुलाकात की है, और मौजूदा हालात के बारे में अपनी रिपोर्ट दी ही होगी.

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बेशक एक घटना विशेष से किसी राज्य की कानून-व्यवस्था का मूल्यांकन नहीं किया जा सकता, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने कोलकाता रेप-मर्डर केस को लेकर जिस तरह स्वतः संज्ञान लिया है, और पूरे मामले को केंद्र में रख कर सरकार मशीनरी की कार्यप्रणाली पर जो सवाल उठाये हैं, वे बीजेपी के लिए कारगर राजनीतक हथियार तो हैं ही.

बंगाल के हाल को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और उनकी टीम पश्चिम बंगाल के मामले में जो भी विचार-विमर्श कर रहे हों, लेकिन बीजेपी अपनी राजनीतिक मुहिम तो शुरू कर ही चुकी है - और जैसे अयोध्या में राम मंदिर बनाने के लिए कानून लाने की मांग की गई थी, उसी तर्ज पर राष्ट्रपति शासन की भी मांग उठायी जा सकती है.

अगर केंद्र सरकार का ऐसा कोई इरादा नहीं है, तो भी सड़क पर उतर चुकी बीजेपी ममता बनर्जी के खिलाफ अपने मनमाफिक नैरेटिव तो चला ही सकती है - अब ये बीजेपी नेताओं और सलाहकारों की काबिलियत पर निर्भर करता है कि वे ममता बनर्जी के खिलाफ अपने मिशन में कहां तक कामयाब हो पाते हैं?

बंगाल पर बीजेपी फिलहाल किस रास्ते पर है?

ममता बनर्जी के खिलाफ इससे पहले संदेशखाली भी बहुत बड़ा मुद्दा था - लेकिन नतीजों पर नजर डालें तो यही लगता है कि सारे ताम-झाम के बावजूद बीजेपी के लोग मुंह के बल गिर पड़े थे.

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जिस संदेशखाली के मुद्दे को बीजेपी ने पूरे लोकसभा चुनाव कैंपेन के दौरान सबसे बड़ा मुद्दा बनाया, चुनाव नतीजे आये तो मालूम हुआ वो तो बहुत पहले ही फुस्स हो गया था. बशीरहाट लोकसभा सीट पर भी तृणमूल कांग्रेस उम्मीदवार ने भारी अंतर से जीत दर्ज की थी - यूपी जैसा तो नहीं कहेंगे, लेकिन पश्चिम बंगाल से भी बीजेपी को अपेक्षा के विपरीत नतीजे देखने को मिले. बीजेपी के बड़े नेताओं की तरफ से पश्चिम बंगाल में 25 सीटें जीतने के दावे किये जा रहे थे, लेकिन बीजेपी सिर्फ 12 सीटों पर सिमट गई, यानी 2019 .
बीजेपी को पिछली बार के मुकाबले इस बार छह सीटें कम मिली हैं.

जिस पश्चिम बंगाल से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सबसे ज्यादा सीटें जीतने का दावा किया था, जिस पश्चिम बंगाल से बीजेपी के सभी आला नेताओं ने 25 से ज्यादा सीटें जीतने की हुंकार भरी थी, उस पश्चिम बंगाल में बीजेपी सिर्फ 12 सीटों पर सिमट गई है.

संदेशखाली से बीजेपी को कितनी उम्मीदें होंगी, ऐसे समझा जा सकता है कि मामले की पीड़ित रेखा पात्रा को उम्मीदवार बनाया गया. रेखा पात्रा के लिए बीजेपी नेता शुभेंदु अधिकारी पॉलिटिकल एस्कॉर्ट बने हुए थे.

ये सब तो यही बता रहा है कि दिल्ली में बैठे बीजेपी के सलाहकार पश्चिम बंगाल को समझने में भूल कर रहे थे. दिल्ली में बैठे बीजेपी के उत्तर भारतीय रणनीतिकार ममता बनर्जी के पक्ष में बनी बंगाली मानसिकता को ठीक से समझ ही नहीं पा रहे थे - देर से ही सही, लेकिन अब जरूर लग रहा है कि धीरे धीरे वे लोग भी सबक सीखने लगे हैं.

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बीजेपी को एक 'अधीर रंजन' की सख्त जरूरत है

बीजेपी जैसे अरविंद केजरीवाल और नीतीश कुमार के मुकाबले कोई नेता नहीं तलाश पाई है, ममता बनर्जी के मामले में भी बिलकुल ऐसा ही हुआ है. 2021 के चुनावों से पहले शुभेंदु अधिकारी को बीजेपी ने बड़ी मछली समझा था, लेकिन वो भी कोई खास कमाल नहीं दिखा पा रहे हैं. वो भी दूसरे मुकुल रॉय बन कर रह गये. बंगाल में बीजेपी दिलीप घोष से लेकर सुकांता मजूमदार तक बारी बारी सबको आजमाती आ रही है, लेकिन अब तक तलाश पूरी नहीं हुई है.

अब तक बीजेपी ने ममता बनर्जी की राजनीति को डैमेज करने के लिए तृणमूल कांग्रेस के अंदर से ही विभीषण की तलाश की है. हो सकता है कहीं कहीं ये दांव चल जाता हो, लेकिन पश्चिम बंगाल में तो बिलकुल नहीं चल पा रहा है - ऐसे में बीजेपी को किसी ऐसे नेता को मोर्चे पर लगाना चाहिये जो मन से ममता बनर्जी से लड़ने को तैयार हो.

पश्चिम बंगाल की राजनीति में अधीर रंजन चौधरी एक ऐसा ही नाम है, जिसे कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने हाशिये पर भेज दिया है, और कोलकाता रेप-मर्डर के मामले में राहुल गांधी के बयान पर सवाल खड़े कर अधीर रंजन ने अपना इरादा भी जाहिर कर दिया है - क्या बीजेपी अधीर रंजन को आजमाने लगी है?

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मनोज शर्मा

मनोज शर्मा (जन्म 1968) स्वर्णिम भारत के संस्थापक-प्रकाशक , प्रधान संपादक और मेन्टम सॉफ्टवेयर प्राइवेट लिमिटेड के मुख्य कार्यकारी अधिकारी हैं।

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