विधान परिषद में बेमौत मरे नजूल भूमि विधेयक के राजनीतिक मायने इन 5 बिंदुओं में समझिये

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उत्तर प्रदेश भाजपा में सब कुछ सही नहीं चल रहा है,ये अब कोई ढंकी छुपी बात नहीं है. पर इस हफ्ते की शुरुआत में ऐसा लगा था कि केंद्र के हस्तक्षेप से सब कुछ सुलझा लिया गया है. पर मर्ज की जितनी दवा हो रही है उतनी ही बढता जा रहा है. मामला इतना उलझ गया कि यूपी सरकार द्वारा पेश नजूल भूमि विधेयक को विधानसभा में पास होने के बाद विधान परिषद में रोक दिया गया. जब कि विधानपरिषद में भी सरकार को पूर्ण बहुमत है.

दरअसलयोगी सरकार यूपी की नजूल की जमीन को विकास योजनाओं के लिए जमीन उपलब्ध कराने की मंशा से यूपी नजूल संपत्ति (लोक प्रयोजनार्थ प्रबंधन और उपयोग) विधेयक, 2024 लेकर आई थी. सीएम योगी आदित्यनाथ की अध्यक्षता में बुधवार को कैबिनेट की बैठक से नजूल भूमि विधेयक बिल को मंजूरी दी गई. इसके बाद विधेयक को विधानसभा में संसदीय कार्यमंत्री सुरेश खन्ना ने पेश कर दिया. विधेयक पेश करते हुए सरकार ने बताया कि आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों को राहत देने के लिए यह कानून लाया जा रहा है. इसके साथ ही यह भी बताया गया कि गरीबों से जमीन खाली करने का प्रावधान विधेयक में नहीं लाया गया है.

सार्वजनिक महत्व की विकास योजनाओं के कारण भूमि की निरंतर और तत्काल जरूरत पूरी करने के लिए यह कानून लाया जा रहा है. इसके बावजूद भी गरीबों के सिर से छत छिन जाएगी,की बात करके अचानक जिस तरह कानून को बनने से रोक दिया गया, वो निसंदेह बीजेपी के लिए सही संदेश नहीं देता है. विधेयक को रोकना था तो आपस में बातचीत करके पहले ही रोक लिया गया होता.कम से कम विपक्ष को हमले करने का मौका तो नहीं मिलता.

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1-यूपी में सत्ता और संगठन का संघर्ष अभी चल रहा है

लोकसभा चुनाव नतीज के बाद उत्तर प्रदेश में बीजेपी कार्यसमिति की बैठक में डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य ने सरकार से बड़ा संगठन बताया था. जिसे माना गया था कि केशव प्रसाद मौर्य का योगी सरकार पर हमला माना गया. बाद में कई मौकों पर और केशव प्रसाद मौर्य ने ऐसी ही बातें कीं. नजूल भूमि संबंधी बिल को योगी सरकार ने अगर विधानसभा में पास करा लिया पर विधान परिषद में बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र चौधरी ने विरोध करके बिल को प्रवर समिति को भेजने के लिए मजबूर कर दिया. चौधरी को बिल से अगर शिकायत थी या, अगर अचानक विरोध बढ़ गया तो उसे मिल बैठकर सुलझाने की जरूरत थी. जरूरत होती तो विधेयक को रोक दिया जाता. अचानक विधान परिषद में विधेयक रोकने का मतलब यही जाता है कि या तो मुख्यमंत्री संगठन की बात नहीं सुन रहे हैं या संगठन ने मुख्यमंत्री से बात नहीं की. जाहिर है कि इसका मतलब यही निकलता है कि पार्टी में संघर्ष अभी चल रहा है. पार्टी में किसी विधेयक को लेकर इतना अतंर्रविरोध था तो उसे हड़बड़ी में पेश करने की जरूरत ही नहीं थी. कोई इतना महत्वपूर्ण विधेयक नहीं था कि उसका कुछ और महीने इंतजार न किया जा सके.

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2-विधेयक को रोककर संगठन क्या दिखाना चाहता है

यूपी में बीजेपी सरकार आने के बाद यह पहला मौका है, जब विधानसभा से पास होने के बाद कोई बिल को उस पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष ने विधेयक का विरोध करते हुए विधान परिषद में लटकवा दिया हो. ऐसे में यह सवाल उठेगा ही कि अगर इस विधेयक को किसी समिति के पास भेजना था तो फिर विधान सभा में लाया ही क्यों गया? और अगर विधानसभा में ही रोककर किसी समिति के पास क्यों नहीं भेजा गया. कहीं ऐसा तो नहीं है कि यह इसलिए किया गया ताकि यह संदेश दिया जा सके कि संगठन सरकार से भारी है.क्योंकि विधान परिषद में सदन के नेता केशव प्रसाद मौर्य हैं और विधान परिषद में ही भूपेंद्र चौधरी भी हैं. चूकी विधान परिषद के सभापति कुंवर मानवेंद्र सिंह ने भूपेंद्र चौधरी के अनुरोध को स्वीकार करते हुए बिल को प्रवर समिति को भेजा, मतलब साफ है कि ये मौका विधानसभा में नहीं मिलता. जाहिर है कि विधान परिषद में ऐसे ही बिल की राह में भूपेंद्र चौधरी रोड़ा नहीं बने होंगे. अगर प्रयाग राज के विधायकों सिद्धार्थ नारायण सिंह और हर्ष वाजपेयी को लगता था कि इससे काफी नुकसान हो जाएगा तो पहले ही मुद्दा उठाना चाहिए था. कम से कम उत्तर प्रदेश सरकार की भद तो नहीं पिटती . इस तरह तो सीधे बीजेपी का ही नुकसान हुआ. आम जनता में सीधे संदेश गया कि सरकार और संगठन में वास्तव में संबंध बहुत खराब है.

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3-गरीब के सिर से छत न उजड़े,इसका तो बकायदा प्रावधान था

विधेयक को रोकने के लिए सबसे बड़ा जो तर्क दिया जा रहा है वो ये है कि इससे लाखों गरीबों के सिर से छत उजड़ जाएगी. पर सुऱेश खन्ना ने विधेयक पेश करते हुए बताया था कि विधेयक में गरीबों से जमीन खाली कराने का प्रावधान नहीं है. सरकार ने स्पष्ट किया था कि जिन लोगों ने लीज का पैसा समय से जमा कर दिया है उनके लीज का नवीनीकरण 30 साल के लिए फिर से किया जाएगा.ये भी कहा गया कि स्कूल, कॉलेज, अस्पताल और सरकारी संस्थाएं यथावत रहेंगी. सरकार ने यह भी आश्वासन दिया था कि नियम इस तरह बनाए जाएंगे कि किसी भी तरह से गरीब प्रताड़ित न हों. पर इस तरह नरेटिव सेट किया गया कि विधेयक पास हो गया तो सैकड़ों स्कूल कॉलेज गिरा दिए जाएंगे. एक विधायक ने तो यह भी कहा कि कि नजूल की भूमि पर ही हाईकोर्ट की बिल्डिंग भी बनी है, तो क्या उसे भी गिराएगी सरकार. सुरेश खन्ना ने स्पष्ट किया था कि जनहित के कार्यों के लिए भूमि का प्रबंध करने में काफी समय लग जाता है.अब नजूल की जमीन का उपयोग सार्वजनिक कार्यों के लिए ही किया जाएगा.

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4- गरीबों के नाम पर भू माफिया नजूल की भूमि का ले रहे मजा

उत्तर प्रदेश में अलग-अलग शहरों में करीब 28 हजार हेक्टेयर से ज्यादा नजूल की जमीनें हैं. सबसे ज्यादा जमीन प्रयागराज में है. इसलिए ही सबसे अधिक विरोध वहां के नेताओं का है. नजूल जमीन को आम तौर पर सार्वजनिक उद्देश्यों, जैसे – स्कूल, अस्पताल, ग्राम पंचायत भवन आदि के निर्माण के लिए इस्तेमाल होती रही हैं. नजूल की बहुत सी जमीन लोगों को पट्टे पर दी गई है.पट्टाधारियों ने बहुत सी जगहों पर जमीनें बेचकर रजिस्ट्री भी करा ली हैं.कुछ लोग घर बनाकर रह रहें तो कुछ लोग अपना व्यवसाय भी कर रहे हैं.पर कई हजार एकड़ पर भूमाफिया कब्जा भी किए हुए हैं. उत्तर प्रदेश के कई शहरों के अखबारों की खबरें बताती हैं कि भूमाफिया किस तरह काबिज हैं. गरीब लोगों के नाम पर भूमाफिया मजे कर रहे हैं.

2 अप्रैल 2024 को दैनिक स्वर्णिम भारत न्यूज़ में छपी खबर बताती है कि बस्ती जिले में करीब 100 से अधिक ऐसे नजूल भूखंडों को चिह्नित किया गया है जिन पर दूसरों का कब्जा है. तहसील प्रशासन ने जांच में पाया कि सिविल लाइंस क्षेत्र के दस भूखंडों पर कब्जा करने का मामला उजागर हुआ है. इन भूखंडों पर आवासीय एवं कामर्शियल निर्माण हुए हैं.इसमें टेंट व्यवसायी, मैरेज हॉल कारोबारी, रसोई गैस के एजेंसीधारक तक शामिल किए गए हैं. इसके अलावा शहर के अन्य हिस्सों में भी नजूल की जमीन पर कब्जा जमाए लोगों को चिह्नित किया जा रहा है. तहसील प्रशासन के अनुसार सौ से अधिक कब्जेदारों को चिह्नित कर लिया गया है. जिन्हें सिलसिलेवार नोटिस जारी की जाएगी.

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15 मार्च 2020 में लखनऊ दैनिक स्वर्णिम भारत न्यूज़ की खबर बताती है कि राजधानी में एलडीए की लगभग 100 एकड़ जमीन अवैध कब्जे का शिकार है. इसमें लगभग 14 हेक्टेयर नजूल भूमि पर भी अवैध कब्जा है. एलडीए इस पूरे अभियान को पिछले करीब डेढ़ साल से पूरी तरह से भूल चुका है। योगी सरकार आने के बाद मुख्यमंत्री की ओर से सख्त आदेश आने पर कार्रवाई की गई थी. जिसमें साल 2018 के आखिर तक एलडीए ने कुछ भू-माफिया चिह्न्ति किए थे. कुछ अवैध कब्जे भी हटाए गए थे. एंटी भू-माफिया अभियान के तहत पूरे शहर में केवल 14 भू-माफिया चिह्न्ति किए गए थे. इनमें से एक-दो को छोड़ कर भूमाफिया के सरकारी जमीन पर किए गए कब्जों को भी एलडीए नहीं हटा सका है.

18 मार्च 2020 में गोरखपुर में दैनिक स्वर्णिम भारत न्यूज़ की खबर बताती है कि
गोरखपुर शहर की हृदयस्‍थली गोलघर से मात्र पांच सौ मीटर की दूरी पर स्थित 22 एकड़ का तालाब कब्जा करके पूरा मोहल्‍ला बन गया. बहुत से लोग यह भी भूल चुके हैं कि यहां कभी तालाब भी हुआ करता था. भूमाफिया ने ताल के बीच हिस्से वाली जमीन पर गोदाम बनाकर किराए पर दे दिया है. जमीन पर कब्जा बना रहे इसके लिए करीब सौ से अधिक रोहिंग्या परिवारों को लाकर बसा दिया गया.राजस्व अभिलेख में 15 एकड़ जमीन ताल सुमेर सागर व सात एकड़ जमीन नजूल भूमि के रूप में दर्ज है.

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13 मार्च 2020 में बरेली अमर उजाला में छपी खबर बताती है कि यहां जिस पार्क में कभी महात्मा गांधी ने सभी की थी वह जुबली पार्क ही गायब है.पार्क की सीमाओं में घिरी जमीन का लैंड यूज बदले बगैर ही उस पर संजय कम्युनिटी हॉल, एलन क्लब, फायर ब्रिगेड और मेयर आवास समेत न जाने कितनी सरकारी इमारतों का निर्माण हो गया. तत्कालीन कमिश्नर के निर्देश पर नजूल भूमि पर बने जुबली पार्क की कलक्ट्रेट में दबी फाइल को तो निकाल लिया गया. सरकारी रिकार्ड में जुबली पार्क के नाम से गाटा नंबर 81 पर 3.743 हेक्टयर भूमि दर्ज है लेकिन मौके पर संजय कम्प्युनिटी हॉल, एलन क्लब, अग्निशमन विभाग के दफ्तर के साथ मेयर आवास, नगर निगम के सामने रोड के दूसरी ओर दुकानें, सीतापुर नेत्र चिकित्सालय के पीछे के हिस्से में दुकानें और दूसरे निर्माण हैं। गाटा नंबर 82 पर 0.923 हेक्टेयर भूमि है। हालांकि संजय कम्प्युनिटी हाल के पास पुरानी तालाब अब भी है लेकिन मौके पर इसका कितना क्षेत्रफल है, यह साफ नहीं हो सका है।

5-प्रयागराज के बीजेपी नेता क्यों हैं ज्यादा परेशान

मीडिया रिपोर्ट की माने तो प्रयागराज में करीब 1300 हेक्टेयर नजूल की जमीन है, जिन पर पीढ़ियों से लोग घर बनाकर रह रहे हैं. शायद यही कारण है कि योगी सरकार के नजूल भूमि संबंधी बिल का सबसे अधिक विरोध प्रयागराज क्षेत्र के बीजेपी विधायक और नेता ही कर रहे है. प्रयागराज के पश्चिमी सीट से बीजेपी विधायक सिद्धार्थनाथ सिंह हों या फिर शहर उत्तरी सीट के विधायक हर्षवर्धन दोनों ने पुरजोर तरीके से बिल का विरोध किया. राजा भैया का प्रभाव प्रयागराज में माना जाता है, शायद यही कारण है कि वह इस विधेयक के विरोध को लेकर बहुत मुखर हैं.स्वयं डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य का भी यह इलाका माना जाता है. प्रयागराज के खुसरो बाग के पास के इलाके, सिविल लाइंस, अशोक नगर, राजापुर, लूकरगंज, शिवकुटी और जार्जटाउन का बहुत बड़ा हिस्सा नजूल की जमीन पर बसा हुआ है.

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मनोज शर्मा

मनोज शर्मा (जन्म 1968) स्वर्णिम भारत के संस्थापक-प्रकाशक , प्रधान संपादक और मेन्टम सॉफ्टवेयर प्राइवेट लिमिटेड के मुख्य कार्यकारी अधिकारी हैं।

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