कर्नाटक के CM सिद्धारमैया पर चलेगा मुकदमा? राज्यपाल पर टिकीं सबकी निगाहें

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कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया मुश्किल में नजर आ रहे हैं. कारण, राज्य के राज्यपाल थावर चंद गहलोत ने उनकी पत्नी द्वारा एक सरकारी भूमि की 'अनियमित' खरीद में सिद्धारमैया की कथित भूमिका के लिए केस चलाने का आदेश देने की तैयारी कर ली है. सीएम के खिलाफ यह मुकदमा भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत चलाया जा सकता है.

राज्यपाल ने कथित MUDA भूमि आवंटन घोटाले में कैबिनेट की 'राय' मांगने के लिए मुख्यमंत्री को एक औपचारिक नोटिस भेजा. जिसके बाद गुरुवार को मंत्रिपरिषद की बैठक हुई और राज्यपाल को सिद्धारमैया को भेजा गया कारण बताओ नोटिस वापस लेने की सलाह दी गई. साथ ही मंत्रिपरिषद ने इसे बहुमत द्वारा चुनी गई एक स्थिर सरकार को अस्थिर करने का एकप्रयास करार दिया.

सिद्धारमैया ने इस बैठक से खुद को अलग रखा. जिसके बाद मंत्रिपरिषद की बैठक की अध्यक्षता उपमुख्यमंत्री डीके शिवकुमार ने की. करीब पांच घंटे तक चली बैठक के बाद शिवकुमार ने कहा कि सिद्धारमैया की पत्नी पार्वती को उनकी जमीन के लिए MUDA से वैकल्पिक साइट मिलने में कुछ भी अवैध नहीं था. राज्यपाल बिना किसी जांच या पूछताछ के जल्दबाजी में काम कर रहे हैं. शिवकुमार ने दावा किया कि राज्यपाल थावर चंद गहलोत के पास सिद्धारमैया के खिलाफ मुकदमा चलाने की मंजूरी देने का कोई मामला ही नहीं था.

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लेकिन, राज्यपाल के पास MUDA भूमि आवंटन से संबंधित सभी दस्तावेज मौजूद हैं और उन्होंने कानूनी विशेषज्ञों से इस संबंध में राय भी ली है. राज्यपाल ने अपने नोटिस में कहा था कि मुख्यमंत्री के खिलाफ गंभीर आरोप हैं और वो प्रथम दृष्टया उचित प्रतीत होते हैं. इससे यह संकेत मिलता है कि राज्यपाल आगे की कार्रवाई के लिए इच्छुक नजर आ रहे हैं.

येदियुरप्पा का उदाहरण

कर्नाटक की इस मौजूदा स्थिति की तुलना तत्कालीन राज्यपाल हंसराज भारद्वाज द्वारा 2011 में तब मुख्यमंत्री रहे बीएस येदियुरप्पा के खिलाफ अधिसूचना रद्द करने के मामले में आपराधिक कार्यवाही शुरू करने से की जा रही है. तब शिकायतकर्ता सिराजुद्दीन बाशा और केएन बलराज द्वारा दायर याचिका के आधार पर भारद्वाज ने भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम और दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 197 (लोक सेवक के खिलाफ मुकदमा चलाने की अनुमति) के तहत येदियुरप्पा के खिलाफ मुकदमा चलाने की मंजूरी दी थी. एफआईआर दर्ज होने के बाद भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व ने येदियुरप्पा से इस्तीफा देने को कहा था.

इस्तीफा देने के बाद येदियुरप्पा को मुकदमे का सामना करना पड़ा. इस दौरान उन्हें तीन सप्ताह के लिए न्यायिक हिरासत में भी भेजा गया. येदियुरप्पा कर्नाटक के ऐसे पहले पूर्व मुख्यमंत्री हैं जिन्हें जेल जाना पड़ा. गहलोत द्वारा भेजे गए नोटिस और सलाह मांगे जाने के कदम पर पांच बार कर्नाटक के एडवोकेट जनरल रह चुके बीवी आचार्य कहते हैं, राज्यपाल ने मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर सही प्रक्रिया का पालन किया है. सामान्य रूप से राज्यपाल को मंत्रिपरिषद की सहायता और सलाह पर कार्य करना होता है.

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संविधान के अनुच्छेद 163 में राज्यपाल को अपने विवेक का इस्तेमाल करने का अधिकार दिया गया है. यदि उन्हें लगता है कि मंत्रिपरिषद द्वारा दी गई सलाह दुर्भावनापूर्ण या किसी अन्य कारण से गलत है, तब उन्हें (मंत्रिपरिषद से) असहमत होने और स्वतंत्र रूप से राय रखने का अधिकार है. आचार्य ने 'मध्य प्रदेश स्थापना मामले 2004' में सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ के फैसले का हवाला दिया. इस मामले में न्यायालय ने राज्यपाल के उस फैसले को बरकरार रखा था, जिसमें उन्होंने दो राज्य मंत्रियों के खिलाफ मुकदमा चलाने की अनुमति दी थी, जबकि मंत्रिमंडल ने उन्हें ऐसा न करने की सलाह दी थी.


लोकायुक्त जांच के घेरे में भी सिद्धारमैया

सिद्धारमैया को एक और तरफ से परेशानी का सामना करना पड़ रहा है. एंटी करप्शन एक्टिविस्ट टीजे अब्राहम ने राज्यपाल से संपर्क करने के अलावा 18 जुलाई को मैसूर में लोकायुक्त पुलिस में भी शिकायत दर्ज कराई है. उन्होंने आरोप लगाया है कि मुख्यमंत्री की पत्नी पार्वती को मैसूर के पॉश विजयनगर इलाके में 14 वैकल्पिक स्थलों के अवैध आवंटन से राज्य के खजाने को 45 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है. उन्होंने सिद्धारमैया, उनकी पत्नी, बेटे और MUDA के आयुक्त के खिलाफ मुकदमा चलाने की मांग की है.

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मंत्रिपरिषद ने राज्यपाल से मुख्यमंत्री को दिया गया नोटिस वापस लेने के लिए कहने के अलावा अब्राहम की शिकायत पर भी ध्यान दिया. मंत्रिपरिषद ने राज्यपाल से उनकी याचिका को खारिज करने का आग्रह यह कहते हुए किया है कि उनका ब्लैकमेल, जबरन वसूली औक आपराधिक इतिहास रहा है.

इस बीच राज्य में विपक्षी भाजपा और जनता दल (सेक्युलर) के नेताओं के बीच सिद्धारमैया के इस्तीफे की मांग को लेकर बेंगलुरु और मैसूर से पदयात्रा निकालने को लेकर मतभेद सामने आया गया. हालांकि, गुरुवार को केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा के हस्तक्षेप के बाद दोनों दलों के बीच सुलह हो गई. केंद्रीय मंत्री और जेडी(एस) अध्यक्ष एचडी कुमारस्वामी ने पदयात्रा का बहिष्कार करने की घोषणा की थी. भाजपा नेताओं द्वारा हासन से युवा वोक्कालिगा नेता प्रीतम गौड़ा को इस आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका सौंपे जाने इस विरोध का कारण बताया गया.

यह कुमारस्वामी के लिए एक धक्का समान था क्योंकि प्रीतम ने कथित तौर पर लोकसभा चुनाव के दौरान कुमारस्वामी के भतीजे प्रज्वल रेवन्ना की छवि को खराब करने में अहम भूमिका निभाई थी. उन्होंने सैकड़ों पेन ड्राइव बांटे थे जिनमें प्रज्वल की सेक्स स्कैम में कथित संलिप्तता को संबंधित वीडियो थे. बाद में प्रीतम के वॉकथॉन से हटने के बाद कुमारस्वामी ने फैसला किया कि उनकी पार्टी के लोग पदयात्रा में शामिल होंगे.

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कांग्रेस नेता राज्य में पिछली भाजपा सरकार के वक्त हुए घोटालों को उजागर करने के लिए बेंगलुरु-मैसूर मार्ग पर एक आंदोलन की योजना बना रहे हैं. इसके अलावा कांग्रेस भाजपा के आंदोलन को ओबीसी नेता सिद्धारमैया को बदनाम करने और उन्हें सीएम पद से हटाने की साजिश के रूप में पेश कर रही है.

राज्यपाल गहलोत, जो फिलहाल नई दिल्ली में हैं, के 5 अगस्त को बेंगलुरु लौटने की उम्मीद है. इसके बाद ही सिद्धारमैया के खिलाफ मुकदमा चलाने की अनुमति दी जाए या नहीं वह इस पर फैसला लेगें. चूंकि मुकदमा शुरू होने पर इस्तीफा देने की कोई संवैधानिक आवश्यकता नहीं है, इसलिए ऐसे संकेत मिल रहे हैं कि सिद्धारमैया और कांग्रेस पार्टी दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल का उदाहरण देते हुए विद्रोह का रुख अपना सकते हैं. आने वाले दिनों में जब इस मुद्दे हाई-वोल्टेज राजनीति होगी तह देखना होगा कि इसका कितना असर शासन व्यवस्था पर पड़ता है.

(ओपिनियन: रामकृष्ण उपाध्याय)

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मनोज शर्मा

मनोज शर्मा (जन्म 1968) स्वर्णिम भारत के संस्थापक-प्रकाशक , प्रधान संपादक और मेन्टम सॉफ्टवेयर प्राइवेट लिमिटेड के मुख्य कार्यकारी अधिकारी हैं।

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